21 सूरए अंबिया –

सत्तरहवाँ पारा – इक़्तरबा
21 सूरए अंबिया –
सूरए अंबिया मक्का में उतरी, इसमें 112, आयतें सात रूकू हैं
पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए अंबिया मक्का में उतरी, इसमें सात रूकू, एक सौ बारह आयतें, एक हज़ार एक सौ छियासी कलिमें और चार हज़ार आठ सौ नब्बे अक्षर हैं.

लोगों का हिसाब नज़्दीक और वो गफ़्लत में मुंह फेरे हैं(2){1}
(2)  यानी कर्मों के हिसाब का समय, क़यामत का दिन क़रीब आ गया और लोग अभी तक ग़फ़लत में हैं. यह आयत दोबारा उठाए जाने का इन्कार करने वालों के बारें में उतरी जो मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने को नहीं मानते थे और  क़यामत के दिन को गुज़रे हुए ज़माने के ऐतिबार से क़रीब फ़रमाया गया, क्योंकि जितने दिन गुज़रते हैं आने वाला दिन क़रीब होता जाता है.

जब उनके रब के पास से उन्हें कोई नई नसीहत आती है तो उसे नहीं सुनते मगर खेलते हुए(3){2}
(3) न उससे नसीहत पकड़ें, न सबक़ हासिल करें, न आने वाले वक़्त के लिये कुछ तैयारी करें.

उनके दिल खेल में पड़े है (4)
(4)  अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल हैं.

और ज़ालिमों ने आपस में छुपवाँ सलाह की(5)
(5) और  उसके छुपाने में बहुत हद से बढ़े मगर अल्लाह तआला ने उनका राज़ खोल दिया और  बयान फ़रमा दिया कि वो रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बारे में यह कहते हैं.

कि ये कौन हैं एक तुम ही जेसे आदमी तो हैं(6)
(6) यह कुफ़्र का एक उसूल था कि जब यह बात लोगों के दिमाग़ में बिठा दी जाएगी कि वह तुम जैसे बशर हैं तो फिर कोई उनपर ईमान न लाएगा. हुज़ूर के ज़माने के काफ़िरों ने यह बात कही और इस को छुपाया, लेकिन आजकल के कुछ बेबाक यह कलिमा ऐलान के साथ कहते हैं और नहीं शरमाते, काफ़िर यह बात कहते वक़्त जानते थे कि उनकी बात किसी के दिल में जमेगी नहीं क्योंकि लोग रात दिन चमत्कार देखते हैं, वो किस तरह यक़ीन करेंगे कि हुज़ूर हमारी तरह बशर हैं. इसलिये उन्होंने चमत्कारों को जादू बताया और कहा–

क्या जादू के पास जाते हो देख भाल कर {3} नबी ने फ़रमाया मेरा रब जानता है आसमानों और ज़मीन में हर बात को और वही है सुनता जानता (7){4}
(7) उससे कोई चीज़ छुप नहीं सकती चाहे कितनी ही पर्दे और राज़ में रखी गई हो, उनका राज़ भी उस में ज़ाहिर फ़रमा दिया गया. इसके बाद क़ुरआन शरीफ़ से उन्हें सख़्त परेशानी और  हैरानी लाहक़ थी कि इसका किस तरह इन्कार करें. वह ऐसा खुला चमत्कार है जिसने सारे मुल्क के प्रतिष्ठित माहिरों को आश्चर्य चकित और  बेबस कर दिया है और  वह इसकी दो चार आयतों जैसा कलाम बना कर नहीं ला सके. इस परेशानी में उन्होंने क़ुरआन शरीफ़ के बारे में विभिन्न बातें कहीं जिन का बयान अगली आयत में हैं.

बल्कि बोले परेशान ख़्वाबें हैं(8)
(8)  उनको नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम वही या अल्लाह का कलाम समझ गए हैं. काफ़िरों ने यह कहकर सोचा कि यह बात ठीक नहीं बैठेगी, तो अब उस को छोड़ कर कहने लगे.

बल्कि उनकी घड़त (घड़ी हुई चीज़) है(9)
(9) यह कह कर ख़याल हुआ कि लोग कहेंगे कि अगर यह कलाम हज़रत का बनाया हुआ है और  तुम उन्हें अपने जैसा बशर कहते हो तो तुम ऐसा कलाम क्यों नहीं बना सकते. यह सोच कर इस बात को भी छोड़ा और  कहने लगे.

बल्कि यह शायर हैं(10)
(10)  और यह कलाम शायरी है. इसी तरह की बातें बनाते रहे, किसी एक बात पर क़ायम न रह सके और  झूटे लोगों का यही हाल होता है.  जब उन्होंने समझा कि इन बातों में से कोई बात भी चलने वाली नहीं है तो कहने लगे.

तो हमारे पास काई निशानी लाएं जैसे अगले भेजे गए थे(11){5}
(11) इसके रद और जवाब में अल्लाह तआला फ़रमाता है.

इनसे पहले कोई बस्ती ईमान न लाई जिसे हमने हलाक किया, तो क्या ये ईमान लाएंगे(12){6}
(12)  मानी यह है कि उनसे पहले लोगों के पास जो निशानियाँ आई, तो वो उन पर ईमान न लाए और  उन्हें झुटलाने लगे और इस कारण हलाक कर दिये गए. तो क्या यह लोग निशानी देखकर ईमान ले आएंगे जबकि इनकी सरकशी और हटधर्मी उनसे बढ़ी हुई है.

और हमने तुमसे पहले न भेजे मगर मर्द जिन्हें हम वही (देववाणी) करते(13)
(13) यह उनके पिछले कलाम का रद है कि नबियों का इन्सान की सूरत में तशरीफ़ लाना नबूव्वत के विरूद्ध नहीं हैं. हमेशा ऐसा ही होता रहा है.

तो ऐ लोगो इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हें इल्म न हो(14){7}
(14) क्योंकि न जानने वालों को इससे चारा ही नहीं कि जानने वाले से पूछें और  जिहालत की बीमारी का इलाज यही है कि आलिम से सवाल करे और उसके हुक्म पर चले. इस आयत से तक़लीद के वाजिब होने का सुबूत मिलता है. यहाँ उन्हें इल्म वालों से पूछने का हुक्म दिया गया है कि उन से पूछो कि अल्लाह के रसूल इन्सान की शक्ल में आए थे कि नहीं. इससे तुम्हारी आशंका और संदेह का अंत हो जाएगा.

और हमने उन्हें (15)
(15) यानी नबियों को.

खाली बदन न बनाया कि खाना न खाएं(16)
(16) तो उनपर खाने पीने का ऐतिराज़ करना और  कहना- यह रसूल नहीं है जो हमारी तरह खाता पीता है -केवल भ्रम और बेजा हैं.  सारे नबियों का यही हाल था, वो सब खाते भी थे और  पीते भी थे.

और न वो दुनिया में हमेशा रहें{8} फिर हमने अपना वादा उन्हें सच्चा कर दिखाया(17)
(17) उनके दुश्मनों को हलाक करने और उन्हें छुटकारा देने का.

तो उन्हें निजात दी और जिन को चाही (18)
(18) यानी ईमानदारों को, जिन्होंने नबियों की तस्दीक़ की.

और हद से बढ़ने वालों को (19)
(19) जो नबियों को झुटलाते थे.

हलाक कर दिया{9}बेशक हमने तुम्हारी तरफ़ (20)
(20) ऐ क़ुरैश वालों—

एक किताब उतारी जिसमें तुम्हारी नामवरी (प्रसि़द्धि) है(21)
(21) अगर तुम इस पर अमल करो या ये मानी हैं कि वह किताब तुम्हारी ज़बान में है, या यह कि तुम्हारे लिये नसीहत है या यह कि उसमें तुम्हारे दीन और  दुनिया के कामों और ज़रूरतों का बयान है.

तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं(22){10}
(22) कि ईमान लाकर इस इज़्ज़त और  बुज़ु्र्गी और सौभाग्य को हासिल करो.

21 सूरए अंबिया -दूसरा रूकू

21 सूरए  अंबिया -दूसरा रूकू

और कितनी ही बस्तियां हमने तबाह कर दीं कि वो सितम करने वाली थीं(1)
(1) यानी काफ़िर थीं.

और उनके बाद और क़ौम पैदा की{11} तो जब उन्होंने (2)
(2) यानी उन ज़ालिमों ने.

हमारा अज़ाब पाया जभी वो उससे भागने लगे(3){12}
(3) मुफ़स्सिरों ने ज़िक्र किया है कि यमन प्रदेश में एक बस्ती है जिसका नाम हुसूर है, वहाँ के रहने वाले अरब थे. उन्होंने अपने नबी को झुटलाया और उनको क़त्ल किया तो अल्लाह तआला ने उनपर बुख़्ते नस्सर को मुसल्लत कर दिया. उसने उन्हें क़त्ल किया और गिरफ़्तार किया और उसका यह अमल जारी रहा तो ये लोग बस्ती छोड़ कर भागे तो फ़रिश्तों ने उनसे व्यंग्य के तौर पर कहा (जो अगली आयत में है)

न भागो और लौट के जाओ उन आसयाशों की तरफ़ जो तुम को दी गई थीं और अपने मकानों की तरफ़ शायद तुमसे पूछना हो(4){13}
(4) कि तुम पर क्या गुज़री और तुम्हारी माल-मत्ता क्या हुई तो तुम पुछने वाले को अपने इल्म और मुशाहदें या अवलोकन से जवाब दे सको.

बोले हाय ख़राबी हमारी, बेशक हम ज़ालिम थे(5){14}
(5) अज़ाब देखने के बाद उन्होंने गुनाह का इक़रार किया और लज़्ज़ित हुए, इसलिये यह ऐतिराफ़ उन्हें काम न आया.

तो वो यही पुकारते रहे यहाँ तक कि हमने उन्हें कर दिया काटे हुए(6)
(6) खेत की तरह, कि तलवारों से टुकड़े टुकड़े कर दिये गए और बुझी हुई आग की तरह हो गए.

बुझे हुए{15} और हमने आसमान और ज़मीन और जो कुछ उनके बीच है बेकार न बनाए(7){16}
(7)  कि उनसे कोई फ़ायदा न हो बल्कि इसमें हमारी हिकमतें हैं. इसके साथ साथ यह है कि हमारे बन्दे उनसे हमारी क़ुदरत और हिकमत पर इस्तदलाल करें और उन्हें हमारे औसाफ़ और गुणों और कमाल की पहचान हो.

अगर हम कोई बहलावा इख़्तियार करना चाहते(8)
(8) बीबी और बेटे की तरह जैसा कि ईसाई कहते हैं और हमारे लिये बीबी और बेटियाँ बताते हैं अगर यह हमारे हक़ में मुमकिन होता.

तो हपने पास से इख़्तियार करते अगर हमें करना होता(9){17}
(9)  क्योंकि बीबी बेटे वाले, बीबी बेटे अपने पास रखते हैं, मगर हम इससे पाक है हमारे लिये यह संभव ही नहीं.

बल्कि हम हक़ को बातिल पर फैंक मारते हैं तो वह उसका भेजा निकाल देता है तो जभी वह मिटकर रह हाता है(10)
(10) मानी ये है कि हम झूटे लोगों के झूट को सच्चाई के बयान से मिटा देते हैं.

और तुम्हारी ख़राबी है(11)
(11) ऐ बदनसीब काफ़िरों!

उन बातों से जो बनाते हो (12){18}
(12)  अल्लाह की शान में कि उसके लिये बीबी और बच्चे ठहराते हो.

और उसी के हैं जितने आसमानों और ज़मीन में हैं(13)
(13) वह सब का मालिक है और सब उसके ममलूक, तो कोई उसकी औलाद कैसे हो सकता है. ममलूक होना और औलाद होना दो अलग अलग चीज़ें हैं.

और उसके पास वाले(14)
(14) उसके प्यारे जिन्हें उसके करम से उसके दरबार में क़ुर्ब और सम्मान हासिल है.

उसकी इबादत से घमण्ड नहीं करते और न थकें{19}  रात दिन उसकी पाकी बोलते हैं और सुस्ती नहीं करते(15) {20}
(15) हर वक़्त उसकी तस्बीह में रहते. ज़रत कअब अहबार ने फ़रमाया कि फ़रिश्तों के लिये तस्बीह ऐसी है जेसे कि बनी आदम के लिये साँस लेना.

क्या उन्होंने ज़मीन में से कुछ ऐसे ख़ुदा बना लिये हें(16)
(16) ज़मीन की सम्पत्ति से, जैसे सोना, चांदी, पत्थर वग़ैरह.

कि वो कुछ पैदा करते हैं(17){21}
(17) ऐसा तो नहीं है और न यह हो सकता है कि जो ख़ूद बेजान हो वह किसी को जान दे सके. तो फिर उसकोमअबूद ठहराना और ख़ुदा क़रार देना कितना खुला झूठ है . ख़ुदा वही है जो हर मुमकिन पर क़ादिर हो, जो सक्षम नहीं, वह ख़ुदा कैसे.

अगर आसमान व ज़मीन में अल्लाह के सिवा और ख़ुदा होते तो ज़रूर वो (18)
(18) आसमान और ज़मीन.

तबाह हो जाते (19)
(19) क्योंकि अगर ख़ुदा से वो ख़ुदा मुराद लिये जाएं जिनकी ख़ुदाई को बुत परस्त मानते हैं तो जगत में फ़साद का होना लाज़िम हैं क्योंकि वो पत्थर बेजान है, संसार चलाने की ज़रा भी क्षमता नहीं रखते और अगर वो ख़ुदा फ़र्ज़ किये जाऐ तो दो हाल से खाली नहीं, या वो दोनो सहमत होंगे या अलग अलग विचार के. अगर किसी एक बात पर सहमत हुए तो लाज़िम आएगा कि एक बात दोनों की क्षमता में हो और दोनों की क़ुदरत से अस्तित्व में आए. यह असंभव है और अगर सहमत न हुए तो एक चीज़ के सम्बन्ध में दोनों के इरादे या एक साथ वाक़े होंगे और एक ही वक़्त में वह मौजूद और मअदूम यानी हाज़िर और ग़ायब दोनों हो जाएगी या दोनों के इरादे वाक़े न हों और चीज़ न मौजूद हो न ग़ायब हो, या एक का इरादा पूरा हो और दूसरे का न हो, ये तमाम सूरतें भी संभव नहीं हैं तो साबित हुआ कि फ़साद हर सूरत में लाज़िम है, तौहीद की यह निहायत मज़बूत मिसाल है और इसकी तफ़सील कलाम के इमामों की किताबों में दर्ज़ हैं. यहाँ संक्षेप में बस इतना ही काफी है. (तफ़सीरे कबीर वग़ैरह)

तो पाकी है अल्लाह अर्श के मालिक को उन बातों से जो ये बनाते हैं(20){22}
(20) कि उसके लिये औलाद और शरीक ठहराते हैं.

उससे नहीं पूछा जाता जो वह करे(21)
(21)  क्योंकि वह हक़ीक़ी मालिक है, जो चाहे करे, जिसे चाहे इज़्ज़त दे, जिसे चाहे ज़िल्लत दे, जिसे चाहे सौभाग्य दे, जिसे चाहे दुर्भाग्य दे. व सब का हाकिम है, कोई उसका हाकिम नहीं जो उससे पूछ सके.

और इन सबसे सवाल होगा (22){23}
(22)  क्योंकि सब उसके बन्दे हैं, ममलूक हैं सब पर उसकी फ़रमाँबरदारी और अनुकरण लाज़िम है. इससे तौहीद की
एक और दलील मिलती है. जब सब उसके ममलूक है, तो उनमें से कोई ख़ुदा कैसे हो सकता है. इसके बाद समझाने के तौर पर फ़रमाया.

क्या अल्लाह के सिवा और ख़ुदा बना रखे हैं तुम फ़रमाओ(23)
(23) ऐ हबीब (सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम) उन मुश्रिकीन से, कि तुम अपने इस झूटे दावे पर —

अपनी दलील लाओ(24)
(24) और हुज्जत क़ायम करो चाहे अक़्ली हो या नक़ली. मगर न काई अक़्ली दलील ला सकते हो जैसा कि बयान किये हुए प्रमाणों से ज़ाहिर हो चुका और न काई नक़ली दलील यानी किसी का कहा हुआ पेश कर सकते हो क्योंकि सारी आसमानी किताबों में अल्लाह के एक होने का बयान है और सब मैं शिर्क को ग़लत क़रार दिया गया है.

ये क़ुरआन मेरे साथ वालों का ज़िक्र हैं(25)
(25) साथ वालों से मुराद आप की उम्मत है. क़ुरआन शरीफ़ में इसका ज़िक्र है कि इसका फ़रमाँबरदारी पर क्या सवाब मिलेगा और गुनाहों पर क्या अज़ाब किया जाएगा.

और मुझसे अगलों का तज़किरा (वर्णन) (26)
(26) यानी पहले नबियों की उम्मतों का और इसका कि दुनिया में उनके साथ क्या किया गया और आख़िरत में क्या किया जाएगा.

बल्कि उनमें अकसर हक़ को नहीं जानते तो वो मुंह फेरने वाले हैं(27){24}
(27) और ग़ौर नहीं करते और नहीं सोचते कि ईमान लाना उनके लिए ज़रूरी है.

और हमने तुम से पहले कोई रसूल न भेजा मगर यह कि हम उनकी तरफ़ वही (देववाणी) फ़रमाते कि मेरे सिवा कोई मअबूद नहीं तो मुझी को पूजो{25} और बोले रहमान ने बेटा इख़्तियार किया(28)
(28) यह आयत ख़ुजाआ के बारे में उतरी, जिन्होंने फ़रिश्तों को ख़ुदा की बेटियाँ कहा था.

पाक है वह(29)
(29) उसकी ज़ात इससे पाक है कि उसके औलाद हो,

बल्कि बन्दे हैं इज़्ज़त वाले(30){26}
(30) यानी फ़रिश्तें उसके बुज़ुर्गी वाले बन्दे हैं.

बात में उससे सबक़त(पहल) नहीं करते और वह उसी के हुक्म पर कारबन्द होते हैं{27} वह जानता है जो उनके आगे है और जो उनके पीछे है(31)
(31) यानी जो कुछ उन्होंने किया और जो कुछ वो आयन्दा करेंगे.

और शफ़ाअत नहीं करते मगर उसके लिये जिसे वह पसन्द फ़रमाए(32)
(32) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, यानी जो तौहीद का मानने वाला हो,

और वो उसके ख़ौफ़ से डर रहे हैं{28} और उनमें जो कोई कहे कि मैं अल्लाह के सिवा मअबूद हूँ(33)
(33) यह कहने वाला इब्लीस है जो अपनी इबादत की दावत देता है. फ़रिश्तों में और कोई ऐसा नहीं जो यह कलिमा कहे.
तो उसे हम जहन्नम की जज़ा देंगे. हम ऐसी ही सज़ा देते हैं सितमगारों को {29}

21 सूरए अंबिया -तीसरा रूकू

21 सूरए अंबिया -तीसरा रूकू


क्या काफ़िरों ने यह ख़याल न किया कि आसमान और ज़मीन बन्द थे तो हमने उन्हें खोला(1)
(1) बन्द होना या तो यह है कि एक दूसरे से मिला हुआ था उनमें अलहदगी पैदा करके उन्हें खोला, या ये मानी हैं कि आसमान बंद था, इस अर्थ में कि उससे वर्षा नहीं होती थी. ज़मीन बन्द थी, इस अर्थ में कि उस से कुछ पैदा नहीं होता था. तो आसमान का खोलना यह है कि उससे बारिश होने लगी  ज़मीन का खोलना यह है कि उससे हरियाली पैदा होने लगी.

और हमने हर जानदार चीज़ पानी से बनाई(2)
(2)  यानी पानी को जान्दारों की ज़िन्दगी का कारण किया. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा, मानी ये है कि हर जानदार पानी से पैदा किया हुआ हैं  कुछ ने कहा कि इससे नुत्फ़ा या बीज मुराद हैं.

तो क्या वो ईमान लाएंगे{30}और ज़मीन में हमने लंगर डाले(3)
(3)  मज़बूत पहाड़ों के.

कि उन्हें लेकर न कांपे, और हमने उसमें कुशादा (खुली) राहें रखी कि कहीं वो राह पाएं.(4){31}
(4) अपने सफ़रों में,  जिन जगहों का इरादा करें वहाँ तक पहुंच सके.

और हमने आसमान को छत बनाया निगाह रखी गई (5)
(5)  गिरने से.

और वो (6)
(6) यानी काफ़िर.

उसकी निशानियों से मुंह फेरते हैं(7){32}
(7)  यानी आसमानी जगह, सूरज चांद सितारे  अपने अपने आसमानों में उनकी हरकतों की कैफ़ियत,   और अपने निकलने के स्थानों से उनके निकलने और डूबने और उनके अहवाल, जो दुनिया के बनाने वाले के अस्तित्व और उसके एक होने और उसकी भरपूर क़ुदरत और विचार अपार हिकमत के प्रमाण हैं. काफ़िर उन सब से नज़रें फेरते हैं और उन प्रमाणों से लाभ नहीं उठाते

और वही है जिसने बनाए रात(8)
(8) अंधेरी, कि उसमें आराम करें.

और दिन(9)
(9) रौशन, कि उसमें रोज़ी रोटी वग़ैरह के काम करें.

और सूरज और चांद हर एक एक घेरे में पैर रहा है(10){33}
(10) जिस तरह कि तैराक पानी में.

और हमने तुमसे पहले किसी आदमी के लिये दुनिया में हमेशगी  (निरन्तरता) न बनाई(11)
(11) रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के दुश्मन अपनी गुमराही और दुश्मनी से कहते थे कि हम ज़माने या समय की चालों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. बहुत जल्द ऐसा वक़्त आने वाला है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) का देहान्त हो जाएगा. इसपर यह आयत उतरी और फ़रमाया गया कि रसूल के दुश्मनों के लिये यह कोई ख़ुशी की बात नहीं. हमने दुनिया में किसी आदमी के लिये हमेशा का रहना नहीं रखा.

तो क्या अगर तुम इन्तिक़ाल फ़रमाओ तो ये हमेशा रहेंगे (12){34}
(12)  और उन्हें मौत के पंजे से छुटकारा मिल जाएगा. जब ऐसा नहीं है तो फिर ख़ुश किस बात पर होते हैं. हक़ीक़त यह है कि —-

हर जान को मौत का मज़ा चखना है और हम तुम्हारी आज़माइश (परीक्षा) करते हैं बुराई और भलाई से(13)
(13) यानी राहत और तकलीफ़, स्वास्थ्य और बीमारी, मालदारी और ग़रीबी, नफ़ा और नुक़सान से.

जांचने को(14)
(14) ताकि ज़ाहिर हो जाए कि सब्र और शुक्र में तुम्हारा क्या दर्जा है.

और हमारी ही तरफ़ तुम्हें लौट कर आना हैं(15){15}
(15)हम तुम्हें तुम्हारे कर्मों का बदला देंगे.

जब काफ़िर तुम्हें देखते हैं तो तुम्हें नहीं ठहराते मगर ठट्टा(16)
(16) यह आयत अबू जहल के बारे में उतरी. हुज़ूर तशरीफ़ लिये जाते थे वह आपको देखकर हंसा और कहने लगा कि यह बनी अब्दे मनाफ़ के नबी है और आपस में एक दूसरे से कहने लगे.

क्या ये वो है जो तुम्हारे ख़ुदाओ को बुरा कहते हैं और वो(17)
(17) काफ़िर.

रहमान ही की याद से इन्कारी हैं(18){36}
(18)कहते हैं कि हम रहमान को जानते ही नहीं. इस इस जिहालत और गुमराही में जकड़े जाने के बावजूद आपके साथ ठट्टा करते है और नहीं देखते कि हंसी के क़ाबिल ख़ुद उनका अपना हाल है.

आदमी जल्दबाज़ बनाया गया. अब मैं तुम्हें अपनी निशानियां दिखाऊंगा मुझ से जल्दी न करो(19){37}
(19) यह आयत नज़र बिन हारिस के बारे में नाज़िल हुई जो कहता था कि जल्दी अज़ाब उतरवाइए. इस आयत में फ़रमाया गया कि अब मैं तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाऊंगा यानी जो वादे अज़ाब के दिये गए हैं उनका वक़्त क़रीब आ गया है. चुनांचे बद्र के दिन वह दृश्य उनकी नज़र के सामने आ गया.

और कहते हैं कब होगा यह वादा(20)
(20)अज़ाब का या क़यामत का, ये उनकी जल्दी करने का बयान है.

अगर तुम सच्चे हो{38} किसी तरह जानते काफ़िर उस वक़्त को जब न रोक सकेंगे अपने मुंहों से आग(21)
(21) दोज़ख़ की.

और न अपनी पीठों से और न उनकी मदद हो(22){39}
(22)  अगर वो यह जानते होते तो कुफ़्र पर क़ायम न रहते और अज़ाब में जल्दी न करते.

बल्कि वह उनपर अचानक आ पड़ेगी (23)
(23) क़यामत

तो उन्हें बे हवास कर देगी फिर न वो उसे फेर सकेंगे और न उन्हें मुहलत दी जाएगी(24){40}
(24) तौबह और मअज़िरत की.

और बेशक तुमसे अगले रसूलों के साथ ठठ्ठा किया गया(25)
(25) ऐ मेहबूब (सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम)

तो मसख़रगी (ठठ्ठा) करने वालों का ठठ्ठा उन्हीं को ले बैठा(26){41}
(26) और वो अपने मज़ाक और हंसी बनाने के वबाल और अज़ाब में गिरफ़्तार हुए. इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली फ़रमाई गई कि आपके साथ ठट्टा करने वालों का यही अंजाम होता है.

21 सूरए अंबिया -चौथा रूकू

21 सूरए  अंबिया -चौथा रूकू

तुम फ़रमाओ रात दिन तुम्हारी निगहबानी कौन करता है रहमान से(1)
(1) यानी उसके अज़ाब से.

बल्कि वो अपने रब की याद से मुंह फेरे हैं(2){42}
(2) जब ऐसा है तो उन्हें अल्लाह के अज़ाब का क्या डर हो वो अपनी हिफ़ाज़त करने वालों को क्या पहचानें.

क्या उनके कुछ ख़ुदा है(3)
(3) हमारे सिवा उनके ख़याल में.

जो उनको हम से बचाते हैं (4)
(4)   और हमारे अज़ाब से मेहफ़ूज़ रखते हैं ऐसा तो नहीं है और अगर वो अपने बुतों के बारे में यह अक़ीदा रखते हैं तो उनका हाल यह है कि.

वो अपनी ही जानों को नहीं बचा सकते (5)
(5) अपने पूजने वालों को क्या बचा सकेंगे.

और न हमारी तरफ़ से उनकी यारी हो {43} बल्कि हमने उनको(6)
(6) यानी काफ़िरों को.

और उनके बाप दादा को बर्तावा दिया(7)
(7)  और दुनिया में उन्हें नेअमत और मोहलत दी.

यहाँ तक कि ज़िन्दगी उनपर दराज़ (लम्बी) हुई(8)
(8)  और वो इस से और घमण्डी हुए और उन्होंने गुमान किया कि वो हमेशा ऐसे ही रहेंगे.

तो क्या नहीं देखते कि हम(9)
(9)  काफ़िरों के रहने की जगह की—

ज़मीन को उसके किनारों से घटाते आ रहे हैं(10)
(10)  दिन प्रतिदिन मुसलमानों को उस पर तसल्लुत दे रहे हैं और एक शहर के बाद दूसरा शहर फ़त्ह होता चला आ रहा है, इस्लाम की सीमाएं बढ़ रही हैं और कुफ़्र की धरती घटती चली आती है. और मक्कए मुकर्रमा के आस पास के इलाकों पर मुसलमानों का तसल्लुत होता जाता है, क्या मुश्रिक जो अज़ाब तलब करने में जल्दी कर रहे हैं, इसको नहीं देखते और सबक़ नहीं पकड़ते.

तो क्या ये ग़ालिब होंगे(11){44}
(11) जिनके क़ब्ज़े से ज़मीन दम ब दम निकलती जा रही है, या रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और उनके सहाबा जो अल्लाह के फ़ज़्ल से फ़त्ह पा रहे हैं और उनके क़ब्ज़े़ दम ब दम बढ़ते जा रहे हैं.

तुम फ़रमाओ कि मैं तुम को सिर्फ़ वही (देववाणी) से डराता हूँ(12)
(12) और अज़ाबे इलाही का उसी की तरफ़ से ख़ौफ़ दिलाता हूँ.

और बहरे पुकारना नहीं सुनते जब डराए जाएं(13){45}
(13) यानी काफ़िर, हिदायत करने वाले और ख़ौफ़ दिलाने वाले के कलाम से नफ़ा न उठाने में बेहरे की तरह हैं.

और अगर उन्हें तुम्हारे रब के अज़ाब की हवा छू जाए तो ज़रूर कहेंगे हाय ख़राबी हमारी बेशक हम ज़ालिम थे(14){46}
(14)   नबी की बात पर कान न रखा और उनपर ईमान न लाए.

और हम अदल (न्याय) की तराजुएं रखेंगे क़यामत के दिन तो किसी जान पर कुछ ज़ुल्म न होगा, और अगर कोई चीज़ (15)
(15) कर्मों में से.

राई के दाने के बराबर हो तो म उसे ले आएंगे, और हम काफ़ी हैं हिसाब को{47}और बेशक हमने मूसा और हारून को फ़ैसला दिया(16)
(16) यानी तौरात अता की जो सच झूठ में अन्तर करने वाली है.

और उजाला (17)
(17) यानी रौशनी है, कि उससे मोक्ष की राह मालूम होती है.

और परहेज़गारी को नसीहत (18){48}
(18) जिससे वो नसीहत हासिल करते हैं और दीन की बातों का इल्म हासिल करते है।.

वो जो बे देखे अपने रब से डरते हैं और उन्हें क़यामत का डर लगा हुआ है{49} और यह है बरकत वाला ज़िक्र कि हमने उतारा (19)
(19) अपने हबीब मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर, यानी क़ुरआन शरीफ़, यह बहुत सी भलाई वाला है और ईमान लाने वालों के लिये इसमें बड़ी बरकतें हैं.
तो क्या तुम उसके इन्कारी हो{50}

21 सूरए अंबिया -पाँचवाँ रूकू

21 सूरए अंबिया -पाँचवाँ  रूकू


और बेशक हमने इब्राहीम को(1)
(1) उनकी शुरू की उम्र में बालिग़ होने के.

पहले ही से उसकी नेक राह अता कर दी और हम उससे ख़बरदार थे(2){51}
(2) कि वह हिदायत और नबुव्वत के पात्र हैं.

जब उसने अपने बाप और क़ौम से कहा ये मूरतें क्या हैं,(3)
(3) यानी बुत जो दरिन्दों, परिन्दों और इन्सानों की सूरत में बने हुए हैं.

जिनके आगे तुम आसन मारे (पूजा के लिये) हो (4){52}
(4) और उनकी इबादत में लगे हो.

बाले हमने अपने बाप दादा को उनकी पूजा करते पाया(5){53}
(5) तो हम भी उनके अनुकरण में वैसा ही करने लगे.

कहा बेशक तुम और तुम्हारे बाप दादा सब खुली गुमराही में हो{54} बोले क्या तुम हमारे पास हक़ लाए हो या यूंही खेलते हो(6){55}
(6) चूंकि उन्हें अपने तरीक़े का गुमराही होना बहुत ही असंभव लगता था और  उसका इन्कार करना वो बहुत बड़ी बात जानते थे, इसलिये उन्होंने हज़रत इब्रराहीम अलैहिस्सलाम से यह कहा कि क्या आप यह बात सही तौर पर हमें बता रहे है या खेल के तौर पर फ़रमा रहे हैं. इसके जवाब में आपने अल्लाह तआला के रब होने की ताईद करके ज़ाहिर कर दिया कि आप मज़ाक के तौर पर कलाम फ़रमाने वाले नहीं हैं बल्कि सच्चाई का इज़हार फ़रमाते हैं. चुनांचे आपने—-

कहा बल्कि तुम्हारा रब वह है जो रब है आसमानों और ज़मीन का जिसने उन्हें पैदा किया और मैं इस पर गवाहों में से हूँ{56} और मुझे अल्लाह की क़सम है मैं तुम्हारे बुतों का बुरा चाहूंगा बाद इसके कि तुम फिर जाओ पीठ देकर(7){57}
(7) अपने मेलों को. वाक़िआ यह है कि उस क़ौम का सालाना मेला लगता था. जंगल में जाते और  शाम तक वहाँ खेलकूद नाच गानों में लगे रहते. वापसी के समय बुतख़ाने आते और बुतों की पूजा करते. इसके बाद अपने मकानों को चले जाते. जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनकी एक जमाअत से बुतों के बारे में तर्क वितर्क किया तो उन लोगों ने कहा कि कल को हमारी ईद है आप वहाँ चले, देखें कि हमारे दीन और तरीक़ें में क्या बहार है और  कैसा मज़ा आता है जब वह मेले का दिन आया और आपसे मेले चलने को कहा गया तो आप बहाना बनाकर रूक गए. वो लोग चले गए. जब उनके बाक़ी लोग और कमज़ोर व्यक्ति जो आहिस्ता आहिस्ता जा रहे थे, गुज़रे तो आपने फ़रमाया कि मैं तुम्हारे बुतों का बुरा चाहुंगा. इसको कुछ लोगों ने सुना और हज़रत इब्रराहीम अलैहिस्सलाम बुत ख़ाने की तरफ़ लौटै.

तो उन सब को(8)
(8) यानी बुतों को तोड़ कर.

चूरा कर दिया मगर एक को जो उन सबका बड़ा था(9)
(9) छोड़ दिया और बसूला उसके कन्धे पर रख दिया.

कि शायद वो उससे कुछ पूछें (10){58}
(10) यानी बड़े बुत से कि इन छोटे बुतों का क्या हाल हे ये क्यों टूटे और बसूला तेरी गर्दन पर कैसा रखा है और उन्हें इसकी बेबसी ज़ाहिर हो और होश आए कि ऐसे लाचार ख़ुदा नहीं हो सकते. या ये मानी हैं कि वो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से पूछें और आपको तर्क क़ायम करने का मौक़ा मिले. चूनांचे जब क़ौम के लोग शाम को वापस हुए और बुत ख़ाने में पहुंचे और उन्होंने देखा कि बुत टूटे पड़े हैं तो—

बोले किस ने हमारे ख़ुदाओ के साथ यह काम किया बेशक वह ज़ालिम है{59} उनमें के कुछ बोले हमने एक जवान को उन्हें बुरा कहते सुना जिसे इब्राहीम कहते हैं(11){60}
(11) यह ख़बर नमरूद जब्बार और उसके सरदारों को पहुंची तो—-

बोले तो उसे लोगों के सामने लाओ शायद वो गवाही दें(12){61}
(12) कि यह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ही का काम है या उनसे बुतों की निस्बत ऐसा कलाम सुना गया. मतलब यह था कि शहादत या गवाही क़ायम हो तो वो आपके पीछे पड़ें. चुनांचे हज़रत बुलाए गए और वो लोग.

बोले क्या तुमने हमारे ख़ुदाओं के साथ यह काम किया, ऐ इब्राहीम (13){62}
(13) आपने इसका तो कुछ जवाब नहीं दिया और तर्क वितर्क की शान से जवाब में एक अनोखी हुज्जत क़ायम की.

फ़रमाया बल्कि उनके उस बड़े ने किया होगा(14)
(14) इस ग़ुस्से से कि उसके होते तुम छोटों को पूजते हो. उसके कन्धे पर बसूला होने से ऐसा ही अन्दाज़ा लगाया जा सकता है. मुझ से क्या पूछना, पूछना हो—

तो उनसे पूछो अगर बोलते हों(15) {63}
(15)  वो ख़ुद बताएं कि उनके साथ यह किसने किया. मतलब यह था कि क़ौम ग़ौर करे कि जो बोल नहीं सकता, जो कुछ कर नहीं सकता, वह ख़ुदा नहीं हो सकता. उसकी ख़ुदाई का अक़ीदा झूटा है. चुनांचे जब आपने यह फ़रमाया.

तो अपने जी की तरफ़ पलटे (16)
(16) और समझे कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हक़ पर हैं.

और बोले बेशक तुम्हीं सितमगर हो(17){64}
(17) जो ऐसे मजबूरों और बे इख़्तियारों को पूजते हो. जो अपने कन्धे पर बे बसूला न हटा सके, वह अपने पुजारी को मुसीबत से क्या बचा सकेगा और उसके क्या काम आ सकेगा.

फिर अपने सरों के बल औंधाए गए(18)
(18) और सच्ची बात कहने के बाद फिर उनकी बदबख़्ती उनके सरों पर सवार हुई और वो कुफ़्र की तरफ़ पलटे और झूटी बहस शुरू कर दी और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से कहने लगे.

कि तुम्हें ख़ूब मालूम है ये बोलते नहीं (19){65}
(19)  तो हम उनसे कैसे पूछे और ऐ इब्राहीम, तुम हमें उनसे पूछने का कैसे हुक्म देते हो.

कहा तो क्या अल्लाह के सिवा ऐसे को पूजते हो जो न तुम्हें नफ़ा दे(20)
(20) अगर उसे पूजा.

और न नुक़सान पहुंचाए(21){66}
(21) अगर  उसका पूजना बन्द कर दो.

तुफ़्र है तुम पर और उन बुतों पर जिन को अल्लाह के सिवा पूजते हो तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं(22){67}
(22)  कि इतना भी समझ सकते कि ये बुत पूजने के क़ाबिल नहीं. जब हुज़्जत पूरी हो गई और वो लोग जवाब देने से लाचार हुए तो….

बोले उनको जला दो और अपने ख़ुदाओं की मदद करो अगर तुम्हें करना है(23){68}
(23) नमरूद और उसकी क़ौम हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जला डालने पर सहमत हो गई और उन्होंने आपको एक मकान में क़ैद कर दिया और कौसा गाँव में एक ईमारत बनाई और एक महीने तक पूरी कोशिशों से क़िस्म क़िस्म की लकड़ियाँ जमा की और एक बड़ी आग जलाई जिसकी तपन से हवा में उड़ने वाले पक्षी जल जाते थे. और एक गोफन खड़ी की और आपको बांधकर उसमें रखकर आग में फैंका. उस वक़्त आपकी ज़बाने मुबारक पर “हस्बीयल्लाहो व नेअमल वकील” जारी था. जिब्रईले अमीन ने आपसे अर्ज़ किया कि क्या कुछ काम है. आपने फ़रमाया, तुम से नहीं. जिब्रईल ने अर्ज़ किया, तो अपने रब से सवाल कीजिये. फ़रमाया, सवाल करने से उसका मेरे हाल को जानना मेरे लिये काफ़ी है.

हमने फ़रमाया ऐ आग ठण्डी होजा और सलामती इब्राहीम पर(24){69}
(24) तो आग ने आपके बन्धनों के सिवा और कुछ न जलाया और आग की गर्मी ख़त्म हो गई और रौशनी बाक़ी रही.

और उन्होंने उसका बुरा चाहा तो हमने उन्हें सब से बढकर ज़ियांकार (घाटे वाला) कर दिया(25){70}
(25) कि उनकी मुराद पूरी न हुई और कोशिश विफल हुई और अल्लाह तआला ने उस क़ौम पर मच्छर भेजे जो उनके गोश्त खा गए और ख़ून पी गए और एक मच्छर नमरूद के दिमाग़ में घुस गया और उसकी हलाकत का कारण हुआ.

और हमने उसे और लूत को(26)
(26) जो उनके भतीजे, उनके भाई हारान के बेटे थे, नमरूद और उसकी क़ौम से.

निजात बख़्शी (27)
(27) और इराक़ से.

उस ज़मीन की तरफ़(28)
(28) रवाना किया.

जिसमें हमने दुनिया वालों के लिये बरकत रखी(29){71}
(29) इस ज़मीन से शाम प्रदेश मुराद है. उसकी बरकत यह है कि यहाँ काफ़ी नबी हुए और सारे जगत में उनकी दीनी बरकतें पहुंचीं और हरियाली के ऐतिबार से भी यह क्षेत्र दूसरे क्षेत्रों से श्रेष्ठ है. यहाँ कसरत से नेहरें हैं, पानी पाक़ीज़ा और ख़ुशगवार है, दरख़्तों और फलों की बहुतात है. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम फ़लस्तीन स्थान पर तशरीफ़ लाए और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम मौतफ़िकह में.

और हमने उसे इस्हाक़ अता फ़रमाया,(30)
(30) और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह तआला से बेटे की दुआ की थी.

और यअक़ूब पोता और हमने उन सबको अपने ख़ास क़ुर्ब का अधिकारी किया {72} और हमने उन्हें इमाम किया कि(31)
(31) लोगों को हमारे दीन की तरफ.

हमारे हुक्म से बुलाते हैं और हमने उन्हें वही (देववाणी) भेजी अच्छे काम करने और नमाज़ क़ायम रखने और ज़कात देने की, और वो हमारी बन्दगी करते थे{73} और लूत को हमने हुक़ूमत और इल्म दिया और उसे उस बस्ती से निजात बख़्शी जो गन्दे काम करती थी,(32)
(32) उस बस्ती का नाम सदूम था.

बेशक वो बुरे लोग बेहुक्म थे. और हमने उसे (33){74}
(33) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को.
अपनी रहमत में दाख़िल किया, बेशक वह हमारे ख़ास क़ुर्ब (नज़दीकी) के अधिकारियों में हैं{75}