8- सूरए अनफ़ाल
सूरए अनफ़ाल मदीने में उतरी, इसमें 75 आयतें और दस रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
पहला रूकू
ऐ मेहबूब! तुम से ग़नीमतों (युद्ध के बाद हाथ आने वाला माल) को पूछते हैं(2)
तुम फ़रमाओ ग़नीमतों के मालिक अल्लाह और रसूल हैं (3)
तो अल्लाह से डरो(4)
और आपस में मेल रखो और अल्लाह और रसूल का हुक्म मानो अगर ईमान रखते हो{1} ईमान वाले वही हैं कि जब अल्लाह याद किया जाए (5)
उनके दिल डर जाएं और जब उनपर उसकी आयतें पढ़ी जाएं उनका ईमान तरक़्क़ी पाए और अपने रब ही पर भरोसा करें (6){2}
वो जो नमाज़ क़ायम रखें और हमारे दिये से हमारी राह में ख़र्च करें {3} यही सच्चे मुसलमान हैं उनके लिये दर्ज़े हैं उनके रब के पास (7)
और बख़्शिश है और इज़्ज़त की रोज़ी (8){4}
जिस तरह ऐ मेहबूब तुम्हें तुम्हारे रब ने तुम्हारे घर से हक़ के साथ बरामद किया (9)
और बेशक मुसलमानों का एक गिरोह उसपर नाख़ुश था (10){5}
सच्ची बात में तुम से झगड़ते थे(11)
बाद इसके कि ज़ाहिर हो चुकी (12)
मानो वो आँखों देखी मौत की तरफ़ हाँके जाते हैं (13){6}
और याद करो जब अल्लाह ने तुम्हें वादा दिया था कि इन दोनों गिरोहों (14)
में एक तुम्हारे लिये है और तुम यह चाहते थे कि तुम्हें वह मिले जिसमें काँटें का खटका नहीं और कोई नुक़सान न हो (15)
अल्लाह यह चाहता था कि अपने कलाम से सच को सच कर दिखाए (16)
और काफ़िरों की जड़ काट दे (17){7}
कि सच को सच करे और झूट को झूट (18)
पड़े बुरा मानें मुजरिम{8} जब तुम अपने रब से फ़रियाद करते थे (19)
तो उसने तुम्हारी सुन ली कि मैं तुम्हें मदद देने वाला हूँ हज़ारों फ़रिश्तों की क़तार से (20){9}
और यह तो अल्लाह ने किया मगर तुम्हारी ख़ुशी को और इसलिये कि तुम्हारे दिल चैन पाएं और मदद नहीं मगर अल्लाह की तरफ़ से (21)
बेशक अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है {10}
तफ़सीर सूरए अनफ़ाल – पहला रूकू
(1) यह सूरत मदनी है, सिवाय सात आयतों के, जो मक्कए मुकर्रमा में उतरीं और “इज़ यमकुरो बिकल्लज़ीना” से शुरू होती हैं. इसमें नौ रूकू, पछहत्तर आयतें, एक हज़ार पछहतर कलिमे और पाँच हज़ार अस्सी अक्षर हैं.
(2) हज़रत उबादा बिन सामित रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है उन्होंने फ़रमाया कि यह आयत हम बद्र वालों के हक़ में उतरी. जब शत्रु के माल के बारे में हमारे बीच मतभेद हुआ और झगड़े की नौबत आ गई तो अल्लाह तआला ने मामला हमारे हाथ से निकाल कर अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सुपुर्द कर दिया. आपने वह माल बराबर तक़सीम कर दिया.
(3) जैसे चाहें तक़सीम फ़रमाएं.
(4) और आपस में इख़्तिलाफ़ न करो.
(5) तो उसकी अज़मत व जलाल से.
(6) और अपने सारे काम उसके सुपुर्द कर दें.
(7) उनके कर्मों के बराबर, क्योंकि ईमान वालों के एहवाल इन विशेषताओं में अलग अलग हैं इसलिये उनके दर्जें भी अलग अलग हैं.
(8) जो हमेशा इज़्ज़त और सम्मान के साथ बिना मेहनत और मशक्क़त अता की जाए.
(9) यानी मदीनए तैय्यिबह से बद्र की तरफ.
(10) क्योंकि वो देख रहे थे कि उनकी संख्या कम है, हथियार थोड़े हैं, दुश्मन की तादाद भी ज़्यादा है, और वह हथियार वग़ैरह का बड़ा सामान रखता है. मुख़्तसर वाक़िआ यह है कि अबू सुफ़ियान के शाम प्रदेश से एक क़ाफिले के साथ आने की ख़बर पाकर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपने सहाबा के साथ उनके मुक़ाबले के लिये रवाना हुए. मक्कए मुकर्रमा से अबू जहल क़ुरैश का एक भारी लश्कर लेकर क़ाफ़िले की सहायता के लिये रवाना हुआ. अबू सुफ़ियान तो रास्ते से कतराकर अपने क़ाफ़िले के साथ समन्दर तट की राह चल पड़े. अबू जहल से उसके साथियों ने कहा कि क़ाफ़िला तो बच गया अब मक्का वापस चलें. तो उसने इन्कार कर दिया और वह सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से लड़ने के इरादे से बद्र की तरफ़ चल पड़ा. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपने सहाबा से सलाह मशवरा किया और फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने मुझसे वादा फ़रमाया है कि वह काफ़िरों के दोनों गिरोहों में से एक पर मुसलमानों को विजयी करेगा, चाहे क़ाफ़िला हो या क़ुरैश का लश्कर. सहाबा ने इससे सहमति की, मगर कुछ को यह बहाना हुआ कि हम इस तैयारी से नहीं चले थे और न हमारी संख्या इतनी है न हमारे पास काफ़ी हथियार हैं. यह रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को बुरा लगा और हुज़ूर ने फ़रमाया कि क़ाफ़िला तो साहिल की तरफ़ निकल गया और अबू जहल सामने से आ रहा है. इस पर उन लोगों ने फिर अर्ज़ किया या रसूलल्लाह, क़ाफिले का ही पीछा कीजिये और दुश्मन के लश्कर को छोड़ दीजिये. यह बात हुज़ूर के मिज़ाज को नागवार हुई तो हज़रत सिद्दीके अकबर और हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हुमा ने खड़े होकर अपनी महब्बत, फ़रमाँबरदारी और क़ुरबानी की ख़्वाहिश का इज़हार किया और बड़ी क़ुव्वत और मज़बूती के साथ अर्ज़ किया कि वो किसी तरह हुज़ूर की मुबारक मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सुस्ती करने वाले नहीं हैं. फिर और सहाबा ने भी अर्ज़ किया कि अल्लाह ने हुज़ूर को जो हुक्म दिया उसके मुताबिक तशरीफ़ ले चलें, हम साथ हैं, कभी पीछे न हटेंगे. हम आप पर ईमान लाए, हमने आपकी तस्दीक़ की, हमने आपके साथ चलने के एहद किये हैं. हमें आपके अनुकरण में समन्दर के अन्दर कूद जाने से भी कोई हिचकिचाहट नहीं है. हुज़ूर ने फ़रमाया, चलो, अल्लाह की बरकत पर भरोसा करो, उसने मुझे वादा दिया है. मैं तुम्हें बशारत देता हूँ. मुझे दुश्मनों के गिरने की जगह नज़र आ रही है. और हुज़ूर ने काफ़िरों के मरने और गिरने की जगहें नाम बनाम बतादीं और एक एक की जगह पर निशानात लगा दिये और यह चमत्कार देखा गया कि उनमें से जो मर कर गिरा उसी निशान पर गिरा, उससे इधर उधर न हुआ.
(11) और कहते थे कि हमें क़ुरैश के लश्कर का हाल ही मालूम न था कि हम उनके मुक़ाबले की तैयारी करके चलते.
(12) यह बात कि हज़रत सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम जो कुछ करते हैं अल्लाह के हुक्म से करते हैं और आपने ऐलान फ़रमा दिया है कि मुसलमानों को ग़ैबी मदद पहुंचेगी.
(13) यानी क़ुरैश से मुक़ाबला उन्हें ऐसा भयानक मालूम होता है.
(14) यानी अबू सुफ़ियान के क़ाफ़िले और अबूजहल के लश्कर.
(15) यानी अबू सुफ़ियान का क़ाफ़िला.
(16) सच्चे दीन को ग़लबा दे, उसको ऊंचा और बलन्द करे.
(17) और उन्हें इस तरह हलाक करे कि उनमें से कोई बाक़ी न बचे.
(18) यानी इस्लाम को विजय और मज़बूती अता फ़रमाए और कुफ़्र को मिटाए.
(19) मुस्लिम शरीफ़ की हदीस है, बद्र के रोज़ रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुश्रिकों को देखा कि हज़ार हैं और आपके साथी तीन सौ दस से कुछ ज़्यादा, तो हुज़ूर क़िबले की तरफ़ मुतवज्जह हुए और अपने मुबारक हाथ फैला कर अपने रब से यह दुआ करने लगे, यारब, जो तूने मुझसे वादा फ़रमाया है, पूरा कर. यारब, जो तूने मुझसे वादा फ़रमाया, इनायत फ़रमा, यारब, अगर तू एहले इस्लाम की इस जमाअत को हलाक कर देगा, तो ज़मीन में तेरी पूजा नहीं होगी. इसी तरह हुज़ूर दुआ करते रहे यहाँ तक कि आपके कन्धे से चादर शरीफ़ उतर गई तो हज़रत अबूबक्र हाज़िर हुए और चादर मुबारक हुज़ूर के कन्धे पर डाली और अर्ज़ किया, या नबीयल्लाह, आपकी दुआ अपने रब के साथ काफ़ी हो गई. वह बहुत जल्द अपना वादा पूरा फ़रमाएगा. इस पर यह आयत उतरी.
(20) चुनांचे पहले हज़ार फ़रिश्ते आए, फिर तीन हज़ार, फिर पांच हजार. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मुसलमान उस रोज़ काफ़िरों का पीछा करते थे और काफ़िर मुसलमान के आगे आगे भागता जाता था, अचानक ऊपर से कोड़े की आवाज़ आती थी और सवार का यह कलिमा सुना जाता था “इक़दम ख़ैरोम” यानी आगे बढ एक ख़ैरोम (ख़ैरोम हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के घोड़े का नाम है) और नज़र आता था कि काफ़िर गिर कर मर गया और उसकी नाक तलवार से उड़ा दी गई और चेहरा ज़ख़्मी हो गया. सहाबा ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अपने यह आँखों देखे मंज़र बयान किये तो हुज़ूर ने फ़रमाया कि यह तीसरे आसमान की मदद है. अबू जहल ने हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो से कहा कि कहाँ से मार आती थी, मारने वाला तो हमको नज़र नहीं आता था. आपने फ़रमाया फ़रिश्तों की तरफ़ से, तो कहने लगा फिर वही तो ग़ालिब हुए, तुम तो ग़ालिब नहीं हुए.
(21) तो बन्दे को चाहिये कि उसी पर भरोसा करे और अपने ज़ोर और कुव्वत और सामान व संख्या पर नाज़ न करे.
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