39 सूरए ज़ुमर

39 सूरए  ज़ुमर

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ
إِنَّا أَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ فَاعْبُدِ اللَّهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّينَ
أَلَا لِلَّهِ الدِّينُ الْخَالِصُ ۚ وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَا إِلَى اللَّهِ زُلْفَىٰ إِنَّ اللَّهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِي مَا هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ كَاذِبٌ كَفَّارٌ
لَّوْ أَرَادَ اللَّهُ أَن يَتَّخِذَ وَلَدًا لَّاصْطَفَىٰ مِمَّا يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ سُبْحَانَهُ ۖ هُوَ اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ
خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ ۖ يُكَوِّرُ اللَّيْلَ عَلَى النَّهَارِ وَيُكَوِّرُ النَّهَارَ عَلَى اللَّيْلِ ۖ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُّسَمًّى ۗ أَلَا هُوَ الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ
خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ الْأَنْعَامِ ثَمَانِيَةَ أَزْوَاجٍ ۚ يَخْلُقُكُمْ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ خَلْقًا مِّن بَعْدِ خَلْقٍ فِي ظُلُمَاتٍ ثَلَاثٍ ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۖ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُصْرَفُونَ
إِن تَكْفُرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمْ ۖ وَلَا يَرْضَىٰ لِعِبَادِهِ الْكُفْرَ ۖ وَإِن تَشْكُرُوا يَرْضَهُ لَكُمْ ۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۗ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
۞ وَإِذَا مَسَّ الْإِنسَانَ ضُرٌّ دَعَا رَبَّهُ مُنِيبًا إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُ نِعْمَةً مِّنْهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدْعُو إِلَيْهِ مِن قَبْلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادًا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِ ۚ قُلْ تَمَتَّعْ بِكُفْرِكَ قَلِيلًا ۖ إِنَّكَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ
أَمَّنْ هُوَ قَانِتٌ آنَاءَ اللَّيْلِ سَاجِدًا وَقَائِمًا يَحْذَرُ الْآخِرَةَ وَيَرْجُو رَحْمَةَ رَبِّهِ ۗ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَالَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ ۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُولُو الْأَلْبَابِ

सूरए ज़ुमर मक्का में उतरी, इसमें 75 आयतें, आठ रूकू हैं.
 -पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए ज़ुमर मक्के में उतरी सिवा आयत “क़ुल या इबादियल लज़ीना असरफ़ू” और “अल्लाहो नज़्ज़ला अहसनल हदीसे” के. इस सूरत में आठ रूकू, पछहत्तर आयतें, एक हज़ार एक सौ बहत्तर कलिमे और चार हज़ार नौ सौ आठ अक्षर है.

किताब(2)
(2) किताब से मुराद क़ुरआन शरीफ़ है.

उतारना है अल्लाह इज़्ज़त व हिकमत (बोध) वाले की तरफ़ से {1} बेशक हमने तुम्हारी तरफ़(3)
(3) ऐ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम.

यह किताब हक़(सत्य) के साथ उतारी तो अल्लाह को पूजो निरे उसके बन्दे होकर {2} हाँ ख़ालिस अल्लाह ही की बन्दगी है(4)
(4) उसके सिवा कोई इबादत का मुस्तहिक़ नहीं.

और वो जिन्होंने उसके सिवा और वाली (सरपरस्त) बना लिये (5)
(5) मअबूद ठहरा लिये .मुराद इससे बुत-परस्त हैं.

कहते हैं हम तो उन्हें(6)
(6) यानी बुतों को.

सिर्फ़ इतनी बात के लिये पूजते हैं कि ये हमें अल्लाह के पास नज़्दीक़ कर दें, अल्लाह उनमें फ़ैसला कर देगा उस बात का जिसमें इख़्तिलाफ़ (मतभेद) कर रहे हैं(7)
(7) ईमानदारों को जन्नत में और काफ़िरों को दोज़ख़ में दाख़िल फ़रमा कर.

बेशक अल्लाह राह नहीं देता उसे जो झूठा बड़ा नाशुक्रा हो(8){3}
(8) झूटा इस बात में कि बुतों को अल्लाह तआला से नज़्दीक करने वाला बताए और ख़ुदा के लिये औलाद ठहराए और नाशुक्रा ऐसा कि बुतों को पूजे.

अल्लाह अपने लिये बच्चा बनाता तो अपनी मख़लूक़ में से जिसे चाहता चुन लेता(9)
(9) यानी अगर बिलफ़र्ज़ अल्लाह तआला के लिये औलाद मुमकिन होती तो वह जिसे चाहता औलाद बनाता न कि यह प्रस्ताव काफ़िरों पर छोड़ता कि वो जिसे चाहे ख़ुदा की औलाद क़रार दें.

पाकी है उसे(10)
(10) औलाद से और हर उस चीज़ से जो उसकी शाने अक़दस के लायक़ नहीं.

वही है एक अल्लाह(11)
(11) न उसका कोई शरीक न उसकी कोई औलाद.

सब पर ग़ालिब {4} उसने आसमान और ज़मीन हक़ बनाए रात को दिन पर लपेटता है और दिन को रात पर लपेटता है(12)
(12) यानी कभी रात की तारीकी से दिन के एक हिस्से को छुपाता है और कभी दिन की रौशनी से रात के हिस्से को. मुराद यह है कि कभी दिन का वक़्त घटा कर रात को बढ़ाता है कभी रात घटा कर दिन को ज़्यादा करता है और रात और दिन में से घटने वाला घटते घटते दस घण्टे का रह जाता है और बढ़ने वाला बढ़ते बढ़ते चौदह घण्टे का हो जाता है.

और उसने सूरज और चांद को काम में लगाया हर एक एक ठहराई मीआद के लिये चलता है(13)
(13) यानी क़यामत तक वह अपने निर्धारित निज़ाम पर चलते रहेंगे.

सुनता है वही इज़्ज़त वाला बख़्शने वाला है {5} उसने तुम्हें एक जान से बनाया(14)
(14) यानी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से.

फिर उसी से उसका जोड़ा पैदा किया(15)
(15) यानी हज़रत हव्वा को.

और तुम्हारे लिये चौपायों में से(16)
(16) यानी ऊंट, गाय, बकरी, भेड़ से.

आठ जोड़े उतारे(17)
(17) यानी पैदा किये जोड़ों से, मुराद नर और मादा हें.

तुम्हें तुम्हारी माओ के पेट में बनाता है एक तरह के बाद और तरह  (18)
(18) यानी नुत्फ़ा, फिर बँधा हुआ ख़ून, फिर गोश्त का टुकड़ा.

तीन अंधेरियों में (19)
(19) एक अंधेरी पेट की, दूसरी गर्भ की, तीसरी बच्चे दानी की.

यह है अल्लाह तुम्हारा रब उसी की बादशाही है, उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं फिर कहां फिरे जाते हो(20){6}
(20) और सच्चाई के रास्ते से दूर होते हो कि उसकी इबादत छोड़ कर ग़ैर की इबादत करते हो.

अगर तुम नाशुक्री करो तो बेशक अल्लाह बेनियाज़ है तुम से(21)
(21)  यानी तुम्हारी ताअत व इबादत से और तुम ही उसके मोहताज हो, ईमान लाने में तुम्हारा ही नफ़ा है, और काफ़िर हो जाने में तुम्हारा ही नुक़सान है.

और अपने बन्दों की नाशुक्री उसे पसन्द नहीं, और अगर शुक्र करो तो इसे तुम्हारे लिए पसंद फ़रमाता है(22)
(22) कि वह तुम्हारी कामयाबी का कारण है. उसपर तुम्हें सवाब देगा और जन्नत अता फ़रमाएगा.

और कोई बोझ उठाने वाली जान दूसरे का बोझ नहीं उठाएगी(23)
(23) यानी कोई व्यक्ति दूसरे के गुनाह में न पकड़ा जाएगा.

फिर तुम्हें अपने रब ही की तरफ़ फिरना है(24)
(24) आख़िरत में.

तो वह तुम्हें बता देगा जो तुम करते थे(25)
(25) दुनिया में और उसकी तुम्हें जज़ा देगा.

बेशक वह दिलों की बात जानता है {7} और जब आदमी को कोई तक़लीफ़ पहुंचती है(26)
(26) यहाँ आदमी से निरा काफ़िर या ख़ास अबू जहल या उतबा बिन रबीआ मुराद है.

अपने रब को पुकारता है उसी तरफ़ झुका हुआ(27)
(27) उसी से फ़रियाद करता है.

फिर जब अल्लाह ने उसे अपने पास से कोई नअमत दी तो भूल जाता है जिस लिये पहले पुकारा था(28)
(28) यानी उस सख़्ती और तकलीफ़ को भुला देता है जिसके लिये अल्लाह से फ़रियाद की थी.

और अल्लाह के लिये बराबर वाले ठहराने लगता है(29)
(29) यानी हाजत की पूर्ति के बाद फिर बुत परस्ती में पड़ जाता है.

ताकि उसकी राह से बहका दे, तुम फ़रमाओ(30)
(30) ऐ मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, उस काफ़िर से.

थोड़े दिन अपने कुफ़्र के साथ बरत ले(31)
(31) और दुनिया की ज़िन्दगी के दिन पूरे कर ले.

बेशक तू दोज़ख़ियों में है{8} क्या वह जिसे फ़रमाँबरदारी में रात की घड़ियां गुज़रीं सूजूद और क़याम में (32)
(32) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि आयत हज़रत अबूबक्र और हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हुमा की शान में नाज़िल हुई और हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि यह आयत हज़रत उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो के हक़ में नाज़िल हुई और एक क़ौल यह है कि हज़रत इब्ने मसऊद और हज़रत अम्मार और हज़रत सलमान रदियल्लाहो अन्हुम के हक़ में उतरी. इस आयत से साबित हुआ कि रात के नफ़्ल और इबादत दिन के नफ़लों से बढ़कर हैं. इसकी वजह तो यह है कि रात का अमल पोशीदा होता है इसलिये वह रिया से बहुत दूर होता है. दूसरे यह कि दुनिया के कारोबार बन्द होते हैं इसलिये दिल दिन की अपेक्षा बहुत फ़ारिग़ होता है और अल्लाह की तरफ़ तवज्जह और एकाग्रता दिन से ज़्यादा रात में मयस्सर आती है तीसरे, रात चूंकि राहत और नींद का समय होता है इसलिये उसमें जागना नफ़्स  को कठिन परिश्रम में डालता है तो सवाब भी उसका ज़्यादा होगा.

आख़िरत में डरता और अपने रब की रहमत की आस लगा(33)
(33) इससे साबित हुआ कि ईमान वाले के लिये लाज़िम है कि वह डर और उम्मीद के बीच हो. अपने कर्मों की कमी पर नज़र करके अज़ाब से डरता रहे और अल्लाह तआला की रहमत का उम्मीदवार रहे. दुनिया में बिल्कुल निडर होना या अल्लाह तआला की रहमत से बिल्कुल मायूस होना, ये दोनों क़ुरआने पाक में काफ़िरों की हालतें बताई गई हैं. अल्लाह तआला फ़रमाता है “फ़ला यअमनो मकरल्लाहे इल्लल क़ौमुल ख़ासिरून” यानी तो अल्लाह की छुपी तदबीर से निडर नहीं होते मगर तबाही वाले (सूरए अअराफ़, आयत 99), और इरशाद है”ला यएसो मिन रौहिल्लाहे इल्लल क़ौमुल काफ़िरून” यानी बेशक अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद नहीं होते मगर काफ़िर लोग. (सूरए यूसुफ़, आयत 87)
क्या वह नाफ़रमानों जैसा हो जाएगा तुम फ़रमाओ क्या बराबर हैं जानने वाले और अनजान, नसीहत तो वही मानते हैं जो अक़्ल वाले हैं{9}

39 सूरए ज़ुमर -दूसरा रूकू

39 सूरए  ज़ुमर -दूसरा रूकू

قُلْ يَا عِبَادِ الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا رَبَّكُمْ ۚ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَٰذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۗ وَأَرْضُ اللَّهِ وَاسِعَةٌ ۗ إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُونَ أَجْرَهُم بِغَيْرِ حِسَابٍ
قُلْ إِنِّي أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ مُخْلِصًا لَّهُ الدِّينَ
وَأُمِرْتُ لِأَنْ أَكُونَ أَوَّلَ الْمُسْلِمِينَ
قُلْ إِنِّي أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ
قُلِ اللَّهَ أَعْبُدُ مُخْلِصًا لَّهُ دِينِي
فَاعْبُدُوا مَا شِئْتُم مِّن دُونِهِ ۗ قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ
لَهُم مِّن فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِّنَ النَّارِ وَمِن تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ ۚ يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ
وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَن يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَىٰ ۚ فَبَشِّرْ عِبَادِ
الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ ۚ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمْ أُولُو الْأَلْبَابِ
أَفَمَنْ حَقَّ عَلَيْهِ كَلِمَةُ الْعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي النَّارِ
لَٰكِنِ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ لَهُمْ غُرَفٌ مِّن فَوْقِهَا غُرَفٌ مَّبْنِيَّةٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ وَعْدَ اللَّهِ ۖ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ الْمِيعَادَ
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَسَلَكَهُ يَنَابِيعَ فِي الْأَرْضِ ثُمَّ يُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا مُّخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَجْعَلُهُ حُطَامًا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكْرَىٰ لِأُولِي الْأَلْبَابِ

तुम फ़रमाओ ऐ मेरे बन्दों जो ईमान लाए अपने रब से डरो जिन्होंने भलाई की (1)
(1) फ़रमाँबरदारी की और अच्छे कर्म किये.

उनके लिये दुनिया में भलाई है(2)
(2) यानी सेहत और आफ़ियत.

और अल्लाह की ज़मीन फैली हुई है (3)
(3) इसमें हिजरत की तरग़ीब है कि जिस शहर में गुनाहों की ज़ियादती हो और वहाँ के रहने वाले आदमी को अपनी दीनदारी पर क़ायम रहना दुशवार हो जाए, चाहिये कि उस जगह को छोड़ दे और वहाँ से हिजरत कर जाए. यह आयत हबशा के मुहाजिरों के हक़ में उतरी और यह भी कहा गया है कि हज़रत जअफ़र बिन अबी तालिब और उनके साथियों के हक़ में उतरी जिन्हों ने मुसीबतों और बलाओ पर सब्र किया और हिजरत की  और अपने दीन पर क़ायम रहे, उसको छोड़ना गवारा न किया.

साबिरों ही को उनका सवाब भरपूर दिया जाएगा बेगिनती(4) {10}
(4) हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि हर नेकी करने वाले की नेकियों का वज़न किया जाएगा, सिवाय सब्र करने वालों के कि उन्हें बे अन्दाज़ा और बेहिसाब दिया जाएगा और यह भी रिवायत है कि मुसीबत और बला वाले लोग हाज़िर किये जाएंगे, न उनके लिये मीज़ान क़ायम की जाए, न उनके लिये दफ़्तर खोले जाएं. उन पर अज्र और सवाब की बेहिसाब बारिश होगी, यहाँ तक कि दुनिया में आफ़ियत की ज़िन्दगी बसर करने वाले उन्हें देखकर आरज़ू करेंगे कि काश वो मुसीबत वालों में से होते और उनके जिस्म क़ैंचियों से काटे गए होते कि आज यह सब्र का फल पाते.

तुम फ़रमाओ (5)
(5) ऐ नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम.

मुझे हुक्म है कि अल्लाह को पूजूं निरा उसका बन्दा होकर {11} और मुझे हुक्म है कि मैं सबसे पहले गर्दन रखूं (6) {12}
(6) और फ़रमाँबरदार और ख़ूलूस वालों में मुक़द्दम और साबिक़ यानी आगे और पीछे हों. अल्लाह तआला ने पहले इख़लास का हुक्म दिया जो दिल का अमल है फिर फ़रमाँबरदारी यानी अंगों के कामों का. चूंकि शरीअत के अहकाम रसूल से हासिल होते हैं वही उनके पहुंचाने वाले हैं तो वो उनके शुरू करने में सब से मुक़द्दस और अव्वल हुए. अल्लाह तआला ने अपने रसूल को यह हुक्म देकर तस्बीह की कि दूसरों पर इसकी पाबन्दी निहायत ज़रूरी है और दूसरों की तरग़ीब के लिये नबी अलैहिस्सलाम को यह हुक्म दिया गया.

तुम फ़रमाओ फ़र्ज़ करो अगर मुझसे नाफ़रमानी हो जाए तो मुझे भी अपने रब से एक बड़े दिन के अज़ाब का डर है(7){13}
(7) क़ुरैश के काफ़िरों ने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा था कि आप अपनी क़ौम के सरदारों और अपने रिश्तेदारों को नहीं देखते जो लात और उज़्ज़ा की पूजा करते हैं उनके रद में यह आयत उतरी.

तुम फ़रमाओ मैं अल्लाह ही को पूजता हूँ निरा उसका बन्दा होकर {14} तो तुम उसके सिवा जिसे चाहो पूजो(8)
(8) हिदायत और तम्बीह के तरीक़े पर फ़रमाया.

तुम फ़रमाओ पूरी हार उन्हें जो अपनी जान और अपने घर वाले क़यामत के दिन हार बैठे (9)
(9) यानी गुमराही इख़्तियार करके हमेशा के लिये जहन्नम के मुस्तहिक़ हो गए और जन्नत की नेअमतों से मेहरूम हो गए जो ईमान लाने पर उन्हें मिलतीं.

हां हां यही खुली हार है {15} उन के ऊपर आग के पहाड़ हैं और उन के नीचे पहाड़ (10)
(10) यानी हर तरफ़ से आग उन्हें घेरे हुए हैं.

इससे अल्लाह डराता है अपने बन्दों को (11)
(11) कि ईमान लाएं और मना की हुई बातों से बचें.

ऐ मेरे बन्दों तुम मुझ से डरो (12) {16}
(12) वह काम न करो जो मेरी नाराज़ी का कारण हो.

और वो जो बुतों की पूजा से बचे और अल्लाह की तरफ़ रूजू हुए उन्हीं के लिये ख़ुशख़बरी है तो ख़ुशी सुनाओ मेरे उन बन्दों को {17} जो कान लगाकर बात सुनें फिर उसके बेहतर पर चलें(13)
(13) जिसमें उनकी भलाई हो.

ये हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत फ़रमाई और ये हैं जिनको अक़्ल है(14) {18}
(14) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि जब हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ईमान लाए तो आपके पास हज़रत उस्मान और अब्दुर्रहमान बिन औंफ़ और तलहा और ज़ुबैर और सअद बिन अबी वक़क़ास और सईद बिन ज़ैद आए और उनसे पूछा. उन्होंने अपने ईमान की ख़बर दी ये हज़रत भी सुनकर ईमान ले आए. इन के हक़ में यह आयत उतरी “फ़बश्शिर इबादिल्लज़ीना” ख़ुशी सुनाओ मेरे उन बन्दों को जो कान लगाकर बात सुने….

तो क्या वह जिसपर अज़ाब की बात साबित हो चुकी निजात वालों के बराबर हो जाएगा तो क्या तुम हिदायत देकर आग के मुस्तहिक़ को बचा लोगे(15) {19}
(15) जो अज़ली बदबख़्त और अल्लाह के इल्म में जहन्नमी है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मुराद इससे अबू लहब और उसके लड़के हैं.

लेकिन वह जो अपने रब से डरे(16)
(16) और उन्होंने अल्लाह तआला की फ़रमाँबरदारी की.

उनके लिये बालाख़ाने हैं उनपर बालाख़ाने बनें(17)
(17) यानी जन्नत की ऊंची मंज़िलें जिनके ऊपर और बलन्द मंज़िलें हैं.

उनके नीचे नेहरें बहें, अल्लाह का वादा, अल्लाह का वादा ख़िलाफ़ नहीं करता {20} क्या तूने न देखा कि अल्लाह ने आसमान से पानी उतारा फिर उससे ज़मीन में चश्मे बनाए फिर उससे खेती निकालता है कई रंगत की(18)
(18) पीली हरी सुर्ख़ सफ़ेद, क़िस्म की, गेहूँ जौ और तरह तरह के ग़ल्ले.

फिर सूख जाती है तो तू देखे कि वह (19)
(19) हरी भरी होने के बाद.

पीली पड़ गई फिर उसे रेज़ा रेज़ा कर देता है, बेशक इसमें ध्यान की बात है अक़्लमन्दों को(20){21}
(20) जो उससे अल्लाह तआला की वहदानियत और क़ुदरत पर दलीलें कायम करते हैं.

39 सूरए ज़ुमर -तीसरा रूकू

39 सूरए  ज़ुमर -तीसरा रूकू

أَفَمَن شَرَحَ اللَّهُ صَدْرَهُ لِلْإِسْلَامِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٍ مِّن رَّبِّهِ ۚ فَوَيْلٌ لِّلْقَاسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكْرِ اللَّهِ ۚ أُولَٰئِكَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ
اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُّتَشَابِهًا مَّثَانِيَ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَىٰ ذِكْرِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُدَى اللَّهِ يَهْدِي بِهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ
أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجْهِهِ سُوءَ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ وَقِيلَ لِلظَّالِمِينَ ذُوقُوا مَا كُنتُمْ تَكْسِبُونَ
كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَأَتَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ
فَأَذَاقَهُمُ اللَّهُ الْخِزْيَ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا الْقُرْآنِ مِن كُلِّ مَثَلٍ لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
قُرْآنًا عَرَبِيًّا غَيْرَ ذِي عِوَجٍ لَّعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ
ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا رَّجُلًا فِيهِ شُرَكَاءُ مُتَشَاكِسُونَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِّرَجُلٍ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا ۚ الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
إِنَّكَ مَيِّتٌ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ
ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عِندَ رَبِّكُمْ تَخْتَصِمُونَ

तो क्या वह जिसका सीना अल्लाह ने इस्लाम के लिये खोल दिया(1)
(1) और उसको हक़ क़ुबूल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाई.

तो वह अपने रब की तरफ़ से नूर पर है(2)
(2)  यानी यक़ीन और हिदायत पर, रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने जब यह आयत तिलावत फ़रमाई तो सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह, सीने का ख़ुलना किस तरह होता है फ़रमाया कि जब नूर दिल में दाख़िल होता है तो व खुलता है और उसमें फैलावा होता है. सहाबा ने अर्ज़ किया इसकी निशानी क्या है. फ़रमाया, जन्नतों की दुनिया की तरफ़ मुतवज्जह होना और दुनिया से दूर रहना और मौत के लिये उसके आने से पहले तैयार होना.

उस जैसा हो जाएगा जो संगदिल है तो ख़राबी है उनकी जिनके दिल ख़ुदा की याद की तरफ़ से सख़्त हो गए हैं(3)
(3) नफ़्स जब ख़बीस होता है तो सच्चाई क़ुबूल करने से उस को बहुत दूरी हो जाती है और अल्लाह का ज़िक्र सुनने से उसकी सख़्ती और दिल की कटुता बढ़ती है जैसे कि सूरज की गर्मी से मोम नर्म हो जाता है और नमक सख़्त होता है ऐसे ही अल्लाह के ज़िक्र से ईमान वालों के दिल नर्म होते हैं और काफ़िरों के दिलों की सख़्ती और बढ़ती है, इस आयत से उन लोगों को इब्रत पकड़नी चाहिये जिन्हों ने अल्लाह के ज़िक्र को रोकना अपना तरीक़ा बना लिया है, वो सूफ़ियों के ज़िक्र को भी मना करते हैं. नमाज़ों के बाद अल्लाह के ज़िक्र करने वालों को भी रोकते हैं और मना करते हैं. ईसाले सवाब के लिये क़ुरआन शरीफ़ और कलिमा पढ़ने वालों को भी बिदअती बताते हैं और उन ज़िक्र की मेहफ़िलों से बहुत घबराते हैं. अल्लाह तआला हिदायत दे.

वो खुली गुमराही में हैं {22} अल्लाह ने उतारी सबसे अच्छी किताब (4)
(4) क़ुरआन शरीफ़, जो इबारत में ऐसा फ़सीह बलीग़ कि कोई कलाम उससे कुछ निस्बत ही नहीं रख सकता. मज़मून बहुत मन भावन जब कि न कविता है न शेअर. निराले ही अन्दाज़ पर आधारित है और मानी में ऐसा ऊंचे दर्जे का कि तमाम उलूम का जमा करने वाला और अल्लाह की पहचान जैसी महान नेअमत की तरफ़ ले जाने वाला.

कि अव्वल से आख़िर तक एक सी है (5)
(5) हुस्नो ख़ूबी में.

दोहरे बयान वाली(6)
(6) कि उसमें ख़ुशख़बरी के साथ चेतावनी, और हुक्म के साथ मनाही, और सूचनाओ के साथ आदेश मौजूद हैं.

इससे बाल खड़े होते हैं उनके बदन पर जो अपने रब से डरते हैं फिर उनकी खालें और दिल नर्म पड़ते हैं ख़ुदा की याद की तरफ़ रग़बत में (7)
(7) हज़रत क़तादह रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि ये अल्लाह के वलियों की विशेषता है कि अल्लाह के ज़िक्र से उनके बाल खड़े होते हैं, शरीर काँपते हैं और दिल चैन पाते हैं.

यह अल्लाह की हिदायत है राह दिखाए इससे जिसे चाहे, और जिसे अल्लाह गुमराह करे उसे कोई राह दिखाने वाला नहीं{23} तो क्या वह जो क़यामत के दिन बुरे अज़ाब की ढाल न पाएगा अपने चेहरे के सिवा(8)
(8) वह काफ़िर है जिसके हाथ गर्दन के साथ मिलाकर बाँध दिये जाएंगे और उसकी गर्दन में गन्धक का एक जलता हुआ पहाड़ पड़ा होगा जो उसके चेहरे को भूने डालता होगा. इस हाल से औंधा करके जहन्नम की आग में गिराया जाएगा.

निजात वाले की तरह हो जाएगा(9)
(9) यानी उस मूमिन की तरह जो अज़ाब से अम्न और हिफ़ाज़त में हो.

और ज़ालिमों से फ़रमाया जाएगा अपना कमाया चखो(10){24}
(10) यानी दुनिया में जो कुफ़्र और सरकशी इख़्तियार की थी अब उसका वबाल और अज़ाब बर्दाश्त करो.

उनसे अगलों ने झुटलाया(11)
(11) यानी मक्के के काफ़िरों से पहले काफ़िरों ने रसूलों को झुटलाया.

तो उन्हें अज़ाब आया जहाँ से उन्हें ख़बर न थी(12) {25}
(12) अज़ाब आने का ख़तरा भी न था. ग़फ़लत में पड़े हुए थे.

और अल्लाह ने उन्हें दुनिया की ज़िन्दगी में रूसवाई का मज़ा चखाया(13)
(13) किसी क़ौम की सूरतें बिगाड़ीं, किसी को ज़मीन में धंसाया.

और बेशक आख़िरत का अज़ाब सबसे बड़ा, क्या अच्छा था अगर वो जानते(14) {26}
(14) और ईमान ले आते, झुटलाते नहीं.

और बेशक हमने लोगों के लिये इस क़ुरआन में हर क़िस्म की कहावत बयान फ़रमाई कि किसी तरह उन्हें ध्यान हो(15) {27}
(15) और वो नसीहत क़ुबूल करें.

अरबी ज़बान का क़ुरआन(16)
(16) ऐसा फ़सीह जिसने फ़सीह और बलीग़ लोगों को लाचार कर दिया.

जिसमें असलन कजी नहीं(17)
(17) यानी दोष और इख़्तिलाफ़ से पाक.

कि कहीं वो डरें (18) {28}
(18)और कुफ़्र और झुटलाने से बाज़ आएं.

अल्लाह एक मिसाल बयान फ़रमाता है (19)
(19)मुश्रिक और एक ख़ुदा को मानने वाले की.

एक ग़ुलाम में कई बदख़ू आक़ा शरीक और एक निरे एक मौला का, क्या उन दोनों का हाल एक सा है(20)
(20) यानी एक जमाअत का ग़ुलाम काफ़ी परेशान होता है हर एक आक़ा उसे अपनी तरफ़ खींचता है और अपने अपने काम बताता है वह हैरान है कि किस का हुक्म माने और किस तरह आक़ाओं को राज़ी करे और ख़ुद उस ग़ुलाम को जब कोई हाजत पेश हो तो किस आक़ा से कहे. उस ग़ुलाम के विपरीत जिसका एक ही स्वामी हो, वह उसकी ख़िदमत करके उसे राज़ी कर सकता है और जब कोई हाजत पेश आए तो उसी से अर्ज़ कर सकता है उसको कोई परेशानी पेश नहीं आती. यह हाल मूमिन का है जो एक मालिक का बन्दा है उसी की इबादत करता है और मुश्रिक जमाअत के ग़ुलाम की तरह है कि उसने बहुत से मअबूद क़रार दे दिये हैं.

सब ख़ूबियाँ अल्लाह को(21)
(21) जो अकेला है उसके सिवा कोई मअबूद नहीं.

बल्कि उनके अक्सर नहीं जानते(22){29}
(22) कि उसके सिवा कोई इबादत का मुस्तहिक़ नहीं.

बेशक तुम्हें इन्तिक़ाल फ़रमाना है और उनको भी मरना है(23) {30}
(23) इसमें काफ़िरों का रद है जो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की वफ़ात का इन्तिज़ार किया करते थे उन्हें फ़रमाया गया कि ख़ुद मरने वाले होकर दूसरे की मौत का इन्तिज़ार करना मू्र्खता है. काफ़िर तो ज़िन्दगी में भी मरे हुए हैं और नबियों की मौत एक आन के लिये होती है फिर उन्हे ज़िन्दगी अता फ़रमाई जाती है इसपर बहुत सी शरई दलीलें क़ायम हैं.

फिर तुम क़यामत के दिन अपने रब के पास झगड़ोगे(24) {31}
(24) नबी उम्मत पर तर्क क़ायम करेंगे कि उन्होंने रिसालत की तबलीग़ की और दीन की दावत देने में अनथक कोशिश की और काफ़िर बेकार के बहाने पेश करेंगे, यह भी कहा गया है कि यह आम तरह का झगड़ना है कि लोग सांसरिक अधिकारों के लिये झगडेंगे और हर एक अपना हक़ तलब करेगा.
पारा तेईस समाप्त

39 सूरए ज़ुमर -चौथा रूकू

चौबीसवां पारा – फ़मन अज़्लमो
(सूरए ज़ुमर जारी)
39 सूरए  ज़ुमर -चौथा रूकू

۞ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى اللَّهِ وَكَذَّبَ بِالصِّدْقِ إِذْ جَاءَهُ ۚ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْكَافِرِينَ
وَالَّذِي جَاءَ بِالصِّدْقِ وَصَدَّقَ بِهِ ۙ أُولَٰئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ
لَهُم مَّا يَشَاءُونَ عِندَ رَبِّهِمْ ۚ ذَٰلِكَ جَزَاءُ الْمُحْسِنِينَ
لِيُكَفِّرَ اللَّهُ عَنْهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي عَمِلُوا وَيَجْزِيَهُمْ أَجْرَهُم بِأَحْسَنِ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ
أَلَيْسَ اللَّهُ بِكَافٍ عَبْدَهُ ۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِالَّذِينَ مِن دُونِهِ ۚ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ
وَمَن يَهْدِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن مُّضِلٍّ ۗ أَلَيْسَ اللَّهُ بِعَزِيزٍ ذِي انتِقَامٍ
وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۚ قُلْ أَفَرَأَيْتُم مَّا تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ إِنْ أَرَادَنِيَ اللَّهُ بِضُرٍّ هَلْ هُنَّ كَاشِفَاتُ ضُرِّهِ أَوْ أَرَادَنِي بِرَحْمَةٍ هَلْ هُنَّ مُمْسِكَاتُ رَحْمَتِهِ ۚ قُلْ حَسْبِيَ اللَّهُ ۖ عَلَيْهِ يَتَوَكَّلُ الْمُتَوَكِّلُونَ
قُلْ يَا قَوْمِ اعْمَلُوا عَلَىٰ مَكَانَتِكُمْ إِنِّي عَامِلٌ ۖ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ
مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌ مُّقِيمٌ
إِنَّا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ لِلنَّاسِ بِالْحَقِّ ۖ فَمَنِ اهْتَدَىٰ فَلِنَفْسِهِ ۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۖ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ

तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे(1)
(1) और उसके लिये शरीक और औलाद क़रार दे.

और हक़ (सत्य) को झुटलाए(2)
(2) यानी क़ुरआन शरीफ़ को या रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत को.

जब उसके पास आए, क्या जहन्नम में काफ़िरों का ठिकाना नहीं {32} और वो जो यह सच लेकर तशरीफ़ लाए (3)
(3) यानी रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम, जो तौहीदे इलाही लाए.

और वो जिन्होंने उनकी तस्दीक़ (पुष्टि) की (4)
(4) यानी हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहो अन्हो या सारे मूमिन लोग.

यही डर वाले हैं {33} उनके लिये है जो वो चाहें अपने रब के पास, नेकों का यही सिला है {34} ताकि अल्लाह उनसे उतार दे बुरे से बुरा काम जो उन्होंने किया और उन्हें उनके सवाब का सिला दे अच्छे से अच्छे काम पर (5)
(5) यानी उन की बुराईयों पर पकड़ न करे और नेकियों की बेहतरीन जज़ा अता फ़रमाए.

जो वो करते थे {35} क्या अल्लाह अपने बन्दों को काफ़ी नहीं(6),
(6) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के लिये, और एक क़िरअत में “इबादहू”  भी आया है. उस सूरत में नबी अलैहमुस्सलाम मुराद हैं, जिन के साथ उनकी क़ौम ने ईज़ा रसानी के इरादे किये. अल्लाह तआला ने उन्हें दुश्मनों की शरारत से मेहफ़ूज़ रखा और उनकी मदद फ़रमाई.

और तुम्हें डराते हैं उसके सिवा औरों से(7)
(7) यानी बुतों से, वाक़िआ यह था कि अरब के काफ़िरों ने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को डराना चाहा और आपसे कहा कि आप हमारे मअबूदों यानी बुतों की बुराइयाँ बयान करने से बाज़ आइये वरना वो आप को नुक़सान पहुंचाएंगे, हलाक कर देंगे, या अक़्ल को ख़राब कर देंगे.

और जिसे अल्लाह गुमराह करे उसकी कोई हिदायत करने वाला नहीं {36} और जिसे अल्लाह हिदायत दे उसे कोई बहकाने वाला नहीं, क्या अल्लाह इज़्ज़त वाला बदला लेने वाला नहीं?(8){37}
(8) बेशक वह अपने दुश्मनों से बदला लेता है.

और अगर तुम उनसे पूछो आसमान और ज़मीन किसने बनाए? तो ज़रूर कहेंगे अल्लाह ने(9),
(9) यानी ये मुश्रिक लोग हिकमत, क़ुदरत और इल्म वाले ख़ुदा की हस्ती को तो मानते हैं और यह बात तमाम ख़ल्क़ के नज़्दीक़ मुसल्लम है और ख़ल्क़ की फ़ितरत इसकी गवाह है और जो व्यक्ति आसमान और ज़मीन के चमत्कारों में नज़र करे उसको यक़ीनी तौर पर मालूम हो जाता है कि ये मौजूदात एक क़ादिर हकीम की बनाई हुई हैं. अल्लाह तआला अपने नबी अलैहिस्सलाम को हुक्म देता है कि आप इन मुश्रिकों पर हुज्जत क़ायम कीजिये चुनांन्चे फ़रमाता है.

तुम फ़रमाओ भला बताओ तो वो जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो(10)
(10) यानी बुतों को, यह भी तो देखो कि वो कुछ भी क़ुदरत रखते हैं और किसी काम भी आ सकते हैं.

अगर अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे(11)
(11)  किसी तरह की बीमारी की या दुष्काल की या नादारी की या और कोई.

तो क्या वो उसकी भेजी तकलीफ़ टाल देंगे या वह मुझ पर मेहर (रहम) फ़रमाना चाहे तो क्या वो उसकी मेहर को रोक रखेंगे(12)
(12) जब नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुश्रिकों से यह सवाल फ़रमाया तो वो लाजवाब हुए और साकित रह गए अब हुज्जत तमाम हो गई और उनकी इस ख़ामोशी वाली सहमति से साबित हो गया कि बुत मात्र बेक़ुदरत हैं, न कोई नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न कुछ हानि, उनको पूजना निरी जिहालत है. इसलिये अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इरशाद फ़रमाया.

तुम फ़रमाओ अल्लाह मुझे बस है(13),
(13) मेरा उसी पर भरोसा है और जिसका अल्लाह तआला हो वह किसी से भी नहीं डरता. तुम जो मुझे बुत जैसी बेक़ुदरत व बेइख़्तियार चीज़ों से डराते हो, यह तुम्हारी बहुत ही मूर्खता और जिहालत है.

भरोसे वाले उस पर भरोसा करें {38} तुम फ़रमाओ ऐ मेरी क़ौम अपनी जगह काम किये जाओ(14)
(14)और जो जो छलकपट और बहाने तुम से हो सकें, मेरी दुश्मनी में सब ही कर गुज़रो.

मैं अपना काम करता हूँ(15)
(15) जिसपर मामूर हूँ, यानी दीन का क़ायम करना और अल्लाह तआला मेरा मददगार है और उसी पर मेरा भरोसा है.

तो आगे जान जाओगे {39} किस पर आता है वह अज़ाब कि उसे रूस्वा करेगा(16)
(16) चुनांन्चे बद्र के दिन वो रूस्वाई के अज़ाब में जकड़े गए.

और किस पर उतरता है अज़ाब कि रह पड़ेगा(17){40}
(17) यानी हमेशा होगा और वह जहन्नम का अज़ाब है.

बेशक हमने तुम पर यह किताब लोगों की हिदायत को, हक़ के साथ उतारी (18)
(18)ताकि उससे हिदायत हासिल करें.

तो जिसने राह पाई तो अपने भले को (19),
(19)कि इस राह पाने का नफ़ा वही पाएगा.

और जो बहका वह अपने ही बुरे को बहका(20)
(20) उसकी गुमराही का ज़रर और वबाल उसी पर पड़ेगा.

और  तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार नहीं(21){41}
(21) तुम से उनके गुनाहों की पकड़ न की जाएगी.

39 सूरए ज़ुमर – पाँचवां रूकू

39 सूरए  ज़ुमर – पाँचवां रूकू

اللَّهُ يَتَوَفَّى الْأَنفُسَ حِينَ مَوْتِهَا وَالَّتِي لَمْ تَمُتْ فِي مَنَامِهَا ۖ فَيُمْسِكُ الَّتِي قَضَىٰ عَلَيْهَا الْمَوْتَ وَيُرْسِلُ الْأُخْرَىٰ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ
أَمِ اتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ شُفَعَاءَ ۚ قُلْ أَوَلَوْ كَانُوا لَا يَمْلِكُونَ شَيْئًا وَلَا يَعْقِلُونَ
قُل لِّلَّهِ الشَّفَاعَةُ جَمِيعًا ۖ لَّهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
وَإِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَحْدَهُ اشْمَأَزَّتْ قُلُوبُ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ ۖ وَإِذَا ذُكِرَ الَّذِينَ مِن دُونِهِ إِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُونَ
قُلِ اللَّهُمَّ فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ أَنتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
وَلَوْ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا مَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لَافْتَدَوْا بِهِ مِن سُوءِ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ اللَّهِ مَا لَمْ يَكُونُوا يَحْتَسِبُونَ
وَبَدَا لَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
فَإِذَا مَسَّ الْإِنسَانَ ضُرٌّ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلْنَاهُ نِعْمَةً مِّنَّا قَالَ إِنَّمَا أُوتِيتُهُ عَلَىٰ عِلْمٍ ۚ بَلْ هِيَ فِتْنَةٌ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
قَدْ قَالَهَا الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَمَا أَغْنَىٰ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَكْسِبُونَ
فَأَصَابَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا ۚ وَالَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ هَٰؤُلَاءِ سَيُصِيبُهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَمَا هُم بِمُعْجِزِينَ
أَوَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ

अल्लाह जानों को वफ़ात देता है उनकी मौत के वक़्त और जो न मरें उन्हें उनके सोते में. फिर जिस पर मौत का हुक्म फ़रमा दिया उसे रोक रखता है(1)
(1) यानी उस जान को उसके जिस्म की तरफ़ वापस नहीं करता.

और दूसरी(2)
(2) जिसकी मौत मुक़द्दर नहीं फ़रमाई, उसको —

एक निश्चित मीआद तक छोड़ देता है(3)
(3) यानी उसकी मौत के वक़्त तक.

बेशक इसमें ज़रूर निशानियां हैं सोचने वालों के लिये(4) {42}
(4) जो सोचें और समझें कि जो इसपर क़ादिर है वह ज़रूर मुर्दों को ज़िन्दा करने पर क़ादिर है.

क्या उन्हों ने अल्लाह के मुक़ाबिल कुछ सिफ़रिशी बना रखे हैं (5)
(5) यानी बुत, जिनके बारे में वो कहते थे कि ये अल्लाह के पास हमारे शफ़ीअ या सिफ़ारिशी हैं.

तुम फ़रमाओ क्या अगरचे वो किसी चीज़ के मालिक न हो(6)
(6) न शफ़ाअत के न और किसी चीज़ के.

और न अक़्ल रखें{43} तुम फ़रमाओ शफ़ाअत तो सब अल्लाह के हाथ में है(7)
(7) जो इसका माज़ून हो वही शफ़ाअत कर सकता है और अल्लाह तआला अपने बन्दों मे से जिसे चाहे शफ़ाअत का इज़्न देता है. बुतों को उसने शफ़ीअ (सिफ़ारिशी) नहीं बनाया और इबादत तो ख़ुदा के सिवा किसी की भी जायज़ नहीं, शफ़ीअ हो या न हो.

उसी के लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाही, फिर तुम्हें उसी की तरफ़ पलटना है(8){44}
(8) आख़िरत में.

और जब एक अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है दिल सिमट जाते हैं उनके जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते(9),
(9) और वो बहुत तंग दिल और परेशान होते हैं और नागवारी का असर उनके चेहरों पर ज़ाहिर हो जाता है.

और जब उसके सिवा औरों का ज़िक्र होता है(10)
(10) यानी बुतों का.

जभी वो ख़ुशियाँ मनाते हैं {45} तुम अर्ज़ करो ऐ अल्लाह आसमानों और ज़मीन के पैदा करने वाले, निहाँ (छुपे हुए) और अयाँ(ज़ाहिर) के जानने वाले, तू अपने बन्दों में फ़ैसला फ़रमाएगा जिसमें वो इख़्तिलाफ़ रखते थे(11){46}
(11) यानी दीन के काम में. इब्ने मुसैयब से नक़्ल है कि यह आयत पढ़कर जो दुआ मांगी जाए, क़ुबूल होती है.

और अगर ज़ालिमों के लिये होता जो कुछ ज़मीन में है सब और उसके साथ उस जैसा (12)
(12) यानी अगर फ़र्ज़ किया जाए कि काफ़िर सारी दुनिया के माल और ज़ख़ीरों के मालिक होते और इतना ही और भी उनके क़ब्ज़े में होता.

तो ये सब छुड़ाई(छुड़ाने) में देते क़यामत के रोज़ के बड़े अज़ाब से(13)
(13) कि किसी तरह ये माल देकर उन्हें इस भारी अज़ाब से छुटकारा मिल जाए.

और उन्हें अल्लाह की तरफ़ से वह बात ज़ाहिर हुई जो उनके ख़याल में न थी (14){47}
(14) यानी ऐसे ऐसे सख़्त अज़ाब जिनका उन्हें ख़याल भी न था. इस आयत की तफ़सीर में यह भी कहा गया है कि वो गुमान करते होंगे कि उनके पास नेकियां हैं और जब कर्मों का लेखा खुलेगा तो बुराईयाँ और गुनाह ज़ाहिर होंगे.

और उनपर अपनी कमाई हुई बुराइयां खुल गई(15)
(15) जो उन्हों ने दुनिया में की थीं. अल्लाह तआला के साथ शरीक करना और उसके दोस्तों पर ज़ुल्म करना वग़ैरह.

और उनपर आ पड़ा वह जिसकी हंसी बनाते थे(16) {48}
(16) यानी नबीये करीम अलैहिस्सलातो वस्सलाम के ख़बर देने पर वो जिस अज़ाब की हंसी बनाया करते थे. वह उतर गया और उसमें घिर गया.

फिर जब आदमी को कोई तकलीफ़ पहुंचती है तो हमें बुलाता है फिर जब उसे हम अपने पास से कोई नेअमत अता फ़रमाएं, कहता है यह तो मुझे एक इल्म की बदौलत मिली है(17),
(17) यानी मैं मआश यानी रोज़ी का जो इल्म रखता हूँ उसके ज़रिये से मैं ने यह दौलत कमाई जैसा कि क़ारून ने कहा था.

बल्कि वह तो आज़माइश है(18)
(18) यानी यह नेअमत अल्लाह तआला की तरफ़ से परीक्षा और आज़माइश है कि बन्दा उसपर शुक्र करता है या नाशुक्री.

मगर उनमें बहुतों को इल्म नहीं(19) {49}
(19) कि यह नेअमत और अता इस्तिदराज और इम्तिहान है.

उनसे अगले भी ऐसे ही कह चुके(20)
(20) यानी यह बात क़ारून ने भी कही थी कि यह दौलत मुझे अपने इल्म की बदौलत मिली और उसकी क़ौम उसकी इस बकवास पर राज़ी रही थी तो वह भी मानने वालों मे गिनी गई.

तो उनका कमाया उनके कुछ काम न आया {50} तो उनपर पड़ गई उनकी कमाइयों की बुराइयां (21)
(21) यानी जो कुकर्म उन्हों ने किये थे. उनकी सज़ाएं.

और वो जो उनमें ज़ालिम हैं, बहुत जल्द उनपर पड़ेगी उनकी कमाइयों की बुराइयां और क़ाबू से नहीं निकल सकते(22){51}क्या उन्हें मालूम नहीं कि अल्लाह रोज़ी कुशादा करता है जिसके लिये चाहे और तंग फ़रमाता है, बेशक इसमें ज़रूर निशानियां हैं ईमान वालों के लिये {52}
(22) चुनांन्चे वो सात वर्ष दुष्काल की मुसीबत में गिरफ़तार रख़े गए.