18 सूरए कहफ़ – पहला रूकू
सूरए कहफ़ मक्का में उतरी, इसमें 110 आयतें, और 12 रूकू हैं
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) इस सूरत का नाम कहफ़ है. यह मक्की है, इसमें एक सौ दस आयतें और एक हज़ार पाँच सौ सत्तहत्तर कलिमें और छ: हज़ार तीन सौ साठ अक्षर और बारह रूकू हैं.
सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने अपने बन्दे(2)
(2) मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
पर किताब उतारी(3)
(3) यानी क़ुरआन शरीफ़. जो उसकी बेहतरीन नेअमत और बन्दों के लिये निजात और भलाई का कारण हैं.
और उसमें कोई कजी न रखी(4){1}
(4) न लफ़ज़ी न मअनवी, न उसमें इख़्तिलाफ़. न विषमताएं.
अदल(इन्साफ़) वाली किताब कि(5)
(5) काफ़िरों को.
अल्लाह के सख़्त अज़ाब से डराए और ईमान वालों को जो नेक काम करें बशारत दें कि उनके लिये अच्छा सवाब है{2} जिसमें हमेशा रहेंगे{3} और उन(6)
(6) काफ़िर.
को डराए जो कहते हैं कि अल्लाह ने अपना कोई बच्चा बनाया {4} इस बारे में न वो कुछ इल्म रखते हैं न उनके बाप दादा(7)
(7) ख़ालिस जिहालत से यह आरोप लगाते हैं और ऐसी झूट बात बकते हैं. {78}
कितना बड़ा बोल है कि उनके मुंह से निकलता है निरा झूट कह रहे हैं{5} तो कहीं तुम अपनी जान पर खेल जाओगे उनके पीछे अगर वो इस बात पर (8)
(8) यानी क़ुरआन शरीफ़ पर.
ईमान न लाए ग़म से(9){6}
(9) इसमें नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली फ़रमाई गई कि आप इन बेईमानों के ईमान से मेहरूम रहने पर इस क़द्र रंज और ग़म न कीजिये अपपननी प्यारी जान को इस दुख से हलाकत में न डालिये.
बेशक हमने ज़मीन का सिंगार किया जो कुछ उस पर हैं(10)
(10) वो चाहे जानदार हों या पेड़ पौदे या खनिज हों या नेहरें.
कि उन्हें आज़माएं उनमे किस के काम बेहतर हैं(11){7}
(11) और कौन परहेज़गारी इख़्तियार करता और वर्जित तथा अवैध बातों से बचता है.
और बेशक जो कुछ उसपर है एक दिन हम उसे पटपर मैदान छोड़ेंगे कर (12){8}
(12) और आबाद होने के बाद वीरान कर देंगे औ पेड़ पौथे वग़ैरह जो चीज़ें सजावट की थीं उनमें से कुछ भी बाक़ी न रहेगा तो दुनिया की अस्थिरता, ना – पायदार ज़ीनत पर मत रीझो.
क्या तुम्हें मालूम हुआ कि पहाड़ की खोह और जंगल के किनारे वाले(13)
(13) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि रक़ीम उस वादी का नाम है जिसमें असहाबे कहफ़ हैं. आयत में उन लोगों की निस्बत फ़रमाया कि वो….
हमारी एक अजीब निशानी थे{9} जब उन नौजवानों ने(14)
(14) अपनी काफ़िर क़ौम से अपना ईमान बचाने के लिये.
ग़ार में पनाह ली फिर बोले ऐ हमारे रब हमें अपने पास से रहमत दे(15)
(15) और हिदायत और नुसरत और रिज़्क़ और मग़फ़िरत और दुश्मनों से अम्न अता फ़रमा. असहाबे कहफ़ यानी ग़ार वाले लोग कौन है ? सही यह है कि सात हज़रात थे अगरचे उनके नामें में किसी क़द्र मतभेद है लेकिन हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा की रिवायत पर जो ख़ाज़िन में है उनके नाम ये हैं (1) मक्सलमीना (2) यमलीख़ा (3) मर्तूनस (4) बैनूनस (5) सारीनूनस (6) ज़ूनवानस (7) कुशेफ़ीत
(8) तुनूनस और उनके कुत्ते का नाम क़ितमीर है. ये नाम लिखकर दर्वाज़े पर लगा दिये जाएं तो मकान जलने से मेहफ़ूज़ रहता है. माल में रख दिये जाएं तो वह चोरी नहीं जाता, किश्ती या जहाज़ उनकी बरकत से डूबता नहीं, भागा हुआ व्यक्ति उनकी बरकत से वापस आ जाता है. कहीं आग लगी हो और ये नाम कपड़े में लिखकर डाल दिये जाएं तो वह बूझ जाती है, बच्चे के रोने, मीआदी बुख़ार, सरदर्द, सूखे की बीमारी, ख़ुश्की व तरी के सफ़र में जान माल की हिफ़ाज़त, अक़्ल की तीव्रता, क़ैदियों की आज़ादी के लिये नाम लिखकर तअवीज़ की तरह बाज़ू में बांधे जाएं. (जुमल) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद इंजील वालों की हालत ख़राब हो गई, वो बुत परस्ती में गिरफ़तार हो गए और दूसरों को बुत परस्ती पर मजबर करने लगे. उनमें दक़ियानूस बादशाह बड़ा जाबिर था.जो बुत परस्ती पर राज़ी न होता, उसको क़त्ल कर डालता. असहाबे कहफ़ अफ़सूस शहर के शरीफ़ और प्रतिष्ठित लोगों में से थे. दक़ियानूस के ज़ुल्म और अत्याचार से अपना ईमान बचाने के लिय भागे और क़रीब के पहाड़ में एक गुफ़ा यानी ग़ार में शरण ली. वहाँ सो गए. तीन सौ बरस से ज़्यादा अर्से तक उसी हाल में रह. बादशाह को तलाश से मालूम हुआ कि वो ग़ार के अन्दर हैं तो उसने हुक्म दिया कि ग़ार को एक पथरीली दीवार खींच कर बन्द कर दिया जाय ताकि वो उसमें मर कर रह जाएं और वह उनकी क़ब्र हो जाए. यही उनकी सज़ा है. हुकूमत के जिस अधिकारी को यह काम सुपुर्द किया गया वह नेक आदमी था, उसने उन लोगों के नाम, संख्या, पूरा वाक़िआ रांग की तख़्ती पर खोद कर तांबे के सन्दूक़ में दीवार की बुनियाद के अन्दर मेहफ़ूज़ कर दिया. यह भी बयान किया गया है कि इसी तरह की एक तख़्ती शाही ख़ज़ाने में भी मेहफ़ूज़ करा दी गई. कुछ समय बाद दक़ियानूस हलाक हुआ.
ज़माने गुज़रे, सल्तनतें बदलीं, यहाँ तक कि एक नेक बादशाह गद्दी पर बैठा उसका नाम बेसरूद था.उसने 68 साल हुकूमत की. फिर मुल्क में फ़िर्क़ा बन्दी और फूट पैदा हुई और कुछ लोग मरने के बाद उठने और क़यामत आने के इन्कारी हो गए. बादशाह एक एकान्त मकान में बन्द हो गया और उसने रो रो कर अल्लाह की बारगाह में दुआ की, या रब कोई ऐसी निशानी ज़ाहिर फ़रमा दे कि दुनिया को मुर्दों के उठने और क़यामत का यक़ीन हासिल हो. उसी ज़माने में एक शख़्स ने अपनी बकरियों के लिये आराम की जगह हासिल करने को उसी गुफा को चुना और दीवार गिरा दी. दीवार गिरने के बाद कुछ ऐसी हैबत छाई कि गिराने वाले भाग गए. असहाबे कहफ़ अल्लाह के हुक्म से ताज़ादम होकर उठे, चेहरे खिले हुए, तबीअते ख़ुश, ज़िन्दगी की तरोताज़गी मौजूद. एक ने दूसरे को सलाम किया. नमाज़ के लिये खड़े हो गए. फ़ारिग़ होकर यमलीख़ा से कहा कि आप जाइये और बाज़ार से कुछ खाने को भी लाइये और यह ख़बर भी लाइये कि दक़ियानूस का हम लोगों के बारे में क्या इरादा है.
वो बाज़ार गए और नगरद्वार पर इस्लामी निशानी देखी. नए नए लोग पाए. उन्हें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के नाम की क़स्में खाते सुना. आश्चर्य हुआ, यह क्या मामला है.कल तो कोई शख़्स अपना ईमान ज़ाहिर नहीं कर सकता था.हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का नाम लेने से क़त्ल कर दिया जाता था. आज इस्लामी निशानियाँ नगरद्वार पर ज़ाहिर हैं, लोग बिना किसी डर के हज़रत ईसा के नाम की क़सम खाते हैं. फिर आप नानबाई की दुकान पर गए. खाना खरीदने के लिये उसको दक़ियानूसी सिक्का दिया जिसका चलन सदियों पहले बन्द हो गया था और उसका देखने वाला तक कोई बाक़ी न बचा था. बाज़ार वालों ने ख़याल किया कि इनके हाथ कोई पुराना ख़ज़ाना लग गया है. इन्हें पकड़ कर हाकिम के पास ले गए.वह नेक आदमी था उसने भी इनसे पूछा कि ख़ज़ाना कहाँ है. इन्होंने कहा ख़ज़ाना कहीं नहीं है. यह रूपया हमारा अपना है. हाकिम ने कहा यह बात किसी तरह यक़ीन करने वाली नहीं इसमें जो सन मौजूद है वह तीन सौ बरस से ज़्यादा का है. हम लोग बूढ़े हैं इमने तो कभी यह सिक्का देखा नहीं. आप ने फ़रमाया जो मैं पूछूँ वह ठीक ठीक बताओ तो राज़ हल हो जाएगा. यह बताओ कि दक़ियानूस बादशाह किस हाल और ख़याल में है. हाकिम ने कहा आज धरती पर इस नाम का कोई बादशाह नहीं. सैकड़ों बरस हुए जब इस नाम का एक बेईमान बादशाह गुज़रा है. आपने फ़रमाया कल ही तो हम उसके डर से जान बचाकर भागे हैं. मेरे साथी क़रीब के पहाड़ में एक ग़ार के अन्दर शरण लिये हुए हैं. चलो मैं तुम्हें उनसे मिला दूँ. हाकिम और शहर के बड़े लोग और एक बड़ी भीड़ उनके साथ ग़ार पर पहुंची असहाबे कहफ़ यमलीख़ा के इन्तिज़ार में थे. बहुत से लोगों के आने की अवाज़ और खटके सुनकर समझे कि यमलीख़ा पकड़े गए और दक़ियानूसी फ़ौज हमारी तलाश में आ रही है. अल्लाह की हम्द और शुक्र बजा लाने लगे. इतने में ये लोग पहुंचे. यमलीख़ा ने सारी कहानी सुनाई. उन हज़रात ने समझ लिया कि हम अल्लाह के हुक्म से इतना लम्बा समय तक सोए और अब इस लिये उठाए गए कि लोगों के लिये मौत के बाद ज़िन्दा किये जाने की दलील और निशानी हों. हाकिम ग़ार के मुंह पर पहुंचा तो उसने तांबे का एक सन्दूक़ देखा. उसको खोला तो तख़्ती बरआमद हुई उसमें उन लोगों के नाम और कुत्ते का नाम लिखा था और यह भी लिखा था कि यह जमाअत अपने दीन की हिफ़ाज़त के लिये दक़ियानूस के डर से इस ग़ार में शरणागत हुई.
दक़ियानूस ने ख़बर पाकर एक दीवार से उन्हें ग़ार में बन्द कर देने का हुक्म दिया. हम यह हाल इस लिये लिखते हैं कि जब कभी ग़ार खुले तो लोग हाल पर सूचित हो जाएं. यह तख़्ती पढ़कर सब को आश्चर्य हुआ और लोग अल्लाह की हम्द और सना बजा लाए कि उसने ऐसी निशानी ज़ाहिर फ़रमा दी जिससे मरने के बाद उठने का यक़ीन हासिल होता है. हाकिम ने अपने बादशाह बेदरूस को इस घटना की सूचना दी. वह अमीरों और प्रतिष्ठित लोगों को लेकर हाज़िर हुआ और अल्लाह के शुक्र का सज्दा किया कि अल्लाह तआला ने उसकी दुआ क़ुबूल की. असहाबे कहफ़ बादशाह से गले मिले और फ़रमाया हम तुम्हें अल्लाह के सुपुर्द करते हैं. वस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू. अल्लाह तेरी और तेरी सल्तनत की हिफ़ाज़त फ़रमाएं और जिन्नों और इन्सानों के शर से बचाए. बादशाह खड़ा ही था कि वो हज़रात अपनी ख़्वाबगाहों की तरफ़ वापस होकर फिर सो गये और अल्लाह ने उन्हें वफ़ात दी. बादशाह ने साल के सन्दूक़ में उनके बदनों को मेहफ़ूज़ किया और अल्लाह तआला ने रोब से उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाई कि किसी की ताक़त नहीं कि वहाँ पहुंच सके. बादशाह ने गुफ़ा के मुंह पर मस्जिद बनाने का हुक्म दिया और एक ख़ुशी का दिन निश्चित किया कि हर साल लोग ईद की तरह वहाँ आया करें. (ख़ाज़िन वग़ैरह) इससे मालूम हुआ कि नेक लोगों में उर्स का तरीक़ा बहुत पुराना है.
और हमारे काम में हमारे लिये राहयाबी (रास्ता पाने) के सामान कर{10} तो हमने उस ग़ार से उनके कानों पर गिनती के कई बरस थपका(16){11}
(16) यानी उन्हें ऐसी नींद सुला दिया कि कोई आवाज़ जगा न सके.
फिर हमने उन्हें जगाया कि देखें (17)
(17) कि असहाबे कहफ़ के—-
दोनों गिरोहों में कौन ठहरने की मुद्दत ज़्यादा ठीक बताता है{12}
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