50 Surah Al-Qaaf

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

50|1| ق ۚ وَالْقُرْآنِ الْمَجِيدِ
50|2|بَلْ عَجِبُوا أَن جَاءَهُم مُّنذِرٌ مِّنْهُمْ فَقَالَ الْكَافِرُونَ هَٰذَا شَيْءٌ عَجِيبٌ
50|3|أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا ۖ ذَٰلِكَ رَجْعٌ بَعِيدٌ
50|4|قَدْ عَلِمْنَا مَا تَنقُصُ الْأَرْضُ مِنْهُمْ ۖ وَعِندَنَا كِتَابٌ حَفِيظٌ
50|5|بَلْ كَذَّبُوا بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ فَهُمْ فِي أَمْرٍ مَّرِيجٍ
50|6|أَفَلَمْ يَنظُرُوا إِلَى السَّمَاءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَاهَا وَزَيَّنَّاهَا وَمَا لَهَا مِن فُرُوجٍ
50|7|وَالْأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ
50|8|تَبْصِرَةً وَذِكْرَىٰ لِكُلِّ عَبْدٍ مُّنِيبٍ
50|9|وَنَزَّلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً مُّبَارَكًا فَأَنبَتْنَا بِهِ جَنَّاتٍ وَحَبَّ الْحَصِيدِ
50|10|وَالنَّخْلَ بَاسِقَاتٍ لَّهَا طَلْعٌ نَّضِيدٌ
50|11|رِّزْقًا لِّلْعِبَادِ ۖ وَأَحْيَيْنَا بِهِ بَلْدَةً مَّيْتًا ۚ كَذَٰلِكَ الْخُرُوجُ
50|12|كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَأَصْحَابُ الرَّسِّ وَثَمُودُ
50|13|وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ وَإِخْوَانُ لُوطٍ
50|14|وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ وَقَوْمُ تُبَّعٍ ۚ كُلٌّ كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ وَعِيدِ
50|15|أَفَعَيِينَا بِالْخَلْقِ الْأَوَّلِ ۚ بَلْ هُمْ فِي لَبْسٍ مِّنْ خَلْقٍ جَدِيدٍ

सूरए क़ाफ़ मक्के में उतरी, इसमें तीन रूकू हैं,

-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए क़ाफ़ मक्के में उतरी. इसमें तीन रूकू, पैंतालीस आयतें, तीन सौ सत्तावन कलिमे और एक हज़ार चार सौ चौरानवे अक्षर हैं.

क़ाफ़ {1} इज़्ज़त वाले क़ुरआन की क़सम (2){2}
(2) हम जानते हैं कि मक्के के काफ़िर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान नहीं लाए.

बल्कि उन्हें इसका अचंभा हुआ कि उनके पास उन्हीं में का एक डर सुनाने वाला तशरीफ़ लाया(3)
(3) जिसकी अदालत और अमानत और सच्चाई और रास्तबाज़ी को वो ख़ूब जानते हैं और यह भी उनके दिमाग़ में बैठा हुआ है कि ऐसी विशेषताओ वाला व्यक्ति सच्ची नसीहत करने वाला होता है. इसके बावुजूद उनका सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और हुज़ूर के अन्दाज़ में तअज्जुब और इन्कार करना आश्चर्यजनक है.

तो काफ़िर बोले यह तो अजीब बात है {3} क्या जब हम मर जाएं और मिट्टी हो जाएंगे फिर जियेंगे यह पलटना दूर है (4)
(4) उनकी इस बात के रद और जवाब में अल्लाह तआला फ़रमाता है.

हम जानते हैं जो कुछ ज़मीन उनमें से घटाती है(5)
(5) यानी उनके जिस्म के जो हिस्से गोश्त ख़ून हडिडयाँ वग़ैरह ज़मीन खा जाती है उनमें से कोई चीज़ हमसे छुपी नहीं, तो हम उनको वैसा ही ज़िन्दा करने पर क़ादिर हैं जैसे कि वो पहले थे.

और हमारे पास एक याद रखने वाली किताब है (6){4}
(6) जिसमें उनके नाम, गिन्ती और जो कुछ उनमें से ज़मीन ने ख़ाया सब साबित और लिखा हुआ और मेहफ़ूज़ है.

बल्कि उन्होंने हक़ (सत्य) को झुटलाया (7)
(7) बग़ैर सोचे समझे, और हक़ से या मुराद नबुव्वत है जिसके साथ खुले चमत्कार हैं या क़ुरआने मजीद.

जब वह उनके पास आया तो वह एक मुज़तरिब बेसबात बात में हैं (8){5}
(8) तो कभी नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को शायर, कभी जादूगर, कभी तांत्रिक और इसी तरह क़ुरआन शरीफ़ को शेअर, जादू और तंत्रविद्या कहते हैं. किसी एक बात पर क़रार नहीं.

तो क्या उन्होंने अपने ऊपर आसमान को न देखा(9)
(9) देखने वाली आँख और मानने वाली नज़र से कि उसकी आफ़रीनश (उत्पत्ति या पैदाइश) मैं हमारी क़ुदरत के आसार नुमायाँ हैं.

हमने उसे कैसा बनाया(10)
(10) बग़ैर सुतून के बलन्द किया.

और संवारा(11)
(11) सितारे किये रौशन ग्रहों से.

और उसमें कहीं रखना नहीं(12){6}
(12) कोई दोष और क़ुसूर नहीं.

और ज़मीन को हम ने फ़ैलाया(13)
(13) पानी तक.

और उसमें लंगर डाले(14)
(14)पहाड़ों के कि क़ायम रहे.

और उसमें हर रौनक वाला जोड़ा उगाया {7} सूझ और समझ(15)
(15) कि उससे बीनाई और नसीहत हासिल हो.

हर रूजू वाले बन्दे के लिये(16){8}
(16) जो अल्लाह तआला की बनाई हुई चीज़ों में नज़र करके उसकी तरफ़ रूजू हो.

और हमने आसमान से बरकत वाला पानी उतारा(17)
(17)यानी बारिश जिससे हर चीज़ की ज़िन्दगी और बहुत ख़ैरो बरकत है.

तो उससे बाग़ उगाए और अनाज कि काटा जाता है(18){9}
(18) तरह तरह का गेंहूँ जौ चना वग़ैरह.

और ख़जूर के लम्बे दरख़्त जिन का पक्का गाभा{10} बन्दों की रोज़ी के लिये और हमने उस (19)
(19)बारिश के पानी.

से मुर्दा शहर जिलाया(20)
(20) जिसकी वनस्पति सूख चुकी थी फिर उसको हरा भरा कर दिया.

यूंही क़ब्रों से तुम्हारा निकलना है(21){11}
(21) तो अल्लाह तआला की क़ुदरत के आसार देख कर मरने के बाद फिर ज़िन्दा होने का क्यों इन्कार करते हो.

उनसे पहले झुटलाया(22)
(22) रसूलों को.

नूह की क़ौम और रस वालों(23)
(23) रस्स का एक कुँवा है जहाँ ये लोग अपने मवेशी के साथ ठहरे हुए थे और बुतों को पूजते थे. यह कुँआ ज़मीन में धँस गया और उसके क़रीब की ज़मीन भी. ये लोग और उनके अमवाल उसके साथ धँस गए.

और समूद {12} और आद और फ़िरऔन और लूत के हमक़ौमों {13} और बन वालों और तुब्बा की क़ौम ने(24)
(24) उन सब के तज़किरे सूरए फ़ुरक़ान व हिजर और दुख़ान में गुज़र चुके.

उनसे हर एक ने रसूलों को झुटलाया तो मेरे अज़ाब का वादा साबित हो गया(25){14}
(25) इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली और क़ुरैश को चेतावनी है. नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाया गया है कि आप क़ुरैश के कुफ़्र से तंग दिल न हों, हम हमेशा रसूलों की मदद फ़रमाते और उनके दुश्मनों पर अज़ाब करते रहे हैं. इसके बाद दोबारा ज़िन्दा किये जाने का इन्कार करने वालों का जवाब इरशाद होता है.

तो क्या हम पहली बार बनाकर थक गए (26)
(26) जो दोबारा पैदा करना हमें दूश्वार हो. इसमें दोबारा ज़िन्दा किये जाने का इन्कार करने वालों की जिहालत का इज़हार है कि इस इक़रार के बावुजूद कि सृष्टि अल्लाह तआला ने पैदा की, उसके दोबारा पैदा करने को असम्भव समझते हैं.

बल्कि वो नए बनने से (27)
(27) यानी मौत के बाद पैदा किये जाने से.
शुबह में हैं {15}

50 Surah Al-Qaaf

50|16|وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ وَنَعْلَمُ مَا تُوَسْوِسُ بِهِ نَفْسُهُ ۖ وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ
50|17|إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ
50|18|مَّا يَلْفِظُ مِن قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ
50|19|وَجَاءَتْ سَكْرَةُ الْمَوْتِ بِالْحَقِّ ۖ ذَٰلِكَ مَا كُنتَ مِنْهُ تَحِيدُ
50|20|وَنُفِخَ فِي الصُّورِ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْوَعِيدِ
50|21|وَجَاءَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّعَهَا سَائِقٌ وَشَهِيدٌ
50|22|لَّقَدْ كُنتَ فِي غَفْلَةٍ مِّنْ هَٰذَا فَكَشَفْنَا عَنكَ غِطَاءَكَ فَبَصَرُكَ الْيَوْمَ حَدِيدٌ
50|23|وَقَالَ قَرِينُهُ هَٰذَا مَا لَدَيَّ عَتِيدٌ
50|24|أَلْقِيَا فِي جَهَنَّمَ كُلَّ كَفَّارٍ عَنِيدٍ
50|25|مَّنَّاعٍ لِّلْخَيْرِ مُعْتَدٍ مُّرِيبٍ
50|26|الَّذِي جَعَلَ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ فَأَلْقِيَاهُ فِي الْعَذَابِ الشَّدِيدِ
50|27|۞ قَالَ قَرِينُهُ رَبَّنَا مَا أَطْغَيْتُهُ وَلَٰكِن كَانَ فِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ
50|28|قَالَ لَا تَخْتَصِمُوا لَدَيَّ وَقَدْ قَدَّمْتُ إِلَيْكُم بِالْوَعِيدِ
50|29|مَا يُبَدَّلُ الْقَوْلُ لَدَيَّ وَمَا أَنَا بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ

50 सूरए क़ाफ़ -दूसरा रूकू

और बेशक हमने आदमी को पैदा किया और हम जानते हैं जो वसवसा उसका नफ़्स डालता है(1)
(1) हमसे उसके भेद और अन्दर की बातें छुपी नहीं.

और हम दिल की रग से भी उससे ज़्यादा नज़्दीक़ हैं(2){16}
(2) यह भरपूर इल्म का बयान है कि हम बन्दे के हाल को ख़ुद उससे ज़्यादा जानने वाले हैं. वरीद वह रग है जिसमें ख़ून जारी होकर बदन के हर हर अंग में पहुंचता है. यह रग गर्दन में है. मानी ये हैं कि इन्सान के अंग एक दूसरे से पर्दे में हैं मगर अल्लाह तआला से कोई चीज़ पर्दे में नहीं.

जब उससे लेते हैं दो लेने वाले(3)
(3) फ़रिश्ते, और वो इन्सान का हर काम और उसकी हर बात लिखने पर मुक़र्रर हैं.

एक दाएं बैठा और एक बाएं(4){17}
(4) दाईं तरफ़ वाला नेकियाँ लिखता है और बाई तरफ़ वाला गुनाह. इसमें इज़हार है कि अल्लाह तआला फ़रिश्तों के लिखने से भी ग़नी है, वह छुपी से छुपी बात का जानने वाला है. दिल के अन्दर की बात तक उससे छुपी नहीं है. फ़रिश्तों का लिखना तो अल्लाह तआला की हिकमत का एक हिस्सा है कि क़यामत के दिन हर व्यक्ति का कर्म लेखा या नामए अअमाल उसके हाथ में दे दिया जाएगा.

कोई बात वह ज़बान से नहीं निकालता कि उसके पास एक मुहाफ़िज़ तैयार न बैठा हो(5){18}
(5) चाहे वह कहीं हो सिवाए पेशाब पाख़ाना या हमबिस्तरी करते समय के. उस वक़्त ये फ़रिश्ते आदमी के पास हट जाते हैं. इन दोनों हालतों में आदमी को बात करना जायज़ नहीं ताकि उसके लिखने के लिये फ़रिश्तों को उस हालत में उससे क़रीब होने की तकलीफ़ न हो. ये फ़रिश्ते आदमी की हर बात लिखते हैं बीमारी का कराहना तक. और यह भी कहा गया है कि सिर्फ़ वही चीज़ें लिखते हैं जिन में अज्र व सवाब या गिरफ़्त और अज़ाब हो. इमाम बग़वी ने एक हदीस रिवायत की है कि जब आदमी एक नेकी करता है तो दाई तरफ़ वाला फ़रिश्ता दस लिखता है, और जब बदी करता है तो दाई तरफ़ वाला फ़रिश्ता बाईं तरफ़ वाले फ़रिश्ते से कहता है कि अभी रूका रह कि शायद यह व्यक्ति इस्तिग़फ़ार कर ले. मौत के बाद उठाए जाने का इन्कार करने वालों का रद फ़रमाने और अपनी क़ुदरत व इल्म से उन पर हुज्जतें क़ायम करने के बाद उन्हें बताया जाता है कि वो जिस चीज़ का इन्कार करते हैं वह जल्द ही उनकी मौत और क़यामत के वक़्त पेश आने वाली है और भूतकाल से उनकी आमद की ताबीर फ़रमाकर उसके क़ुर्ब का इज़हार किया जाता है चुनांन्चे इरशाद होता है.

और आई मौत की सख़्ती (6)
(6) जो अक़्ल और हवास को बिगाड़ देती है.

हक़ के साथ (7)
(7) हक़ से मुराद या मौत की हक़ीक़त है या आख़िरत का वुजूद जिसको इन्सान ख़ुद मुआयना करता है या आख़िरी अंजाम, सआदत और शक़ावत. सकरात यानी जान निकलते वक़्त मरने वाले से कहा जाता है कि मौत—

यह है जिससे तू भागता था {19} और सूर फूंका गया(8)
(8) दोबारा उठाने के लिये.

यह है अज़ाब के वादे का दिन(9){20}
(9) जिसका अल्लाह तआला ने काफ़िरों से वादा फ़रमाया था.

और हर जान यूं हाज़िर हुई कि उसके साथ एक हांकने वाला(10)
(10) फ़रिश्ता जो उसे मेहशर की तरफ़ हाँके.

और एक गवाह(11){21}
(11) जो उसके कर्मों की गवाही दे. हज़रत इब्दे अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हाँकने वाला फ़रिश्ता होगा और गवाह ख़ुद उसका अपना नफ़्स. ज़ुहाक का क़ौल है कि हाँकने वाला फ़रिश्ता है और गवाह अपने बदन के हिस्से हाथ पाँव बग़ैर. हज़रत उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो ने मिम्बर से फ़रमाया कि हाँकने वाला भी फ़रिश्ता है और गवाह भी फ़रिश्ता (जुमल). फिर काफ़िर से कहा जाएगा.

बेशक तू इस से ग़फ़लत में था(12)
(12) दुनिया में.

तो हमने तुझ पर से पर्दा उठाया(13)
(13) जो तेरे दिल और कानों और आँखों पर पड़ा था.

तो आज तेरी निगाह तेज़ है(14) {22}
(14) कि तू उन चीज़ों को देख रहा है जिनका दुनिया में इन्कार करता था.

और उसका हमनशीं फ़रिश्ता(15)
(15) जो उसके कर्म लिखने वाला और उसपर गवाही देने वाला है. (मदारिक और ख़ाजिन)

बोला यह है(16)
(16) उसके कर्मों का लेखा (मदारिक)

जो मेरे पास हाज़िर है {23} हुक्म होगा तुम दोनों जहन्नम में डाल दो हर बड़े नाशुक्रे हटधर्म को {24} जो भलाई से बहुत रोकने वाला हद से बढ़ने वाला शक करने वाला(17){25}
(17) दीन में.

जिसने अल्लाह के साथ कोई और मअबूद ठहराया तुम दोनों उसे सख़्त अज़ाब में डालो{26} उसके साथी शैतान ने कहा (18)
(18) जो दुनिया में उसपर मुसल्लत था.

हमारे रब मैं ने इसे सरकश न किया (19)
(19) यह शैतान की तरफ़ से काफ़िर का जवाब है जो जहन्नम में डाले जाते वक़्त कहेगा कि ऐ हमारे रब मुझे शैतान ने बहकाया. उसपर शैतान कहेगा कि मैं ने इसे गुमराह न किया.

हाँ यह आप ही दूर की गुमराही में था(20){27}
(20) मैं ने उसे गुमराही की तरफ़ बुलाया उसने क़ुबूल कर लिया. इसपर अल्लाह तआला का इरशाद होगा अल्लाह तआला.

फ़रमाएगा मेरे पास न झगड़ों(21)
(21) कि हिसाब और जज़ा के मैदान में झगड़ा करने का कोई फ़ायदा नहीं.

मैं तुम्हें पहले ही अज़ाब का डर सुना चुका था(22){28}मेरे यहाँ बहुत बदलती नहीं और न मैं बन्दों पर ज़ुल्म करूं{29}
(22) अपनी किताबों में, अपने रसूलों की ज़बानों पर, मैं ने तुम्हारे लिये कोई हुज्जत बाक़ी न छोड़ी.

50 Surah Al-Qaaf

50 सूरए क़ाफ़ -तीसरा रूकू

50|30|يَوْمَ نَقُولُ لِجَهَنَّمَ هَلِ امْتَلَأْتِ وَتَقُولُ هَلْ مِن مَّزِيدٍ
50|31|وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ غَيْرَ بَعِيدٍ
50|32|هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٍ
50|33|مَّنْ خَشِيَ الرَّحْمَٰنَ بِالْغَيْبِ وَجَاءَ بِقَلْبٍ مُّنِيبٍ
50|34|ادْخُلُوهَا بِسَلَامٍ ۖ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْخُلُودِ
50|35|لَهُم مَّا يَشَاءُونَ فِيهَا وَلَدَيْنَا مَزِيدٌ
50|36|وَكَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّن قَرْنٍ هُمْ أَشَدُّ مِنْهُم بَطْشًا فَنَقَّبُوا فِي الْبِلَادِ هَلْ مِن مَّحِيصٍ
50|37|إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكْرَىٰ لِمَن كَانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَهُوَ شَهِيدٌ
50|38|وَلَقَدْ خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ وَمَا مَسَّنَا مِن لُّغُوبٍ
50|39|فَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوبِ
50|40|وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَأَدْبَارَ السُّجُودِ
50|41|وَاسْتَمِعْ يَوْمَ يُنَادِ الْمُنَادِ مِن مَّكَانٍ قَرِيبٍ
50|42|يَوْمَ يَسْمَعُونَ الصَّيْحَةَ بِالْحَقِّ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْخُرُوجِ
50|43|إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَإِلَيْنَا الْمَصِيرُ
50|44|يَوْمَ تَشَقَّقُ الْأَرْضُ عَنْهُمْ سِرَاعًا ۚ ذَٰلِكَ حَشْرٌ عَلَيْنَا يَسِيرٌ
50|45|نَّحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَقُولُونَ ۖ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِجَبَّارٍ ۖ فَذَكِّرْ بِالْقُرْآنِ مَن يَخَافُ وَعِيدِ

जिस दिन हम जहन्नम से फ़रमाएंगे क्या तू भर गई(1)
(1) अल्लाह तआला ने जहन्नम से वादा फ़रमाया है कि उसे जिन्नों और इन्सानों से भरेगा. इस वादे की तहक़ीक़ के लिये जहन्नम से यह सवाल किया जाएगा.

वह अर्ज़ करेगी कुछ और ज़्यादा है(2){30}
(2) इसके मानी ये भी हो सकते हैं कि अब मुझ में गुन्जाइश बाक़ी नहीं, मैं भरचुकी. और ये भी हो सकते हैं कि अभी और गुन्जाइश है.

और पास लाई जाएगी जन्नत परहेज़गारों के कि उनसे दूर न होगी(3){31}
(3) अर्श के दाईं तरफ़, जहाँ से मेहशर वाले उसे देखेंगे और उनसे कहा जाएगा.

यह है वह जिस का तुम वादा दिये जाते हो(4)
(4) रसूलों के माध्यम से दुनिया में.

हर रूजू लाने वाले निगहदाश्त वाले के लिये (5){32}
(5) रूजू लाने वाले से वह मुराद है जो गुनाहों को छोड़कर फ़रमाँबरदारी इख़्तियार करे. सईद बिन मुसैयब ने फ़रमाया अव्वाब यानी रूजू लाने वाला वह है जो गुनाह करे फिर तौबह करे, फिर गुनाह करे फिर तौबह करे. और निगहदाश्त करने वाला है जो अल्लाह के हुक्म का लिहाज़ रखे. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया जो अपने आपको गुनाहों से मेहफ़ूज़ रखे और उनसे इस्तिग़फार करे और यह भी कहा गया है कि जो अल्लाह तआला की अमानतों और उसके हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त करे और यह भी बयान किया गया है कि जो ताअतों का पाबन्द हो, ख़ुदा और रसूल के हुक्म बजा लाए और अपने नफ़्स की निगहबानी करे यानी एक दम भी यादे-इलाही से ग़ाफ़िल न हो. पासे-अन्फ़ास करे यानी अपनी एक एक सांस का हिसाब रखे.

जो रहमान से बेदेखे डरता है और जो रूजू करता हुआ दिल लाया(6){33}
(6) यानी इख़लास वाला, फ़रमाँबरदार और अक़ीदे का सच्चा दिल.

उनसे फ़रमाया जाएगा जन्नत में जाओ सलामती के साथ (7)
(7) बेख़ौफ़ों ख़तर, अम्न व इत्मीनान के साथ, न तुम्हें अज़ाब हो न तुम्हारी नेअमतें ख़त्म या कम हों.

यह हमेशगी का दिन है(8){34}
(8) अब न फ़ना है न मौत.

उनके लिये है इसमें जो चाहें और हमारे पास इससे भी ज़्यादा है(9){35}
(9) जो वो तलब करें और वह अल्लाह का दीदार और उसकी तजल्ली है जिससे हर शुक्र वार को बुज़ुर्गी के साथ नवाज़े जाएंगे.

और उनसे पहले (10)
(10) यानी आपके ज़माने के काफ़िरों से पहले.

हमने कितनी संगतें हलाक़ फ़रमा दीं कि गिरफ़्त में उनसे सख़्त थीं (11)
(11) यानी वो उम्मतें उनसे ताक़तवर और मज़बूत थीं.

तो शहरों में काविशें कीं(12)
(12) और जुस्तजू में जगह जगह फिरा किये.

है कहीं भागने की जगह(13){36}
(13) मौत और अल्लाह के हुक्म से मगर कोई ऐसी जगह न पाई.

बेशक इसमें नसीहत है उसके लिये जो दिल रखता हो(14)
(14) जानने वाला दिल. शिबली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि क़ुरआनी नसीहतों से फ़ैज़े हासिल करने के लिये हाज़िर दिल चाहिये जिसमें पलक झपकने तक की गफ़लत न आए.

या कान लगाए (15)
(15) क़ुरआन और नसीहत पर.

और मुतवज्जह हो {37} और बेशक हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उनके बीच है छ: दिन में बनाया, और तकान हमारे पास न आई(16){38}
(16) मुफ़स्सिरों ने कहा कि यह आयत यहूदियों के रद में नाज़िल हुई जो यह कहते थे कि अल्लाह तआला ने आसमान और ज़मीन और उनके दर्मियान की कायानात को छ रोज़ में बनाया जिनमें से पहला यकशम्बा है और पिछला शुक्रवार, फिर वह (मआज़ल्लाह) थक गया और सनीचर को उसने अर्श पर लेट कर आराम किया. इस आयत में इसका रद है कि अल्लाह तआला इससे पाक है कि वह थके. वह क़ादिर है कि एक आन में सारी सृष्टि बना दे. हर चीज़ का अपनी हिकमत के हिसाब से हस्ती अता फ़रमाता है. शाने इलाही में यहूदियों का यह कलिमा सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को बहुत बुरा लगा और ग़ुस्से से आपके चेहरे पर लाली छा गई तो अल्लाह तआला ने आपकी तस्कीन फ़रमाई और ख़िताब फ़रमाया.

तो उनकी बातों पर सब्र करो और अपने रब की तारीफ़ करते हुए उसकी पाकी बोलो सूरज चमकने से पहले और डूबने से पहले(17){39}
(17) यानी फ़ज्र व ज़ोहर व अस्र के वक़्त.

और कुछ रात गए उसकी तस्बीह करो(18)
(18) यानी मग़रिब व इशा व तहज्जुद के वक़्त.

और नमाज़ों के बाद (19){40}
(19) हदीस में हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने तमाम नमाज़ों के बाद तस्बीह करने का हुक्म फ़रमाया. (बुख़ारी) हदीस में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया जो व्यक्ति हर नमाज़ के बाद 33 बार सुब्हानल्लाह, 33 बार अल्हम्दुलिल्लाह और तैंतीस बार अल्लाह अकबर और एक बार ला इलाहा इल्लल्लाहो वहदू ला शरीका लहू लहुल मुल्को व लहुल हम्दो व हुवा अला कुल्ले शैइन क़दीर पढ़े उसके गुनाह बख़्शे जाएं चाहे समन्दर के झागों के बराबर हों यानी बहुत ही ज़्यादा हों. (मुस्लिम शरीफ़)

और कान लगाकर सुनो जिस दिन पुकारने वाला पुकारेगा(20)
(20) यानी हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम.

एक पास जगह से(21){41}
(21) यानी बैतुल मक़दिस के गुम्बद से जो आस्मान की तरफ़ ज़मीन का सबसे क़रीब मक़ाम है. हज़रत इस्राफ़ील की निदा यह होगी ऐ गली हुई हड्डियों, बिखरे हुए जोड़ो, कण कण हुए गोश्तो, बिखरे हुए बालो ! अल्लाह तआला तुम्हें फ़ैसले के लिये जमा होने का हुक्म देता है.

जिस दिन चिंघाड़ सुनेंगे(22)
(22) सब लोग, मुराद इससे सूर का दूसरी बार फूंका जाना है.

हक़ के साथ, यह दिन है, क़ब्रों से बाहर आने का {42} बेशक हम जिलाएं और हम मारें और हमारी तरफ़ फिरना है(23){43}
(23) आख़िरत में.

जिस दिन ज़मीन उन से फटेगी तो जल्दी करते हुए निकलेंगे (24)
(24) मुर्दे मेहशर की तरफ़.

यह हश्र है हम को आसान{44}हम ख़ूब जान रहे हैं जो वो कह रहे हैं(25)
(25) यानी क़ुरैश के काफ़िर.

और कुछ तुम उनपर जब्र करने वाले नहीं(26) तो क़ुरआन से नसीहत करो उसे जो मेरी धमकी से डरे{45}
(26) कि उन्हें ज़बरदस्ती इस्लाम में दाख़िल करो, आपका काम दावत देना और समझा देना है.

49-Surah Al-Huzuraat

49 सूरए हुजुरात

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُقَدِّمُوا بَيْنَ يَدَيِ اللَّهِ وَرَسُولِهِ ۖ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَرْفَعُوا أَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِيِّ وَلَا تَجْهَرُوا لَهُ بِالْقَوْلِ كَجَهْرِ بَعْضِكُمْ لِبَعْضٍ أَن تَحْبَطَ أَعْمَالُكُمْ وَأَنتُمْ لَا تَشْعُرُونَ
إِنَّ الَّذِينَ يَغُضُّونَ أَصْوَاتَهُمْ عِندَ رَسُولِ اللَّهِ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ امْتَحَنَ اللَّهُ قُلُوبَهُمْ لِلتَّقْوَىٰ ۚ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ
إِنَّ الَّذِينَ يُنَادُونَكَ مِن وَرَاءِ الْحُجُرَاتِ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ
وَلَوْ أَنَّهُمْ صَبَرُوا حَتَّىٰ تَخْرُجَ إِلَيْهِمْ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِن جَاءَكُمْ فَاسِقٌ بِنَبَإٍ فَتَبَيَّنُوا أَن تُصِيبُوا قَوْمًا بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوا عَلَىٰ مَا فَعَلْتُمْ نَادِمِينَ
وَاعْلَمُوا أَنَّ فِيكُمْ رَسُولَ اللَّهِ ۚ لَوْ يُطِيعُكُمْ فِي كَثِيرٍ مِّنَ الْأَمْرِ لَعَنِتُّمْ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ الْإِيمَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوقَ وَالْعِصْيَانَ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الرَّاشِدُونَ
فَضْلًا مِّنَ اللَّهِ وَنِعْمَةً ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
وَإِن طَائِفَتَانِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ اقْتَتَلُوا فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا ۖ فَإِن بَغَتْ إِحْدَاهُمَا عَلَى الْأُخْرَىٰ فَقَاتِلُوا الَّتِي تَبْغِي حَتَّىٰ تَفِيءَ إِلَىٰ أَمْرِ اللَّهِ ۚ فَإِن فَاءَتْ فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَأَقْسِطُوا ۖ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ فَأَصْلِحُوا بَيْنَ أَخَوَيْكُمْ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ

सूरए हुजुरात मदीने में उतरी, इसमें 18 आयतें, दो रूकू हैं
-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए हुजुरात मदनी है, इसमें दो रूकू, अठारह आयतें, तीन सौ तैंतालीस कलिमे और एक हज़ार चार सौ छिहत्तर अक्षर हैं.

ऐ ईमान वालों अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढ़ो(2)
(2) यानी तुम्हें लाज़िम है कि कभी तुम से तक़दीम वाक़े न हो, न क़ौल में न फ़ेअल, यानी न कहनी में न करनी में कि पहल करना रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के अदब और सम्मान के ख़िलाफ़ है. उनकी बारगाह में नियाज़मन्दी और आदाब लाज़िम हैं. कुछ लोगों ने बक़्र ईद के दिन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से पहले क़ुर्बानी कर ली तो उनको हुक्म दिया गया कि दोबारा क़ुर्बानी करें और हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा से रिवायत है कि कुछ लोग रम़जान से एक रोज़ पहले ही रोज़ा रखना शुरू कर देते थे उनके बारे में यह आयत उतरी और हुक्म दिया गया कि रोज़ा रखने में अपने नबी से आगे मत जाओ.

और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह सुनता जानता है {1} ऐ ईमान वालों अपनी आवाज़ें ऊंची न करो उस ग़ैब बताने वाले (नबी) की आवाज़ से(3)
(3) यानी जब हुज़ूर में कुछ अर्ज़ करो तो आहिस्ता धीमी आवाज़ में अर्ज़ करो यही दरबारे रिसालत का अदब और एहतिराम है.

और उनके हुज़ूर (समक्ष) बात चिल्लाकर न कहो जैसे आपस में एक दूसरे के सामने चिल्लाते हो कि कहीं तुम्हारे कर्म अक़ारत न हो जाएं और तुम्हें ख़बर न हो(4){2}
(4) इस आयत में हुज़ूर की बुज़ुर्गी और उनका सम्मान बताया गया और हुक्म दिया गया कि पुकारने में अदब का पूरा ध्यान रखें जैसे आपस में एक दूसरे को नाम लेकर पुकारते हैं उस तरह न पुकारें बल्कि अदब और सम्मान के शब्दों के साथ अर्ज़ करो जो अर्ज़ करना हो, कि अदब छोड़ देने से नेकियों के बर्बाद होने का डर है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि यह आयत साबित बिन क़ैस बिन शम्मास के बारे में उतरी. वो ऊंचा सुनते थे और आवाज़ उनकी ऊंची थी. बात करने में आवाज़ बलन्द हो जाया करती थी. जब यह आयत उतरी तो हज़रत साबित अपने घर बैठ रहे और कहने लगे मैं दोज़ख़ी हूँ. हुज़ूर ने हज़रत सअद से उनका हाल दर्याफ़त किया. उन्होंने अर्ज़ किया कि वह मेरी पड़ौसी हैं और मेरी जानकारी में उन्हें कोई बीमारी तो नहीं हुई. फिर आकर हज़रत साबित से इसका ज़िक्र किया. साबित ने कहा यह आयत उतरी है और तुम जानते हो कि मैं तुम सबसे ज़्यादा ऊंची आवाज़ वाला हूँ तो मैं जहन्नमी हो गया. हज़रत सअद ने यह हाल ख़िदमते अक़दस में अर्ज़ किया तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि वह जन्नत वालों में से हैं.

बेशक वो जो अपनी आवाज़ें पस्त करते हैं रसूलुल्लाह के पास(5)
(5) अदब और सम्मान के तौर पर. आयत “या अय्युहल्लज़ीना आमनू ला तरफ़ऊ असवातकुम” के उतरने के बाद हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ और उमरे फ़ारूक रदियल्लाहो अन्हुमा और कुछ और सहाबा ने बहुत एहतियात लाज़िम करली और ख़िदमत अक़दस में बहुत ही धीमी आवाज़ से बात करते. उन हज़रात के हक़ में यह आयत उतरी.

वो हैं जिनका दिल अल्लाह ने परहेज़गारी के लिये परख लिया है, उनके लिये बख़्शिश और बड़ा सवाब है {3} बेशक वो जो तुम्हें हुजरों के बाहर से पुकारते हैं उनमें अक्सर बे अक़्ल है (6) {4}
(6) यह आयत बनी तमीम के वफ़्द के हक़ में उतरी कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में दोपहर को पहुंचे जब कि हुज़ूर आराम कर रहे थे. इन लोगों ने हुजरे के बाहर से हुज़ूर को पुकारना शुरू किया. हुज़ूर तशरीफ़ ले आए. उन लोगों के हक़ में यह आयत उतरी और हुज़ूर की शान की बुज़ुर्गी का बयान फ़रमाया गया कि हुज़ूर की बारगाह में इस तरह पुकारना जिहालत और बेअक़्ली है और उनको अदब की तलक़ीन की गई.

और अगर वो सब्र करते यहाँ तक कि तुम आप उनके पास तशरीफ लाते(7)
(7) उस वक़्त वो अर्ज़ करते जो उन्हें अर्ज़ करना था. यह अदब उन पर लाज़िम था, इसको बजा लाते.

तो यह उनके लिये बेहतर था, और अल्ला बख़्शने वाला मेहरबान है (8){5}
(8) इन में से उनके लिये जो तौबह करें.

ऐ ईमान वालों अगर कोई फ़ासिक़ तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए तो तहक़ीक़ कर लो(9)
(9) कि सही है या ग़लत. यह आयत वलीद बिन अक़बह के हक़ में उतरी कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उनको बनी मुस्तलक़ से सदक़ात वुसूल करने भेजा था और जिहालत के ज़माने में इनके और उनके दर्मियान दुश्मनी थी. जब वलीद उनके इलाक़े के क़रीब पहुंचे और उन्हें ख़बर हुई तो इस ख़याल से कि वो रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के भेजे हुए हैं, बहुत से लोग अदब से उनके स्वागत के लिये आए. वलीद ने गुमान किया कि ये पुरानी दुश्मनी से मुझे क़त्ल करने आ रहे हैं. यह ख़याल करके वलीद वापस हो गए और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ कर दिया कि हुज़ूर उन लोगों ने सदक़ा देने को मना कर दिया और मेरे क़त्ल का इरादा किया. हुज़ूर ने ख़ालिद बिन वलीद को तहक़ीक़ के लिये भेजा. हज़रत ख़ालिद ने देखा कि वो लोग अज़ानें कहते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं और उन लोगों ने सदक़ात पेश कर दिये. हज़रत ख़ालिद ये सदक़ात ख़िदमते अक़दस में लेकर हाज़िर हुए और हाल अर्ज़ किया. इस पर आयत उतरी. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि यह आयत आम है, इस बयान में उतरी है कि फ़ासिक़ के क़ौल पर भरोसा न किया जाए. इस आयत से साबित हुआ कि एक व्यक्ति अगर आदिल हो तो उसकी ख़बर भरोसे के लायक़ है.

कि कहीं किसी क़ौम को बेजा ईजा (कष्ट) न दे बैठो फिर अपने किये पर पछताते रह जाओ{6} और जान लो कि तुम में अल्लाह के रसूल है(10)
(10) अगर तुम झूट बोलोगे तो अल्लाह तआला के ख़बरदार करने से वह तुम्हारा राज़ ख़ोल कर तुम्हें रूसवा कर देंगे.
बहुत मामलों में अगर यह तुम्हारी ख़ुशी करें(11)
(11) और तुम्हारी राय के मुताबिक हुक्म दे दें.

तो तुम ज़रूर मशक़्क़त में पड़ो लेकिन अल्लाह ने तुम्हें ईमान प्यारा कर दिया है और उसे तुम्हारे दिलों में आरास्ता कर दिया और कुफ़्र और हुक्म अदूली और नाफ़रमानी तुम्हें नागवार कर दी, ऐसे ही लोग राह पर हैं(12){7}
(12) कि सच्चाई के रास्ते पर क़ायम रहे.

अल्लाह का फ़ज़्ल और एहसान, और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है {8} और अगर मुसलमानों के दो दल आपस में लड़े तो उनमें सुलह कराओ(13)
(13) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम दराज़ गोश (गधे) पर सवार तशरीफ़ ले जाते थे. अन्सार की मज़लीस पर गुज़र हुआ. वहाँ थोड़ी देर ठहरे. उस जगह गधे ने पेशाब किया तो इब्ने उबई ने नाक बन्द कर ली. हज़रत अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि हुज़ूर के दराज़गोश का पेशाब तेरे मुश्क से बेहतर ख़ुश्बू रखता हैं. हुज़ूर तो तशरीफ़ ले गए. उन दोनों में बात बढ़ गई और उन दोनों की क़ौमें आपस में लड़ गई और हाथा पाई की नौबत आई तो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तशरीफ़ लाए और उनमें सुलह करा दी. इस मामले में यह आयत उतरी.

फिर अगर एक दूसरे पर ज़ियादती करे(14)
(14) जुल्म करे और सुलह से इन्कारी हो जाए. बाग़ी दल का यही हुक्म है कि उससे जंग की जाए यहाँ तक कि वह लड़ाई से बाज़ आए.

तो उस ज़ियादती वाले से लड़ो यहाँ तक कि वह अल्लाह के हुक्म की तरफ़ पलट आए फिर अगर पलट आए तो इन्साफ़ के साथ उनमें इस्लाह कर दो और इन्साफ़ करो, बेशक इन्साफ़ वाले अल्लाह को प्यारे हैं {9} मुसलमान मुसलमान भाई हैं(15)
(15) कि आपस में दीनी सम्बन्ध और इस्लामी महब्बत के साथ जुड़े हुए हैं. यह रिश्ता सारे दुनियवी रिश्तों से ज़्यादा मज़बूत है.

तो अपने दो भाइयों में सुलह करो(16)
(16) जब कभी उनमें मतभेद वाक़े हो.

और अल्लाह से डरो कि तुम पर रहमत हो(17){10}
(17) क्योंकि अल्लाह तआला से डरना और परहेज़गारी इख़्तियार करना ईमान वालों की आपसी महब्बत और दोस्ती का कारण है और जो अल्लाह तआला से डरता है, अल्लाह तआला की रहमत उस पर होती है.

49-Surah Al-Huzuraat

49 सूरए हुजुरात -दूसरा रूकू

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَسْخَرْ قَوْمٌ مِّن قَوْمٍ عَسَىٰ أَن يَكُونُوا خَيْرًا مِّنْهُمْ وَلَا نِسَاءٌ مِّن نِّسَاءٍ عَسَىٰ أَن يَكُنَّ خَيْرًا مِّنْهُنَّ ۖ وَلَا تَلْمِزُوا أَنفُسَكُمْ وَلَا تَنَابَزُوا بِالْأَلْقَابِ ۖ بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوقُ بَعْدَ الْإِيمَانِ ۚ وَمَن لَّمْ يَتُبْ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اجْتَنِبُوا كَثِيرًا مِّنَ الظَّنِّ إِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ إِثْمٌ ۖ وَلَا تَجَسَّسُوا وَلَا يَغْتَب بَّعْضُكُم بَعْضًا ۚ أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَن يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَّحِيمٌ
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ
۞ قَالَتِ الْأَعْرَابُ آمَنَّا ۖ قُل لَّمْ تُؤْمِنُوا وَلَٰكِن قُولُوا أَسْلَمْنَا وَلَمَّا يَدْخُلِ الْإِيمَانُ فِي قُلُوبِكُمْ ۖ وَإِن تُطِيعُوا اللَّهَ وَرَسُولَهُ لَا يَلِتْكُم مِّنْ أَعْمَالِكُمْ شَيْئًا ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ ثُمَّ لَمْ يَرْتَابُوا وَجَاهَدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۚ أُولَٰئِكَ هُمُ الصَّادِقُونَ
قُلْ أَتُعَلِّمُونَ اللَّهَ بِدِينِكُمْ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۚ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
يَمُنُّونَ عَلَيْكَ أَنْ أَسْلَمُوا ۖ قُل لَّا تَمُنُّوا عَلَيَّ إِسْلَامَكُم ۖ بَلِ اللَّهُ يَمُنُّ عَلَيْكُمْ أَنْ هَدَاكُمْ لِلْإِيمَانِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ غَيْبَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ

ऐ ईमान वालों न मर्द मर्दों पर हंसे(1)
(1) यह आयत कई घटनाओं में उतरी. पहली घटना यह है कि साबित बिन क़ैस शम्मास ऊंचा सुनते थे. जब वह सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मजलिस शरीफ़ में हाज़िर होते तो सहाबा उन्हें आगे बिठाते और उनके लिये जगह ख़ाली कर देते ताकि वह हुज़ूर के क़रीब हाज़िर रहकर कलामे मुबारक सुन सकें. एक रोज़ उन्हें हाज़िरी में देर हो गई और मजलिस शरीफ़ ख़ूब भर गई, उस वक़्त साबित आए और क़ायदा यह था कि जो व्यक्ति ऐसे वक़्त आता और मजलिस में जगह न पाता तो जहाँ होता खड़ा रहता. साबित आए तो वह रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के क़रीब बैठने के लिये लोगों को हटाते हुए यह कहते चले कि जगह दो, जगह दो. यहाँ तक कि वह हुज़ूर के क़रीब पहुंच गए और उनके और हुज़ूर के बीच में सिर्फ़ एक व्यक्ति रह गया. उन्होंने उससे भी कहा कि जगह दो. उसने कहा कि तुम्हे जगह मिल गई. बैठ जाओ. साबित ग़ुस्से में आकर उससे पीछे बैठ गए और जब दिन ख़ूब रौशन हुआ तो साबित ने उसका बदन दबा कर कहा कि कौन? उसने कहा मैं फ़लाँ व्यक्ति हूँ. साबित ने उसकी माँ का नाम लेकर कहा कि फ़लानी का लड़का. इस पर उस आदमी ने शर्म से सर झुका लिया. उस ज़माने में ऐसा कलिमा शर्म दिलाने के लिये बोला जाता था. इसपर यह आयत उतरी. दूसरा वाक़िआ ज़ुहाक ने बयान किया कि यह आयत बनी तमीम के हक़ में उतरी जो हज़रत अम्मार व ख़बाब व बिलालद व सुहैब व सलमान व सालिम वग़ैरह ग़रीब सहाबा की ग़रीबी देखकर उनका मज़ाक़ उड़ाते थे. उनके हक़ में यह आयत उतरी और फ़रमाया गया कि मर्द मर्दों से न हंसे यानी मालदार ग़रीबों की हंसी न बनाएं, न ऊंचे ख़ानदान वाले नीचे ख़ानदान वालों की, और न तन्दुरूस्त अपाहिज की, न आँख वाले उसकी जिसकी आँख में दोष हो.

अजब नहीं कि वो उन हंसने वालों से बेहतर हों(2)
(2) सच्चाई और इख़लास में.

और न औरतें औरतों से दूर नहीं कि वो उन हंसने वालियों से बेहतर हो(3)
(3) यह आयत उम्मुल मूमिनीन हज़रत सफ़िया बिन्ते हैय रदियल्लाहो अन्हा के हक़ में उतरी. उन्हें मालूम हुआ था कि उम्मुल मूमिनीन हज़रत हफ़सा ने उन्हें यहूदी की बेटी कहा. इस पर उन्हें दुख हुआ और रोईं और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से शिकायत की तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि तुम नबीज़ादी और नबी की बीबी हो तुम पर वह क्या फ़ख्र रखती हैं और हज़रत हफ़सा से फ़रमाया, ऐ हफ़सा ख़ुदा से डरो. (तिरमिज़ी)
और आपस में तअना न करो(4)
(4) एक दूसरे पर ऐब न लगाओ. अगर एक मूमिन ने दूसरे मूमिन पर ऐब लगाया तो गोया अपने ही आपको ऐब लगाया.

और एक दूसरे के बुरे नाम न रखो (5)
(5) जो उन्हें नागवार मालूम हो. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अगर किसी आदमी ने किसी बुराई से तौबह कर ली हो, उसको तौबह के बाद उस बुराई से शर्म दिलाना भी इस मनाही में दाख़िल है. कुछ उलमा ने फ़रमाया कि किसी मुसलमान को कुत्ता या गधा या सुअर कहना भी इसी में दाख़िल है. कुछ उलमा ने फ़रमाया कि इससे वो अलक़ाब मुराद हैं जिन से मुसलमान की बुराई निकलती हो और उसको नागवार हो, लेकिन तारीफ़ के अलक़ाब जो सच्चे हों मना नहीं जैसे कि हज़रत अबू बक्र का लक़ब अतीक़ और हज़रत उमर का फ़ारूक और हज़रत उस्मान का ज़ुन-नूरैन और हज़रत अली का अबू तुराब और हज़रत ख़ालिद का सैफ़ुल्लाह, रदियल्लाहो अन्हुम. और जो अलक़ाब पहचान की तरह हो गए और व्यक्ति विशेष को नागवार नहीं वो अलक़ाब भी मना नहीं जैसे कि अअमश, अअरज.

क्या ही बुरा नाम है मुसलमान होकर फ़ासिक़ कहलाना(6)
(6) तो ऐ मुसलमानों किसी मुसलमान की हंसी बनाकर या उसको ऐब लगाकर या उसका नाम बिगाड़ कर अपने आपको फ़ासिक़ न कहलाओ.

और जो तौबह न करें तो वही ज़ालिम हैं {11} ऐ, ईमान वालों बहुत ग़ुमानों से बचो(7)
(7) क्योंकि हर गुमान सही नहीं होता.

बेशक कोई ग़ुमान गुनाह हो जाता है (8)
(8) नेक मूमिन के साथ बुरा गुमान मना है इसी तरह उसका कोई कलाम सुनकर ग़लत अर्थ निकालना जबकि उसके दूसरे सही मानी मौजूद हों और मुसलमान का हाल उनके अनुसार हो, यह भी बुरे गुमान में दाख़िल है. सुफ़ियान सौरी रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया गुमान दो तरह का होता है एक वह कि दिलों में आए और ज़बान से भी कह दिया जाए. यह अगर मुसलमान पर बुराई के साथ है तो गुनाह है. दूसरा यह कि दिल में आए ज़बान से न कहा जाए. यह अगरचे गुनाह नहीं मगर इससे भी दिल ख़ाली करना ज़रूरी है. गुमान की कई किस्में है एक वाजिब है, वह अल्लाह के साथ अच्छा गुमान रखना. एक ममनूअ और हराम, वह अल्लाह तआला के साथ बुरा गुमान करना और मूमिन के साथ बुरा गुमान करना. एक जायज़, वह खुले फ़ासिक़ के साथ ऐसा गुमान करना जैसे काम वह करता हो.

और ऐब (दोष) न ढूंढो(9)
(9) यानी मुसलमानों के दोष तलाश न करो और उनके छुपे हाल की जुस्तजू में न रहो, जिसे अल्लाह तआला ने अपनी सत्तारी से छुपाया. हदीस शरीफ़ में है गुमान से बचो, गुमान बड़ी झूटी बात है, और मुसलमान के दोष मत तलाश करो. उनके साथ जहल, हसद बुग़्ज़ और बेमुरव्वती न करो. ऐ अल्लाह तआला के बन्दो, भाई बने रहो जैसे तुम्हें हुक्म दिया गया. मुसलमान मुसलमान का भाई है, उस पर ज़ुल्म न करे, उसको रूस्वा न करे, उसकी तहक़ीर न करे. तक़वा यहाँ है, तक़वा यहाँ है, तक़वा यहाँ है. (और “यहाँ” के शब्द से अपने सीने की तरफ़ इशारा फ़रमाया) आदमी के लिये यह बुराई बहुत है कि अपने मुसलमान भाई को गिरी हुई नज़रों से देखे. हर मुसलमान मुसलमान पर हराम है. उसका ख़ून भी, उसकी आबरू भी, उसका माल भी. (बुख़ारी व मुस्लिम) हदीस में है जो बन्दा दुनिया में दुसरे की पर्दा पोशी करता है, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसकी पर्दा पोशी फ़रमाएगा.

और एक दूसरे की ग़ीबत न करो(10)
(10) हदीस शरीफ़ में है कि ग़ीबत यह है कि मुसलमान भाई के पीठ पीछे ऐसी बात कही जाए जो उसे नागवार गुज़रे अगर यह बात सच्ची है तो ग़ीबत है, वरना बोहतान.

क्या तुम में कोई पसन्द रखेगा कि अपने मरे भाई का गोश्त खाए तो यह तुम्हें गवारा न होगा(11)
(11) तो मुसलमान भाई की ग़ीबत भी गवारा नहीं होनी चाहिये. क्योंकि उसको पीठ पीछे बुरा कहना उसके मरने के बाद उसका गोश्त खाने के बराबर है. क्योकि जिस तरह किसी का गोश्त काटने से उसको तकलीफ़ होती है उसी तरह उसको बदगोई से दिली तकलीफ़ होती है. और वास्तव में आबरू गोश्त से ज़्यादा प्यारी है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम जब जिहाद के लिये रवाना होते और सफ़र फ़रमाते तो हर दो मालदारों के साथ एक ग़रीब मुसलमान को कर देते कि वह ग़रीब उनकी ख़िदमत करे, वो उसे खिलाएं पिलाएं. हर एक का काम चले. इसी तरह हज़रत सलमान रदियल्लाहो अन्हो दो आदमियों के साथ किये गए. एक रोज़ वह सो गए और खाना तैयार न कर सके तो उन दोनों ने उन्हें खाना तलब करने के लिये रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में भेजा. हुजूर की रसोई के ख़ादिम हज़रत उसामह रदियल्लाहो अन्हो थे. उनके पास कुछ रहा न था. उन्हों ने फ़रमाया कि मेरे पास कुछ नहीं है. हज़रत सलमान ने आकर यही कह दिया तो उन दोनों साथियों ने कहा कि उसामह ने कंजूसी की. जब वह हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए, फ़रमाया मैं तुम्हारे मुंह में गोश्त की रंगत देखता हूँ. उन्होंने अर्ज़ किया हम ने गोश्त खाया ही नहीं. फ़रमाया तुमने ग़ीबत की और जो मुसलमान की ग़ीबत करे उसने मुसलमान का गोश्त खाया. ग़ीबत के बारे में सब एकमत हैं कि यह बड़े गुनाहों में से है. ग़ीबत करने वाले पर तौबह लाज़िम है. एक हदीस में यह है कि ग़ीबत का कफ़्फ़ारा यह है कि जिसकी ग़ीबत की है उसके लिये मग़फ़िरत की दुआ करे. कहा गया है खुले फ़ासिक़ के दोषों का बयान करो कि लोग उससे बचें. हसन रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि तीन व्यक्तियों की बुराई या उनके दोष बयान करना ग़ीबत नहीं. एक साहिबे हवा (बदमज़हब), दूसरा खुला फ़ासिक़ तीसरा ज़ालिम बादशाह.

और अल्लाह से डरो बेशक अल्लाह बहुत तौबह क़ुबूल करने वाला मेहरबान है {12} ऐ लोगों हमने तुम्हें एक मर्द(12)
(12) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम.

और एक औरत (13)
(13) हज़रत हव्वा.

से पैदा किया(14)
(14) नसब के इस इन्तिहाई दर्जे पर जाकर तुम सब के सब मिल जाते हो तो नसब में घमण्ड करने की कोई वजह नहीं. सब बराबर हो. एक जद्दे अअला की औलाद.

और तुम्हें शाख़ें और क़बीले किया कि आपस में पहचान रखो (15)
(15) और एक दूसरे का नसब जाने और कोई अपने बाप दादा के सिवा दूसरे की तरफ़ अपनी निस्बत न करे, न यह कि नसब पर घमण्ड करे औरि दूसरों की तहक़ीर करे. इसके बाद उस चीज़ कर बयान फ़रमाया जाता है जो इन्सान के लिये शराफ़त और फ़ज़ीलत का कारण और जिससे उसको अल्लाह की बारगाह में इज़्ज़त हासिल होती है.

बेशक अल्लाह के यहाँ तुम में ज़्यादा ईज़्ज़त वाला वह जो तुम में ज़्यादा परहेज़गार हैं(16)
(16) इससे मालूम हुआ कि इज़्ज़त और फ़ज़ीलत का आधार परहेज़गारी पर है न कि नसब पर. रसूल करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मदीने के बाज़ार में एक हब्शी ग़ुलाम देखा जो यह कह रहा था कि जो मुझे ख़रीदे उससे मेरी यह शर्त है कि मुझे रसूले अकरम रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पीछे पाँचों नमाज़ें अदा करने से मना न करे. उस ग़ुलाम को एक शख़्स ने ख़रीद लिया फिर वह ग़ुलाम बीमार हो गया तो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसकी अयादत के लिये तशरीफ़ लाए फिर उसकी वफ़ात हो गई और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसके दफ़्न में तशरीफ़ लाए. इसपर लोगों ने कुछ कहा. तब यह आयत उतरी.

बेशक अल्लाह जानने वाला ख़बरदार है {13} गंवार बोले हम ईमान लाए(17)
(17) यह आयत बनी असद बिन ख़ुजैमह की एक जमाअत के हक़ में नाज़िल हुई जो दुष्काल के ज़माने में रसूल करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और उन्हों ने इस्लाम का इज़हार किया और हक़ीक़त में वो ईमान न रखते थे. उन लोगों ने मदीने के रस्ते में गन्दगियाँ कीं और वहाँ के भाव मेंहगे कर दिये. सुब्ह शाम रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में आकर अपने इस्लाम लाने का एहसान जताते और कहते हमें कुछ दीजिये. उनके बारे में यह आयत उतरी.

तुम फ़रमाओ तुम ईमान तो न लाए (18)
(18) दिल की सच्चाई से.

हाँ यूं कहो कि हम मुतीअ हुए (19)
(19) ज़ाहिर में.

और अभी ईमान तुम्हारे दिलों में कहाँ दाख़िल हुआ (20)
(20) केवल ज़बानी इक़रार, जिसके साथ दिल की तस्दीक़ न हो, भरोसे के क़ाबिल नहीं. इससे आदमी मूमिन नहीं होता. इताअत और फ़रमाँबरदारी इस्लाम के लुग़वी मानी हैं, और शरई मानी में इस्लाम और ईमान एक हैं, कोई फ़र्क़ नहीं.

और अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी करोगे(21)
(21) ज़ाहिर में और बातिल में, दिल की गहराई और सच्चाई से निफ़ाक़ अर्थात दोहरी प्रवृत्ति को छोड़कर.

तो तुम्हारे किसी कर्म का तुम्हें नुक़सान न देगा(22)
(22) तुम्हारी नेकियों का सवाब कम न करेगा.

बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है {14} ईमान वाले तो वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए फिर शक न किया(23)
(23) अपने दीन और ईमान में.

और अपनी जान और माल से अल्लाह की राह में जिहाद किया, वही सच्चे हैं (24){15}
(24) ईमान के दावे में, जब ये दोनों आयतें उतरीं तो अरब लोग सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और उन्होंने क़स्में ख़ाई कि हम सच्चे मूमिन हैं. इसपर अगली आयत उतरी और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को ख़िताब फ़रमाया गया.

तुम फ़रमाओ क्या तुम अल्लाह को अपना दीन बताते हो और अल्लाह जानता है जो कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है,(25)
(25) उससे कुछ छुपा हुआ नहीं.

और अल्लाह सब कुछ जानता है (26) {16}
(26) मूमिन का ईमान भी और मुनाफ़िक़ का दोग़लापन भी. तुम्हारे बताने और ख़बर देने की हाजत नहीं.

ऐ मेहबूब वो तुम पर एहसान जताते हैं कि मुसलमान हो गए, तुम फ़रमाओ अपने इस्लाम का एहसान मुझे पर न रखो, बल्कि अल्लाह तुम पर एहसान रखता है कि उसने तुम्हें इस्लाम की हिदायत की अगर तुम सच्चे हो(27) {17}
(27) अपने दावे में.

बेशक अल्लाह जानता है आसमानों और ज़मीन के सब ग़ैब, और अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है(28) {18}
(28) उससे तुम्हारा हाल छुपा नहीं, न ज़ाहिर न बातिन.