सूरए यूनुस मक्का में उतरी इसमें 109 आयतें और ग्यारह रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शूरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
ये हिकमत (बोध) वाली किताब की आयतें हैं {1} क्या लोगों को इसका अचम्भा हुआ कि हमने उनमें से एक मर्द को वही (देववाणी) भेजी कि लोगों को डर सुनाओ(2)
और ईमान वालों को ख़ुशख़बरी दो कि उनके लिये उनके रब के पास सच का मक़ाम है, काफ़िर बोले बेशक यह तो खुला जादूगर है(3){2}
बेशक तुम्हारा रब अल्लाह है जिसने आसमन और ज़मीन छ दिन में बनाए फिर अर्श पर इस्तवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है काम की तदबीर फ़रमाता है(4)
कोई सिफ़ारिशी नहीं मगर उसकी इजाज़त के बाद(5)
यह है अल्लाह तुम्हारा रब (6)
तो उसकी बन्दगी करो, तो क्या तुम ध्यान नहीं करते{3} उसी की तरफ़ तुम सबको फिरना है(7)
अल्लाह का सच्चा वादा, बेशक वह पहली बार बनाता है फिर फ़ना के बाद दोबारा बनाएगा कि उनको जो ईमान लाए और अच्छे काम किये इन्साफ़ का सिला (इनाम) दे(8)
और काफ़िरों के लिये पीने को खौलता पानी और दर्दनाक अज़ाब बदला उनके कुफ़्र का {4} वही है जिसने सूरज को जगमगाता बनाया और चांद चमकता और उसके लिये मंज़िलें ठहराईं(9)
कि तुम बरसों की गिनती और (10)
हिसाब जानो अल्लाह ने उसे न बनाया मगर हक़(11)
निशानियां तफ़सील से बयान फ़रमाता है इल्म वालों के लिये (12){5}
बेशक रात और दिन का बदलता आना और जो कुछ अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन में पैदा किया उनमें निशानियां हैं डर वालों के लिये{6} बेशक वो जो हमारे मिलने की उम्मीद नहीं रखते(13)
और दुनिया की ज़िन्दगी पसन्द कर बैठे और इसपर मुतमईन (संतुष्ट) हो गए (14)
और वो जो हमारी आयतों से ग़फ़लत करते हैं(15){7}
उन लोगों का ठिकाना दोज़ख़ है बदला उनकी कमाई का {8} बेशक जो ईमान लाए और अच्छे काम किये उनका रब उनके ईमान के कारण उन्हें राह देगा(16)
उनके नीचे नेहरें बहती होंगी नेअमत के बाग़ों में {9} उनकी दुआ उसमें यह होगी कि अल्लाह तुझे पाकी है (17)
और उनके मिलते वक़्त ख़ुशी का पहला बोल सलाम है (18)
और उनकी दुआ का ख़ातिमा यह है कि सब ख़ूबियों सराहा अल्लाह जो रब है सारे जगत का(19){10}
तफ़सीर
सूरए यूनुस – पहला रूकू
(1) सूरए यूनुस मक्की है, सिवाए तीन आयतों के ” फ़इन कुन्ता फ़ी शक्किन ” से. इसमें ग्यारह रूकू, सौ नौ आयतें, एक हज़ार आठ सौ बत्तीस कलिमे और नौ हज़ार निनावे अक्षर हैं.
(2) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, जब अल्लाह तआला ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को रिसालत अता फ़रमाई और आपने उसका इज़हार किया तो अरब इन्कारी हो गए और उनमें से कुछ ने कहा कि अल्लाह इससे बरतर है कि किसी आदमी को रसूल बनाए. इसपर ये आयतें उतरीं.
(3) काफ़िरों ने पहले तो आदमी का रसूल होना आश्चर्य की बात और न मानने वाली चीज़ क़रार दिया, फिर जब हुज़ूर के चमत्कार देखे और यक़ीन हुआ कि ये आदमी की शक्ति और क्षमता से ऊपर हैं, तो आपको जादूगर बताया. उनका यह दावा तो झूट और ग़लत है, मगर इसमें भी अपनी तुच्छता और हुज़ूर की महानता का ऐतिराफ़ पाया जाता है.
(4) यानी तमाम सृष्टि के कामों का अपनी हिक़मत और मर्ज़ी के अनुसार प्रबन्ध फ़रमाता है.
(5) इसमें बुत परस्तों के इस क़ौल का रद है कि बुत उनकी शफ़ाअत करेंगे. उन्हें बताया गया कि शफ़ाअत उनके सिवा कोई न कर सकेगा जिन्हें अल्लाह इसकी इजाज़त देगा. और शफ़ाअत की इजाज़त पाने वाले ये अल्लाह के मक़बूल बन्दे होंगे.
(6) जो आसमान और ज़मीन का विधाता और सारे कामों का प्रबन्धक है. उसके सिवा कोई मअबूद नहीं, फ़क़त वही पूजे जाने के लायक़ है.
(7) क़यामत के दिन, और यही है.
(8) इस आयत में हश्र नश्र और मआद का बयान और इससे इन्कार करने वालों का रद है. और इसपर निहायत ख़ूबसूरत अन्दाज़ में दलील क़ायम फ़रमाई गई है, कि वह पहली बार बनाता है और विभिन्न अंगों को पैदा करता है और उन्हें जोड़ता है. तो मौत के साथ अलग हो जाने के बाद उनको दोबारा जोड़ना और बने हुए इन्सान को नष्ट हो जाने के बाद दोबारा बना देना और वही जान जो उस शरीर से जुड़ी थी, उसको इस बदन की दुरूस्ती के बाद फिर उसी शरीर से जोड़ देना, उसकी क़ुदरत और क्षमता से क्या दूर है. और इस दोबारा पैदा करने का उद्देश्य कर्मों का बदल देना यानी फ़रमाँबरदार को इनाम और गुनाहगार को अज़ाब देना है.
(9) अठ्ठाईस मंजिलें जो बारह बुर्जों में बंटी है. हर बुर्ज के लिये ढाई मंज़िलें हैं. चांद हर रात एक मंन्ज़िल में रहता है. और महीना तीस दिन का हो तो दो रात, वरना एक रात छुपता है.
(10) महीनों, दिनों घड़ियों का.
(11) कि उससे उसकी क़ुदरत और उसके एक होने के प्रमाण ज़ाहिर हों.
(12) कि उनमें ग़ौर करके नफ़ा उठाएं.
(13) क़यामत के दिन और सवाब व अज़ाब को नहीं मानते.
(14) और इस नश्वर को हमेशा पर प्राथमकिता दी, और उम्र उसकी तलब में गुज़ारी.
(15) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि यहाँ आयतों से सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ज़ाते पाक और क़ुरआन शरीफ़ मुराद है. और ग़फ़लत करने से मुराद उनसे मुंह फेरना है.
(16) जन्नतों की तरफ़. क़तादा का क़ौल है कि मूमिन जब अपनी क़ब्र से निकलेगा तो उसका अमल ख़ूबसूरत शक्ल में उसके सामने आएगा. यह शख़्स कहेगा, तू कौन है? वह कहेगा, मैं तेरा अमल हूँ. और उसके लिये नूर होगा और जन्नत तक पहुंचाएगा. काफ़िर का मामला विपरीत होगा. उसका अमल बुरी शक्ल में नमूदार होकर उसे जहन्नम में पहुंचाएगा.
(17) यानी जन्नत वाले अल्लाह तआला की तस्बीह, स्तुति, प्रशंसा में मश्ग़ूल रहेंगे और उसके ज़िक्र से उन्हें फ़रहत यानी ठण्डक और आनन्द और काफ़ी लज़्ज़त हासिल होगी.
(18) यानी जन्नत वाले आपस में एक दूसरे का सत्कार सलाम से करेंगे या फ़रिश्ते उन्हें इज़्ज़त के तौर पर सलाम अर्ज़ करेंगे या फ़रिश्तें रब तआला की तरफ़ से उनके पास सलाम लाएंगे.
(19) उनके कलाम शुरूआत अल्लाह की बड़ाई और प्रशंसा से होगी और कलाम का अन्त अल्लाह की महानता और उसके गुणगान पर होगा.
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