20 सूरए तॉहा -पहला रूकू
सूरए तॉहा मक्का में उतरी, इसमें 135 आयतें और 8 रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
पहला रूकू
(1) सूरए तॉहा मक्का में उतरी, इसमें आठ रूकू हैं, एक सौ पैंतीस आयतें, एक हज़ार छ सौ इक्तालीस कलिमे और पाँच हज़ार दो सौ बयालीस अक्षर हैं.
तॉहा, {1} ऐ मेहबूब हमने तुमपर यह क़ुरआन इसलिये न उतारा कि तुम मशक़्क़त में पड़ो(2){2}
(2) और सारी रात के क़याम की तकलीफ़ न उठाओ, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम इबादत में बहुत मेहनत फ़रमाते थे और सारी रात खड़े रहते यहाँ तक कि मुबारक क़दम सूज जाते. इसपर यह आयत उतरी. और जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने हाज़िर होकर अल्लाह के हुक्म से अर्ज़ किया कि अपने पाक नफ़्स को कुछ राहत दीजिये उसका भी हक़ है. एक क़ौल यह भी है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम लोगों के कुफ़्र और उनके ईमान से मेहरूम रहने पर बहुत ज़्यादा दुखी और परेशान रहते थे और आपके मुबारक दिल पर बड़ा अफ़सोस और बोझ रहा करता था इस आयत में फ़रमाया गया कि आप दुख की तकलीफ़ न उठाएं और अपने दिल पर कोई बोझ न लें. क़ुरआन शरीफ़ आपकी मशक़्क़त के लिये नहीं उतारा गया है.
हाँ उसको नसीहत जो डर रखता हो(3){3}
(3) वह इससे नफ़ा उठाएगा और हिदायत पाएगा.
उसका उतारा हुआ ज़मीन और ऊंचे आसमान बनाए{4} वह बड़ी मेहर (कृपा) वाला, उसने अर्श पर इस्तिवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है{5} उसका है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ इस गीली मिट्टी के नीचे है (4){6}
(4) जो सातों ज़मीनों के नीचे है. मुराद यह है कि कायनात या सृष्टि में जो कुछ है अर्श, आसमान, ज़मीन, पाताल, कुछ हो कहीं हो, सब का मालिक अल्लाह है.
और अगर तू बात पुकार कर कहे तो वह तो भेद को जानता है और उसे जो उससे भी ज़्यादा छुपा है (5){7}
(5) सिर्र यानी रहस्य वह है जिसको आदमी रखता और छुपाता है और इससे ज़्यादा छुपा हुआ वह है जिसको इन्सान करने वाला है मगर अभी जानता भी नहीं, न उससे उसका इरादा जुड़ा, न उसतक ख़याल पहुंचा. एक क़ौल यह है कि रहस्य से मुराद वह है जिसको इन्सानों से छुपाता है और उससे ज़्यादा छुपी हुई चीज़ वसवसा है. एक क़ौल यह है कि रहस्य बन्दे का वह है जिसे बन्दा ख़ुद जानता है और अल्लाह जानता है, उससे ज़्यादा छुपे हुए अल्लाह के राज़ हैं जिन्हें अल्लाह जानता है और बन्दा नहीं जानता. आयत में तस्बीह है कि आदमी को बुरे कामों से दुर रहना चाहिये चाहे वो खुले हों या ढके छुपे, क्योंकि अल्लाह तआला से कुछ छुपा नहीं. इसमें अच्छे कामों की तरफ़ बुलावा भी है कि ताअत ज़ाहिरी हो या अन्दर की, अल्लाह से छुपी नहीं, वह इनआम अता फ़रमाएगा. तुफ़सीरे बैज़ावी में क़ौल से अल्लाह का ज़िक्र और दुआ मुराद ली है और फ़रमाया है कि इस आयत में इसपर तस्बीह की गई है कि ज़िक्र और दुआ में बलन्द आवाज़ अल्लाह तआला को सुनाने के लिये नहीं हे बल्कि ज़िक्र को मन में पक्का करने और मन को ग़ैर के साथ जुड़ने से रोकने और दूर रखने के लिये है.
अल्लाह, कि उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं उसी के हैं सब अच्छे नाम(6){8}
(6) वह अपनी ज़ात से तन्हा और अकेला है और नाम और गुण इबारात है और ज़ाहिर है कि इबादत की बहुतात मानी की बहुतात को मुक़्तज़ी हैं.
और कुछ तुम्हें मूसा की ख़बर आई(7){9}
(7) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के हालात का बयान फरमाया गया ताकि मालूम हो कि नबी जो ऊंचा दर्ज़ा पाते हैं वह नबुव्वत के फ़र्ज़ों की अदायगी में कितनी मेहनत करते हैं और कैसी कैसी सख़्तियों पर सब्र फ़रमाते हैं. यहाँ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के उस सफ़र का वाक़िआ बयान फ़रमाया जाता है जिसमें आप मदयन से मिस्र की तरफ़ हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम से इजाज़त लेकर अपनी वालिदा माजिदा से मिलने के लिये रवाना हुए थे. आपके घर वाले साथ थे और आपने शाम के बादशाहों के अन्देशे से सड़क छोड़कर जंगल की राह अपनाई थी. बीबी साहिबा गर्भ से थीं. चलते चलत तूर की पश्चिमी दिशा में पहुंचे यहाँ रात के वक़्त बीबी साहिबा को ज़चगी के दर्द शुरू हुए रात अंधेरी थी. बर्फ़ पड़ रही थी. सर्दी सख़्त थी. आप को दूर से आग मालूम हुई.
जब उसने एक आग देखी तो अपनी बीबी से कहा ठहरो मुझे एक आग नज़र पड़ी है शायद में तुम्हारे लिये उसमें से कोई चिंगारी लाऊं या आग पर रास्ता पाऊं{10} फिर जब आग के पास आया(8)
(8) वहाँ एक दरख़्त हरा भरा देखा जो ऊपर से नीचे तक बहुत रौशन था जितना उसके क़रीब जाते, दूर हो जाता, जब ठहर जाते, क़रीब होता, उस वक़्त आपको—
निदा (पुकार) फ़रमाई गई कि ऐ मूसा {11} बेशक मैं तेरा रब हूँ तो तू अपने जूते उतार डाल(9)
(9) कि इसमें विनम्रता और पाक रौशनीं का आदर और पवित्र घाटी की धूल से बरकत हासिल करने का मौक़ा है.
बेशक तू पाक जंगल तुवा में है(10){12}
(10) तुवा घाटी का पाक नाम है जहाँ यह वाक़िआ पेश आया.
और मैंने तुझे पसन्द किया(11)
(11) तेरी क़ौम में से नबुव्वत और रिसालत और कलाम के शरफ़ से नवाज़ा. यह पुकार हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने शरीर के हर अंग से सुनी और सुनने की शक्ति ऐसी आम हुई कि सारा शरीर कान बन गया, सुब्हानल्लाह.
अब कान लगाकर सुन जो तुझे वही(देववाणी) होती है{13} बेशक मैं ही हूँ अल्लाह कि मेरे सिवा कोई मअबूद नहीं तो मेरी बन्दगी कर और मेरी याद के लिये नमाज़ क़ायम रख (12){14}
(12) ताकि तू इसमें मुझे याद करे और मेरी याद में इख़लास और मेरी रज़ा मक़सूद हो कोई दूसरी ग़रज़ न हो. इसी तरह रिया या दिखावे का दख़्ल न हो. या ये मानी हैं कि तू मेरी नमाज़ क़ायम रख ताकि मैं तुझे अपनी रहमत से याद फ़रमाऊं . इससे मालूम हुआ कि ईमान के बाद सबसे बड़ा फ़र्ज़ नमाज़ है.
बेशक क़यामत आने वाली है क़रीब था कि मैं उसे सबसे छुपाऊं(13)
(13) और बन्दों को उसके आने की ख़बर न दूँ और उसके आने की ख़बर न दी जाती अगर इस ख़बर देने में यह हिकमत न होती.
कि हर जान अपनी कोशिश का बदला पाए(14){15}
(14) और उसके ख़ौफ़ से गुनाह छोड़े और नेकियाँ ज़्यादा करे और हर वक़्त तौबह करता रहे.
तो हरगिज़ तुझे(15)
(15) ऐ मूसा की उम्मत. सम्बोधन ज़ाहिर मे मूसा अलैहिस्सलाम को है और मुराद इससे आपकी उम्मत है. (मदारिक)
उसके मानने से वह बाज़ न रखे जो उस पर ईमान नहीं लाता और अपनी ख़्वाहिश के पीछे चला(16)
(16)अगर तू उसका कहना माने और क़यामत पर ईमान न लाए तो—
फिर तू हलाक हो जाए{16} और यह तेरे दाएं हाथ में क्या है ऐ मूसा(17){17}
(17) इस सवाल की हिकमत यह है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अपनी लाठी को देख लें और यह बात दिल में ख़ूब पक्की हो जाए कि यह लाठी है ताकि जिस वक़्त वह साँप की शक्ल में हो तो आप के मन पर कोई परेशानी न हो. या यह हि कमत है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को मानूस किया जाए ताकि गुफ़्तगू या या संवाद की हैबत कम हो. (मदारिक वग़ैरह)
अर्ज़ की यह मेरा असा (लाठी) है, (18)
(18) इस लाठी में ऊपर की तरफ़ दो शाख़ें थीं और इसका नाम नबआ था.
मैं इस पर तकिया लगाता हूँ और इससे अपनी बकरियों पर पत्ते झाड़ता हूँ और मेरे इसमें और काम हैं(19){18}
(19) जैसे कि तोशा और पानी उठाने और ख़तरनाक जानवर को दूर भगाने और दुश्मन से लड़ाई में काम लेने वग़ैरह. इन फ़ायदों का ज़िक्र करना अल्लाह की नेअमतों के शुक्र के तौर पर था. अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से.
फ़रमाया इसे डाल दे ऐ मूसा {19} तो मूसा ने डाल दिया तो जभी वह दौड़ता हुआ सांप हो गया(20){20}
(20) और अल्लाह की क़ुदरत दिखाई गई कि जो लाठी हाथ में रहत थी और इतने काम आती थीं अब अचानक वह ऐसा भयानक अजगर बन गई. यह हाल देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को ख़ौफ़ हुआ तो अल्लाह तआला ने उनसे.
फ़रमाया इसे उठा ले और डर नहीं अब हम इसे फिर पहले की तरह कर देंगे(21){21}
(21) यह फ़रमाते ही ख़ौफ़ जाता रहा यहाँ तक कि आपने अपना मुबारक हाथ उसके मुंह में डाल दिया और वह आपके हाथ लगते ही पहले की तरह लाठी बन गई. अब इसके बाद एक और चमत्कार अता फ़रमाया जिसकी निस्बत इरशाद होता है.
और अपना हाथ अपने बाज़ू से मिला(22)
(22) यानी दाएं हाथ की हथैली बाएं बाज़ू से बग़ल के नीचे मिलाकर निकालिये तो सूरज की तरह चमकता निगाहों को चका चौंध करता और…
ख़ूब सफ़ेद निकलेगा बे किसी मर्ज़ के (23){22}
(23) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मुबारक हाथ से रात और दिन में सूरज की तरह नूर यानी प्रकाश ज़ाहिर होता था और यह चमत्कार आपके बड़े चमत्कारों में से है. जब आप दोबारा अपना हाथ बग़ल के नीचे रखकर बाज़ू से मिलाते तो हाथ पहले की हालत पर वापस आ जाता.
एक और निशानी(24)
(24) आपकी नबुव्वत की सच्चाई की, लाठी के बाद इस निशानी को भी लीजिये.
कि हम तुझे अपनी बड़ी बड़ी निशानियां दिखाएं{23} फिरऔन के पास जा(25)
(25) रसूल होकर.
उसने सर उठाया(26){24}
(26) और कुफ़्र में हद से गुज़र गया और ख़ुदाई का दावा करने लगा.
Filed under: k20-Surah-Al-Taha | Leave a comment »