42 सूरए शूरा
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ حم
عسق
كَذَٰلِكَ يُوحِي إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ
تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِن فَوْقِهِنَّ ۚ وَالْمَلَائِكَةُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِمَن فِي الْأَرْضِ ۗ أَلَا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ اللَّهُ حَفِيظٌ عَلَيْهِمْ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ
وَكَذَٰلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّتُنذِرَ أُمَّ الْقُرَىٰ وَمَنْ حَوْلَهَا وَتُنذِرَ يَوْمَ الْجَمْعِ لَا رَيْبَ فِيهِ ۚ فَرِيقٌ فِي الْجَنَّةِ وَفَرِيقٌ فِي السَّعِيرِ
وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَهُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَٰكِن يُدْخِلُ مَن يَشَاءُ فِي رَحْمَتِهِ ۚ وَالظَّالِمُونَ مَا لَهُم مِّن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ
أَمِ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ ۖ فَاللَّهُ هُوَ الْوَلِيُّ وَهُوَ يُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
सूरए शूरा मक्का में उतरी, इसमें 53 आयतें, 5 रूकू हैं.
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए शुरा जमहूर के नज़्दीक मक्की सूरत है और हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा के एक क़ौल में इसकी चार आयतें मदीनए तैय्यिबह में उतरीं जिनमें पहली “कुल ला असअलुकुम अलैहे अजरन” है. इस सूरत में पाँच रूकू, त्रिपन आयतें, आठ सौ कलिमें और तीन हज़ार पाँच सौ अठासी अक्षर हैं.
हा-मीम {1} ऐन सीन क़ाफ़ {2} यूंही वही फ़रमाता है तुम्हारी तरफ़(2)
(2) ग़ैबी ख़बरें. (ख़ाज़िन)
और तुमसे अगलों की तरफ़(3)
(3) नबियों से वही फ़रमा चुका.
अल्लाह इज़्ज़त व हिकमत वाला {3} उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, और वही बलन्दी व अज़मत वाला है{4} क़रीब होता है कि आसमान अपने ऊपर से शक़ हो जाएं (4)
(4) अल्लाह तआला की महानता और उसकी ऊंची शान से.
और फ़रिश्ते अपने रब की तारीफ़ के साथ उसकी पाकी बोलते और ज़मीन वालों के लिये माफ़ी मांगते हैं, (5)
(5) यानी ईमानदारों के लिये, क्योंकि काफ़िर इस लायक़ नहीं हैं कि फ़रिश्ते उनके लिये माफ़ी चाहे. यह हो सकता है कि काफ़िरों के लिये यह दुआ करें कि उन्हें ईमान देकर उनकी मग़फ़िरत फ़रमा.
सुन लो बेशक अल्लाह ही बख़्शने वाला मेहरबान है {5} और जिन्होंने अल्लाह के सिवा और वाली बना रखे हैं(6)
(6) यानी बुत, जिनको वो पूजते और मअबूद समझते हैं.
वो अल्लाह की निगाह में हैं (7)
(7) उनकी कहनी और करनी उसके सामने हैं और वह उन्हें बदला देगा.
और तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं(8){6}
(8) तुम से उनके कर्मों की पकड़ नहीं की जाएगी.
और यूंही हमने तुम्हारी तरफ़ अरबी क़ुरआन वही भेजा कि तुम डराओ सब शहरों की अस्ल मक्का वालों को और जितने उसके गिर्द हैं(9)
(9) यानी सारे जगत के लोग उन सब को.
और तुम डराओ इकट्ठे होने के दिन से जिसमें कुछ शक नहीं(10)
(10) यानी क़यामत के दिन से डराओ जिसमें अल्लाह तआला अगले पिछलों और आसमान व ज़मीन वालों सब को जमा फ़रमाएगा और इस इकट्ठा होने के बाद फिर सब बिखर जाएंगे.
एक गिरोह जन्नत में है और एक गिरोह दोज़ख़ में {7} और अल्लाह चाहता तो उन सब को एक दीन पर कर देता लेकिन अल्लाह अपनी रहमत में लेता है जिसे चाहे (11)
(11) उसको इस्लाम की तौफ़ीक़ देता है.
और ज़ालिमों का न कोई दोस्त न मददगार(12) {8}
(12) यानी काफ़िरों को कोई अज़ाब से बचाने वाला नहीं.
क्या अल्लाह के सिवा और वाली ठहरा लिये हैं (13)
(13) यानी काफ़िरों ने अल्लाह तआला को छोड़कर बुतों को अपना वाली बना लिया है, यह ग़लत है.
तो अल्लाह ही वाली है और वह मुर्दे जिलाएगा और वह सब कुछ कर सकता है (14) {9}
(14) तो उसी को वाली बनाना सज़ावार है.
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