29 – सूरए अन्कबूत
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الم
أَحَسِبَ النَّاسُ أَن يُتْرَكُوا أَن يَقُولُوا آمَنَّا وَهُمْ لَا يُفْتَنُونَ
وَلَقَدْ فَتَنَّا الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۖ فَلَيَعْلَمَنَّ اللَّهُ الَّذِينَ صَدَقُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْكَاذِبِينَ
أَمْ حَسِبَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ أَن يَسْبِقُونَا ۚ سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ
مَن كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ اللَّهِ فَإِنَّ أَجَلَ اللَّهِ لَآتٍ ۚ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
وَمَن جَاهَدَ فَإِنَّمَا يُجَاهِدُ لِنَفْسِهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَغَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَحْسَنَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حُسْنًا ۖ وَإِن جَاهَدَاكَ لِتُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا ۚ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُدْخِلَنَّهُمْ فِي الصَّالِحِينَ
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ فَإِذَا أُوذِيَ فِي اللَّهِ جَعَلَ فِتْنَةَ النَّاسِ كَعَذَابِ اللَّهِ وَلَئِن جَاءَ نَصْرٌ مِّن رَّبِّكَ لَيَقُولُنَّ إِنَّا كُنَّا مَعَكُمْ ۚ أَوَلَيْسَ اللَّهُ بِأَعْلَمَ بِمَا فِي صُدُورِ الْعَالَمِينَ
وَلَيَعْلَمَنَّ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْمُنَافِقِينَ
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا اتَّبِعُوا سَبِيلَنَا وَلْنَحْمِلْ خَطَايَاكُمْ وَمَا هُم بِحَامِلِينَ مِنْ خَطَايَاهُم مِّن شَيْءٍ ۖ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
وَلَيَحْمِلُنَّ أَثْقَالَهُمْ وَأَثْقَالًا مَّعَ أَثْقَالِهِمْ ۖ وَلَيُسْأَلُنَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَمَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ
सूरए अन्कबूत मक्का में उतरी, इसमें 69 आयतें, 7 रूकू हैं,
– पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए अन्कबूत मक्के में उतरी. इस में सात रूकू, उन्हत्तर आयतें, नो सौ अस्सी कलिमें, चार हज़ार एक सौ पैंसठ अक्षर हैं.
अलिफ, लाम मीम{1} क्या लोग इस घमण्ड में हैं कि इतनी बात पर छोड़ दिये जाएंगे कि कहें, हम ईमान लाए और उनकी आज़माइश न होगी(2){2}
(2) तकलीफ़ों की सख़्ती और क़िस्म क़िस्म की तकलीफ़ें और फ़रमाँबरदारी के ज़ौक़ और ख़्वाहिशात के त्याग और जान और माल के बदल से उनके ईमान की हक़ीक़त ख़ूब ज़ाहिर हो जाए और मुख़लिस मूमिन और मुनाफ़िक़ में इमतियाज़ ज़ाहिर हो जाए. ये आयत उन हज़रात के हक़ में नाज़िल हुई जो मक्कए मुकर्रमा में थे और उन्होंने इस्लाम का इक़रार किया तो असहाबे रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म) ने उन्हें लिखा कि सिर्फ़ इक़रार काफ़ी नहीं जब तक कि हिजरत न करो. उन साहिबों ने हिजरत की और मदीने का इरादा करके रवाना हुए. मुश्रिकीन ने उनका पीछा किया और उन से जंग की. कुछ हज़रात उनमें से शहीद हो गए, कुछ बच गए. उनके हक़ में ये दो आयतें नाज़िल हुई. और हज़रत इब्ने अब्बास (रदियल्लाहो तआला अन्हुमा) ने फ़रमाया कि उन लोगों से मुराद सलमा बिन हिशाम और अय्याश बिन अबी रबीआ और वलीद बिन वलीद और अम्मार बिन यासिर वग़ैरह है जो मक्कए मुकर्रमा में ईमान लाए. और एक क़ौल यह है कि यह आयत हज़रत अम्मार के हक़ में नाज़िल हुई जो ख़ुदा-परस्ती की वजह से सताए जाते थे और कफ़्फ़ार उन्हें सख़्त तकलीफ़ें देते थे. एक क़ौल यह है कि ये आयतें हज़रत उमर (रदियल्लाहो तआला अन्हो) के ग़ुलाम हज़रत महजेअ बिन अब्दुल्लाह के हक़ में नाज़िल हुई जो बद्र में सबसे पहले शहीद होने वाले हैं. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन के बारे में फ़रमाया कि महजेअ शहीदों के सरदार हैं और इस उम्मत में जन्नत के दरवाज़े की तरफ़ पहले वो पुकारे जाएंगे. उनके माता पिता और उनकी पत्नी को उनका बहुत दुख हुआ तो अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल की फिर उनकी तसल्ली फ़रमाई.
और बेशक हमने उनसे अगलों को जांचा(3)
(3) तरह तरह की परीक्षाओं में डाला. उनमें से कुछ वो हैं जो आरे से चीड़ डाले गए. कुछ लोहे की कंघियों से पुरजे-पुरजे किये गए. और सच्चाई और वफ़ादारी की जगह मज़बूत और क़ाइम रहे.
तो ज़रूर अल्लाह सच्चों को देखेगा और ज़रूर झूठों को देखेगा(4){3}
(4) हर एक का हाल ज़ाहिर फ़रमा देगा.
या ये समझे हुए हैं वो जो बुरे काम करते हैं (5)
(5) शिर्क और गुनाहों में फँसे हुए हैं.
कि हम से कहीं निकल जाएंगे(6)
(6) और हम उनसे बदला न लेंगे.
क्या ही बुरा हुक्म लगाते हैं {4} जिसे अल्लाह से मिलने की उम्मीद हो(7)
(7) उठाने और हिसाब से डरे या सवाब की उम्मीद रखे.
तो बेशक अल्लाह की मीआद ज़रूर आने वाली है(8)
(8) उसने सवाब और अज़ाब का जो वादा फ़रमाया है ज़रूर पूरा होने वाला है. चाहिये कि उसके लिये तैयार रहे. और नेक कार्य में जल्दी करे.
और वही सुनता जानता है(9){5}
(9) बंदों की बात चीत और कर्मों को.
और जो अल्लाह की राह में कोशिश करे(10)
(10) चाहे दीन के दुश्मनों से लड़ाई करके या नफ़ृस और शैतान की मुख़ालिफ़त करके और अल्लाह के हुक्म की फ़रमाँबरदारी पर साबिर और क़ाईम रह कर.
तो अपने ही भले को कोशिश करता है(11)
(11) इस का फ़ायदा और पुण्य पाएगा.
बेशक अल्लाह बेपरवाह है सारे जगत से(12) {6}
(12) इन्सान और जिन्नात और फ़रिश्ते और उनके कर्मों और इबादतों से उसका हुक्म और मना फ़रमाना बंदों पर रहमत और करम के लिये हैं.
और जो ईमान लाए और अच्छे काम किये हम ज़रूर उनकी बुराइयाँ उतार देंगे(13)
(13) नेकियों की वजह से.
और ज़रूर उन्हें उस काम पर बदला देंगे जो उनके सब कामों में अच्छा था(14){7}
(14) यानी अच्छे कर्म पर.
और हमने आदमी को ताकीद की अपने माँ बाप के साथ भलाई की(15)
(15) एहसान और अच्छे बर्ताव की यह आयत और सूरए लुक़मान और सूरए अहक़ाफ़ की आयतें सअद बिन अबी वक़्क़ास रदियल्लाहो तआला अन्हो के हक़ में और इब्ने इस्हाक़ के मुताबिक़ सअद बिन मालिक ज़ोहरी के हक़ में नाज़िल हुई. उनकी माँ हमन्ना बिन्ते अबी सुफ़्यान बिन उमैया बिन अब्दे शम्स थीं. हज़रत सअद अगलों और पहलों मे से थे. और अपनी माँ के साथ अच्छा बर्ताव करते थे. जब आप इस्लाम लाए तो आप की माँ ने कहा कि तूने ये क्या नया काम किया? ख़ुदा की क़सम! अगर तू इससे बाज़ न आया तो मैं खाऊँ न पियूँ यहाँ तक कि मर जाऊँ और तेरी हमेशा के लिये बदनामी हो. और माँ का हत्यारा कहा जाए. फिर उस बुढिया ने भूख हड़ताल कर दी. और पूरे एक दिन-रात न खाया न पिया और नह साए में बैठी. इससे कमज़ोर हो गई. फिर एक रात-दिन और इसी तरह रही. तब हज़रत सअद उसके पास आए और आप ने उससे फ़रमाया कि ऐ माँ, अगर तेरी सौ जानें हों और एक-एक करके सब ही निकल जाएं तो भी मैं अपना दीन छोड़ने वाला नहीं. तू चाहे खा, चाहे मत खा.जब वो हज़रत सअद की तरफ़ से निराश हो गई कि ये अपना दीन छोड़ने वाले नहीं तो खाने पीने लगी. इसपर अल्लाह तआला ने ये आयत नाज़िल फ़रमाई और हुक्म दिया कि माता-पिता के साथ अच्छा बर्ताव किया जाए. और अगर वो कुफ़्र का हुक्म दे, तो न माना जाए.
और अगर वो तुझ से कोशिश करें कि तू मेरा शरीक ठहराए जिसका तुझे इल्म नहीं तो तू उनका कहा न मान(16)
(16) क्योंकि जो चीज़ मालूम न हो , उसको किसी के कहे से मान लेना तक़लीद है. इस का मतलब ये हुआ की असलियत में मेरा कोई शरीक नहीं हैं, तो ज्ञान और तहक़ीक़ से तो कोई भी किसी को मेरा शरीक मान ही नहीं सकता. ये नामुमकिन है. रहा तक़लीद के तौर पर बग़ैर इल्म के मेरे लिये शरीक मना लेना, ये बहुत ही बुरा है. इसमें माता-पिता की हरगिज़ बात न मान. ऐसी फ़रमाँबरदारी किसी मख़लूक़ की जाईज़ नहीं जिस में ख़ुदा की नाफ़रमानी हो.
मेरी ही तरफ़ तुम्हारा फिरना है तो मैं बता दूंगा तुम्हें जो तुम करते थे(17){8}
(17) तुम्हारे किरदार का फल देकर.
और जो ईमान लाए और अच्छे काम किये, ज़रूर हम उन्हें नेकों में शामिल करेंगे(18){9}
(18) कि उनके साथ हश्र फ़रमाएंगे और सालेहीन से मुराद अंबिया और औलिया हैं.
और कुछ आदमी कहते हैं हम अल्लाह पर ईमान लाए फिर जब अल्लाह की राह में उन्हें कोई तकलीफ़ दी जाती है(19)
(19)यानी दीन की वजह से कोई तकलीफ़ पहुंचती है जैसे कि काफ़िरों का तकलीफ़ पहुंचाना.
तो लोगों के फ़ित्ने को अल्लाह के अज़ाब के बराबर समझते हैं(20)
(20) और जैसा अल्लाह के अज़ाब से डरना चाहिए या ऐसा ख़ल्क़ के द्वारा पहुंचाए जाने वाली तकलीफ़ से डरते हैं. यहाँ तक कि ईमान छोड़ देते हैं और कुफ्र को स्वीकार लेते हैं. ये हाल मुनाफ़िक़ों का है.
और अगर तुम्हारे रब के पास से मदद आए(21)
(21) मिसाल के तौर पर मुसलमानों की जीत हो और उन्हें दौलत मिले.
तो ज़रूर कहेंगे हम तो तुम्हारे ही साथ थे(22)
(22) ईमान और इस्लाम में और तुम्हारी तरह दीन पर डटे हुए थे. तो हमें इस में शरीक करो.
क्या अल्लाह ख़ूब नहीं जानता जो कुछ जगत भर के दिलों में है(23){10}
(23) कुफ़्र या ईमान.
और ज़रूर अल्लाह ज़ाहिर कर देगा ईमान वालों को (24)
(24) जो सच्चाई और भलाई के साथ ईमान लाए और बला और मुसीबत में अपने ईमान और इस्लाम पर साबित और क़ाईम रहे.
और ज़रूर ज़ाहिर कर देगा मुनाफ़िक़ो(दोग़लों) को(25) {11}
(25) और दोनों गिरोहों को नतीजा देगा.
और काफ़िर मुसलमानों से बोले, हमारी राह पर चलो और हम तुम्हारे गुनाह उठा लेंगे,(26)
(26) मक्के के काफ़िरों ने क़ुरैश के मूमिनों से कहा था कि तुम हमारा और हमारे बाप दादा का दीन स्वीकार करो. तुम को अल्लाह की तरफ़ से जो मुसीबत पहुंचेगी उसके हम जिम्मेदार हैं और तुम्हारे गुनाह हमारी गर्दन पर, यानी अगर हमारे तरीक़े पर रहने से अल्लाह तआला ने तुम को पकड़ा और अज़ाब किया तो तुम्हारा अज़ाब हम अपने ऊपर ले लेंगे. अल्लाह तआला ने उन्हें झूठा क़रार दिया.
हालांकि वो उनके गुनाहों में से कुछ न उठाएंगे, बेशक वो झूटे हैं {12} और बेशक ज़रूर अपने(27)
(27) कुफ्र और गुनाहों के.
बोझ उठाएंगे, अपने बोझों के साथ और बोझ(28)
(28) उनके गुनाहों के, जिन्हें उन्होंने गुमराह किया और सही रास्ते से रोका. हदीस शरीफ़ में है जिस ने इस्लाम में कोई बुरा तरीक़ा निकाला उसपर उस बुरा तरीक़ा निकालने का गुनाह भी है और क़यामत तक जो लोग उस पर अमल करें उनके गुनाह भी. बग़ैर इसके कि उनपर ये उन के गुनाह के बोझ से कुछ भी कमी हो(मुस्लिम शरीफ़)
और ज़रूर क़यामत के दिन पूछे जाएंगे जो कुछ बोहतान उठाते थे(29) {13}
(29) अल्लाह तआला उनके कर्मों और ग़लत इल्ज़ामों सब का जानने वाला है लेकिन यह सवाल धिक्कार के लिये है.
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