सत्तरहवाँ पारा – इक़्तरबा
21 सूरए अंबिया –
सूरए अंबिया मक्का में उतरी, इसमें 112, आयतें सात रूकू हैं
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए अंबिया मक्का में उतरी, इसमें सात रूकू, एक सौ बारह आयतें, एक हज़ार एक सौ छियासी कलिमें और चार हज़ार आठ सौ नब्बे अक्षर हैं.
लोगों का हिसाब नज़्दीक और वो गफ़्लत में मुंह फेरे हैं(2){1}
(2) यानी कर्मों के हिसाब का समय, क़यामत का दिन क़रीब आ गया और लोग अभी तक ग़फ़लत में हैं. यह आयत दोबारा उठाए जाने का इन्कार करने वालों के बारें में उतरी जो मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने को नहीं मानते थे और क़यामत के दिन को गुज़रे हुए ज़माने के ऐतिबार से क़रीब फ़रमाया गया, क्योंकि जितने दिन गुज़रते हैं आने वाला दिन क़रीब होता जाता है.
जब उनके रब के पास से उन्हें कोई नई नसीहत आती है तो उसे नहीं सुनते मगर खेलते हुए(3){2}
(3) न उससे नसीहत पकड़ें, न सबक़ हासिल करें, न आने वाले वक़्त के लिये कुछ तैयारी करें.
उनके दिल खेल में पड़े है (4)
(4) अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल हैं.
और ज़ालिमों ने आपस में छुपवाँ सलाह की(5)
(5) और उसके छुपाने में बहुत हद से बढ़े मगर अल्लाह तआला ने उनका राज़ खोल दिया और बयान फ़रमा दिया कि वो रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बारे में यह कहते हैं.
कि ये कौन हैं एक तुम ही जेसे आदमी तो हैं(6)
(6) यह कुफ़्र का एक उसूल था कि जब यह बात लोगों के दिमाग़ में बिठा दी जाएगी कि वह तुम जैसे बशर हैं तो फिर कोई उनपर ईमान न लाएगा. हुज़ूर के ज़माने के काफ़िरों ने यह बात कही और इस को छुपाया, लेकिन आजकल के कुछ बेबाक यह कलिमा ऐलान के साथ कहते हैं और नहीं शरमाते, काफ़िर यह बात कहते वक़्त जानते थे कि उनकी बात किसी के दिल में जमेगी नहीं क्योंकि लोग रात दिन चमत्कार देखते हैं, वो किस तरह यक़ीन करेंगे कि हुज़ूर हमारी तरह बशर हैं. इसलिये उन्होंने चमत्कारों को जादू बताया और कहा–
क्या जादू के पास जाते हो देख भाल कर {3} नबी ने फ़रमाया मेरा रब जानता है आसमानों और ज़मीन में हर बात को और वही है सुनता जानता (7){4}
(7) उससे कोई चीज़ छुप नहीं सकती चाहे कितनी ही पर्दे और राज़ में रखी गई हो, उनका राज़ भी उस में ज़ाहिर फ़रमा दिया गया. इसके बाद क़ुरआन शरीफ़ से उन्हें सख़्त परेशानी और हैरानी लाहक़ थी कि इसका किस तरह इन्कार करें. वह ऐसा खुला चमत्कार है जिसने सारे मुल्क के प्रतिष्ठित माहिरों को आश्चर्य चकित और बेबस कर दिया है और वह इसकी दो चार आयतों जैसा कलाम बना कर नहीं ला सके. इस परेशानी में उन्होंने क़ुरआन शरीफ़ के बारे में विभिन्न बातें कहीं जिन का बयान अगली आयत में हैं.
बल्कि बोले परेशान ख़्वाबें हैं(8)
(8) उनको नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम वही या अल्लाह का कलाम समझ गए हैं. काफ़िरों ने यह कहकर सोचा कि यह बात ठीक नहीं बैठेगी, तो अब उस को छोड़ कर कहने लगे.
बल्कि उनकी घड़त (घड़ी हुई चीज़) है(9)
(9) यह कह कर ख़याल हुआ कि लोग कहेंगे कि अगर यह कलाम हज़रत का बनाया हुआ है और तुम उन्हें अपने जैसा बशर कहते हो तो तुम ऐसा कलाम क्यों नहीं बना सकते. यह सोच कर इस बात को भी छोड़ा और कहने लगे.
बल्कि यह शायर हैं(10)
(10) और यह कलाम शायरी है. इसी तरह की बातें बनाते रहे, किसी एक बात पर क़ायम न रह सके और झूटे लोगों का यही हाल होता है. जब उन्होंने समझा कि इन बातों में से कोई बात भी चलने वाली नहीं है तो कहने लगे.
तो हमारे पास काई निशानी लाएं जैसे अगले भेजे गए थे(11){5}
(11) इसके रद और जवाब में अल्लाह तआला फ़रमाता है.
इनसे पहले कोई बस्ती ईमान न लाई जिसे हमने हलाक किया, तो क्या ये ईमान लाएंगे(12){6}
(12) मानी यह है कि उनसे पहले लोगों के पास जो निशानियाँ आई, तो वो उन पर ईमान न लाए और उन्हें झुटलाने लगे और इस कारण हलाक कर दिये गए. तो क्या यह लोग निशानी देखकर ईमान ले आएंगे जबकि इनकी सरकशी और हटधर्मी उनसे बढ़ी हुई है.
और हमने तुमसे पहले न भेजे मगर मर्द जिन्हें हम वही (देववाणी) करते(13)
(13) यह उनके पिछले कलाम का रद है कि नबियों का इन्सान की सूरत में तशरीफ़ लाना नबूव्वत के विरूद्ध नहीं हैं. हमेशा ऐसा ही होता रहा है.
तो ऐ लोगो इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हें इल्म न हो(14){7}
(14) क्योंकि न जानने वालों को इससे चारा ही नहीं कि जानने वाले से पूछें और जिहालत की बीमारी का इलाज यही है कि आलिम से सवाल करे और उसके हुक्म पर चले. इस आयत से तक़लीद के वाजिब होने का सुबूत मिलता है. यहाँ उन्हें इल्म वालों से पूछने का हुक्म दिया गया है कि उन से पूछो कि अल्लाह के रसूल इन्सान की शक्ल में आए थे कि नहीं. इससे तुम्हारी आशंका और संदेह का अंत हो जाएगा.
और हमने उन्हें (15)
(15) यानी नबियों को.
खाली बदन न बनाया कि खाना न खाएं(16)
(16) तो उनपर खाने पीने का ऐतिराज़ करना और कहना- यह रसूल नहीं है जो हमारी तरह खाता पीता है -केवल भ्रम और बेजा हैं. सारे नबियों का यही हाल था, वो सब खाते भी थे और पीते भी थे.
और न वो दुनिया में हमेशा रहें{8} फिर हमने अपना वादा उन्हें सच्चा कर दिखाया(17)
(17) उनके दुश्मनों को हलाक करने और उन्हें छुटकारा देने का.
तो उन्हें निजात दी और जिन को चाही (18)
(18) यानी ईमानदारों को, जिन्होंने नबियों की तस्दीक़ की.
और हद से बढ़ने वालों को (19)
(19) जो नबियों को झुटलाते थे.
हलाक कर दिया{9}बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ (20)
(20) ऐ क़ुरैश वालों—
एक किताब उतारी जिसमें तुम्हारी नामवरी (प्रसि़द्धि) है(21)
(21) अगर तुम इस पर अमल करो या ये मानी हैं कि वह किताब तुम्हारी ज़बान में है, या यह कि तुम्हारे लिये नसीहत है या यह कि उसमें तुम्हारे दीन और दुनिया के कामों और ज़रूरतों का बयान है.
तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं(22){10}
(22) कि ईमान लाकर इस इज़्ज़त और बुज़ु्र्गी और सौभाग्य को हासिल करो.
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