31 – सूरए लुक़मान
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الم
تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْحَكِيمِ
هُدًى وَرَحْمَةً لِّلْمُحْسِنِينَ
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
أُولَٰئِكَ عَلَىٰ هُدًى مِّن رَّبِّهِمْ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَشْتَرِي لَهْوَ الْحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًا ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِ آيَاتُنَا وَلَّىٰ مُسْتَكْبِرًا كَأَن لَّمْ يَسْمَعْهَا كَأَنَّ فِي أُذُنَيْهِ وَقْرًا ۖ فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتُ النَّعِيمِ
خَالِدِينَ فِيهَا ۖ وَعْدَ اللَّهِ حَقًّا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
خَلَقَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا ۖ وَأَلْقَىٰ فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمْ وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَابَّةٍ ۚ وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ
هَٰذَا خَلْقُ اللَّهِ فَأَرُونِي مَاذَا خَلَقَ الَّذِينَ مِن دُونِهِ ۚ بَلِ الظَّالِمُونَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ
सूरए लुक़मान मक्का में उतरी, इसमें 34 आयतें, 4 रूकू हैं.
– पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए लुक़मान मक्के में उतरी, सिवाए दो आयतों के जो “वलौ अन्ना मा फ़िल अर्दें” से शुरू होती हैं. इस सूरत में चार रूकू, चौंतीस आयतें, पाँच सौ अड़तालीस कलिमें और दो हज़ार एक सौ दस अक्षर हैं.
अलिफ़ लाम मीम{1}यह हिकमत वाली वाली किताब की आयतें हैं {2} हिदायत और रहमत हैं नेकों के लिये {3} वो जो नमाज़ क़ायम रखें और ज़कात दें और आख़िरत पर यक़ीन लाएं {4} वही अपने रब की हिदायत पर हैं और उन्हीं का काम बना {5}और कुछ लोग खेल की बातें खरीदते हैं(2)
(2) लहब यानी खेल हर उस बातिल को कहते हैं जो आदमी को नेकी से और काम की बातों से ग़फ़लत में डालें, कहानियाँ अफ़साने इसी में दाख़िल है. यह आयत नज़र बिन हारिस बिन कल्दह के हक़ में उतरी जो व्यापर के सिलसिले में दूसरे मुल्कों में सफ़र किया करता था, उसने अजमियों की किताबें ख़रीदीं जिनमें क़िस्से कहानियाँ थीं. वह क़ुरैश को सुनाता और कहता कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) तुम्हें आद और समूद के क़िस्से सुनाते हैं और मैं रूस्तम और इस्फ़न्दयार और फ़ारस के बादशाहों की कहानियाँ सुनाता हूँ. कुछ लोग उन कहानियों में लीन हो गए और क़ुरआने पाक सुनने से रह गए. इसपर यह आयत उतरी.
कि अल्लाह की राह से बहका दें बे समझे(3)
(3) यानी जिहालत के तौर पर लोगों को क़ुरआने पाक सुनने और इस्लाम में दाख़िल होने से रोकें और अल्लाह की आयतों के साथ ठ्ठा करें.
और उसे हंसी बनालें, उनके लिये ज़िल्लत का अज़ाब है{6} और जब उस पर हमारी आयतें पढ़ी जाएं तो घमण्ड करता हुआ फिरे(4)
(4) और उनकी तरफ़ तवज्जोह न करे.
जैसे उन्हें सुना ही नहीं जैसे उसके कानों में टैंट (रूई का फाया) है (5)
(5) और वह बेहरा है.
तो उसे दर्दनाक अज़ाब का मुजदा (ख़ुशख़बरी) दो {7} बेशक जो ईमान लाए और अच्छे काम किये उनके लिये चैन के बाग़ हैं, {8} हमेशा उनमें रहेंगे, अल्लाह का वादा है सच्चा, और वही इज़्ज़त व हिकमत वाला है {9} उसने आसमान बनाए बे ऐसे सुतूनों के जो तुम्हें नज़र आएं(6)
(6) यानी कोई सुतून नहीं है, तुम्हारी नज़र ख़ुद इसकी गुनाह है.
और ज़मीन में डाले लंगर (7)
(7) ऊंचे पहाड़ों के.
तुम्हें लेकर न कांपें और उसमें हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हमने आसमान से पानी उतारा(8)
(8) अपने फ़ज़्ल से बारिश की.
तो ज़मीन में हर नफ़ीस जोड़ा उगाया(9){10}
(9) उमदा क़िस्मों की वनस्पति, पेड़ पौधे पैदा किये.
यह तो अल्लाह का बनाया हुआ है(10)
(10) जो तुम देख रहे हो.
मुझे वह दिखाओ(11)
(11) ऐ मुश्रिकों!
जो इसके सिवा औरों ने बनाया (12)
(12) यानी बुतों ने, जिन्हें तुम इबादत के लायक़ क़रार देते हो.
बल्कि ज़ालिम खुली गुमराही में हैं {11}
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