26 – सूरए शुअरा – चौथा रूकू

26 – सूरए शुअरा – चौथा रूकू

۞ وَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِىٓ إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ
فَأَرْسَلَ فِرْعَوْنُ فِى ٱلْمَدَآئِنِ حَٰشِرِينَ
إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ لَشِرْذِمَةٌۭ قَلِيلُونَ
وَإِنَّهُمْ لَنَا لَغَآئِظُونَ
وَإِنَّا لَجَمِيعٌ حَٰذِرُونَ
فَأَخْرَجْنَٰهُم مِّن جَنَّٰتٍۢ وَعُيُونٍۢ
وَكُنُوزٍۢ وَمَقَامٍۢ كَرِيمٍۢ
كَذَٰلِكَ وَأَوْرَثْنَٰهَا بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
فَأَتْبَعُوهُم مُّشْرِقِينَ
فَلَمَّا تَرَٰٓءَا ٱلْجَمْعَانِ قَالَ أَصْحَٰبُ مُوسَىٰٓ إِنَّا لَمُدْرَكُونَ
قَالَ كَلَّآ ۖ إِنَّ مَعِىَ رَبِّى سَيَهْدِينِ
فَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱضْرِب بِّعَصَاكَ ٱلْبَحْرَ ۖ فَٱنفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍۢ كَٱلطَّوْدِ ٱلْعَظِيمِ
وَأَزْلَفْنَا ثَمَّ ٱلْءَاخَرِينَ
وَأَنجَيْنَا مُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥٓ أَجْمَعِينَ
ثُمَّ أَغْرَقْنَا ٱلْءَاخَرِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

और हमने मूसा को वही भेजी कि रातों रात मेरे बन्दों को(1)
(1) यानी बनी इस्राईल को मिस्र से.

ले निकल बेशक तुम्हारा पीछा होना है(2){52}
(2) फ़िरऔन और उसके लश्कर पीछा करेंगे, और तुम्हारे पीछे दरिया में दाख़िल होंगे, हम तुम्हें निजात देंगे और उन्हें डुबा देंगे.

अब फ़िरऔन ने शहरों में जमा करने वाले भेजे(3){53}
(3) लश्करों को जमा करने के लिये, जब लश्कर जमा होगए, तो उनकी कसरत के मुक़ाबिल बनी इस्राईल की संख्या थोड़ी मालूम होने लगी. चुनान्चे फ़िरऔन ने बनी इस्राईल की निस्बत कहा.

कि ये लोग एक थोड़ी जमाअत हैं{54} और बेशक वो हम सब का दिल जलाते हैं (4){55}
(4) हमारी मुख़ालिफ़त करके और हमारी इजा़ज़त के बिना हमारी सरज़मीन से निकल कर.

और बेशक हम सब चौकन्ने हैं (5){56}
(5) हथियार बाँधे तेयार हैं.

तो हमने उन्हें (6)
(6) यानी फ़िरऔनियों को.

बाहर निकाला बाग़ों और चश्मों {57}और ख़जानों और उमदा मकानों से{58} हमने ऐसा ही किया और उनका वारिस कर दिया बनी इस्राईल को(7){59}
(7) फ़िरऔन और उसकी क़ौम के ग़र्क़ यानी डूबने के बाद.

तो फ़िरऔनियों ने उनका पीछा किया दिन निकले {60} फिर जब आमना सामना हुआ दोनों गिरोहों का(8)
(8) और उनमें से हर एक ने दूसरे को देखा.

मूसा वालों ने कहा हमको उन्होंने आ लिया(9){61}
(9) अब वो हम पर क़ाबू पा लेंगे. न हम उनके मुक़ाबले की ताक़त रखते हैं, न भागने की जगह है क्योंकि आगे दरिया है.

मूसा ने फ़रमाया यूं नहीं, (10)
(10) अल्लाह के वादे पर पूरा पूरा भरोसा है.

बेशक मेरा रब मेरे साथ है वह मुझे अब राह देता है{62} तो हमने मूसा को वही (देववाणी) फ़रमाई कि दरिया पर अपना असा मार(11)
(11)  चुनान्चे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दरिया पर लाठी मारी.

तो जभी दरिया फट गया(12)
(12) और उसके बारह हिस्से नमूदार हुए.

तो हर हिस्सा हो गया जैसे बड़ा पहाड़ (13){63}
(13)और उनके बीच ख़ुश्क राहें.

और वहाँ क़रीब लाए हम दूसरों को(14){64}
(14)यानी फ़िरऔन और फ़िरऔनियों को, यहाँ तक कि वो बनी इस्राईल के रास्तों पर चल पड़े जो उनके लिये दरिया में अल्लाह की क़ुदरत से पैदा हुए थे.

और हमने बचा लिया मूसा और उसके सब साथ वालों को(15) {65}
(15)दरिया से सलामत निकाल कर.

फिर दूसरों को डुबो दिया(16){66}
(16) यानी फ़िरऔन और उसकी क़ौम को इस तरह कि जब बनीं इस्राईल कुल के कुल दरिया से पार हो गए और सारे फ़िरऔनी दरिया के अन्दर आ गए तो दरिया अल्लाह के हुक्म से मिल गया और पहले की तरह हो गया. और फ़िरऔन अपनी क़ौम सहित डूब गया.

बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, (17)
(17) अल्लाह की क़ुदरत पर और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का चमत्कार.

और उनमें अक्सर मुसलमान न थे (18){67}
(18) यानी मिस्र निवासियों में सिर्फ़ फ़िरऔन की बीबी आसिया और हिज़क़ील जिनको फ़िरऔन की मूमिन औलाद कहते हैं, वो अपना ईमान छुपाए रहते थे और फ़िरऔन के चचाज़ाद थे और मरयम जिसने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की कब्र का निशान बताया था, जब कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उनके ताबूत को दरिया से निकाला.

और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला(19)
(19) कि उसने काफ़िरों को ग़र्क़ करके बदला लिया.

मेहरबान है(20){68}
(20) ईमान वालों पर जिन्हें ग़र्क़ होने से बचाया.

26 – सूरए शुअरा – पाँचवां रूकू

26 – सूरए शुअरा – पाँचवां रूकू

وَٱتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ إِبْرَٰهِيمَ
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِۦ مَا تَعْبُدُونَ
قَالُوا۟ نَعْبُدُ أَصْنَامًۭا فَنَظَلُّ لَهَا عَٰكِفِينَ
قَالَ هَلْ يَسْمَعُونَكُمْ إِذْ تَدْعُونَ
أَوْ يَنفَعُونَكُمْ أَوْ يَضُرُّونَ
قَالُوا۟ بَلْ وَجَدْنَآ ءَابَآءَنَا كَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ
قَالَ أَفَرَءَيْتُم مَّا كُنتُمْ تَعْبُدُونَ
أَنتُمْ وَءَابَآؤُكُمُ ٱلْأَقْدَمُونَ
فَإِنَّهُمْ عَدُوٌّۭ لِّىٓ إِلَّا رَبَّ ٱلْعَٰلَمِينَ
ٱلَّذِى خَلَقَنِى فَهُوَ يَهْدِينِ
وَٱلَّذِى هُوَ يُطْعِمُنِى وَيَسْقِينِ
وَإِذَا مَرِضْتُ فَهُوَ يَشْفِينِ
وَٱلَّذِى يُمِيتُنِى ثُمَّ يُحْيِينِ
وَٱلَّذِىٓ أَطْمَعُ أَن يَغْفِرَ لِى خَطِيٓـَٔتِى يَوْمَ ٱلدِّينِ
رَبِّ هَبْ لِى حُكْمًۭا وَأَلْحِقْنِى بِٱلصَّٰلِحِينَ
وَٱجْعَل لِّى لِسَانَ صِدْقٍۢ فِى ٱلْءَاخِرِينَ
وَٱجْعَلْنِى مِن وَرَثَةِ جَنَّةِ ٱلنَّعِيمِ
وَٱغْفِرْ لِأَبِىٓ إِنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ
وَلَا تُخْزِنِى يَوْمَ يُبْعَثُونَ
يَوْمَ لَا يَنفَعُ مَالٌۭ وَلَا بَنُونَ
إِلَّا مَنْ أَتَى ٱللَّهَ بِقَلْبٍۢ سَلِيمٍۢ
وَأُزْلِفَتِ ٱلْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ
وَبُرِّزَتِ ٱلْجَحِيمُ لِلْغَاوِينَ
وَقِيلَ لَهُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ تَعْبُدُونَ
مِن دُونِ ٱللَّهِ هَلْ يَنصُرُونَكُمْ أَوْ يَنتَصِرُونَ
فَكُبْكِبُوا۟ فِيهَا هُمْ وَٱلْغَاوُۥنَ
وَجُنُودُ إِبْلِيسَ أَجْمَعُونَ
قَالُوا۟ وَهُمْ فِيهَا يَخْتَصِمُونَ
تَٱللَّهِ إِن كُنَّا لَفِى ضَلَٰلٍۢ مُّبِينٍ
إِذْ نُسَوِّيكُم بِرَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
وَمَآ أَضَلَّنَآ إِلَّا ٱلْمُجْرِمُونَ
فَمَا لَنَا مِن شَٰفِعِينَ
وَلَا صَدِيقٍ حَمِيمٍۢ
فَلَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةًۭ فَنَكُونَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيم

और उनपर पढ़ो ख़बर इब्राहीम की(1){61}
(1) यानी मुश्रिकों पर.

जब उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से फ़रमाया तुम क्या पूजते हो (2){70}
(2) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जानते थे कि वह लोग बुत परस्त है इसके बावुजूद आपका सवाल फ़रमाना इसलिये था ताकि उन्हें दिखा दें कि जिन चीज़ों को वो लोग पूजते हैं वो किसी तरह उसके मुस्तहिक़ नहीं.

बोले हम बुतों को पूजते हैं फिर उनके सामने आसन मारे रहते हैं{71} फ़रमाया क्या वो तुम्हारी सुनते हैं जब तुम पुकारो{72} या तुम्हारा कुछ भला बुरा करते हैं(3){73}
(3) जब यह कुछ नहीं तो उन्हें तुमने मअबूद कैसे ठहराया.

बोले बल्कि हमने अपने बाप दादा को ऐसा ही करते पाया {74} फ़रमाया तो क्या तुम देखते हो ये जिन्हें पूज रहे हो{75} तुम और तुम्हारे अगले बाप दादा (4){76}
(4) कि ये न इल्म रखते हैं न क़ुदरत, न कुछ सुनते हैं न कोई नफ़ा या नुक़सान पहुंचा सकते हैं.

बेशक वो सब मेरे दुश्मन हैं(5)
(5) मैं उनका पूजा जाना गवारा नहीं कर सकता.

मगर पर्वरदिगारे आलम(6){77}
(6) मेरा रब है, मेरे काम बनाने वाला है, मैं उसकी इबादत करता हूँ, वही इबादत के लायक़ है उसके गुण ये हैं.

वो जिसने मुझे पैदा किया(7)
(7) कुछ नहीं से सब कुछ फ़रमाया और अपनी इताअत के लिये बनाया.

तो वह मुझे राह देगा(8){78}
(8) दोस्ती के आदाब की, जैसी कि पहले हिदायत फ़रमा चुका है दीन और दुनिया की नेक बातों की.

और वह जो मुझे खिलाता और पिलाता है(9){79}
(9) और मेरा रोज़ी देने वाला है.

और जब मैं बीमार हूँ तो वही मुझे शिफ़ा देता है(10){80}
(10) मेरी बीमारियों को दूर करता है. इब्ने अता ने कहा, मानी ये है कि जब मैं ख़ल्क़ की दीद से बीमार होता है, और सच्चाई के अवलोकन से मुझे शिफ़ा यानी अच्छाई अता फ़रमाता है.

और वह मुझे वफ़ात (मृत्यु) देगा फिर मुझे ज़िन्दा करेगा(11){81}
(11)  मौत और ज़िन्दगी उसकी क़ुदरत के अन्तर्गत है.

और वह जिसकी मुझे आस लगी है कि मेरी ख़ताएं क़यामत के दिन बख़्शेगा(12){82}
(12) नबी मअसूम है. गुनाह उनसे होते ही नहीं, उनका इस्तिग़फ़ार यानी माफ़ी माँगना अपने रब के समक्ष विनम्रता है, और उम्मत के लिये माफ़ी माँगने की तालीम है, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अल्लाह के इन गुणों को बयान करना अपनी क़ौम पर हुज्जत क़ायम करना है कि मअबूद वही हो सकता है जिसके ये गुण हैं.

ऐ मेरे रब मुझे हुक्म अता कर(13)
(13) हुक्म से या इल्म मुराद है या हिक़मत या नबुव्वत.

और मुझे उनसे मिला दे जो तेरे ख़ास कुर्ब (समीपता) के अधिकारी है (14){83}
(14) यानी नबी अलैहिमुस्सलाम. और आपकी यह दुआ क़ुबूल हुई. चुनान्चे अल्लाह तआला फ़रमाता है “व इन्नहू फ़िल आख़िरते लमिनस सॉलिहीन”.

और मेरी सच्ची नामवरी रख पिछलों में(15) {84}
(15) यानी उन उम्मतों में जो मेरे बाद आएं. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने उनको यह अता फ़रमाया कि तमाम दीनों वाले उनसे महब्बत रखते हैं और उनकी तारीफ़ करते हैं.

और मुझे उनमें कर जो चैन के बाग़ों के वारिस हैं(16){85}
(16) जिन्हें तू जन्नत अता फ़रमाएगा.

और मेरे बाप को बख़्श दे(17)
(17) तौबह और ईमान अता फ़रमाकर, और यह दुआ आपने इस लिये फ़रमाई कि जुदाई के वक़्त आपके वालिद ने आपसे ईमान लाने का वादा किया था. जब ज़ाहिर हो गया कि वह ख़ुदा का दुश्मन है, उसका वादा झूठ था, तो आप उससे बेज़ार हो गए, जैसा कि सूरए बराअत में है “माकानस-तिग़फारो इब्राहीमा लिअबीहे इल्ला अन मौइदतिन वअदहा इय्याहो फ़लम्मा तबय्यना लहू अन्नहू अदुव्वुन लिल्लाहे तबर्रआ मिन्हो”. यानी और इब्राहीम का अपने बाप की बख़्शिश चाहना वह तो न था मगर एक वादे के सबब जो उससे कर चुका था, फिर जब इब्राहीम को खुल गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है, उससे तिनका तोड़ दिया, बेशक इब्राहीम ज़रूर बहुत आहें करने वाला मुतहम्मिल है. (सूरए तौबह, आयत 114).

बेशक वह गुमराह है{86} और मुझे रूस्वा न करना जिस दिन सब उठाए जाएंगे (18){87}
(18) यानी क़यामत के दिन.

जिस दिन न माल काम आएगा न बेटे{88} मगर वह जो अल्लाह के हुज़ूर हाज़िर हुआ सलामत दिल लेकर (19){89}
(19) जो शिर्क, कुफ़्र  दोहरी प्रवृति से पाक हो उसको उसका माल भी नफ़ा देगा जो राहे ख़ुदा में ख़र्च किया हो  और औलाद भी जो सालेह हो, जैसा कि हदीस शरीफ़ में है कि आदमी मरता है, उसके अमल मुनक़ते हो जाते हैं सिवाय तीन के. एक सदक़ए जारिया, दूसरा वह माल जिससे लोग नफ़ा उठाएं, तीसरी नेक औलाद जो उसके लिये दुआ करे.

और क़रीब लाई जाएगी जन्नत पर परहेज़गारों के लिये(20){90}
(20) कि उसको देखेंगे.

और ज़ाहिर की जाएगी दोज़ख़ गुमराहों के लिये{91} और उनसे कहा जाएगा (21)
(21) मलामत और फटकार के तौर पर, उनके कुफ़्र व शिर्क पर.

कहां हैं वो जिन को तुम पूजते थे {92} अल्लाह के सिवा, क्या वो तुम्हारी मदद करेंगे(22)
(22) अल्लाह के अज़ाब से बचाकर.

या बदला लेंगे{93} तो औंधा दिये गए जहन्नम में वह और सब गुमराह (23){94}
(23) यानी बुत और उनके पुजारी सब औंधे करके जहन्नम में डाल दिये जाएंगे.

और इब्लीस के लश्कर सारे(24){95}
(24) यानी उसका अनुकरण  करने वाले जिन्न हों या इन्सान. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि इब्लीस के लश्करों से उसकी सन्तान मुराद है.

कहेंगे और वो उसमें आपस में झगड़ते होंगे{96} ख़ुदा की क़सम बेशक हम खुली गुमराही में थे{97} जब कि तुम्हें सारे जगत के रब के बराबर ठहराते थे{98} और हमें न बहकाया मगर मुजरिमों ने(25){99}
(25) जिन्होंने बुत परस्ती की दावत दी या वो पहले लोग जिनका हमने अनुकरण किया या इब्लीस और उसकी सन्तान ने.

तो अब हमारा कोई सिफ़ारिशी नहीं(26){100}
(26) जैसे कि ईमान वालों के लिये अम्बिया और औलिया और फ़रिश्ते और मूमिनीन शफ़ाअत करने वाले हैं.

और न कोई ग़मख़्वार दोस्त(27) {101}
(27) जो काम आए, यह बात काफ़िर उस वक़्त कहेंगे जब देखेंगे कि अम्बिया और औलिया और फ़रिश्ते और नेक बन्दे ईमानदारों की शफ़ाअत कर रहे हैं और उनकी दोस्ती काम आ रही है. हदीस शरीफ़ में है कि जन्नती कहेगा, मेरे उस दोस्त का क्या हाल है और वह दोस्त गुनाहों की वजह से जहन्नम में होगा. अल्लाह तआला फ़रमाएगा कि इसके दोस्त को निकालों और जन्नत में दाख़िल करो तो जो लोग जहन्नम में बाक़ी रह जाएंगे वो ये कहेंगे कि हमारा कोई सिफ़ारशी नहीं है और न कोई दुख बाँटने वाला दोस्त, हसन रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, ईमानदार दोस्त बढ़ाओ क्योंकि वो क़यामत के दिन शफ़ाअत करेंगे.

तो किसी तरह हमें फिर जाना होता(28)
(28) दुनिया में.
कि हम मुसलमान हो जाते {102} बेशक इसमें निशानी है, और उनमें बहुत ईमान वाले न थे{103} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{104}

26 – सूरए शुअरा – छटा रूकू

26 – सूरए शुअरा – छटा रूकू

كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوحٍ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ نُوحٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
۞ قَالُوٓا۟ أَنُؤْمِنُ لَكَ وَٱتَّبَعَكَ ٱلْأَرْذَلُونَ
قَالَ وَمَا عِلْمِى بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
إِنْ حِسَابُهُمْ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّى ۖ لَوْ تَشْعُرُونَ
وَمَآ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلْمُؤْمِنِينَ
إِنْ أَنَا۠ إِلَّا نَذِيرٌۭ مُّبِينٌۭ
قَالُوا۟ لَئِن لَّمْ تَنتَهِ يَٰنُوحُ لَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلْمَرْجُومِينَ
قَالَ رَبِّ إِنَّ قَوْمِى كَذَّبُونِ
فَٱفْتَحْ بَيْنِى وَبَيْنَهُمْ فَتْحًۭا وَنَجِّنِى وَمَن مَّعِىَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
فَأَنجَيْنَٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ فِى ٱلْفُلْكِ ٱلْمَشْحُونِ
ثُمَّ أَغْرَقْنَا بَعْدُ ٱلْبَاقِينَ
إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

नूह की क़ौम ने पैग़म्बरों कोझुटलाया (1){105}
(1) यानी नूह अलैहिस्सलाम का झुटलाना सारे पैग़म्बरों का झुटलाना है क्योंकि दीन सारे रसूलों का एक है और हर एक नबी लोगों को तमाम नबियों पर ईमान लाने की दावत देते हैं.

जबकि उनसे उनके हम क़ौम नूह ने कहा क्या तुम डरते नहीं(2){106}
(2) अल्लाह तआला से, कि कुफ़्र और गुनाह का त्याग करो.

बेशक मैं तुम्हारे लिए अल्लाह का भेजा हुआ अमीन हूँ (3){107}
(3) उसकी वही और रिसालत की तबलीग़ पर, और आपकी अमानत आपकी क़ौम मानती थी जैसे कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के अमीन और ईमानदार होने पर सारा अरब सहमत था.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो(4){108}
(4) जो मैं तौहीद और ईमान और अल्लाह की फ़रमाँबरदारी के बारे में देता हूं.

और मैं उस पर तुम से कुछ उजरत नहीं मांगता, मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है {109} तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{110} बोले क्या हम तुम पर ईमान ले आएं और तुम्हारे साथ कमीने हुए हैं (5){111}
(5) यह बात उन्होंने घमण्ड से कही. ग़रीबों के पास बैठना उन्हें गवारा न था. इसमें वो अपना अपमान समझते थे. इसलिये ईमान जैसी नेअमत से मेहरूम रहे. कमीने से उनकी मुराद ग़रीब और व्यवसायी लोग थे और उनको ज़लील, तुच्छ और कमीना कहना, यह काफ़िरों का घमण्ड था वरना वास्तव में व्यवसाय और पेशा हैसियत दीन से आदमी को ज़लील नहीं करता. ग़िना अस्ल में दीनी अमीरी है और नसब तक़वा का नसब. मूमिन को ज़लील कहना जाइज़ नहीं, चाहे वह कितना ही मोहताज और नादार हो या वह किसी नसब का हो. (मदारिक).

फ़रमाया मुझे क्या ख़बर उनके काम क्या हैं(6){112}
(6) वे क्या पेशा करते हैं, मुझे इससे क्या मतलब , मैं उन्हें अल्लाह की तरफ़ दावत देता हूँ.

उनका हिसाब तो मेरे रब ही पर है(7)
(7) वही उन्हें जज़ा देगा.

अगर तुम्हें हिस (ज्ञान) हो (8){113}
(8) तो न तुम उन्हें ऐब लगाओ, न पेशों के कारण उनसे मुंह फेरो. फिर क़ौम ने कहा कि आप कमीनों को अपनी मजलिस से निकाल दीजिये ताकि हम आप के पास आएं और आपकी बात मानें. इसके जवाब में फ़रमाया.

और मैं मुसलमानों को दूर करने वाला नहीं(9){114}
(9) यह मेरी शान नहीं कि मैं तुम्हारी ऐसी इच्छाओ को पूरा करूं और तुम्हारे ईमान के लालच में मुसलमानों को अपने पास से निकाल दूं.

मैं तो नहीं मगर साफ़ डर सुनाने वाला(10){115}
(10) खुले प्रमाण के साथ, जिस से सच्चाई और बातिल में फ़र्क़ हो जाए तो जो ईमान लाए वही मेरे क़रीब है और जो ईमान न लाए, वही दूर.

बोले ऐ नूह अगर तुम बाज़ न आए (11)
(11)  दावत और डराने से.

तो ज़रूर संगसार (पथराव) किये जाओगे (12){116}
(12)  हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में.

अर्ज़ की ऐ मेरे रब मेरी क़ौम ने मुझे झुटलाया (13){117}
(13) तेरी वही और रिसालत में. मुराद आपकी यह थी कि मैं जो उन के हक़ में बददुआ करता हूँ उसका कारण यह नहीं है कि उन्होंने मुझे संगसार करने की धमकी दी. न यह कि उन्होंने मेरे मानने वालों को ज़लील समझा. बल्कि मेरी दुआ का कारण यह है कि उन्हों ने तेरे कलाम को झुटलाया और तेरी रिसालत को क़ुबूल करने से इन्कार किया.

तो मुझ में और उनमें पूरा फ़ैसला करदे और मुझे मेरे साथ वाले मुसलमानों को निजात दे(14){118}
(14) उन लोगों की शामतें आमाल से.

तो हमने बचा लिया उसे और उसके साथ वालों को भरी हुई किश्ती में(15) {119}
(15) जो आदमियों, पक्षियों और जानवरों से भरी हुई थी.

फिर उसके बाद(16)
(16)यानी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और उनके साथियों को निजात देने के बाद.

हमने बाक़ियों को डुबो दिया {120} बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, और उनमें अकसर मुसलमान न थे{121} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{122}

26 – सूरए शुअरा – सातवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – सातवाँ रूकू

كَذَّبَتْ عَادٌ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ هُودٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَتَبْنُونَ بِكُلِّ رِيعٍ ءَايَةًۭ تَعْبَثُونَ
وَتَتَّخِذُونَ مَصَانِعَ لَعَلَّكُمْ تَخْلُدُونَ
وَإِذَا بَطَشْتُم بَطَشْتُمْ جَبَّارِينَ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَٱتَّقُوا۟ ٱلَّذِىٓ أَمَدَّكُم بِمَا تَعْلَمُونَ
أَمَدَّكُم بِأَنْعَٰمٍۢ وَبَنِينَ
وَجَنَّٰتٍۢ وَعُيُونٍ
إِنِّىٓ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍۢ
قَالُوا۟ سَوَآءٌ عَلَيْنَآ أَوَعَظْتَ أَمْ لَمْ تَكُن مِّنَ ٱلْوَٰعِظِينَ
إِنْ هَٰذَآ إِلَّا خُلُقُ ٱلْأَوَّلِينَ
وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ
فَكَذَّبُوهُ فَأَهْلَكْنَٰهُمْ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

आद ने रसूलों को झुटलाया(1){123}
(1) आद एक क़बीला है और अस्ल में यह एक शख़्स का नाम है जिसकी सन्तान से यह क़बीला है.

जबकि उनसे उनके हक़ क़ौम हूद ने फ़रमाया क्या तुम डरते नहीं{124} बेशक मैं तुम्हारे लिये अमानत दार रसूल हूँ {125} तो अल्लाह से डरो(2)
(2) और मेरी तकज़ीब न करो यानी मूझे न झुटलाओ.

और मेरा हुक्म मानो{126} और मैं तुम से इस पर कुछ उजरत नहीं मांगता, मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है{127} क्या हर बलन्दी पर एक निशान बनाते हो राहगीरों से हंसने को (3) {128}
(3) कि उस पर चढ़कर गुज़रने वालों से ठठ्ठा करो और यह उस क़ौम की आदत थी. उन्होंने रास्ते पर ऊंची बुनियादें बना ली थीं वहाँ बैठकर राहगीरों को परेशान करते और खेल करते.

और मज़बूत महल चुनते हो इस उम्मीद पर कि तुम हमेशा रहोगे(4){129}
(4) और कभी न मरोगे.

और जब किसी पर गिरफ़्त करते हो तो बड़ी बेदर्दी से गिरफ़्त करते हो (5){130}
(5) तलवार से क़त्ल करके, कोड़े मारकर, बहुत बेरहमी से.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{131} और उससे डरो जिसने तुम्हारी मदद की उन चीज़ों से कि तुम्हें मालूम हैं(6){132}
(6) यानी वो नेअमतें जिन्हें तुम जानते हो, आगे उनका बयान फ़रमाया जाता है.

तुम्हारी मदद की चौपायों और बेटों {133} और बाग़ों और चश्मों (झरनों) से {134} बेशक मुझे तुम पर डर है एक बड़े दिन के अज़ाब का(7){135}
(7) अगर तुम मेरी नाफ़रमानी करो. इसका जवाब उनकी तरफ़ से यह हुआ कि…

बोले हमें बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वालों में न हो(8){136}
(8) हम किसी तरह तुम्हारी बात न मानेंगे और तुम्हारी दावत क़ुबूल न करेंगे.

यह तो नहीं मगर वही अगलों की रीति(9){137}
(9) यानी जिन चीज़ों का आपने ख़ौफ़ दिलाया. यह पहलों का दस्तूर है, वो भी ऐसी ही बातें कहा करते थे. इससे उनकी मुराद यह थी कि हम उन बातों का ऐतिबार नहीं करते, उन्हें झूट जानते हैं. या आयत के मानी ये हैं कि मौत और ज़िन्दगी और ईमारतें बनाना पहलों का तरीक़ा है.

और हमें अज़ाब होना नहीं(10){138}
(10) दुनिया में न मरने के बाद उठना न आख़िरत में हिसाब.

तो उन्होंने उसे झुटलाया (11)
(11) यानी हूद अलैहिस्सलाम को.

तो हमने उन्हें हलाक किया(12)
(12) हवा के अज़ाब से.

बेशक इसमें ज़रूर निशानी है और उनमें बहुत मुसलमान न थे{139} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{140}

26 – सूरए शुअरा – आठवाँ रूकू

26 – सूरए शुअरा – आठवाँ रूकू

كَذَّبَتْ ثَمُودُ ٱلْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لَهُمْ أَخُوهُمْ صَٰلِحٌ أَلَا تَتَّقُونَ
إِنِّى لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌۭ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَمَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَىٰ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَتُتْرَكُونَ فِى مَا هَٰهُنَآ ءَامِنِينَ
فِى جَنَّٰتٍۢ وَعُيُونٍۢ
وَزُرُوعٍۢ وَنَخْلٍۢ طَلْعُهَا هَضِيمٌۭ
وَتَنْحِتُونَ مِنَ ٱلْجِبَالِ بُيُوتًۭا فَٰرِهِينَ
فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
وَلَا تُطِيعُوٓا۟ أَمْرَ ٱلْمُسْرِفِينَ
ٱلَّذِينَ يُفْسِدُونَ فِى ٱلْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ
قَالُوٓا۟ إِنَّمَآ أَنتَ مِنَ ٱلْمُسَحَّرِينَ
مَآ أَنتَ إِلَّا بَشَرٌۭ مِّثْلُنَا فَأْتِ بِـَٔايَةٍ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
قَالَ هَٰذِهِۦ نَاقَةٌۭ لَّهَا شِرْبٌۭ وَلَكُمْ شِرْبُ يَوْمٍۢ مَّعْلُومٍۢ
وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوٓءٍۢ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَظِيمٍۢ
فَعَقَرُوهَا فَأَصْبَحُوا۟ نَٰدِمِينَ
فَأَخَذَهُمُ ٱلْعَذَابُ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَءَايَةًۭ ۖ وَمَا كَانَ أَكْثَرُهُم مُّؤْمِنِينَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ

समूद ने रसूलों को झुटलाया {141} जब कि उनसे उनके हमक़ौम सालेह ने फ़रमाया क्या डरते नहीं {142} बेशक मैं तुम्हारे लिये अल्लाह का अमानतदार रसूल हूँ {143} तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{144} और मैं तुमसे कुछ इसपर उजरत नहीं मांगता मेरा अज्र तो उसी पर है जो सारे जगत का रब है{145} क्या तुम यहाँ की( 1)
(1) यानी दुनिया की.

नेअमतों में चैन से छोड़ दिये जाओगे (2){146}
(2) कि ये नेअमतें कभी ज़ायल न हों और कभी अज़ाब न आए, कभी मौत न आए. आगे उन नेअमतों का बयान है.

बाग़ों और झरनों {147} और खेतों और ख़ज़ूरों में जिनका शग़ूफ़ा (कली) नर्म नाज़ुक{148} और पहाड़ों में से घर तराशते हो उस्तादी से(3){149}
(3) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि “उस्तादी से” का मतलब घमण्ड है. मानी ये हुए कि कारीगरी पर घमण्ड करते, इतराते.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो{150} और हद से बढ़ने वालों के कहने पर न चलो(4){151}
(4) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हद से बढ़ने वालों से मुराद मुश्रिक लोग हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा – वो नौ व्यक्ति हें जिन्होंने ऊंटनी को क़त्ल किया.

वो जो ज़मीन में फ़साद फैलाते हैं(5)
(5) कुफ़्र और ज़ुल्म और गुनाहों के साथ.

और बनाव नहीं करते(6){152}
(6) ईमान लाकर और न्याय स्थापित करके और अल्लाह के फ़रमाँबरदार होकर. मानी ये है कि उसका फ़साद ठोस है जिसमें किसी तरह की नेकी का शायबा भी नहीं और कुछ फ़साद करने वाले ऐसे भी होते हैं कि कुछ फ़साद भी करते हैं, कुछ नेकी भी उनमें होती है. मगर ये ऐसे नहीं हैं.

बोले तुम पर तो जादू हुआ है(7){153}
(7) यानी बार बार बहुतात से जादू हुआ है. जिसकी वजह से अक़्ल ठिकाने पर नहीं रही. (मआज़ल्लाह)

तुम तो हमीं जैसे आदमी हो, तो कोई निशानी लाओ (8)
(8)  अपनी सच्चाई की.

अगर सच्चे हो(9){154}
(9) रिसालत के दावे में.

फ़रमाया ये ऊंटनी है एक दिन इसके पीने की बारी (10)
(10) इसमें उससे मज़ाहिमत मत करो, यह एक ऊंटनी थी जो उनके चमत्कार तलब करने पर उनकी ख़्वाहिश के अनुसार हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की दुआ से पत्थर से निकली थी. उसका सीना साठ गज़ का था. जब उसके पीने का दिन होता तो वह वहाँ का सारा पानी पी जाती और जब लोगों के पीने का दिन होता तो उस दिन न पीती. (मदारिक)

और एक निश्चित दिन तुम्हारी बारी{155} और इसे बुराई के साथ न छुओ (11)
(11) न उसको मारो और न उसकी कूंचें काटो.

कि तुम्हें बड़े दिन का अज़ाब आ लेगा(12){156}
(12) अज़ाब उतरने की वजह से उस दिन को बड़ा फ़रमाया गया ताकि मालूम हो कि वह अज़ाब इस क़दर बड़ा और सख़्त था कि जिस दिन उतरा उसको उसकी वजह से बड़ा फ़रमाया गया.

इस पर उन्होंने उसकी कूंचें काट दी(13)
(13) कूंचें काटने वाले व्यक्ति का नाम क़िदार था और वो लोग उसके करतूत से राज़ी थे इसलिये कूंचें काटने की निस्बत उन सब की तरफ़ की गई.

फिर सुब्ह को पछताते रह गए(14){157}
(14) कूंचें काटने पर अज़ाब उतरने के डर से न कि गुनाहों पर तौबह करने हेतु शर्मिन्दा हुए हों, या यह बात कि अज़ाब के निशान देखकर शर्मिन्दा हुए. ऐसे वक़्त की शर्मिन्दगी लाभदायक नहीं.

तो उन्हें अज़ाब ने आ लिया, (15)
(15)जिसकी उन्हें ख़बर दी गई थी, तो हलाक हो गए.
बेशक इसमें ज़रूर निशानी है, और उनमें बहुत मुसलमान न थे{158} और बेशक तुम्हारा रब ही इज़्ज़त वाला मेहरबान है{159}