सूरए इब्राहीम

सूरए  इब्राहीम

सूरए इब्राहीम मक्का में उतरी, इसमें 52 आयतें, सात रूकू हैं

पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए इब्राहीम मक्की है सिवाय आयत “अलम तरा इलल्लज़ीना बद्दलू नेअमतल्लाहे कुफ़रन”और  इसके बाद वाली आयत के. इस सूरत में सात रूकू, बावन आयतें, आठ सौ इकसठ कलिमे और तीन हज़ार चार सौ चौंतीस अक्षर हैं.

अलिफ़ लाम रा, एक किताब है(2)
(2) यह क़ुरआन शरीफ़.

कि हमने तुम्हारी तरफ़ उतारी कि तुम लोगों को(3)
(3) कुफ़्र व गुमराही व जिहालत व बहकावे की.

अंधेरियों से(4)
(4) ईमान के.

उजाले में लाओ (5)
(5) ज़ुलमात को बहु वचन और नूर को एक वचन से बयान फ़रमाने में मक़सद यह है कि दीने हक़ की राह एक  है और कुफ़्र और गुमराही के तरीक़े बहुत.

उनके रब के हुक्म से उसकी राह(6)
(6) यानी दीने इस्लाम.

की तरफ़ जो इज़्ज़त वाला सब ख़ूबियों वाला है अल्लाह{1}कि उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में (7)
(7) वह सब का ख़ालिक़ और मालिक है, सब उसके बन्दे और ममलूक, तो उसकी इबादत सब पर लाज़िम और उसके सिवा किसी की इबादत रवा नहीं.

और काफ़िरों की ख़राबी है एक सख़्त अज़ाब से{2} जिन्हें आख़िरत से दुनिया की ज़िन्दग़ी प्यारी है और अल्लाह की राह से रोकते (8)
(8) और लोगों को दीने इलाही क़ुबूल करने से रोकते है.

और उसमें कजी चाहते है. वो दूर की गुमराही में है(9){3}
(9) कि सच्चाई से बहुत दूर हो गए हैं.

और हमने हर रसूल उसकी क़ौम ही की ज़बान में भेजा (10)
(10) जिसमें वह रसूल बनाकर भेजा गया. चाहे उसकी दअवत आम हो और दूसरी क़ौमो और दूसरे मुल्कों पर भी उसका अनुकरण लाज़िम हो जैसा कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत तमाम आदमियों और जिन्नों  बल्कि सारी ख़ल्क की तरफ़ है और आप सब के नबी  हैं जैसा कि क़ुरआने करीम में फ़रमाया गया “लियकूना लिलआलमीना नज़ीरा” (यानी उतारा क़ुरआन  अपने बन्दे पर जो सारे जगत को डर सुनाने वाला हो. सुरए फ़ुरक़ान, आयत 1).

कि वह उन्हें साफ़ बताए (11)
(11) और जब उसकी क़ौम अच्छी तरह समझ ले तो दूसरी क़ौमों को अनुवाद के ज़रिये से वो आदेश पहुंचा दिया जाएं और उनके मानी समझा दिये जाएं. कुछ मफ़स्सिरों ने इस आयत की तफ़सीर में ये भी फ़रमाया है कि “क़ौमिही” की ज़मीर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरफ़ पलटती है और मानी ये हैं कि हमने हर रसूल को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ज़बान यानी अरबी में वही फ़रमाई. ये मानी भी एक रिवायत में आए हैं कि वही हमेशा अरबी ज़बान में उतरी फिर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम ने अपनी क़ौमों के लिये उनकी ज़बानों में अनुवाद फ़रमा दिया. (इत्क़ान, हुसैनी) इससे मालूम होता है कि अरबी तमाम ज़बानों में सबसे अफ़ज़ल है.

फिर अल्लाह गुमराह करता है जिसे चाहे और वही इज़्ज़त हिकमत वाला है{4} और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानियां(12)
(12) जैसे  लाठी और रौशन हथैली वग़ैरह, साफ़ चमत्कार.

लेकर भेजा कि अपनी क़ौम को अंधेरियों से(13)
(13) कुफ़्र की निकाल कर, ईमान के-

उजाले में ला और उन्हें अल्लाह के दिन याद दिला(14)
(14) क़ामूस में है कि अय्यामिल्लाह से अल्लाह की नेअमतें मुराद हैं. हज़रत इब्ने अब्बास व उबई बिन कअब व मुजाहिद व क़तादा ने भी “अय्यामिल्लाह” की तफ़सीर अल्लाह की नेअमतें फ़रमाई. मुक़ातिल का क़ौल है कि “अय्यामिल्लाह” से वो बड़ी बड़ी घटनाएं मुराद हैं जो अल्लाह के हुक्म से घटीं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि अय्यामिल्लाह से वो दिन मुराद हैं जिनमें अल्लाह ने अपने बन्दों पर इनाम किये जैसे कि बनी इस्राईल पर मन्न और सलवा उतारने का दिन, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिये दरिया में रास्ता बनाने का दिन.(ख़ाज़िन, मदारिक व मुफ़र्रदाते राग़िब). इन अय्यामिल्लाह में सब से बड़ी नेअमत के दिन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की पैदाइश और मेअराज के दिन हैं, उनकी याद क़ायम करना भी इस आयत के हुक्म में दाख़िल हें. इसी तरह और बुज़ुर्गों पर जो अल्लाह की नेअमतें हुई या जिन दिनों में वो महान घटनाएं पेश आई जैसा कि दसवीं मुहर्रम को कर्बला का वाक़िआ, उनकी यादगारें क़ायम करना भी “अल्लाह के दिनों की याद” में शामिल है. कुछ लोग मीलाद शरीफ़, मेअराज शरीफ़ और ज़िक्रे शहादत के दिनों के मख़सूस किये जाने में कलाम करते हैं. उन्हें इस आयत से नसीहत पकड़नी चाहिये.

बेशक उसमें निशानियां हैं हर बड़े सब्र वाले शुक्र करने वाले को{5}और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा(15)
(15)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का अपनी क़ौम को यह इरशाद फ़रमाना “अल्लाह के दिनों की याद” की तअमील है.

याद करो अपने ऊपर अल्लाह का एहसान जब उसने तुम्हें फ़िरऔन वालों से निजात दी जो तुमको बुरी मार देते थे और तुम्हारे बेटों को ज़िबह करते और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते और उसमें(16)तुम्हारे रब का बड़ा फ़ज़्ल हुआ{6}
(16) यानी निजात देने में.

सूरए – इब्राहीम -दूसरा रूकू

सूरए   – इब्राहीम -दूसरा रूकू



और याद करो जब तुम्हारे रब ने सुना दिया कि अगर एहसान मानोगे तो मैं तुम्हें और दूंगा(1)
(1) इस आयत से मालूम हुआ कि शुक्र से नेअमत ज़्यादा होती है. शुक्र की अस्ल यह है कि आदमी नेअमत का तसव्वुर और उसका इज़हार करे. शुक्र की हक़ीक़त यह है कि देने वाले की नेअमत का उसकी तअज़ीम के साथ ऐतिराफ़ करे और नफ़्स को उसका ख़ूगर बनाए. यहाँ एक बारीकी है वह यह कि बन्दा जब अल्लाह तआला की नेअमतों और उसके तरह तरह के फ़ज़्ल व करम और ऐहसान का अध्ययन करता है तो उसके शुक्र में लग जाता है. इससे नेअमतें ज़्यादा होती हैं और बन्दे के दिल में अल्लाह तआला की महब्बत बढ़ती चली जाती है. यह मक़ाम बहुत बरतर है और इससे ऊंचा मक़ाम यह है कि नेअमत देने वाले की महब्बत यहाँ तक ग़ालिब हो कि दिल को नेअमतों की तरफ़ खिंचाव बाक़ी न रहे. यह मकाम सिद्दीकों का है. अल्लाह तआला अपने फ़ज़्ल से हमें शुक्र की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए.

और अगर नाशुक्री करो तो मेरा अज़ाब सख़्त है {7} और मूसा ने कहा अगर तुम और ज़मीन में जितने हैं सब काफ़िर हो जाओ(2)
(2) तो तुम ही नुक़सान पाओगे और तुम ही नेअमतों से मेहरूम रहोगे.

तो बेशक अल्लाह बेपर्वाह सब ख़ूबियों वाला है{8}क्या तुम्हें उनकी ख़बरें न आई जो तुम से पहले थीं नूह की क़ौम और आद और समूद और जो उनके बाद हुए, उन्हें अल्लाह ही जाने(3)
(3) कितने थे.

उनके पास उसके रसूल रौशन दलीलें लेकर आए(4)
(4) और उन्होंने चमत्कार दिखाए.

तो वो अपने हाथ(5)
(5) अत्यन्त क्रोध से.

अपने मुंह की तरफ़ ले गए(6)
(6) हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि वो ग़ुस्से में आकर अपने हाथ काटने लगे. हज़रत इब्ने अब्बास ने फ़रमाया कि उन्होंने किताबुल्लाह सुनकर हैरत से अपने मुंह पर हाथ रखे. ग़रज यह कोई न कोई इन्कार की अदा थी.

और बोले हम इन्कारी हें उसके जो तुम्हारे हाथ भेजा गया और जिस राह (7)
(7) यानी तौहीद और ईमान.

की तरफ़ हमें बुलाते हो इसमें हमें वह शक है कि बात खुलने नहीं देता{9}उनके रसूलों ने कहा क्या अल्लाह में शक है(8)
(8) क्या उसकी तौहीद में हिचकिचाहट है. यह कैसे हो सकता है. उसकी दलीलें तो अत्यन्त ज़ाहिर हैं.

आसमान और ज़मीन का बनाने वाला, तुम्हें बुलाता है(9)
(9) अपनी ताअत और ईमान की तरफ़.

कि तुम्हारे कुछ गुनाह बख़्शे(10)
(10) जब तुम ईमान ले आओ, इसलिये कि इस्लाम लाने के बाद पहले के  गुनाह बख़्श दिये जाते हैं सिवाए बन्दो के हुक़ूक़ के, और इसी लिये कुछ गुनाह फ़रमाया.

और मौत के निश्चित वक़्त तक तुम्हारी ज़िन्दग़ी बेअज़ाब काट दे, बोले तुम तो हमीं जैसे आदमी हो(11)
(11) ज़ाहिर में हमें अपने जैसे मालूम होते हो फिर कैसे माना जाए कि हम तो नबी न हुए और तुम्हें यह फ़ज़ीलत मिल गई.

तुम चाहते हों कि हमें उससे अलग रखो जो हमारे बाप दादा पूजते थे(12)
(12) यानी बुत परस्ती से.

अब कोई रौशन सनद (प्रमाण) हमारे पास ले आओ(13){10}
(13) जिससे तुम्हारे दावे की सच्चाई साबित हो. यह कलाम उनका दुश्मनी और सरकशी से था और हालांकि नबी आयतें ला चुके थे, चमत्कार दिखा चुके थे, फिर भी उन्होंने नई सनद मांगी और पेश किये हुए चमत्कार को शून्य क़रार दिया.

उनके रसूलों ने उनसे कहा (14)
(14)अच्छा यही मानो.

हम हैं तो तुम्हारी तरह इन्सान मगर अल्लाह अपने बन्दों में जिस पर चाहे एहसान फ़रमाता है(15)  
(15)और नबुव्वत और रिसालत के साथ बुज़ुर्गी देता है और इस महान उपाधि के साथ नवाज़ता है.

और हमारा काम नहीं कि हम तुम्हारे पास कुछ सनद ले आएं मगर अल्लाह के हुक्म से और मुसलमानों को अल्लाह ही पर भरोसा चाहिये(16) {11}
(16)  वही दुश्मनों का शर दफ़ा करता है और उससे महफ़ूज़ रखता है.

और हमें क्या हुआ कि अल्लाह पर भरोसा न करें(17)
(17) हमसे ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि हम जानते हैं कि जो कुछ अल्लाह ने लिख दिया है वही होगा. हमें उसपर पूरा भरोसा और भरपूर ऐतिमाद है. अबू तुराब रदियल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि तवक्क़ुल बदन को बन्दगी में डालना, दिल को अल्लाह के साथ जोड़े रखना, अता पर शुक्र, बला पर सब्र का नाम है.

उसने तो हमारी राहें हमें दिखा दीं (18)
(18) और हिदायत व निजात के तरीक़े हम पर खोल दिये. हम जानते हैं कि सारे काम उसकी क़ुदरत और इख़्तियार में हैं.
और तुम जो हमें सता रहे हो हम ज़रूर इस पर सब्र करेंगे और भरोसा करने वालों को अल्लाह ही पर भरोसा चाहिये{12}

सूरए इब्राहीम-तीसरा रूकू

सूरए  इब्राहीम-तीसरा रूकू



और काफ़िरों ने अपने रसूलों से कहा हम ज़रूर तुम्हें अपनी ज़मीन (1)
(1) यानी अपने इलाक़े.

से निकाल देंगे या तुम हमारे दीन पर हो जाओ, तो उन्हें उनके रब ने वही (देववाणी) भेजी कि हम ज़रूर इन ज़ालिमों को हलाक करेंगे{13} और ज़रूर हम तुमको उनके बाद ज़मीन में बसाएंगे(2)
(2) हदीस शरीफ़ में है, जो अपने हमसाए को तक़लीफ़ देता है अल्लाह उसके घर का उसी हमसाए को मालिक बनाता है.

यह उसके लिये है जो(3)
(3) क़यामत के दिन.

मेरे हुज़ूर खड़े होने से डरे और मैं ने जो अज़ाब का हुक्म सुनाया है उससे ख़ौफ़ करे{14} और उन्होंने(4)
(4) यानी नबियों ने अल्लाह तआला से मदद तलब की या उम्मतों ने अपने और रसूलों के बीच अल्लाह तआला से.

फ़ैसला मांगा और हर सरकश हटधर्म नामुराद हुआ(5){15}
(5) मानी ये हैं कि नबियों की मदद फ़रमाई गई और उन्हें विजय दी गई और सच्चाई के दुश्मन सरकश काफ़िर नामुराद हुए और उनके छुटकारे की कोई सबील न रही.

जहन्नम उसके पीछे लगा और उसे पीप का पानी पिलाया जाएगा{16} मुश्किल से उसका थोड़ा थोड़ा घूंट लेगा और गले से नीचे उतारने की उम्मीद न होगी(6)
(6) हदीस शरीफ़ में है कि जहन्नमी को पीप का पानी पिलाया जाएगा जब वह मुंह के पास जाएगा तो उसको बहुत नागवार मालूम होगा. जब और क़रीब होगा तो उससे चेहरा भुन जाएगा और सर तक की ख़ाल जल कर गिर पड़ेगी. जब पियेगा तो आंते कट कर निकल जाएंगी. (अल्लाह की पनाह)

और उसे हर तरफ़ से मौत आएगी, और मरेगा नहीं और उसके पीछे एक गाढ़ा अज़ाब(7){17}
(7) यानी हर अज़ाब के बाद उससे ज़्यादा सख़्त और बुरा अज़ाब होगा. (अल्लाह की पनाह दोज़ख़ के अज़ाब से और अल्लाह की ग़ज़ब से).

अपने रब से इन्कारीयों का हाल ऐसा है कि उनके काम हैं(8)
(8) जिनको वो नेक काम समझते थे जैसे कि मोहताजों की मदद, मुसाफ़िरों की सहायता और बीमारों की ख़बरगीरी वग़ैरह, चूंकि ईमान पर मबनी नहीं इसलिये वो सब बेकार हैं और उनकी ऐसी मिसाल है.

जैसे राख कि उस पर हवा का सख़्त झौंका आया आंधी के दिन में(9)
(9) और वह सब उड़ गई और उसके कण बिखर गए और उसमें कुछ बाक़ी न रहा. यही हाल है काफ़िरों के कर्मों का कि उनके शिर्क और कुफ़्र की वजह से सब बर्बाद और बातिल हो गए.

सारी कमाई में से कुछ हाथ न लगा, यही है दूर की गुमराही{18} क्या तूने न देखा कि अल्लाह ने आसमान व ज़मीन हक़ के साथ बनाए(10)
(10) उनमें बड़ी हिकमतें हैं और उनकी पैदाइश बेकार नहीं है.

अगर चाहे तो तुम्हें ले जाए(11)
(11) शून्य कर दे, ख़त्म कर दे.

और एक नई मख़लूक़ (प्राणी-वर्ग) ले आए (12){19}
(12) बजाय तुम्हारे जो फ़रमाँबरदार हो, उसकी क़ुदरत से यह क्या दूर है जो आसमान और ज़मीन पैदा करने पर क़ादिर है.

और यह(13)
(13) ख़त्म करना और मौजूद फ़रमाना.

अल्लाह पर कुछ दुशवार नहीं {20} और सब अल्लाह के हुज़ूर (14)
(14) क़यामत के दिन.

खुल्लम खुल्ला हाज़िर होंगे तो जो कमज़ोर थे(15)
(15) और दौलतमन्दों और प्रभावशाली लोगों के अनुकरण में उन्होंने कुफ़्र किया था.

बड़ाई वालों से कहेंगे(16)
(16) कि दीन और अक़ीदों में.

हम तुम्हारे ताबे थे क्या तुम से हो सकता है कि अल्लाह के अज़ाब में से कुछ हम पर से टाल दो,(17)
(17)  यह कलाम उनका फटकार और दुश्मनी के तौर पर होगा कि दुनिया में तुम ने गुमराह किया था और सीधी राह से रोका था और बढ़ बढ़ कर बातें किया करते थे अब वो दावे क्या हुए. अब उस अज़ाब में से ज़रा सा तो टालो. काफ़िरों के सरदार इसके जवाब में.

कहेंगे अल्लाह हमें हिदायत करता तो हम तुम्हें करते,(18)
(18)  जब ख़ुद ही गुमराह हो रहे थे तो तुम्हें क्या राह दिखाते. अब छुटकारे की कोई राह नहीं हैं न काफ़िरों के लिये शफ़ाअत. आओ रोएं और फ़रियाद करें. पांच सौ बरस फ़रियाद करेंगे, रोएंगे और कुछ काम न आएगा तो कहेंगे कि अब सब्र करके देखो शायद उससे कुछ काम निकले. पांच सौ बरस सब्र करेंगे, वह भी काम न आएगा तो कहेंगे कि.

हम पर एक सा है चाहे बेक़रारी करें या सब्र से रहें हमें कहीं पनाह नहीं{21}

सूरए इब्राहीम-चौथा रूकू

सूरए इब्राहीम-चौथा रूकू

और शैतान कहेगा जब फ़ैसला हो चुकेगा(1)
(1) और हिसाब से फ़ारिग़ हो जाएंगे. जन्नती जन्नत का और दोज़ख़ी दोज़ख़ का हुक्म पाकर जन्नत और दोज़ख़ में दाख़िल हो जाएंगे. दोज़ख़ी शैतान पर मलामत करेंगे और उसको बुरा कहेंगे कि बदनसीब तूने हमें गुमराह करके इस मुसीबत में डाला तो वह जवाब देगा कि.

बेशक अल्लाह ने तुमको सच्चा वादा दिया था(2)
(2) कि मरने के बाद फिर उठना है और आख़िरत में नेकियों और बदियों का बदला मिलेगा. अल्लाह का वादा सच्चा हुआ.

और मैं ने जो तुमको वादा दिया था(3)
(3) कि न मरने के बाद उठना, न जज़ा, न जन्नत, न दोज़ख़.

वह मैं ने तुम से झूटा किया और मेरा तुम पर कुछ क़ाबू न था(4)
(4) न मैं ने तुम्हें अपने अनुकरण पर मजबूर किया था, या यह कि मैं ने अपने वादे पर तुम्हारे सामने कोई तर्क और प्रमाण पेश नहीं किया था.

मगर यही कि मैंने तुमको (5)
(5) वसवसे डालकर गुमराही की तरफ़.

बुलाया तुमने मेरी मान ली(6)
(6) और बग़ैर तर्क और प्रमाण के तुम मेरे बहकाए में आगए जब कि अल्लाह तआला ने तुमसे वादा फ़रमाया था कि शैतान के बहकावे में न आना. और उसके रसूल उसकी तरफ़ से दलीलें लेकर तुम्हारे पास आए और उन्होंने तर्क पेश किये और प्रमाण क़ायम किये तो तुमपर ख़ुद लाज़िम था कि तुम उनका अनुकरण करते और उनकी रौशन दलीलों और खुले चमत्कार से मुंह न फेरते और मेरी बात न मानते और मेरी तरफ़ इल्तिफ़ात न करते, मगर तुमने ऐसा न किया.

तो अब मुझपर इल्ज़ाम न रखो (7)
(7) क्योंकि मैं दुश्मन हूँ और मेरी दुश्मनी ज़ाहिर है और दुश्मन से भले की आशा रखना ही मूखर्ता है तो…..

ख़ुद अपने ऊपर इल्ज़ाम रखो न मैं तुम्हारी फ़रियाद को पहुंच सकूं न तुम मेरी फ़रियाद को पहुंच सको, वह जो पहले तुमने मुझे शरीक ठहराया था (8)
(8) अल्लाह का उसकी इबादत में.(ख़ाज़िन)

मैं उससे सख़्त बेज़ार हूँ बेशक ज़ालिमों के लिये दर्दनाक अज़ाब है{22}और वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये, वो बाग़ों में दाख़िल किये जाएंगे जिनके नीचे नहरें बहतीं , हमेशा उनमें रहें अपने रब के हुक्म से, उसमें उनके मिलते वक़्त का इकराम (सत्कार) सलाम है(9){23}
(9) अल्लाह तआला की तरफ़ से और फ़रिश्तों की तरफ़ से और आपस में एक दूसरे की तरफ़ से.

क्या तुमने न देखा अल्लाह ने कैसी मिसाल बयान फ़रमाई पाक़ीज़ा बात की(10)
(10) यानी कलिमए तौहीद की.

जैसे पाक़ीज़ा दरख़्त जिसकी जड़ क़ायम और शाख़ें आसमान में {24} हर वक़्त अपना फल देता है अपने रब के हुक्म से(11)
(11) ऐसे ही कलिमए ईमान है कि उसकी जड़ मूमिन के दिल की ज़मीन में साबित और मज़बूत होती है और उसकी शाख़ें यानी अमल आसमान में पहुंचते हैं और उसके फल यानी बरकत और सवाब हर वक़्त हासिल होते हैं. हदीस शरीफ में है, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सहाबए किराम से फ़रमाया, वह दरख़्त बताओ जो मूमिन की तरह है, उसके पत्ते नहीं गिरते और हर वक़्त फल देता है (यानी जिस तरह मूमिन के अमल अकारत नहीं होते) और उसकी बरकतें हर वक़्त हासिल रहती हैं. सहाबा ने सोचा कि ऐसा कौन सा दरख़्त है जिसके पत्ते न गिरते हों और उसका फल हर वक़्त मौजूद रहता हो, चुनांचे जंगल के दरख़्तों के नाम लिये. जब ऐसा कोई दरख़्त ख़याल में न आया तो हुज़ूर से दरियाफ़्त किया. फ़रमाया, वह खजूर का दरख़्त है. हज़रत इब्ने उमर रदियल्लाहो अन्हो ने अपने वालिद हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो से अर्ज़ किया कि जब हुज़ूर ने दरियाफ़्त फ़रमाया था तो मेरे दिल में आया था कि खजूर का दरख़्त है लेकिन बड़े बड़े सहाबा तशरीफ़ फ़रमा थे, मैं छोटा था इसलिये मैं अदब से खामोश रहा. हज़रत उमर ने फ़रमाया अगर तुम बता देते तो मुझे बड़ी ख़ुशी होती.

और अल्लाह लोगों के लिये मिसालें बयान फ़रमाता है कि कहीं वो समझें(12){25}
(12) और ईमान लाएं, क्योंकि मिसालों से मानी अच्छी तरह दिल में बैठ जाते हैं.

और गन्दी बात(13)
(13) यानी कुफ़्री कलाम.

की मिसाल जैसे एक गन्दा पेड़ (14)
(14) इन्द्रायन की तरह का जिसका मज़ा कड़वा, बू नागवार या लहसन की तरह बदबूदार.

कि ज़मीन के ऊपर काट दिया गया अब उसे कोई क़ियाम (स्थिरता) नहीं(15){26}
(15) क्योंकि जड़ उसकी ज़मीन में साबित और मज़बूत नहीं, शाख़ें उसकी बलन्द नहीं होती. यही हाल है कुफ़्री कलाम का कि उसकी कोई अस्ल साबित नहीं और कोई तर्क और प्रमाण नहीं रखता. जिससे मज़बूती हो, न उसमें भलाई और बरकत कि वह क़ुबूलियत की ऊंचाई पर पहुंच सके.

अल्लाह साबित रखता है ईमान वालों को हक़ बात पर(16)
(16) यानी ईमान का कलिमा.

दुनिया की ज़िन्दगी में(17)
(17) कि वो परेशानी और मुसीबत के वक़्तों में भी साबिर और अडिग रहते हैं और सच्चाई की राह और दीन से नहीं हटते यहाँ तक कि उनकी ज़िन्दगी का अन्त ईमान पर होता है.

और आख़िरत में(18)
(18) यानी क़ब्र में कि आख़िरत की मंज़िलों की पहली मंज़िल है. जब मुन्कर -नकीर आकर उनसे पूछते हैं कि तुम्हारा रब कौन है, तुम्हारा दीन क्या है, और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरफ़ इशारा करके दरियाफ़्त करते हैं कि इनकी निस्बत तू क्या कहता है. तो मूमिन इस मंज़िल में अल्लाह के फ़ज़्ल से जमा रहता है कह देता है कि मेरा रब अल्लाह है, मेरा दीन इस्लाम है और यह मेरे नबी हैं मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम, अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल. फिर उसकी क़ब्र चौड़ी कर दी जाती है और उसमें जन्नत की हवाएं और ख़ुश्बुएं आती हैं और वह रौशन कर दी जाती है और आसमान से पुकार होती है कि मेरे बन्दे ने सच कहा.

और अल्लाह ज़ालिमों को गुमराह करता है(19)
(19) वो क़ब्र में मुन्कर-नकीर को सही जवाब नहीं दे सकते और हर सवाल के जवाब में यही कहते है हाय हाय मैं नहीं जानता. आसमान से पुकार होती है मेरा बन्दा झूटा है इसके लिये आग का फ़र्श बिछाओ, दोज़ख़ का लिबास पहनाओ, दोज़ख़ की तरफ़ दरवाज़ा खोल दो, उसको दोज़ख़ की गर्मी और दोज़ख़ की लपट पहुंचती है और क़ब्र इतनी तंग हो जाती है कि एक तरफ़ की पसलियाँ दूसरी तरफ़ आ जाती हैं. अज़ाब करने वाले फ़रिश्ते उसपर मुक़र्रकर दिये जाते हैं जो उसे लोहे के गदाओ से मारते हैं. (अल्लाह हमें क़ब्र के अज़ाब से मेहफ़ूज़ रखे और ईमान में मज़बूत रखे- आमीन)

और अल्लाह जो चाहे करे{27}

सूरए इब्राहीम-पांचवाँ रूकू

सूरए इब्राहीम-पांचवाँ रूकू

क्या तुमने उन्हें न देखा जिन्होंने अल्लाह की नेअमत नाशुक्री से बदल दी(1)
(1) बुख़ारी शरीफ़ की हदीस में है कि उन लोगों से मुराद मक्का के काफ़िर हैं और वह नेअमत जिसकी शुक्रगुज़ारी उन्होंने न की वह अल्लाह के हबीब हैं सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की अल्लाह तआला ने उनके वुजूद से इस उम्मत को नवाज़ा और उनकी ज़ियारत का सौभाग्य दिया. लाज़िम था कि इस महान नेअमत का शुक्र लाते और उनका अनुकरण करके और ज़्यादा मेहरबानी के हक़दार बनते. इसके बदले उन्होंने नाशुक्री की और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का इन्कार किया और अपनी क़ौम को, जो दीन में उनके सहमत थे, हलाकत के मुंह में पहुंचाया.

और अपनी क़ौम को तबाही के घर ला उतारा {28} वो जो दोज़ख़ है उसके अन्दर जाएंगे और  क्या ही बुरी ठहरने की जगह {29} और  अल्लाह के लिये बराबर वाले ठहराए(2)
(2) यानी बुतों को उसका शरीक किया.

कि उसकी राह से बहकावें, तुम फ़रमाओ(3)
(3) ऐ मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) इन काफ़िरों से, कि थोड़े दिन दुनिया कि ख़्वाहिशों का…

कुछ बरत लो कि तुम्हारा अंजाम आग है(4){30}
(4) आख़िरत में.

मेरे उन बन्दो से फ़रमाओ जो ईमान लाए कि नमाज़ क़ायम रखें और  हमारे दिये में से कुछ हमारी राह में छुपे और ज़ाहिर ख़र्च करें उस दिन के आने से पहले जिसमें न सौदागरी होगी(5)
(5) कि ख़रीद फ़रोख़्त यानी क्रय विक्रय यानी माली मुआवज़े और फ़िदिये ही से कुछ नफ़ा उठाया जा सके.

न याराना(6){31}
(6) कि उस से नफ़ा उठाया जाए बल्कि बहुत से दोस्त एक दूसरे के दुश्मन हो जाएंगे. इस आयत में नफ़्सानी और तबई दोस्ती की नफ़ी है और ईमानी दोस्ती जो अल्लाह की महब्बत के कारण से हो वह बाक़ी रहेगी जैसा कि सुरए ज़ुख़रफ़ में फ़रमाया. “अल अख़िल्लाओ यौमइज़िम वअदुहुम लिबअदिन अदुव्वन इल्लल मुत्तक़ीन” (यानी गहरे दोस्त उस दिन एक दूसरे के दु्श्मन होंगे मगर परहेज़गार . सूरए ज़ुख़रफ़, आयत 67)

अल्लाह है जिसने आसमान और  ज़मीन बनाए और  आसमान से पानी उतारा तो उससे कुछ फल तुम्हारे खाने को पैदा किये और  तुम्हारे लिये किश्ती को मुसख़्ख़र (वशीभूत) किया कि उसके हुक्म से दरिया में चले (7)
(7) और इससे तुम फ़ायदे उठाओ.

(8) कि उनसे काम लो.

(9) न थकें न रूकें, तुम उनसे नफ़ा उठाते हो.
और तुम्हारे लिये नदियाँ मुसख़्ख़र की(10){32}
(10) आराम और काम के लिये.

और तुम्हारे लिये सूरज और चांद मुसख़्ख़र किए जो बराबर चल रहे हैं(11)
(11) कि कुफ़्र और गुनाह करके अपने आप पर ज़ुल्म करता है और अपने रब की नेअमत और उसके एहसान का हक़ नहीं मानता. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि इन्सान से यहाँ अबूजहल मुराद है.ज़ुजाज का क़ौल है कि इन्सान इस्मे-जिन्स है, यहाँ इससे काफ़िर मुराद है.

और तुम्हारे लिए रात और दिन मुसख़्ख़र किए(12){33}
(12)

और तुम्हें बहुत कुछ मुंह मांगा दिया और अगर अल्लाह की नेअमतें गिनो तो शुमार न कर सकोगे, बेशक आदमी बड़ा ज़ालिम बड़ा नाशुक्रा है(13){34}
(13)