24 सूरए नूर

24 सूरए  नूर

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

سُورَةٌ أَنزَلْنَٰهَا وَفَرَضْنَٰهَا وَأَنزَلْنَا فِيهَآ ءَايَٰتٍۭ بَيِّنَٰتٍۢ لَّعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
ٱلزَّانِيَةُ وَٱلزَّانِى فَٱجْلِدُوا۟ كُلَّ وَٰحِدٍۢ مِّنْهُمَا مِا۟ئَةَ جَلْدَةٍۢ ۖ وَلَا تَأْخُذْكُم بِهِمَا رَأْفَةٌۭ فِى دِينِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ ۖ وَلْيَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَآئِفَةٌۭ مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
ٱلزَّانِى لَا يَنكِحُ إِلَّا زَانِيَةً أَوْ مُشْرِكَةًۭ وَٱلزَّانِيَةُ لَا يَنكِحُهَآ إِلَّا زَانٍ أَوْ مُشْرِكٌۭ ۚ وَحُرِّمَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ
وَٱلَّذِينَ يَرْمُونَ ٱلْمُحْصَنَٰتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا۟ بِأَرْبَعَةِ شُهَدَآءَ فَٱجْلِدُوهُمْ ثَمَٰنِينَ جَلْدَةًۭ وَلَا تَقْبَلُوا۟ لَهُمْ شَهَٰدَةً أَبَدًۭا ۚ وَأُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَٰسِقُونَ
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُوا۟ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
وَٱلَّذِينَ يَرْمُونَ أَزْوَٰجَهُمْ وَلَمْ يَكُن لَّهُمْ شُهَدَآءُ إِلَّآ أَنفُسُهُمْ فَشَهَٰدَةُ أَحَدِهِمْ أَرْبَعُ شَهَٰدَٰتٍۭ بِٱللَّهِ ۙ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
وَٱلْخَٰمِسَةُ أَنَّ لَعْنَتَ ٱللَّهِ عَلَيْهِ إِن كَانَ مِنَ ٱلْكَٰذِبِينَ
وَيَدْرَؤُا۟ عَنْهَا ٱلْعَذَابَ أَن تَشْهَدَ أَرْبَعَ شَهَٰدَٰتٍۭ بِٱللَّهِ ۙ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلْكَٰذِبِينَ
وَٱلْخَٰمِسَةَ أَنَّ غَضَبَ ٱللَّهِ عَلَيْهَآ إِن كَانَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُۥ وَأَنَّ ٱللَّهَ تَوَّابٌ حَكِيمٌ

 

सूरए नूर मदीना में उतरी, इसमें 64 आयतें, 9 रूकू हैं.

पहला रूकू

अल्लाह के नाम शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए नूर मदीने में उतरी, इसमें नौ रूकू, चौंसठ आयतें हैं.

यह एक सूरत है कि हमने उतारी और हमने इसके एहकाम फ़र्ज़ किये(2)
(2) और उनपर अमल करना बन्दों पर अनिवार्य किया.

और हमने इसमें रौशन आयतें नाज़िल फ़रमाई कि तुम ध्यान करो{1} जो औरत बदकार हो और जो मर्द तो उनमें हर एक को सौ कोड़े लगाओ (3)
(3) यह सम्बोधन शासकों को है कि जिस मर्द या औरत से ज़िना सरज़द हो उसकी सज़ा यह है कि उसके सौ कोड़े लगाओ. शादी शुदा आदमी अगर ज़िना करे तो उसे रजम यानी संगसार किया जाए जैसा कि हदीस शरीफ़ में आया है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के आदेश पर माइज़ रदियल्लाहो अन्हो को संगसार किया गया. अगर ज़िना करने वाला आज़ाद न हो, या मुसलमान न हो, या आक़िल बालिग़ न हो, या उसने कभी अपनी बीबी के साथ संभोग न किया हो, या जिसके साथ किया हो उसके साथ ग़लत तरीक़े से निकाह हुआ हो, तो इन सब के लिये कोड़े लगाने का हुक्म है. मर्द को कोड़े लगाने के वक़्त खड़ा किया जाए और उसके सारे कपड़े उतार दिये जाएं, सिवाय तहबंद के और उसके सारे शरीर पर कोड़े लगाए जाएं, सर और चेहरा और लिंग की जगह छोड़ कर. कोड़े इस तरह लगाए जाएं कि उनकी मार गोश्त तक न पहुंचे और कोड़ा औसत दर्ज़े का हो. औरत को कोड़े लगाने के समय खड़ा न किया जाए, न उसके कपड़े उतारे जाएं. अलबत्ता अगर पोस्तीन या रूईदार कपड़े पहने हो तो उतार दिये जाएं. यह हुक्म आज़ाद मर्द और औरत के लिये है. दासी और ग़ुलाम की सज़ा इसकी आधी यानी पचास कोड़े हैं जैसा कि सूरए निसा में बयान हो चुका. ज़िना का सुबूत या तो चार मर्दों की गवाहियों से होता है या ज़िना करने वाले के चार बार इक़रार कर लेने से. फिर भी इमाम या काज़ी बार बार दर्याफ़्त करेगा और पूछेगा कि ज़िना से क्या मुराद है, कहाँ किया किससे किया, कब किया. अगर इन सबको बयान कर दिया तो ज़िना साबित होगा, वरना नहीं. और गवाहों को साफ़ साफ़ अपना देखना बयान करना होगा, इसके बिना सुबूत न होगा. लिवातत याने लौंडेबाज़ी ज़िना में दाख़िल नहीं है इसलिये इस काम से हद वाजिब नहीं होती लेकिन गुनाह वाजिब होता है और इस गुनाह में सहाबा के चन्द क़ौल आए है: आग में जला देना, डुबो देना, ऊंचाई से गिराना और ऊपर से पत्थर बरसाना, बुरा काम करने वाले और जिसके साथ किया जाए, दोनों के लिये एक ही हुक्म है.(तफ़सीरे अहमदी)

और तुम्हें उनपर तरस न आए अल्लाह के दीन में(4)
(4) यानी सज़ाओ को पूरा करने में कमी न करो और दीन में मज़बूत और डटे रहो.

अगर तुम ईमान लाते हो अल्लाह और पिछले दिन पर, और चाहिये कि उनकी सज़ा के वक़्त मुसलमानों का एक गिरोह हाज़िर हो(5){2}
(5) ताकि सबक़ हासिल हो.

बदकार मर्द निकाह न करे मगर बदकार औरत या शिर्क वाली से और बदकार औरत से निकाह न करे मगर बदकार मर्द या मुश्रिक(6)
(6) क्योंकि बुरे की रूचि बुरे ही की तरफ़ होती है. नेकों को बुरे की तरफ़ रूचि नहीं होती. मुहाजिरों में कुछ बिल्कुल ग़रीब थे, न उनके पास कुछ माल था, न उनका कोई अज़ीज़ क़रीब था, और बदकार मुश्रिक औरतें दौलतमन्द और मालदार थीं. यह देखकर किसी मुहाजिर को ख़याल आया कि अगर उनसे निकाह कर लिया जाए तो उनकी दौलत काम में आएगी. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से उन्हों ने इसकी इज़ाज़त चाही इसपर यह आयत उतरी और उन्हें इससे रोक दिया गया.

और यह काम (7)
(7) यानी बदकारों से निकाह करना.

ईमान वालों पर हराम है(8){3}
(8) शुरू इस्लाम में ज़िना करने वाली औरत से निकाह हराम था. बाद में आयत “वनकिहुल अयामा मिन्कुम” से यह हुक्म मन्सूख़ यानी स्थगित हो गया.

और जो पारसा औरतों को ऐब (लांछन) लगाएं, फिर चार गवाह मुआयना के न लाएं तो उन्हें अस्सी कोड़े लगाओ और उनकी कोई गवाही कभी न मानो (9)
(9) इस आयत में कुछ बातें साबित हुई (1) जो व्यक्ति किसी नेक मर्द या औरत पर ज़िना का आरोप लगाए. उसपर चार आँखों देखे गवाह पेश न कर सके तो उसपर हद वाजिब हो जाती हैं यानी अस्सी कोड़े. आयत में शब्द “मोहसिनात” यानी पारसा नेक औरतों विशेष घटना के कारण आया था या इसलिये कि औरतों को आरोप लगाना आम हो गया हैं. (2) और ऐसे लोग जो ज़िना के आरोप में सज़ा पाएं और उनपर हद जारी हो चुकी हो, गवाही देने के योग्य नहीं रह जाते, कभी उनकी गवाही क़ुबूल नहीं की जाती, पारसा से मुराद वो हैं जो मुसलमान होशमन्द यानी आक़िल बालिग, आज़ाद और ज़िना से पाक हों. (3) ज़िना की शहादत के लिये कम से कम चार गवाह होने चाहिये. (4) जिस पर आरोप लगाया गया हो, अगर वह दावा न करें तो काज़ी पर हद क़ायम करना लाज़िम नहीं. (5) दावा करने का हक़ उसी को है जिसपर आरोप लगाया गया हो, अगर वह ज़िन्दा हो और अगर वह मर गया हो तो उसके बेटे पोते को भी है.(6) ग़ुलाम अपने मालिक पर और बेटा अपने बाप पर क़ज़फ़ यानी अपनी माँ पर ज़िना का आरोप लगाने का दावा नहीं कर सकता. (7) क़ज़फ़ के अलफ़ाज़ ये हैं कि वह खुल्लुमखुल्ला किसी को ज़ानी कहे या यह कहे कि तू अपने बाप से नहीं हैं या उसके बाप का नाम लेकर कहे कि तू उसका बेटा नहीं है या उसको ज़िना करने वाली औरत का बेटा कहकर पुकारे और हो उसकी माँ पारसा और नेक बीबी, तो ऐसा व्यक्ति क़ाज़िफ़ हो जाएगा और उसपर तोहमत यानी आरोप की हद आएगी. (8) अगर ग़ैर मोहसिन को ज़िना का आरोप लगाया, जैसे किसी ग़ुलाम को या काफ़िर को या ऐसे व्यक्ति को जिसका कभी ज़िना करना साबित हो तो उस पर क़ज़फ़ की हद क़ायम होगी बल्कि उसपर तअज़ीर (सज़ा) वाजिब होगी और यह तअज़ीर (सज़ा) शरई हाकिम के हुक्म के मुताबिक़ तीन से उन्तालीस तक कोड़े लगाना है. इसी तरह अगर किसी शख़्स ने ज़िना के सिवा और किसी बुरे काम की तोहमत लगाई और पारसा और नेक मुसलमान को ऐ फ़ासिक़ ऐ काफ़िर, ऐ ख़ब्बीस, ऐ चोर, ऐ बदकार, ऐ मुख़न्नस, ऐ बेईमान, ऐ लौंडेबाज़, ऐ ज़िन्दीक़, ऐ दय्यू, ऐ शराबी, ऐ सूदख़ोर, ऐ बदकार औरत के बच्चे, ऐ हरामज़ादे, इस क़िस्म के अल्फ़ाज़ कहे तो भी उसपर तअज़ीर वाजिब होगी. (9) इमाम यानी शरई हाकिम को और उस शख़्स को, जिसे तोहमत लगाई गई हो, सुबूत से पहले माफ़ करने का हक़ है. (10) अगर तोहमत लगाने वाला आज़ाद न हो बल्कि ग़ुलाम हो तो उसके चालीस कोड़े लगाए जाएंगे. (11) तोहमत लगाने के जुर्म में जिसको हद लगाई हो उसकी गवाही किसी मामले में भरोसे की नहीं चाहे वह तौबह करे. लेकिन रमज़ान का चांद देखने के बाद में तौबह करने और उसके आदिल होने की सूरत में उसका क़ौल क़ुबूल कर लिया जाएगा क्योंकि यह वास्तव में शहादत नहीं है इसीलीये इसमें शहादत शब्द और शहादत का निसाब भी शर्त नहीं.

और वही फ़सिक़ हैं{4} मगर जो इसके बाद तौबह कर लें और संवर जाएं(10)
(10) अपने अहवाल को दुरूस्त कर लें.

तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है{5} और वो जो अपनी औरतों को ऐब लगाएं (11)
(11) ज़िना का.

और उनके पास अपने बयान के सिवा गवाह न हो तो ऐसे किसी की गवाही यह है कि चार बार गवाही दे अल्लाह के नाम से कि वह सच्चा है(12){6}
(12) औरत पर ज़िना का आरोप लगाने में.

और पाँचवें यह कि अल्लाह कि लअनत हो उसपर अगर झूटा हो{7} और औरत से यूं सज़ा टल जाएगी कि वह अल्लाह का नाम लेकर चार बार गवाही दे कि मर्द झूटा है(13){8}
(13) उस पर ज़िना की तोहमत लगाने में.

और पाँचवीं यूं कि औरत पर ग़ज़ब अल्लाह का अगर मर्द सच्चा हो (14){9}
(14) उसको लिआन कहते हैं. जब मर्द अपनी बीबी पर ज़िना का आरोप लगाए और अगर मर्द व औरत दोनों शहादत यानी गवाही के योग्य हों और औरत उसपर दावा करे तो मर्द पर लिआन वाजिब हो जाता है. अगर वह लिआन से इनकार करदे तो उसको उस वक़्त तक क़ैद रखा जाएगा जब तक वह लिआन करे या अपने झुट का इकरारी हो. अगर झुट का इक़रार करे तो उसको हदे क़ज़फ़ लगाई जाएगी जिसका बयान ऊपर हो चुका है. और अगर लिआन करना चाहे तो उसको चार बार अल्लाह की क़सम खाकर कहना होगा कि वह उस औरत पर ज़िना का आरोप लगाने में सच्चा है और पांचवीं बार यह कहना होगा कि अल्लाह की लअनत मुझपर अगर में यह आरोप लगाने में झुटा हूँ . इतना करने के बाद मर्द पर ये क़ज़फ़ की हद साक़ित हो जाएगी और औरत पर लिआन वाजिब होगा. इनकार करेगी तो क़ैद की जाएगी यहाँ तक कि लिआन मन्जू़र करे या शौहर के इल्ज़ाम लगाने की पुष्टि करे. अगर पुष्टि की तो औरत पर ज़िना की हद लगाई जाएगी और अगर लिआन करना चाहे तो उसको चार बार अल्लाह की क़सम के साथ कहना होगा कि मर्द उसपर ज़िना की तोहमत लगाने में झूठा है और पांचवीं बार यह कहना होगा कि अगर मर्द उस इल्ज़ाम लगाने में सच्चा हो तो मुझ पर ख़ुदा का ग़ज़ब हो. इतना कहने के बाद औरत से ज़िना की हद उठ जाएगी और लिआन के बाद क़ाज़ी के तफ़रीक़ करने से अलाहदगी वाक़े होगी और यह अलहादगी तलाक़े वाइन होगी, और अगर मर्द एहले शहादत से न हो जैसे कि ग़ुलाम हो या काफ़िर हो या उसपर क़ज़फ़ की हद लग चुकी हो तो लिआन न होगा और तोहमत लगाने से मर्द पर क़ज़फ़ की हद लगाई जाएगी. और अगर मर्द एहले शहादत में से हो और औरत में यह योग्यता न हो इस तरह की वह बाँदी से हो या काफ़िर या उसपर क़ज़फ़ की हद लग चुकी हो या बच्ची हो या पागल हो या ज़िना करने वाली हो, उस सूरत में मर्द पर न हद होगी न लिआन. यह आयत एक सहाबी के हक़ में उतरी जिन्हों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से दरियाफ़्त किया था कि अगर आदमी अपनी औरत को ज़िना में जकड़ा देखे तो क्या करे, न उस वक़्त गवाहो के तलाश करने की फुर्सत है और न बग़ैर गवाही के वह यह बात कह सकता है क्योंकि उसे क़ज़फ़ की हद का अन्देशा है. इसपर यह आयत उतरी, और लिआन का हुक्म दिया गया.

और अगर अल्लाह का फ़ज़्ल (कृपा)  उसकी रहमत तुम पर न होती और  यह कि अल्लाह तौबह क़ुबूल फ़रमाता, हिकमत वाला है{10}

24 सूरए नूर-दूसरा रूकू

24 सूरए  नूर-दूसरा रूकू

إِنَّ ٱلَّذِينَ جَآءُو بِٱلْإِفْكِ عُصْبَةٌۭ مِّنكُمْ ۚ لَا تَحْسَبُوهُ شَرًّۭا لَّكُم ۖ بَلْ هُوَ خَيْرٌۭ لَّكُمْ ۚ لِكُلِّ ٱمْرِئٍۢ مِّنْهُم مَّا ٱكْتَسَبَ مِنَ ٱلْإِثْمِ ۚ وَٱلَّذِى تَوَلَّىٰ كِبْرَهُۥ مِنْهُمْ لَهُۥ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ
لَّوْلَآ إِذْ سَمِعْتُمُوهُ ظَنَّ ٱلْمُؤْمِنُونَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتُ بِأَنفُسِهِمْ خَيْرًۭا وَقَالُوا۟ هَٰذَآ إِفْكٌۭ مُّبِينٌۭ
لَّوْلَا جَآءُو عَلَيْهِ بِأَرْبَعَةِ شُهَدَآءَ ۚ فَإِذْ لَمْ يَأْتُوا۟ بِٱلشُّهَدَآءِ فَأُو۟لَٰٓئِكَ عِندَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلْكَٰذِبُونَ
وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُۥ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ لَمَسَّكُمْ فِى مَآ أَفَضْتُمْ فِيهِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
إِذْ تَلَقَّوْنَهُۥ بِأَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُولُونَ بِأَفْوَاهِكُم مَّا لَيْسَ لَكُم بِهِۦ عِلْمٌۭ وَتَحْسَبُونَهُۥ هَيِّنًۭا وَهُوَ عِندَ ٱللَّهِ عَظِيمٌۭ
وَلَوْلَآ إِذْ سَمِعْتُمُوهُ قُلْتُم مَّا يَكُونُ لَنَآ أَن نَّتَكَلَّمَ بِهَٰذَا سُبْحَٰنَكَ هَٰذَا بُهْتَٰنٌ عَظِيمٌۭ
يَعِظُكُمُ ٱللَّهُ أَن تَعُودُوا۟ لِمِثْلِهِۦٓ أَبَدًا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
وَيُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلْءَايَٰتِ ۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُحِبُّونَ أَن تَشِيعَ ٱلْفَٰحِشَةُ فِى ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ ۚ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُۥ وَأَنَّ ٱللَّهَ رَءُوفٌۭ رَّحِيمٌۭ

 

तो तुम्हारा पर्दा खोल देता बेशक वह कि यह बड़ा बोहतान(आरोप) लाए हैं तुम्हीं में की एक जमाअत है(1)
(1) बड़े बोहतान से मुराद हज़रत उम्मूल मूमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहो अन्हा पर तोहमत लगाना है. सन पांच हिजरी में ग़ज़वए बनी मुस्तलक़ से वापसी के वक़्त क़ाफ़िला मदीने के क़रीब एक पड़ाव पर ठहरा तो उम्मुल मूमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहो अन्हा ज़रूरत के लिये किसी गोशे में तशरीफ़ ले गई. वहाँ आपका हार टूट गया, उसकी तलाश में लग गई. उधर क़ाफ़िला चल पड़ा और आपकी मेहमिल शरीफ़ (डोली) ऊंट पर कस दी गई और लोगों को यही ख़याल रहा कि उम्मूल-मूमिनीन इसी में हैं. क़ाफ़िला चल दिया. आप आकर क़ाफ़िले की जगह बैठ गई इस ख़याल से कि मेरी तलाश में क़ाफ़िला ज़रूर वापस होगा. क़ाफ़िले के पीछे गिरी पड़ी चीज़ उठाने के लिये एक आदमी रहा करता था. उस मौक़े पर हज़रत सुफ़वान इस काम पर थे. जब वह आए और उन्होंने आपको देखा तो ऊंची आवाज़ से इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन पुकारा. आपने कपड़े से पर्दा कर लिया. उन्होंने अपनी ऊंटनी बिठाई, आप उस पर सवार होकर लश्कर में पहुंची. मुनाफ़िक़ों ने अपने दिल की कालिख से ग़लत अफ़वाहें फैलाई और आपकी शान में बुरा भला कहना शुरू किया. कुछ मुसलमान भी उनके बहकावे में आ गए और उनकी ज़बान से भी अपशब्द निकलें. उम्मुल मूमिनिन बीमार हो गई. और एक माह तक बीमार रहीं. इस ज़माने में उन्हें ख़बर न हुई कि मुनाफ़िक़ उनकी निस्बत क्या बक रहे हैं. एक दिन उम्मे मिस्तह से उन्हें यह ख़बर मालूम हुई और इससे आपकी बीमारी और बढ़ गई. इस दुखमें इस तरह रोई कि आपके आँसू न थमते थे और न एक पल के लिये नींद आती थीं. इस हालत में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर वही आई और हज़रत उम्मूल मूमिनीन की पाकी में ये आयतें उतरीं और आपकी इज़्ज़त और दर्ज़ा अल्लाह तआला ने इतना बढ़ाया कि क़ुरआन शरीफ़ की बहुत सी आयतों में आपकी बुज़ुर्गी और पाकी बयान फ़रमाई गई. इस दौरान सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मिम्बर पर से क़सम के साथ फ़रमा दिया था कि मुझे अपनी बीबी की पाकी और ख़ूबी यक़ीन से मालूमू है. तो जिस शख़्स ने उनके बारे में बुरा कहा है उसकी तरफ़ से मेरे पास क़ौन मअज़िरत पेश कर सकता है. हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि मुनाफ़िक़ यक़ीनन झूठे हैं, उम्मुल मोमिनीन यक़ीनन पाक़ हैं. अल्लाह तआला ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के पाक शरीर को मक्खी के बैठने से मेहफ़ूज़ रखा कि वह गन्दगी पर बैठती है. कैसे हो सकता है कि आपको बुरी औरत की सोहबत से मेहफ़ूज़ न रखे. हज़रत उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो ने भी इसी तरह हज़रत सिद्दीक़ा की पाकी और तहारत बयान की और फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने आपका साया ज़मीन पर न पड़ने दिया ताकि उस साए पर किसी का क़दम न पड़े तो जो रब आपके साए को मेहफ़ूज़ रखता है, किस तरह मुमकिन है कि वह आपकी बीबी को मेहफ़ूज़ न फ़रमाए. हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि एक जुएं का ख़ून लगने से रब ने आपको जूते उतार देने का हुक्म दिया, जो रब आपके जूतों की इतनी सी नापाकी गवारा न फ़रमाए, मुमकिन नहीं कि वह आपकी बीबी की नापाकी गवारा करे. इस तरह बहुत से सहाबा और बहुत सी सहाबियात ने क़स्में खाई. आयत उतरने से पहले ही उम्मुल मुमिनीन की तरफ़ से दिल संतुष्ट थे. आयत उतरने के बाद उनकी इज़्ज़त और बुज़ुर्गी और बढ़ गई. तो बुरा कहने वालों की बुराई अल्लाह और उसके रसूल और सहाबा के नज़्दीक बातिल है और बुरा कहने वालों के लिये सख़्त मुसीबत है.

उसे अपने लिये बुरा न समझो, बल्कि वह तुम्हारे लिये बेहतर है(2)
(2)  कि अल्लाह तआला तुम्हें उस पर जज़ा देगा और हज़रत उम्मुल मुमिनीन की शान और उनकी पाकीज़गी ज़ाहिर फ़रमाएगा. चुनांचे इस सिलसिले में उसने अठ्ठारह आयते उतारीं.

उनमें हर शख़्स के लिये वह गुनाह है जो उसने कमाया(3)
(3) यानी उसके कर्मों के हिसाब से, कि किसी ने तूफ़ान उठाया, किसी ने आरोप लगाने वाले की ज़बानी हिमायत की, कोई हंस दिया, किसी ने ख़ामोशी के साथ सुन लिया, जिसने जो किया, उसका बदला पाएगा.

और उनमें वह जिसने सबसे बड़ा हिस्सा लिया(4)
(4) कि अपने दिल से यह तूफ़ान घढा और इसको मशहूर करता फिरा और वह अब्दुल्लाह बिन उबई बिन सलोल मुनाफ़िक़ हैं.

उसके लिये बड़ा अज़ाब है(5){11}
(5) आख़िरत में. रिवायत है कि उन बोहतान लगाने वालों पर रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हुक्म से हद क़ायम की गई और अस्सी अस्सी कोड़े लगाए गए.

क्यों न हुआ जब तुमने उसे सुनाया कि मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों ने अपनों पर नेक गुमान किया होता (6)
(6) क्योंकि मूसलमान को यह हुक्म है कि मुसलमान के साथ नेक गुमान करे और बुरा ख़याल करना मना है. कुछ गुमराह बेबाक यह कह गुज़रते हैं कि सैयदे आलम को मआज़ल्लाह इस मामले में बदग़ुमानी पैदा हो गई थी. ऐसे लोग आरोपी और झूटे हैं और रसूल की शान में ऐसी बात कहते हैं जो ईमान वालों के हक़ में भी लायक़ नहीं. अल्लाह तआला मूमिनीन से फ़रमाता है कि तुमने नेक गुमान क्यों न किया. तो कैसे संभव था कि रसूले करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम बदगुमानी करते और हुज़ूर की निस्बत बदगुमानी का शब्द कहना दिल का कालापन है, ख़ास कर ऐसी हालत में जबकि बुख़ारी शरीफ़ की हदीस में है कि हुज़ूर ने क़सम के साथ फ़रमाया कि मैं जानता हूँ, कि मेरे घर वाले पाक हैं, जैसा कि ऊपर बयान हो चुका. इस से मालूम हुआ कि मुसलमान पर बदगुमानी करना जायज़ नहीं और जब किसी नेक शख़्स पर आरोप लगाया जाय तो बिना सुबूत दूसरे मुसलमान को उसकी हिमायत और पुष्टि करना ठीक नहीं.

और कहते यह खुला बोहतान है(7){12}
(7)  बिल्कुल झूट है, बे हक़ीक़त है.

उस पर चार गवाह क्यों न लाए तो जब गवाह न लाए तो वही अल्लाह के नज़दीक झूटें हैं{13} और अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत तुम पर दुनिया और आख़िरत में न होती(8)
(8) और तुम पर मेहरबानी मन्ज़ूर न होती, जिसमें से तौबह के लिये मोहलत देना भी हैं, और आख़िरत में माफ़ फ़रमाना भी.

तो जिस चर्चे में तुम पड़े उस पर तुम्हें बड़ा अज़ाब पहुंचता {14} जब तुम ऐसी बात अपनी ज़बानों पर एक दूसरे से सुनकर लाते थे और अपने मुंह से वह निकालते थे जिसका तुम्हें इल्म नहीं और उसे सहल समझते थे (9)
(9) और ख़याल करते थे कि उसमें बड़ा गुनाह नहीं.

और वह अल्लाह के नज़दीक बड़ी बात है(10){15}
(10) महा पाप है.

और क्यों न हुआ जब तुमने सुना था कहा होता कि हमें नहीं पहुंचता कि ऐसी बात कहें(11)
(11) यह हमारे लिये ठीक नहीं क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता.

इलाही पाकी है तुझे(12)
(12) उससे कि तेरे नबी की बीबी को बुराई और नापाकी पहुंचे. यह संभव ही नहीं कि किसी नबी की बीबी बदकार हो सके, अगरचे उसका कुफ़्र में जकड़ा जाना संभव है क्योंकि नबी काफ़िरों की तरफ़ भेजे जाते हैं तो ज़रूरी है कि जो चीज़ काफ़िरों के नज़्दीक भी नफ़रत के क़ाबिल हो उससे वो पाक हों और ज़ाहिर है कि औरत की बदकारी उनके नज़्दीक नफ़रत के क़ाबिल है.

यह बड़ा बोहतान है{16} अल्लाह तुम्हें नसीहत फ़रमाता है कि अब कभी ऐसा न कहना अगर ईमान रखते हो{17} और अल्लाह तुम्हारे लिये आयतें साफ़ बयान फ़रमाता है, और अल्लाह  इल्म व हिकमत वाला है{18} वो लोग जो चाहते हैं कि मुसलमानों में बुरा चर्चा फैले उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है दुनिया(13)
(13) यानी इस दुनिया में, और वह हद क़ायम करना है, चुनांचे इब्ने ऊबई और हस्सान और मिस्तह के हद लगाई गई. (मदारिक)

और आख़िरत में(14)
(14) दोज़ख़, अगर बिना तौबह के मर जाएं.

और अल्लाह जानता है(15)
(15) दिलों के राज़ और बातिन के हालात.

और तुम नहीं जानते {19} और अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत तुम पर न होती और यह कि अल्लाह तुम पर बहुत मेहरबान रहमत वाला है तो तुम इसका मज़ा चखते (16){20}
(16) और अल्लाह का अज़ाब तुम्हें मोहलत न देता.

24 सूरए नूर-तीसरा रूकू

24 सूरए  नूर-तीसरा रूकू

۞ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّبِعُوا۟ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيْطَٰنِ ۚ وَمَن يَتَّبِعْ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيْطَٰنِ فَإِنَّهُۥ يَأْمُرُ بِٱلْفَحْشَآءِ وَٱلْمُنكَرِ ۚ وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُۥ مَا زَكَىٰ مِنكُم مِّنْ أَحَدٍ أَبَدًۭا وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يُزَكِّى مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌۭ
وَلَا يَأْتَلِ أُو۟لُوا۟ ٱلْفَضْلِ مِنكُمْ وَٱلسَّعَةِ أَن يُؤْتُوٓا۟ أُو۟لِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْمَسَٰكِينَ وَٱلْمُهَٰجِرِينَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۖ وَلْيَعْفُوا۟ وَلْيَصْفَحُوٓا۟ ۗ أَلَا تُحِبُّونَ أَن يَغْفِرَ ٱللَّهُ لَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌ
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَرْمُونَ ٱلْمُحْصَنَٰتِ ٱلْغَٰفِلَٰتِ ٱلْمُؤْمِنَٰتِ لُعِنُوا۟ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ
يَوْمَ تَشْهَدُ عَلَيْهِمْ أَلْسِنَتُهُمْ وَأَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
يَوْمَئِذٍۢ يُوَفِّيهِمُ ٱللَّهُ دِينَهُمُ ٱلْحَقَّ وَيَعْلَمُونَ أَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلْحَقُّ ٱلْمُبِينُ
ٱلْخَبِيثَٰتُ لِلْخَبِيثِينَ وَٱلْخَبِيثُونَ لِلْخَبِيثَٰتِ ۖ وَٱلطَّيِّبَٰتُ لِلطَّيِّبِينَ وَٱلطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَٰتِ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ

ऐ ईमान वालो शैतान के क़दमों पर न चलो, और जो शैतान के क़दमों पर चले तो वह तो बेहयाई और बुरी ही बात बताएगा(1)
(1) उसके वसवसों में न पड़ो और आरोप लगाने वालों की बातों पर कान न लगाओ.

और अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत तुम पर न होती तो तुम में कोई भी कभी सुथरा न हो सकता(2)
(2) और अल्लाह तआला उसको तौबह और अच्छे कामों की तौफ़ीक़ न देता और मग़फ़िरत और माफ़ी न फ़रमाता.

हाँ अल्लाह सुथरा कर देता है जिसे चाहे (3)
(3) तौबह क़ुबूल फ़रमाकर.

और अल्लाह सुनता जानता है{21} और क़सम न खाएं वो जो तुम में फ़ज़ीलत (बुज़ुर्गी) वाले (4)
(4)  और इज़्ज़त वाले हैं दीन में.

और गुंजायश (सामर्थ्य) वाले हैं(5)
(5)  माल और दौलत में. यह आयत हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो के हक़ में उतरी. आपने क़सम खाई थी कि मिस्तह के साथ सुलूक न करेंगे और वह आपकी खाला के बेटे थे. ग़रीब थे, मुहाजिर, बद्र वाले थे, आप ही उनका ख़र्चा उठाते थे. मगर चूंकि उम्मुल मुमिनीन पर आरोप लगाने वालों के साथ उन्हों ने हिमायत दिखाई थी इसलिये आपने यह क़सम खाई थीं. इसपर यह आयत उतरी.

क़राबत वालों (रिश्तेदारों) और मिस्कीनों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों को देने की और चाहिये कि माफ़ करें और दरगुज़रें, क्या तुम इसे दोस्त नहीं रखते कि अल्लाह तुम्हारी बख़्शिश करे, और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है(6){22}
(6)  जब यह आयत सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म ने पढी तो हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ने कहा, बेशक मेरी आरज़ू है कि अल्लाह मेरी मग़फ़िरत करे और मैं मिस्तह के साथ जो सुलूक करता था उस को कभी बन्द न करूंगा. चुनांचे आपने उसको जारी फ़रमा दिया. इस आयत से मालूम हुआ कि जो व्यक्ति किसी काम पर क़सम खाए फिर मालूम हो कि उसका करना ही बेहतर है तो चाहिये कि उस काम को करे और क़सम का कफ़्फ़ारा दे. सही हदीस में यही आया है. इस आयत से हज़रत सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहो अन्हो की फ़ज़ीलत साबित हुई. इससे आपकी शान और बलन्द दर्ज़ा ज़ाहिर होता है कि अल्लाह तआला ने आप को बुज़ुर्गी वाला फ़रमाया और …

बेशक वो जो ऐब (दोष) लगाते हैं अनजान(7)
(7) औरतों को जो बदकारी और बुराई को जानती भी नहीं और बुरा ख़याल उनके दिल में भी नहीं गुज़रता और…

पारस ईमान वालियों को(8)
(8) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म की पाक बीबियों के औसाफ़ और गुण है. एक क़ौल यह भी है कि इससे सारी नेक और ईमानदार औरतें मुराद हैं. उनके ऐब लगाने वालों पर अल्लाह तआला लअनत फ़रमाता है.

उनपर लअनत है दुनिया और आख़िरत में और उनके लिये बड़ा अज़ाब है(9){23}
(9) यह अब्दुल्लाह बिन उबई बिन सलोल मुनाफ़िक़ के बारे में  हैं (ख़ाज़िन)

जिस दिन (10)
(10) यानी क़यामत के दिन.

उनपर गवाही देंगी उनकी ज़बानें(11)
(11) ज़बानों का गवाही देना, तो उनके मुंहों पर मोहरें लगाए जाने से पहले होगा और उसके बाद मुंहों पर मोहरें लगा दी जाएंगी, जिससे ज़बानें बन्द हो जाएंगी और अंग बोलने लगेंगे और दुनिया में जो कर्म किये थे उनकी ख़बर देंगे जैसे कि आगे इरशाद है.

और उनके हाथ और उनके पांव जो कुछ करते थे{24} उस दिन अल्लाह उन्हें उनकी सच्ची सज़ा पूरी देगा(12)
(12) जिसके वो मुस्तहिक़ हैं.

और जान लेंगे कि अल्लाह ही खुला हुआ सत्य है(13){25}
(13) यानी मौजूद, ज़ाहिर है उसी की क़ुदरत से हर चीज़ का वुजूद है. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि मानी ये हैं कि काफ़िर दुनिया में अल्लाह तआला के वादों में शक करते थे. अल्लाह तआला आख़िरत में उन्हें उनके कर्मों का बदला देकर उन वादों का सच्चा होना ज़ाहिर फ़रमा देगा. क़ुरआन शरीफ़ में किसी गुनाह पर ऐसा क्रोध और तक़रार और ताकीद नहीं फ़रमाई गई जैसी कि हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा के ऊपर बोहतान बांधने पर फ़रमाई गई. इससे सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बुज़ुर्गी और दर्ज़े की बलन्दी ज़ाहिर होती है.

गन्दियां गन्दों के लिये और गन्दे गन्दियों के लिये,(14)
(14) यानी बुरे के लिये बुरा लायक़ है. बुरी औरत बुरे मर्द के लिये और बुरे मर्द बुरी औरत के लिये. और बुरा आदमी बुरी बातों पर अड़ा होता है और बुरी बातें बुरे आदमी की आदत होती हैं.

और सुथरियां सुथरों के लिये और सुथरे सुथरियों के लिये, वो (15)
(15) यानी पाक मर्द और औरतें, जिन में से हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा और सफ़वान हैं.

पाक हैं उन बातों से जो यह (16)
(16) आरोप लगाने वाले बुरे लोग.

कह रहे है, उनके लिये बख़्शिश और इज़्ज़त की रोज़ी है(17){26}
(17) यानी सुथरों और सुथरियों के लिये जन्नत में. इस आयत से हज़रत आयशा सिद्दिक़ा की भरपुर इज़्ज़त और बुज़ुर्गी साबित हुई कि वह पाक और साफ़ पैदा की गई हैं. क़ुरआन शरीफ़ में उनकी पाकी का बयान फ़रमाया गया है. उन्हें मग़फ़िरत और रिज़्क़े करीम का वादा दिया गया. हज़रत उम्मूल मूमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहो अन्हा को अल्लाह तआला ने बहुत से गुण अता फ़रमाए जो आपके लिये गर्व के क़ाबिल हैं. उनमें से कुछ ये हैं कि जिब्रील अलैहिस्सलाम सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हुज़ूर में एक हरीर पर आपकी तस्वीर लाए और अर्ज़ किया कि यह आपकी बीबी हैं. और यह कि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने आपके सिवा किसी कुँवारी से निकाह न फ़रमाया. और यह कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की वफ़ात आपकी गोद में और आपकी नौबत के दिन हुई और आप ही का मुबारक हुजरा सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की आरामगाह और आपका पाक रोज़ा हुआ. और यह कि कभी कभी हुज़ूर पर ऐसी हालत में वही उतरी कि हज़रत सिद्दीक़ा आपके साथ लिहाफ़ में होतीं. और यह कि हज़रत सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहो अन्हो, रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म के प्यारे ख़लीफ़ा की बेटी है. और यह कि आप पाक पैदा की गई और आपसे मग़फ़िरत और रिज़्के करीम का वादा फ़रमाया गया.

24 सूरए नूर-चौथा रूकू

24 सूरए  नूर-चौथा रूकू

يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَدْخُلُوا۟ بُيُوتًا غَيْرَ بُيُوتِكُمْ حَتَّىٰ تَسْتَأْنِسُوا۟ وَتُسَلِّمُوا۟ عَلَىٰٓ أَهْلِهَا ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌۭ لَّكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
فَإِن لَّمْ تَجِدُوا۟ فِيهَآ أَحَدًۭا فَلَا تَدْخُلُوهَا حَتَّىٰ يُؤْذَنَ لَكُمْ ۖ وَإِن قِيلَ لَكُمُ ٱرْجِعُوا۟ فَٱرْجِعُوا۟ ۖ هُوَ أَزْكَىٰ لَكُمْ ۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌۭ
لَّيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَدْخُلُوا۟ بُيُوتًا غَيْرَ مَسْكُونَةٍۢ فِيهَا مَتَٰعٌۭ لَّكُمْ ۚ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ
قُل لِّلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا۟ مِنْ أَبْصَٰرِهِمْ وَيَحْفَظُوا۟ فُرُوجَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرٌۢ بِمَا يَصْنَعُونَ
وَقُل لِّلْمُؤْمِنَٰتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَٰرِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ ۖ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ ءَابَآئِهِنَّ أَوْ ءَابَآءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَآئِهِنَّ أَوْ أَبْنَآءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَٰنِهِنَّ أَوْ بَنِىٓ إِخْوَٰنِهِنَّ أَوْ بَنِىٓ أَخَوَٰتِهِنَّ أَوْ نِسَآئِهِنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُهُنَّ أَوِ ٱلتَّٰبِعِينَ غَيْرِ أُو۟لِى ٱلْإِرْبَةِ مِنَ ٱلرِّجَالِ أَوِ ٱلطِّفْلِ ٱلَّذِينَ لَمْ يَظْهَرُوا۟ عَلَىٰ عَوْرَٰتِ ٱلنِّسَآءِ ۖ وَلَا يَضْرِبْنَ بِأَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِينَ مِن زِينَتِهِنَّ ۚ وَتُوبُوٓا۟ إِلَى ٱللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَ ٱلْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
وَأَنكِحُوا۟ ٱلْأَيَٰمَىٰ مِنكُمْ وَٱلصَّٰلِحِينَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَإِمَآئِكُمْ ۚ إِن يَكُونُوا۟ فُقَرَآءَ يُغْنِهِمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٌۭ
وَلْيَسْتَعْفِفِ ٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّىٰ يُغْنِيَهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ ۗ وَٱلَّذِينَ يَبْتَغُونَ ٱلْكِتَٰبَ مِمَّا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُكُمْ فَكَاتِبُوهُمْ إِنْ عَلِمْتُمْ فِيهِمْ خَيْرًۭا ۖ وَءَاتُوهُم مِّن مَّالِ ٱللَّهِ ٱلَّذِىٓ ءَاتَىٰكُمْ ۚ وَلَا تُكْرِهُوا۟ فَتَيَٰتِكُمْ عَلَى ٱلْبِغَآءِ إِنْ أَرَدْنَ تَحَصُّنًۭا لِّتَبْتَغُوا۟ عَرَضَ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا ۚ وَمَن يُكْرِههُّنَّ فَإِنَّ ٱللَّهَ مِنۢ بَعْدِ إِكْرَٰهِهِنَّ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
وَلَقَدْ أَنزَلْنَآ إِلَيْكُمْ ءَايَٰتٍۢ مُّبَيِّنَٰتٍۢ وَمَثَلًۭا مِّنَ ٱلَّذِينَ خَلَوْا۟ مِن قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةًۭ لِّلْمُتَّقِينَ

ऐ ईमान वालों अपने घरों के सिवा और घरो में न जाओ जब तक इजाज़त न ले लो(1)
(1) इस आयत से साबित हुआ कि ग़ैर के घर में बे इजाज़त दाख़िल न हो और इजाज़त लेने का तरीक़ा यह भी है कि ऊंची आवाज़ से सुब्हानल्लाह या अलहम्दुलिल्लाह या अल्लाहो अकबर कहे या खकारे, जिससे मकान वालों को मालूम हो कि कोई आना चाहता है या यह कहे कि क्या मुझे अन्दर आने की इजाज़त है, ग़ैर के घर से वह घर मुराद है जिसमें ग़ैर रहता हो चाहे उसका मालिक हो या न हो.

और उनके साकिनों पर सलाम न कर लो, (2)
(2) ग़ैर के घर जाने वाले की अगर मकान वाले से पहले ही भेंट हो जाए तो पहले सलाम करे फिर इजाज़त चाहे, इस तरह कहे अस्सलामो अलैकुम, क्या मुझे अन्दर आने की इजाज़त है. हदीस शरीफ़ में है कि सलाम को कलाम पर पहल दो. हज़रत अब्दुल्लाह की क़िरअत भी इसी पर दलालत करती है. उनकी क़िरअत यूं है “हत्ता तुसल्लिमू अला अहलिहा वतस्ताज़िनू ” और यह भी कहा गया है कि पहले इजाज़त चाहे फिर सलाम करे. (मदारिक , कश्शाफ़, अहमदी) अगर दरवाज़े के सामने खड़े होने से बेपर्दगी का अन्देशा हो तो दाएं या बाएं खड़े होकर इजाज़त तलब करे. हदीस शरीफ़ में है, अगर घर में माँ हो जब भी इजाज़त तलब करे. (मुअत्ता इमामे मलिक)

यह तुम्हारे लिये बेहतर है कि तुम ध्यान करो{27} फिर अगर उनमें किसी को न पाओ (3)
(3) यानी मकान में इजाज़त देने वाला मौजूद न हो.

जब भी बे मालिकों की इजाज़त के उनमें न जाओ  (4)
(4) क्योंकि ग़ैर की मिल्क में तसर्रूफ़ करने के लिये उसकी रज़ा ज़रूरी है.

और अगर तुमसे कहा जाए वापस जाओ तो वापस हो (5)
(5) और इजाज़त तलब करने में ज़्यादा ज़ोर न दो. किसी का दरवाज़ा बहुत ज़ोर से खटखटाना और ज़ोर से चीखना, उलमा और बुज़ुर्गों के दरवाज़ों पर ऐसा करना, उनको ज़ोर से पुकारना मकरूह और अदब के ख़िलाफ़ है.

यह तुम्हारे लिये बहुत सुथरा है, अल्लाह तुम्हारे कामों को जानता है {28} इसमें तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि उन घरों में जाओ जो ख़ास किसी की सुकूनत (निवास) के नहीं(6)
(6) जैसे सराय और मुसाफ़िर ख़ाना वग़ैरह, कि उसमें जाने के लिये इजाज़त हासिल करने की हाजत नहीं. यह आयत उन सहाबा के जवाब में उतरी जिन्होंने इजाज़त की आयत उतरने के बाद पूछा था कि मक्कए मुकर्रमा  और मदीनए तैय्यिबह के बीच और शाम के रस्ते में जो मुसाफ़िर खाने बने हुए हैं क्या उनमें दाख़िल होने के लिये भी इजाज़त लेना ज़रूरी है.

और उनके बरतने का तुम्हें इख़्तियार है और अल्लाह जानता है जो तुम ज़ाहिर करते हो और जो तुम छुपाते हो{29}मुसलमान मर्दो को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखें(7)
(7) और जिस चीज़ का देखना जायज़ नहीं उस पर नज़र न डालें. मर्द का बदन नाफ़ के नीचे से घुटने के नीचे तक औरत है. उसका देखना जायज़ नहीं. और औरतों में से अपनी मेहरमों और ग़ैर की दासी का भी यही हुक्म है मगर इतना और है कि उनके पेट और पीठ का देखना भी जायज़ नहीं. आज़ाद अजनबी औरत के सारे शरीर का देखना मना है. मगर ज़रूरत के वक़्त काज़ी और गवाह को उस औरत से निकाह की ख़्वाहिश रखने वाले को चेहरा देखना जायज़ है. अगर किसी औरत के ज़रिये से हाल मालूम कर सकता हो तो न देखे और तबीब को पीड़ित अंग का उतना देखना जायज़ है जितनी ज़रूरत हो. अमर्द लड़के की तरफ़ भी वासना से देखना हराम है. (मदारिक व अहमदी)

और अपनी शर्म गाहों की हिफ़ाज़त करें,(8)
(8) और ज़िना व हराम से बचें. या ये मानी हैं कि अपनी शर्मगाहों को छुपाएं और पर्दे का प्रबन्ध रखें.

यह उनके लिये बहुत सुथरा है, बेशक अल्लाह को उनके कामों की ख़बर है{30} और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें(9)
(9) और ग़ैर मर्दों को न देखें, हदीस शरीफ़ में है कि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म की पाक बीबीयों से कुछ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में थी उसी वक़्त इब्ने उम्मे मक़्तूम आए. हुज़ूर ने बीबियों को पर्दे का हुक्म दिया. उन्होंने अर्ज़ किया कि वह तो नाबीना हैं. फ़रमाया तुम तो नाबीना नहीं हो. (तिरमिज़ी, अबू दाऊद) इस हदीस से मालूम हुआ कि औरतों को भी ना मेहरम का देखना और उसके सामने होना जायज़ नहीं.

और अपनी पारसाई की हिफ़ाज़त करें और अपना बनाव न दिखाएं (10)
(10) ज़ाहिर यह है कि यह हुक्म नमाज़ का है न नज़र का, क्योंकि आज़ाद औरत का तमाम शरीर औरत है. शौहर और मेहरम के सिवा और किसी के लिये उसके किसी हिस्से का देखना बे ज़रूरत जायज़ नहीं और इलाज वग़ैरह की ज़रूरत से जायज़ है. (तफ़सीरे अहमदी)

मगर जितना ख़ुद ही ज़ाहिर है और दुपट्टे अपने गिरेबानों पर डाले रहें और अपना सिंगार ज़ाहिर न करें मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप(11)
(11) और उन्हीं के हुक्म में दादा, परदादा वग़ैरह तमाम उसूल.

या शौहरों के बाप(12)
(12) कि वो भी मेहरम हो जाते हैं.

या अपने बेटे (13)
(13) और उन्हीं के हुक्म में है उनकी औलाद.

या शौहरों के बेटे(14)
(14) कि वो भी मेहरम हो गए.

या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भानजे(15)
(15) और उन्हीं के हुक्म में हैं चचा,  मामूँ वग़ैरह तमाम मेहरम. हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने अबू उबैदा बिन जर्राह को लिखा था कि काफ़िर एहले किताब की औरतों को मुसलमान औरतों के साथ हम्माम में दाख़िल होने से मना करें. इससे मालूम हुआ कि मुसलमान औरत को काफ़िर औरत के सामने अपना बदन खोलना जायज़ नहीं. औरत अपने ग़ुलाम से भी अजनबी की तरह पर्दा
करें.(मदारिक वगै़रह)

या अपने दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हों (16)
(16) उनपर अपना सिंगार ज़ाहिर करना मना नहीं और ग़ुलाम उनके हुक्म में नहीं. उसको अपनी मालिका की ज़ीनत की चीज़ें देखना जायज़ नहीं.

या नौकर बशर्ते कि शहवत वाले मर्द न हों(17)
(17)जैसे कि ऐसे बूढे हों जिन्हें बिल्कुल भी शहबत बाक़ी न रही हो. और हो नेक. हनफ़ी इमामों के नज़्दीक़ ख़स्सी और हिजड़े वग़ैरह हुरमतें नज़र में अजनबी का हुक्म रखते हैं. इस तरह बुरा काम करने वाले मुख़न्नस से भी पर्दा किया जाए जैसा कि मुस्लिम की हदीस से साबित है.

या वो बच्चे जिन्हें औरतों की शर्म की चीज़ों की ख़बर नहीं (18)
(18) वो अभी नादान और नाबालिग़ हैं.

और ज़मीन पर पाँव ज़ोर से न रखें कि जाना जाए उनका छुपा हुआ सिंगार(19)
(19) यानी औरतें घर के अन्दर चलने में भी पाँव इस क़द्र आहिस्ता रखें कि उनके ज़ेवर की झनकार न सुनी जाए. इसीलिये चाहिये कि औरतें बाजेदार झांझन न पहनें. हदीस शरीफ़ में हैं कि अल्लाह तआला उस क़ौम की दुआ क़ुबूल नहीं फ़रमाता जिन की औरतें झांझन पहनत हों. इससे समझना चाहिये कि जब ज़ेवर की आवाज़ दुआ के क़ुबूल न होने का कारण है तो ख़ास औरत की आवाज़ और बेपर्दगी कैसी अल्लाह के अज़ाब का कारण होगी. पर्दे की तरफ़ से बेपर्वाही तबाही का कारण है. (तफ़सीरे अहमदी)

और अल्लाह की तरफ़ तौबह करो ऐ मुसलमानों सब के सब इस उम्मीद पर कि तुम भलाई पाओ {31} और निकाह कर दो अपनों में उनका जो बेनिकाह हों(20)
(20) चाहे मर्द या औरत, कुँवारे या ग़ैर कुँवारे.

और अपने लायक़ बन्दों और कनीज़ों का, अगर वो फ़क़ीर हों तो अल्लाह उन्हें ग़नी कर देगा अपने फ़ज़्ल {कृपा} के कारण (21)
(21)  इस ग़िना से मुराद या क़नाअत है कि वह बेहतरीन ग़िना है, जो क़नाअत करने वाले को कुफ़्र से दूर कर देता है, या किफ़ायत कि एक का खाना दो के लिये काफ़ी हो जाए जैसा कि हदीस शरीफ़ में आया है, या मियाँ और बीबी के दो रिज़्क़ों का जमा हो जाना या निकाह की बरकत से फ़र्राख़ी जैसा कि अमीरूल मूमिनीन हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है.

और अल्लाह वुसअत {कुशादगी} वाला इल्म वाला है{32} और चाहिये कि बचे रहें(22)
(22) हरामकारी से.

वो जो निकाह का मक़दूर {क्षमता} नहीं रखते(23)
(23) जिन्हें मेहर और नफ़क़ा उपलब्ध नहीं.

यहां तक कि अल्लाह मक़दूर वाला कर दे अपनी कृपा से(24)
(24) और मेहर व नफ़क़ा अदा करने के क़ाबिल हो जाएं. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जो निकाह की क़ुदरत रखे वह निकाह करे कि निकाह पारसाई और पाकबाज़ी में मददगार है और जिसे निकाह की क़ुदरत न हो वह रोज़े रखे कि यह शहवतों को तोड़ने वाले हैं.

और तुम्हारे हाथ की मिल्क बांदी ग़ुलामों में से जो यह चाहें कि कुछ माल कमाने की शर्त पर उन्हें आज़ादी लिख दो तो लिख दो(25)
(25) कि वह इस क़द्र माल अदा करके आज़ाद हो जाएं और इस तरह की आज़ादी को किताबत कहते हैं. और आयत में इसका अम्र इस्तहबाब के लिये हे और यह इस्तहबाब इस शर्त के साथ मशरूत है जो इसके बाद ही आयत में आया है. हुबैतब बिन अब्दुल उज़्ज़ा के ग़ुलाम सबीह ने अपने मौला से किताबत की दरख़्वास्त की. मौला ने इन्कार किया. इसपर यह आयत उतरी तो हुवैतब ने उसको सौ दीनार पर मुकातिब कर दिया और उनमें से बीस उसको बख़्श दिये, बाक़ी उसने अदा कर दिये.

अगर उनमें कुछ भलाई जानो(26)
(26) भलाई से मुराद अमानत और ईमानदारी और कमाई पर क़ुदरत रखना है कि वह हलाल रोज़ी से माल हासिल करके आज़ाद हो सके और मौला को माल देकर आज़ादी हासिल करने के लिये भीख न माँगता फिरे. इसीलिये हज़रत सलमान फ़ारसी रदियल्लाहो अन्हो ने अपने ग़ुलाम को आज़ाद करने से इन्कार कर दिया जो सिवाय भीख़ के रोज़ी का कोई साधन नहीं रखता था.

और इसपर उनकी मदद करो अल्लाह के माल से जो तुम को दिया(27)
(27) मुसलमानों को इरशाद है कि वो मुकातिब ग़ुलामों को ज़कात वग़ैरह दे कर मदद करें जिससे वो आज़ादी का बदल देकर अपनी गर्दन छुड़ा सकें.

और मजबूर न करो अपनी कनीज़ों को बदकारी पर जब कि वो बचना चाहें ताकि तुम दुनियावी ज़िन्दगी का कुछ माल चाहो(28)
(28) यानी माल के लालच में अन्धे होकर दासियों को बदकारी पर मजबूर न करें. यह आयत अब्दुल्लाह बिन उबई बिन सलाल मुनाफ़ि क़ के बारे में उतरी जो माल हासिल करने के लिये अपनी दासियों को बदकारी पर मजबूर करता था. उन दासियों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से उसकी शिकायत की. इसपर यह आयत उतरी.

और जो उन्हें मजबूर करेगा तो बेशक अल्लाह बाद इसके कि वह मजबूरी ही की हालत पर रहें बख़्शने वाला मेहरबान है(29){33}
(29) और गुनाह का वबाल मजबूर करने वाले पर.

और बेशक हमने उतारी तुम्हारी तरफ़ रौशन आयतें(30)
(30) जिन्हों ने हलाल और हराम, हुदूद, अहकाम, सबको साफ़ स्पष्ट कर दिया.

24 सूरए नूर-पाँचवां रूकू

24 सूरए  नूर-पाँचवां रूकू

۞ ٱللَّهُ نُورُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ مَثَلُ نُورِهِۦ كَمِشْكَوٰةٍۢ فِيهَا مِصْبَاحٌ ۖ ٱلْمِصْبَاحُ فِى زُجَاجَةٍ ۖ ٱلزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوْكَبٌۭ دُرِّىٌّۭ يُوقَدُ مِن شَجَرَةٍۢ مُّبَٰرَكَةٍۢ زَيْتُونَةٍۢ لَّا شَرْقِيَّةٍۢ وَلَا غَرْبِيَّةٍۢ يَكَادُ زَيْتُهَا يُضِىٓءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌۭ ۚ نُّورٌ عَلَىٰ نُورٍۢ ۗ يَهْدِى ٱللَّهُ لِنُورِهِۦ مَن يَشَآءُ ۚ وَيَضْرِبُ ٱللَّهُ ٱلْأَمْثَٰلَ لِلنَّاسِ ۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۭ
فِى بُيُوتٍ أَذِنَ ٱللَّهُ أَن تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا ٱسْمُهُۥ يُسَبِّحُ لَهُۥ فِيهَا بِٱلْغُدُوِّ وَٱلْءَاصَالِ
رِجَالٌۭ لَّا تُلْهِيهِمْ تِجَٰرَةٌۭ وَلَا بَيْعٌ عَن ذِكْرِ ٱللَّهِ وَإِقَامِ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِيتَآءِ ٱلزَّكَوٰةِ ۙ يَخَافُونَ يَوْمًۭا تَتَقَلَّبُ فِيهِ ٱلْقُلُوبُ وَٱلْأَبْصَٰرُ
لِيَجْزِيَهُمُ ٱللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا۟ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ يَرْزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيْرِ حِسَابٍۢ
وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَعْمَٰلُهُمْ كَسَرَابٍۭ بِقِيعَةٍۢ يَحْسَبُهُ ٱلظَّمْـَٔانُ مَآءً حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَهُۥ لَمْ يَجِدْهُ شَيْـًۭٔا وَوَجَدَ ٱللَّهَ عِندَهُۥ فَوَفَّىٰهُ حِسَابَهُۥ ۗ وَٱللَّهُ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ
أَوْ كَظُلُمَٰتٍۢ فِى بَحْرٍۢ لُّجِّىٍّۢ يَغْشَىٰهُ مَوْجٌۭ مِّن فَوْقِهِۦ مَوْجٌۭ مِّن فَوْقِهِۦ سَحَابٌۭ ۚ ظُلُمَٰتٌۢ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَآ أَخْرَجَ يَدَهُۥ لَمْ يَكَدْ يَرَىٰهَا ۗ وَمَن لَّمْ يَجْعَلِ ٱللَّهُ لَهُۥ نُورًۭا فَمَا لَهُۥ مِن نُّورٍ

अल्लाह नूर है(1)
(1) नूर अल्लाह तआला के नामों में से एक नाम है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, मानी ये है कि अल्लाह आसमान और ज़मीन का हिदायत करने वाला है. तो आसमानों और ज़मीन वाले उसके नूर से सच्चाई की राह पाते हैं और उसकी हिदायत से गुमराही की हैरत से छुटकारा पाते हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया, मानी ये हैं कि अल्लाह तआला आसमान और ज़मीन का मुनव्वर करने वाला है. उसने आसमानों को फ़रिश्तों से और ज़मीन को नबियों से मुनव्वर किया.

आसमानों और ज़मीन का, उसके नूर की(2)
(2) अल्लाह के नूर से मूमिन के दिल की वह नूरानियत मुराद है जिससे वह हिदायत पाता है और राह हासिल करता है. कुछ मुफ़स्सिरों ने इस नूर से क़ुरआन मुराद लिया और एक तफ़सीर यह है कि इस नूर से मुराद सैयदे कायनात अफ़दलुल मौजूदात हज़रत रहमते आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं.

मिसाल ऐसी जैसे एक ताक़ कि उसमें चिराग़ है, वह चिराग़ एक फ़ानूस में है, वह फ़ानूस मानो एक सितारा है मोती सा चमकता रौशन होता है बरकत वाले पेड़ जै़तून से(3)
(3) यह दरख़्त बहुत बरकतों वाला है क्योंकि इसका तेल जिसे जै़त कहते हैं निहायत साफ़ और पाकीज़ा रौशनी देता है. सर में भी लगाया जाता है, सालन की जगह रोटी से भी खाया जाता है. दूनिया के और किसी तेल में यह ख़ूबी नहीं है. और ज़ैतून दरख़्त के पत्ते नहीं गिरते.(ख़ाज़िन)

जो न पूरब का न पश्चिम का(4)
(4) बल्कि बीच का है न उसे गर्मी से हानि पहुंचे न सर्दी से और वह निहायत फ़ायदा पहुंचाने वाला है और उसके फल बहुत ऐतिदाल में हैं.

क़रीब है कि उसका तेल(5)
(5) अपनी सफ़ाई और लताफ़त के कारण ख़ुद.

भड़क उठे अगरचे उसे आग न छुए, नूर पर नूर है(6)
(6) इस उपमा के मानी में इल्म वालों के कई क़ौल हैं- एक यह कि नूर से मुराद हिदायत हैं, और मानी ये हैं कि अल्लाह तआला की हिदायत बहुत ज़्यादा ज़ाहिर है कि आलमे मेहसूसात में इसकी तस्बीह ऐसे रौशनदान से हो सकती है जिसमें साफ़ शफ़्फ़ाफ़ फ़ानूस हो, उस फ़ानूस में ऐसा चिराग़ हो जो बहुत ही बेहतर और साफ़ ज़ैतून से रौशन हो कि उसकी रौशनी निहायत आला और साफ़ हो. एक क़ौल यह है कि यह मिसाल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने कअब अहबार से फ़रमाया कि इस आयत के मानी बयान करो. उन्होंने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मिसाल बयान फ़रमाई. रौशनदान (ताक़) तो हुज़ूर का सीना शरीफ़ है और फ़ानूस आपका मुबारक दिल है और चिराग़ नबुव्वत, कि नबुव्वत के दरख़्त से रौशन है और इस नूरे मुहम्मदी की रौशनी इस दर्जा भरपूर है कि अगर आप अपने नबी होने का बयान भी न फ़रमाएं जब भी ख़ल्क़ पर ज़ाहिर हो जाए. हज़रत इब्ने उमर रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि रौशनदान तो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का सीना मुबारक है और फ़ानूस आपका नूरानी दिल और चिराग़ वह नूर जो अल्लाह तआला ने उसमें रखा है, कि पूर्वी है न पश्चिमी, न यहूदी, न ईसाई. एक शजरे मुबारक  से रौशन है. वह शजर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम है. नूरे क़ल्बे इब्राहीम पर नूरे मुहम्मदी, नूर पर नूर है. मुहम्मद बिन कअब क़र्ज़ी ने कहा कि रौशनदान और फ़ानूस तो हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम हैं और चिराग़ सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और शजरे मुबारक हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम कि अक्सर नबी आपकी नस्ल से हें और शर्क़ी व ग़र्बी न होने के ये मानी हैं कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम न यहूदी थे न ईसाई क्योंकि यहूदी मग़रिब की तरफ़ नमाज़ पढ़ते हैं और ईसाई पूर्व की तरफ़. क़रीब है कि  मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के गुण, कमाल वही उतरने से पहले ही सृष्टि पर ज़ाहिर हो जाएं. नूर पर नूर यह कि नबी हें नस्ले नबी से. नूरे मुहम्मदी है नूरे इब्राहमी पर. इसके अलावा और भी बहुत क़ौल हैं. (ख़ाज़िन)

अल्लाह अपने नूर की राह बताता है जिसे चाहता है, और अल्लाह मिसालें बयान फ़रमाता है लोगों के लिये, और अल्लाह सब कुछ जानता है{35} उन घरों में जिन्हें बलन्द करने का अल्लाह ने हुक्म दिया है(7)
(7) और उनकी तअज़ीम और पाकी की. मुराद इन घरों से मस्जिदें हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से फ़रमाया मस्जिदें बैतुल्लाह हैं ज़मीन में.

और उनमें उसका नाम लिया जाता है अल्लाह की तस्बीह करते है उनमें सुब्ह और शाम(8){36}
(8) तस्बीह से मुराद नमाज़ें हैं. सुब्ह की तस्बीह से फ़ज्र और शाम से ज़ोहर, अस्र, मग़रिब और इशा मुराद हैं.

वो मर्द जिन्हें ग़ाफ़िल नहीं करता कोई सौदा और न ख़रीद फ़रोख्त अल्लाह की याद(9)
(9) और उसके दिल तथा ज़बान से ज़िक्र करने और नमाज़ के वक़्तों पर मस्जिदों की हाज़िरी से.

और नमाज़ क़ायम रखने(10)
(10) और उन्हें वक़्त पर अदा करने से. हज़रत इब्ने उमर रदियल्लाहो अन्हो बाज़ार में थे. मस्जिद में नमाज़ के लिये इक़ामत कही गई. आपने देखा कि बाज़ार वाले उठे और दुकानें बन्दे करके मस्जिद में दाख़िल हो गए. तो फ़रमाया कि आयत रिजालुन ला तुल्हीहिम यानी वो मर्द जिन्हें ग़ाफ़िल नहीं करता कोई सौदा….. ऐसे ही लोगों के हक़ में है.

और ज़कात देने से(11)
(11) उसके वक़्त पर.

डरते हैं उस दिन से जिसमें उलट जाएंगे दिल और आँखें(12){37}
(12) दिलों का उलट जाना यह है कि डर की सख़्ती और बेचैनी से उलट कर गले तक चढ जाएंगे न बाहर निकले ने नीचे उतरें. और आँखे ऊपर चढ़ जाएगी. या मानी ये हैं कि काफ़िरों के दिल कुफ़्र और शिर्क से ईमान और यक़ीन की तरफ़ पलट जाएंगे और आँखों से पर्दे उठ जाएंगे, यह तो उस दिन का बयान है. आयत में यह इरशाद फ़रमाया गया कि वो फ़रमाँबरदार बन्दे जो ज़िक्र और इताअत में निहायत मुस्तइद रहते हैं और इबादत की अदायगी में सरगर्म रहते हैं. इस हुस्ने अमल के बावज़ूद उस रोज़ से डरे रहते हैं और समझते हैं कि अल्लाह तआला की इबादत का हक़ अदा न हो सका.

ताकि अल्लाह उन्हें बदला दे उनके सब से बेहतर काम का और अपने फ़ज़्ल (कृपा) से उन्हें इनाम ज़्यादा दे, और अल्लाह रोज़ी देता है जिसे चाहे बेगिन्ती{38} और जो काफ़िर हुए उनके काम ऐसे हैं जैसे धूप में चमकता रेता किसी जंगल में कि प्यासा उसे पानी समझे, यहां तक जब उसके पास आया तो उसे कुछ न पाया(13)
(13) यानी पानी समझ कर उसकी तलाश में चला. जब वहाँ पहुंचा तो पानी का नामो निशान न था. ऐसे ही काफ़िर अपने ख़याल में नेकियाँ करता है और समझता है कि अल्लाह तआला से उसका सवाब पाएगा. जब क़यामत की मंज़िलों में पहुंचेगा तो सवाब न पाएगा बल्कि बड़े अज़ाब में जकड़ा जाएगा और उस वक़्त उसकी हसरत और उसका ग़म प्यास से कहीं ज़्यादा होगा.

और अल्लाह को अपने क़रीब पाया तो उसने उसका हिसाब पूरा भर दिया, और अल्लाह जल्द हिसाब कर लेता है(14){39}
(14) काफ़िरों के कर्मों की मिसाल ऐसी है.

या जैसे अंधेरियां किसी कुंडे के (गहराई वाले) दरिया में(15)
(15) समन्दरों की गहराई में.

उसके ऊपर मौज, मौज के ऊपर और मौज, उसके ऊपर बादल, अंधेरे हैं एक पर एक(16)
(16) एक अंधेरा, दरिया की गहराई का, उसपर एक और अंधेरा, मौजों के ज़ोर का, उसपर और अंधेरा, बादलों की घिरी हुई घटा का. इन अंधेरियों की सख़्ती का यह आलम कि जो इस में हो वह….

जब अपना हाथ निकाले तो सुझाई देता मालूम न हो, (17)
(17)  जबकि अपना हाथ बहुत क़रीब अपने जिस्म का अंग है, जब वह भी नज़र न आए तो और दूसरी चीज़ क्या नज़र आएगी. ऐसा ही हाल है काफ़िर का कि वह ग़लत अक़ीदों और झूठी करनी व कहनी के अंधेरों में गिरफ़्तार है. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि दरिया के कुण्डे और उसकी गहराई से काफ़िर के दिल को और मौज़ों से जिहालत और शक और हैरत को जो काफ़िर के दिल पर छाए हुए हैं और बादलों से मोहर को जो उनके दिलों पर है, उपमा दी गई है.

और जिसे अल्लाह नूर न दे उसके लिये कहीं नूर नहीं(18){40}
(18) रास्ता वही पाता है जिसे वह राह दे.