18 सूरए कहफ़

18 सूरए कहफ़ – पहला रूकू


सूरए कहफ़ मक्का में उतरी, इसमें 110 आयतें, और 12 रूकू हैं

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1)  इस सूरत का नाम कहफ़ है. यह मक्की है, इसमें एक सौ दस आयतें और एक हज़ार पाँच सौ सत्तहत्तर कलिमें और छ: हज़ार तीन सौ साठ अक्षर और बारह रूकू हैं.

सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने अपने बन्दे(2)
(2) मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

पर किताब उतारी(3)
(3) यानी क़ुरआन शरीफ़. जो उसकी बेहतरीन नेअमत और बन्दों के लिये निजात और भलाई का कारण हैं.

और उसमें कोई कजी न रखी(4){1}
(4) न लफ़ज़ी न मअनवी, न उसमें इख़्तिलाफ़. न विषमताएं.

अदल(इन्साफ़) वाली किताब कि(5)
(5) काफ़िरों को.

अल्लाह के सख़्त अज़ाब से डराए और ईमान वालों को जो नेक काम करें बशारत दें कि उनके लिये अच्छा सवाब है{2} जिसमें हमेशा रहेंगे{3} और उन(6)
(6) काफ़िर.

को डराए जो कहते हैं कि अल्लाह ने अपना कोई बच्चा बनाया {4} इस बारे में न वो कुछ इल्म रखते हैं न उनके बाप दादा(7)
(7) ख़ालिस जिहालत से यह आरोप लगाते हैं और ऐसी झूट बात बकते हैं. {78}

कितना बड़ा बोल है कि उनके मुंह से निकलता है निरा झूट कह रहे हैं{5} तो कहीं तुम अपनी जान पर खेल जाओगे उनके पीछे अगर वो इस बात पर (8)
(8) यानी क़ुरआन शरीफ़ पर.

ईमान न लाए ग़म से(9){6}
(9) इसमें नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली फ़रमाई गई कि आप इन बेईमानों के ईमान से मेहरूम रहने पर इस क़द्र रंज और ग़म न कीजिये अपपननी प्यारी जान को इस दुख से हलाकत में न डालिये.

बेशक हमने ज़मीन का सिंगार किया जो कुछ उस पर हैं(10)
(10) वो चाहे जानदार हों या पेड़ पौदे या खनिज हों या नेहरें.

कि उन्हें आज़माएं उनमे किस के काम बेहतर हैं(11){7}
(11) और कौन परहेज़गारी इख़्तियार करता और वर्जित तथा अवैध बातों से बचता है.

और बेशक जो कुछ उसपर है एक दिन हम उसे पटपर मैदान छोड़ेंगे कर (12){8}
(12) और आबाद होने के बाद वीरान कर देंगे औ पेड़ पौथे वग़ैरह जो चीज़ें सजावट की थीं उनमें से कुछ भी बाक़ी न रहेगा तो दुनिया की अस्थिरता, ना – पायदार ज़ीनत पर मत रीझो.

क्या तुम्हें मालूम हुआ कि पहाड़ की खोह और जंगल के किनारे वाले(13)
(13) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि रक़ीम उस वादी का नाम है जिसमें असहाबे कहफ़ हैं. आयत में उन लोगों की निस्बत फ़रमाया कि वो….

हमारी एक अजीब निशानी थे{9} जब उन नौजवानों ने(14)
(14) अपनी काफ़िर क़ौम से अपना ईमान बचाने के लिये.

ग़ार में पनाह ली फिर बोले ऐ हमारे रब हमें अपने पास से रहमत दे(15)
(15) और हिदायत और नुसरत और रिज़्क़ और मग़फ़िरत और दुश्मनों से अम्न अता फ़रमा. असहाबे कहफ़ यानी ग़ार वाले लोग कौन है ? सही यह है कि सात हज़रात थे अगरचे उनके नामें में किसी क़द्र मतभेद है लेकिन हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा की रिवायत पर जो ख़ाज़िन में है उनके नाम ये हैं (1) मक्सलमीना (2) यमलीख़ा (3) मर्तूनस (4) बैनूनस (5) सारीनूनस (6) ज़ूनवानस (7) कुशेफ़ीत
(8) तुनूनस और उनके कुत्ते का नाम क़ितमीर है. ये नाम लिखकर दर्वाज़े पर लगा दिये जाएं तो मकान जलने से मेहफ़ूज़ रहता है. माल में रख दिये जाएं तो वह चोरी नहीं जाता, किश्ती या जहाज़ उनकी बरकत से डूबता नहीं, भागा हुआ व्यक्ति उनकी बरकत से वापस आ जाता है. कहीं आग लगी हो और ये नाम कपड़े में लिखकर डाल दिये जाएं तो वह बूझ जाती है, बच्चे के रोने, मीआदी बुख़ार, सरदर्द, सूखे की बीमारी, ख़ुश्की व तरी के सफ़र में जान माल की हिफ़ाज़त, अक़्ल की तीव्रता, क़ैदियों की आज़ादी के लिये नाम लिखकर तअवीज़ की तरह बाज़ू में बांधे जाएं. (जुमल) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद इंजील वालों की हालत ख़राब हो गई, वो बुत परस्ती में गिरफ़तार हो गए और दूसरों को बुत परस्ती पर मजबर करने लगे. उनमें दक़ियानूस बादशाह बड़ा जाबिर था.जो बुत परस्ती पर राज़ी न होता, उसको क़त्ल कर डालता. असहाबे कहफ़ अफ़सूस शहर के शरीफ़ और प्रतिष्ठित लोगों में से थे. दक़ियानूस के ज़ुल्म और अत्याचार  से अपना ईमान बचाने के लिय भागे और क़रीब के पहाड़ में एक गुफ़ा यानी ग़ार में शरण ली. वहाँ सो गए. तीन सौ बरस से ज़्यादा अर्से तक उसी हाल में रह. बादशाह को तलाश से मालूम हुआ कि वो ग़ार के अन्दर हैं तो उसने हुक्म दिया कि ग़ार को एक पथरीली दीवार खींच कर बन्द कर दिया जाय ताकि वो उसमें मर कर रह जाएं और वह उनकी क़ब्र हो जाए. यही उनकी सज़ा है. हुकूमत के जिस अधिकारी को यह काम सुपुर्द किया गया वह नेक आदमी था, उसने उन लोगों के नाम, संख्या, पूरा वाक़िआ रांग की तख़्ती पर खोद कर तांबे के सन्दूक़ में दीवार की बुनियाद के अन्दर मेहफ़ूज़ कर दिया. यह भी बयान किया गया है कि इसी तरह की एक तख़्ती शाही ख़ज़ाने में भी मेहफ़ूज़ करा दी गई. कुछ समय बाद दक़ियानूस हलाक हुआ.

ज़माने गुज़रे, सल्तनतें बदलीं, यहाँ तक कि एक नेक बादशाह गद्दी पर बैठा उसका नाम बेसरूद था.उसने 68 साल हुकूमत की. फिर मुल्क में फ़िर्क़ा बन्दी और फूट पैदा हुई और कुछ लोग मरने के बाद उठने और क़यामत आने के इन्कारी हो गए. बादशाह एक एकान्त मकान में बन्द हो गया और उसने रो रो कर अल्लाह की बारगाह में दुआ की, या रब कोई ऐसी निशानी ज़ाहिर फ़रमा दे कि दुनिया को मुर्दों के उठने और क़यामत का यक़ीन हासिल हो. उसी ज़माने में एक शख़्स ने अपनी बकरियों के लिये आराम की जगह हासिल करने को उसी गुफा को चुना और दीवार गिरा दी. दीवार गिरने के बाद कुछ ऐसी हैबत छाई कि गिराने वाले भाग गए. असहाबे कहफ़ अल्लाह के हुक्म से ताज़ादम होकर उठे, चेहरे खिले हुए, तबीअते ख़ुश, ज़िन्दगी की तरोताज़गी मौजूद. एक ने दूसरे को सलाम किया. नमाज़ के लिये खड़े हो गए. फ़ारिग़ होकर यमलीख़ा से कहा कि आप जाइये और बाज़ार से कुछ खाने को भी लाइये और यह ख़बर भी लाइये कि दक़ियानूस का हम लोगों के बारे में क्या इरादा है.

वो बाज़ार गए और नगरद्वार पर इस्लामी निशानी देखी. नए नए लोग पाए. उन्हें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के नाम की क़स्में खाते सुना. आश्चर्य हुआ, यह क्या मामला है.कल तो कोई शख़्स अपना ईमान ज़ाहिर नहीं कर सकता था.हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का नाम लेने से क़त्ल कर दिया जाता था. आज इस्लामी निशानियाँ नगरद्वार पर ज़ाहिर हैं, लोग बिना किसी डर के हज़रत ईसा के नाम की क़सम खाते हैं. फिर आप नानबाई की दुकान पर गए. खाना खरीदने के लिये उसको दक़ियानूसी सिक्का दिया जिसका चलन सदियों पहले बन्द हो गया था और उसका देखने वाला तक कोई बाक़ी न बचा था. बाज़ार वालों ने ख़याल किया कि इनके हाथ कोई पुराना ख़ज़ाना लग गया है. इन्हें पकड़ कर हाकिम के पास ले गए.वह नेक आदमी था उसने भी इनसे पूछा कि ख़ज़ाना कहाँ है. इन्होंने कहा ख़ज़ाना कहीं नहीं है. यह रूपया हमारा अपना है. हाकिम ने कहा यह बात किसी तरह यक़ीन करने वाली नहीं इसमें जो सन मौजूद है वह तीन सौ बरस से ज़्यादा का है. हम लोग बूढ़े हैं इमने तो कभी यह सिक्का देखा नहीं. आप ने फ़रमाया जो मैं पूछूँ वह ठीक ठीक बताओ तो राज़ हल हो जाएगा. यह बताओ कि दक़ियानूस बादशाह किस हाल और ख़याल में है. हाकिम ने कहा आज धरती पर इस नाम का कोई बादशाह नहीं. सैकड़ों बरस हुए जब इस नाम का एक बेईमान बादशाह गुज़रा है. आपने फ़रमाया कल ही तो हम उसके डर से जान बचाकर भागे हैं. मेरे साथी क़रीब के पहाड़ में एक ग़ार के अन्दर शरण लिये हुए हैं. चलो मैं तुम्हें उनसे मिला दूँ. हाकिम और शहर के बड़े लोग और एक बड़ी भीड़ उनके साथ ग़ार पर पहुंची असहाबे कहफ़ यमलीख़ा के इन्तिज़ार में थे. बहुत से लोगों के आने की अवाज़ और खटके सुनकर समझे कि यमलीख़ा पकड़े गए और दक़ियानूसी फ़ौज हमारी तलाश में आ रही है. अल्लाह की हम्द और शुक्र बजा लाने लगे. इतने में ये लोग पहुंचे. यमलीख़ा ने सारी कहानी सुनाई. उन हज़रात ने समझ लिया कि हम अल्लाह के हुक्म से इतना लम्बा समय तक सोए और अब इस लिये उठाए गए कि लोगों के लिये मौत के बाद ज़िन्दा किये जाने की दलील और निशानी हों. हाकिम ग़ार के मुंह पर पहुंचा तो उसने तांबे का एक सन्दूक़ देखा. उसको खोला तो तख़्ती बरआमद हुई उसमें उन लोगों के नाम और कुत्ते का नाम लिखा था और यह भी लिखा था कि यह जमाअत अपने दीन की हिफ़ाज़त के लिये दक़ियानूस के डर से इस ग़ार में शरणागत हुई.

दक़ियानूस ने ख़बर पाकर एक दीवार से उन्हें ग़ार में बन्द कर देने का हुक्म दिया. हम यह हाल इस लिये लिखते हैं कि जब कभी ग़ार खुले तो लोग हाल पर सूचित हो जाएं. यह तख़्ती पढ़कर सब को आश्चर्य हुआ और लोग अल्लाह की हम्द और सना बजा लाए कि उसने ऐसी निशानी ज़ाहिर फ़रमा दी जिससे मरने के बाद उठने का यक़ीन हासिल होता है. हाकिम ने अपने बादशाह बेदरूस को इस घटना की सूचना दी. वह अमीरों और प्रतिष्ठित लोगों को लेकर हाज़िर हुआ और अल्लाह के शुक्र का सज्दा किया कि अल्लाह तआला ने उसकी दुआ क़ुबूल की. असहाबे कहफ़ बादशाह से गले मिले और फ़रमाया हम तुम्हें अल्लाह के सुपुर्द करते हैं. वस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू. अल्लाह तेरी और तेरी सल्तनत की हिफ़ाज़त फ़रमाएं और जिन्नों और इन्सानों के शर से बचाए. बादशाह खड़ा ही था कि वो हज़रात अपनी ख़्वाबगाहों की तरफ़ वापस होकर फिर सो गये और अल्लाह ने उन्हें वफ़ात दी. बादशाह ने साल के सन्दूक़ में उनके बदनों को मेहफ़ूज़ किया और अल्लाह तआला ने रोब से उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाई कि किसी की ताक़त नहीं कि वहाँ पहुंच सके. बादशाह ने गुफ़ा के मुंह पर मस्जिद बनाने का हुक्म दिया और एक ख़ुशी का दिन निश्चित किया कि हर साल लोग ईद की तरह वहाँ आया करें. (ख़ाज़िन वग़ैरह) इससे मालूम हुआ कि नेक लोगों में उर्स का तरीक़ा बहुत पुराना है.

और हमारे काम में हमारे लिये राहयाबी (रास्ता पाने) के सामान कर{10} तो हमने उस ग़ार से उनके कानों पर गिनती के कई बरस थपका(16){11}
(16) यानी उन्हें ऐसी नींद सुला दिया कि कोई आवाज़ जगा न सके.

फिर हमने उन्हें जगाया कि देखें (17)
(17) कि असहाबे कहफ़ के—-

दोनों गिरोहों में कौन ठहरने की मुद्दत ज़्यादा ठीक बताता है{12}

18 सूरए कहफ़ -दूसरा रूकू

18 सूरए कहफ़ -दूसरा रूकू

हम उनका ठीक ठीक हाल तुम्हें सुनाएं, वो कुछ जवान थे कि अपने रब पर ईमान लाए और हमने उनको हिदायत बढ़ाई {13} और हमने उनकी ढारस बंधाई जब (1)
(1) दक़ियानूस बादशाह के सामने.

खड़े होकर बोले कि हमारा रब वह है जो आसमान और ज़मीन का रब है हम उसके सिवा किसी मअबूद को न पूजेंगे ऐसा होतो हमने ज़रूर हद से गुज़री हुई बात कही{14} यह जो हमारी क़ौम है उसने अल्लाह के सिवा ख़ुदा बना रखे हैं, क्यों नहीं लाते उनपर कोई रौशन सनद {प्रमाण} तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे(2){15}
(2) और उसके लिये शरीक और  औलाद ठहराए, फिर उन्होंने आपस में एक दूसरे से कहा.

और जब तुम उनसे  और जो कुछ वो अल्लाह के सिवा पूजते हैं सब अलग हो जाओ तो ग़ार में पनाह लो तुम्हारा रब तुम्हारे लिये अपनी रहमत फैला देगा  और तुम्हारे काम में आसानी के सामान बना देगा और {16}और ऐ मेहबूब तुम सूरज को देखोगे कि जब निकलता है तो उनके ग़ार से दाई तरफ़ बच जाता है और जब डूबता है तो उनमें बाई तरफ़ कतरा जाता है (3)
(3) यानी उनपर सारे दिन छाया रहती है और  सूर्योंदय से सूर्यास्त तक किसी वक़्त भी धूप की गर्मी उन्हें नहीं पहुंचती.

हालांकि वो उस ग़ार के खुले मैदान में हैं(4)
(4) और ताज़ा हवाएं उनको पहुंचती है.
ये अल्लाह की निशानियों से है, जिसे अल्लाह राह दे तो राह पर है, और जिसे गुमराह करे तो हरगिज़ उसका कोई हिमायती राह दिखाने वाला न पाओगे{17}

18 सूरए कहफ़ – तीसरा रूकू

18 सूरए कहफ़ – तीसरा रूकू


और तुम उन्हें जागता समझो(1)
(1) क्योंकि उनकी आँखें  खुली है.

और वो सोते है और हम उनकी दाईं बाईं कर्वट बदलते है(2)
(2) साल में एक बार दसवीं मुहर्रम को.

और उनका कुत्ता अपनी कलाइयां फैलाए हुए है ग़ार की चौखट पर (3)
(3) जब वो कर्वट लेते हैं, वह भी कर्वट बदता है. तफ़सीरे सअलबी में है कि जो कोई इन कलिमात “व कल्बुहुम बासितुन ज़िरा ऐहे बिल वसीद” को लिखकर अपने साथ रखे, कुत्ते के कष्ट से अम्न में रहे.

ऐ सुनने वाले अगर तू उन्हें झांक कर देखे तो उनसे पीठ फेर कर भागे और उनसे हैबत (डर) में भर जाए(4){18}
(4) अल्लाह तआला ने ऐसी हैबत से उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाई है कि उन तक कोई जा नहीं सकता. हज़रत अमीर मुआविआ जंगे रूम के वक़्त कहफ़ की तरफ़ गुज़रे तो उन्होंने असहाबे कहफ़ पर दाखिल होना चाहा. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने उन्हें मना किया और यह आयत पढ़ी. फिर एक जमाअत हज़रत अमीर मुआविआ के हुक्म से दाख़िल हुई तो अल्लाह तआला ने एक ऐसी हवा चलाई कि सब जल गए.

और यूं ही हमने उनको जगाया (5)
(5) एक लम्बी मुद्दत के बाद.

कि आपस में एक दूसरे से अहवाल पूछें(6)
(6) और  अल्लाह तआला की क़ुदरते अज़ीमा को देखकर उनका यक़ीन ज़्यादा हो और वो उसकी नेअमतों का शुक्र अदा करें.

उनमें एक कहने वाला बोला(7)
(7) यानी मकसलमीना जो उनमें सबसे बड़े और उनके सरदार हैं.

तुम यहां कितनी देर रहे कुछ बोले कि एक दिन रहे या दिन से कम(8)
(8) क्योंकि वो ग़ार में सूर्योंदय के वक़्त दाख़िल हुए थे और  जब उठे तो सूरज डूबने के क़रीब था इससे उन्हें गुमान हुआ कि यह वही दिन है. इससे साबित हुआ कि इज्तिहाद जायज़ और ज़न्ने ग़ालिब की बुनियाद पर क़ौल करना दुरूस्त है.

दूसरे बोले तुम्हारा रब कुछ जानता है जितना तुम ठहरे(9)
(9) उन्हें या तो इल्हाम से मालूम हुआ कि लम्बा समय गुज़र चुका या उन्हें कुछ ऐसे प्रमाण मिले जैसे कि बालों और  नाख़ूनों का बढ़ जाना. जिससे उन्होंने ख़्याल किया कि समय बहुज गुज़र चुका.

तो अपने में एक को यह चांदी लेकर(10)
(10)यानी दक़ियानूसी सिक्के के रूपये जो घर से लेकर आए थे और सोते वक़्त अपने सरहाने रख लिये थे. इससे मालूम हुआ कि मुसाफिर को ख़र्च साथ में रखना तवक्कुल के तरीक़े के ख़िलाफ़ नहीं है. चाहिये कि अल्लाह पर भरोसा रखे.

शहर में भेजो फिर वह ग़ौर करे कि वहां कौन सा खाना ज़्यादा सुथरा है(11)
(11) और इसमें कोई शुबह हुरमत का नहीं.

कि तुम्हारे लिये उसमें से खाना लाए और चाहिये कि नर्मीं करें और हरगिज़ किसी को तुम्हारी इत्तिला न दे{19}बेशक अगर वो तुम्हें जान लेंगे तो तुम्हें पथराव करेंगे(12)
(12) और बुरी तरह क़त्ल करेंगे.

या अपने दीन(13)
(13) यानी अत्याचार से काफ़िरों की जमाअत…

में फेर लेंगे और ऐसा हुआ तो तुम्हारा कभी भला न होगा{20} और इसी तरह हमने उनकी इत्तिला कर दी(14)
(14) लोगों को दक़ियानूस के मरने और मुद्दत गुज़र जाने के बाद.

कि लोग जान लें(15)
(15)और बेदरूस की क़ौम में जो लोग मरने के बाद ज़िन्दा होने का इन्कार करते हैं उन्हें मालूम हो जाए.

कि अल्लाह का वादा सच्चा है और क़यामत में कुछ शुबह नहीं, जब वो लोग उनके मामले में आपस में झगड़ने लगे (16)
(16) यानी उनकी वफ़ात के बाद उनके गिर्द इमारत बनाने में

तो बोले उनके ग़ार पर कोई ईमारत बनाओ उनका रब उन्हें ख़ूब जानता है, वो बोले जो इस काम में ग़ालिब रहे थे(17)
(17) यानी बेदरूस बादशाह और उनके साथी.

क़सम है कि हम तो उनपर मस्जिद बनाएंगे (18){21}
(18) जिसमें मुसलमान नमाज़ पढ़ें और उनके क़ुर्ब से बरकत हासिल करें. (मदारिक) इससे मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों के मज़ारात के क़रीब मस्जिदें बनाना ईमान, वालों का पुराना तरीक़ा है और  क़ुरआन शरीफ़ में इसका ज़िक्र फ़रमाना और इसको मना न करना इस काम के दुरूस्त होने की मज़बूत दलील है. इससे यह भी मालूम हुआ कि बुज़ुर्गों से जुड़े स्थानों में बरकत हासिल होती है इसीलिये अल्लाह वालों के मज़ारात पर लोग बरकत हासिल करने के लिये जाया करते हैं और इसीलिये क़ब्रों की ज़ियारत सुन्नत और सवाब वाली है.

अब कहेंगे(19)
(19) ईसाई, जैसा कि उनमें से सैय्यिद और आक़िब ने कहा.

कि वो तीन हैं चौथा उनका कुत्ता और कुछ कहेंगे पांच है छटा उनका कुत्ता बे देखे अलाउतका (अटकल पच्चू)बात (20)
(20)जो बेजान कह दी, किसी तरह सही नहीं हो सकती.

और कुछ कहेंगे सात हैं(21)
(21) और ये कहने वाले मुसलमान हें. अल्लाह तआला ने उनके क़ौल को साबित रखा क्योंकि उन्होंने जो कुछ कहा वह नबी अलैहिस्सलातो वस्सलाम से इल्म हासिल करके कहा.

और आठवां उनका कुत्ता, तुम फ़रमाओ मेरा रब उनकी गिनती ख़ूब जानता है(22)
(22) क्योंकि जहानों की तफ़सील और गुज़री हुई दुनिया और आने वाली दुनिया का इल्म अल्लाह ही को है या जिसको वह अता फ़रमाए.

उन्हें नहीं जानते मगर थोड़े(23)
(23) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मैं उन्हीं थोड़ों में से हूँ जिसका आयत में इस्तिस्ना फ़रमाया यानी छेक दिया.

तो उनके बारे में(24)
(24) किताब वालों से.

बहस न करो मगर उतनी ही बहस जो ज़ाहिर हो चुकी(25)
(25)और क़ुरआन में नाज़िल फ़रमा दी गई. आप इतने पर ही इक्तिफ़ा करें. इस मामले में यहूदियों की जिहालत का इज़हार करने की फिक्र न करें.

और उनके (26)
(26) यानी  असहाबे कहफ़ के.
बारे में किसी किताब से कुछ न पूछो{22}

18 सूरए कहफ़ – चौथा रूकू


18 सूरए कहफ़ – चौथा रूकू

और हरगिज़ किसी बात को न कहना कि मैं कल यह करूं या कल कर दूंगा{23} मगर यह कि अल्लाह चाहे(1)
(1) यानी जब किसी काम का इरादा हो तो यह कहना चाहिये कि इन्शाअल्लाह ऐसा करूंगा. बगैर इन्शाअल्लाह के न कहे. मक्का वालों ने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से जब असहाबे कहफ़ का हाल पूछा था तो हुज़ूर ने फ़रमाया कल बताऊंगा और इन्शाअल्लाह नहीं फ़रमाया था. कई रोज़ वही नहीं आई. फिर यह आयत उतरी.

और अपने रब की याद कर जब तू भूल जाए(2)
(2) यानी इन्शाअल्लाह कहना याद न रहे तो जब याद आए. कह ले. हसन रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया, जब तक उस मजलिस में रहे. इस आयत की तफ़सीर में कई क़ौल हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया मानी ये हैं कि  अगर किसी नमाज़ को भूल गया तो याद आते ही अदा करे (बुखारी व मुस्लिम) कुछ आरिफ़ों ने फ़रमाया मानी ये हैं कि अपने रब को याद कर, जब तू अपने आपको भूल जाए क्योंक ज़िक्र का कमाल यही है कि ज़ाकिर उसमें फ़ना हो जाए जिसका ज़िक्र करे.

और यूं कह कि क़रीब है मेरा रब मुझे उस(3)
(3) असहाबे कहफ़ के वाक़ए के बयान और उसकी ख़बर देने.

से नज़दीकतर रास्ती(सच्चाई) की राह दिखाए(4){24}
(4) यानी ऐसे चमत्कार अता फ़रमाए जो मेरी नबुव्वत पर इससे भी ज़्यादा जाहिर दलील दें जैसे कि अगले नबियों के हालात का बयान और अज्ञात का इल्म और क़यामत तक पेश आने वाली घटनाओ और वाक़िआत का बयान और चाँद के चिर जाने और जानवरों से अपनी गवाही दिलवाना इत्यादि. (ख़ाज़िन व जुमल)

और वो अपने ग़ार में तीन सौ बरस ठहरे नौ ऊपर (5){25}
(5) और अगर वह इस मुद्दत में झगड़ा करें तो.

तुम फ़रमाओ अल्लाह ख़ूब जानता है वो जितना ठहरे (6)
(6) उसी का फ़रमाना हक़ है. नजरान के ईसाइयों ने कहा था तीन सौ बरस तो ठीक हैं और नौ की ज़ियादती कैसी है इसका हमें इल्म नहीं. इस पर यह आयत उतरी.

उसी के लिये आसमानों और ज़मीनों के सब ग़ैब वह क्या ही देखता और क्या ही सुनता है(7)
(7) कोई ज़ाहिर और कोई बातिन उससे छुपा नहीं.

उसके सिवा उनका(8)
(8) आसमान और ज़मीन वालों का.

कोई वाली (सरंक्षक) नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को शरीक नहीं करता{26} और तिलावत करो जो तुम्हारे रब की किताब(9)
(9) यानी क़ुरआन शरीफ़.

तुम्हें वही (देववाणी) हुई, उसकी बातों का कोई बदलने वाला नहीं(10)
(10) और किसी को उसके फेर बदल की क़ुदरत नहीं.

और हरगिज़ तुम उसके सिवा पनाह न पाओगे{27} और अपनी जान उनसे मानूस रखो जो सुबह शाम अपने रब को पुकारते हैं उसकी रज़ा चाहते हैं(11)
(11) यानी इख़लास के साथ हर वक़्त अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में लगे रहते हैं. काफिरों के सरदारों की एक जमाअत ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया कि हमें ग़रीबों और बुरे हालों के साथ बैठते शर्म आती है अगर आप उन्हें सोहबत  से अलग कर दें तो हम इस्लाम ले आएं और हमारे इस्लाम ले आने से बहुत से लोग इस्लाम ले आएंगे. इसपर यह आयत उतरी.

और तुम्हारी आंखे उन्हें छोड़ कर और पर न पड़ें, क्या तुम दुनिया की ज़िन्दगी का सिंगार चाहोगे, और उसका कहा न मानो जिसका दिल हमने अपनी याद से गाफ़िल कर दिया और वह अपनी ख़्वाहिश के पीछे चला और उसका काम हद से गुज़र गया{28} और फ़रमा दो कि हक़ (सत्य) तुम्हारे रब की तरफ़ से है(12)
(12) यानी उसकी तौफ़ीक़ से, और सच और झूट ज़ाहिर हो चुका. मैं तो मुसलमानों को उनकी ग़रीबी के कारण तुम्हारा दिल रखने के लिये अपनी मजलिस से जुदा नहीं करूंगा.

तो जो चाहे ईमान लाए और जो चाहे कुफ़्र करे(13)
(13) अपने परिणाम को सोच ले और समझ ले कि….

बेशक हमने जालिमों(14)
(14) यान काफ़िरों.

के लिये वह आग तैयार कर रखी है जिसकी दीवारें उन्हें घेर लेंगी और अगर (15)
(15) प्यास की सख़्ती से.

पानी के लिये फ़रियाद करें तो उनकी फ़रियाद रसी होगी उस पानी से कि चर्ख़ दिये हुए धात की तरह है कि उनके मुंह भून देगा क्या ही बुरा पीना है(16)
(16) अल्लाह की पनाह, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया वह गन्दा पानी है जै़तून के तेल  की तलछट की तरह. तिरमिज़ी की हदीस में है कि जब वह मुंह के क़रीब किया जाएगा तो मुंह की खाल उससे जल कर गिर पड़ेगी. कुछ मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि वह पिघलाया हुआ रांग और पीतल है.

और दोज़ख़ क्या ही बुरी ठहरने की जगह{29} बेशक जो ईमान लाए और नेक काम किये हम उनके नेग जाया नहीं करते जिनके काम अच्छे हो(17){30}
(17)  बल्कि उन्हें उनकी नेकियों की जज़ा देते हैं.

उनके लिये बसने के बाग़ हैं उनके नीचे नदियां बहें वो उसमें सोने के कंगन पहनाए जाएंगे(18)
(18) हर जन्नती को तीन तीन कंगन पहनाए जाएंगे, सोने और चांदी और मोतियों के. सही हदीस में है कि वुजू का पानी जहाँ जहाँ पहुंचता है वो सारे अंग बहिश्ती ज़ेवरों से सजाए जाएंगे.

और सब्ज़ कपड़े किरेब और क़नादीज़ के पहनेंगे वहाँ तख़्तों पर तकिया लगाए (19)
(19) बादशाहों की सी शान और ठाठ बाट के साथ होंगे.
क्या ही अच्छा सवाब और जन्नत क्या ही अच्छी आराम की जगह{31}

18 सूरए कहफ़ – पाँचवा रूकू

18 सूरए  कहफ़ – पाँचवा रूकू


और उनके सामने दो मर्दों का हाल बयान कर(1)
(1) कि काफ़िर और ईमान वाले इसमें और  ग़ौर करके अपना अपना अंजाम समझें और  इन दो मर्दों का हाल यह है.

कि उनमें एक को(2)
(2) यानी काफ़िर को.

हमने अंगूरों के दो बाग़ दिये और उनको खजूरों से ढांप लिया और  उनके बीच बीच में खेती रखी(3){32}
(3) यानी उन्हें निहायत बेहतरीन तरतीब के साथ मुरत्तब किया.

दोनों बाग़ अपने फल लाए और उसमें कुछ कमी न दी(4)
(4) बहार ख़ूब आई.

और  दोनों के बीच में हमने नहर बहाई{33} और वह(5)
(5) बाग़ वाला, उसके अलावा और  भी.

फल रखता था(6)
(6) यानी बहुत सा माल, सोना चाँदी वग़ैरह, हर क़िस्म की चीज़ें

तो अपने साथी(7)
(7) ईमानदार.

से बोला और  वह उससे रद्दो बदल करता था(8)
(8) और  इतरा कर और  अपने माल पर घमण्ड करके कहने लगा कि…

मैं तुझसे माल में ज़्यादा हूँ और आदमियों का ज़्यादा ज़ोर रखता हूँ(9){34}
(9) मेरा कुटुम्ब क़बीला बड़ा है, मुलाजिम, ख़िदमतगार, नौकर चाकर बहुत हैं.

अपने बाग़ में गया(10)
(10) और मुसलमान का हाथ पकड़ कर उसको साथ ले गया. वहाँ उसको गर्व से हर तरफ़ लिये फिरा और हर हर चीज़ दिखाई.

और अपनी जान पर ज़ुल्म करता हुआ(11)
(11) कुफ़्र के साथ, और बाग़ की ज़ीनत और ज़ेबाइश और रौनक और  बहार देखकर मग़रूर हो गया और …

बोला मुझे गुमान नहीं कि यह कभी फ़ना हो{35} और मैं गुमान नहीं करता कि क़यामत क़ायम हो और  अगर मैं(12)
(12) जैसा कि तेरा गुमान है, फ़र्ज़ कर.

अपने रब की तरफ़ फिर गया भी तो ज़रूर उस बाग़ से बहतर पलटने की जगह पाऊंगा(13){36}
(13) क्योंकि दुनिया में भी मैं ने बेहतरीन जगह पाई है.

उसके साथी(14)
(14) मुसलमान.

ने उससे उलट फेर करते हुए जवाब दिया क्या तू उसके साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से बनाया फिर निथरे पानी की बूंद से फिर तुझे ठीक मर्द किया(15) {35}
(15) अक़्ल और बालिग़पन, क़ुव्वत और ताक़त अता की और तू सब कुछ पाकर काफ़िर हो गया.

लेकिन मैं तो यही कहता हूँ कि वह अल्लाह ही मेरा रब है और मैं किसी को अपने रब का शरीक नहीं करता हूँ {38}और क्यों न हुआ कि जब तू अपने बाग़ में गया तो कहा होता जो चाहे अल्लाह हमें कुछ ज़ोर नहीं मगर अल्लाह की मदद को(16)
(16) अगर तू बाग़ देखकर माशाअल्लाह कहता और  ऐतिराफ़ करता कि यह बाग़ और  उसकी सारी उपज और  नफ़ा अल्लाह तआला की मर्जी़ और  उसके फ़ज़्ल और  करम से हैं और सब कुछ उसके इख़्तियार में है चाहे उसको आबाद रखे चाहे वीरान कर दे. ऐसा कहता तो यह तेरे हक़ में बेहतर होता. तूने ऐसा क्यों नहीं कहा.

अगर तू मुझे अपने से माल व औलाद में कम देखता था (17){39}
(17) इस वजह से घमण्ड में जकड़ा हुआ था और अपने आपको बड़ा समझता था.

तो क़रीब है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा दे(18)
(18) दुनिया में या आख़िरत में.

और तेरे बाग़ पर आसमान से बिजलियां उतारे तो वह पटपर मैदान होकर रह जाए(19){40}
(19) कि उसमें सब्ज़े का नामो निशान बाक़ी न रहे.

या उसका पानी ज़मीन में धंस जाए(20)
(20) नीचे चला जाय कि किसी तरह निकाला न जा सके.

फिर तू उसे कभी तलाश न कर सके(21){41}
(21) चुनांचे ऐसा ही हुआ, अज़ाब आया.

और उसके फल घेर लिये गए(22)
(22) और बाग़ बिल्कुल वीरान हो गया.

तो अपने हाथ मलता रह गया(23)
(23) पशेमानी और हसरत से.

उस लागत पर जो उस बाग़ में खर्च की थी और  वह अपनी टट्टियों पर गिरा हुआ था(24)
(24) इस हाल को पहुंच कर उसको मूमिन की नसीहत याद आती है और अब वह समझता है कि यह उसके कुफ्र और  सरकशी का नतीजा है.

और  कह रहा है ऐ काश मैं ने अपने रब का किसी को शरीक न किया होता {42}और उसके पास कोई जमाअत न थी कि अल्लाह के सामने उसकी मदद करती न वह बदला लेने के क़ाबिल था(25){43}
(25) कि नष्ट हुई चीज़ को वापस कर सकता.

यहाँ खुलता है(26)
(26) और  ऐसे हालात में मालूम होता है.
कि इख़्तियार सच्चे अल्लाह का है, उसका सवाब सबसे बेहतर और  उसे मानने का अंजाम सब से भला{44}