सूरए हिज्र

सूरए  हिज्र
सूरए हिज्र मक्का में उतरी, इसमें 99 आयतें और 6 रूकू हैं.

पहला रूकू


अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
अलिफ़-लाम-रा! ये आयतें हैं किताब और रौशन क़ुरआन की{1}

(1) सूरए हिज्र  मक्की है, इसमें छ: रूकू निनानवे आयतें हैं छ: सौ चव्वन कलिमे और दो हज़ार सात सौ आठ अक्षर है.

चौदहवां पारा – रूबमा
(सूरए हिज्र -पहला रूकू जारी)

बहुत आरज़ूएं करेंगे काफ़िर(2)
(2) ये आरज़ूएँ, या मौत के वक़्त अजाब देखकर होगी जब काफ़िर को मालूम हो जाएगा कि वह गुमराही में था, या आख़िरत में क़यामत के दिन की सख़्तियों और हौल और अपना अन्त देखकर, ज़ुजाज का क़ौल है कि काफ़िर जब कभी अपने अजा़ब का हाल और मुसलमानों पर अल्लाह की रहमत देखेंगे, हर बार आरज़ूएं करेंगे कि.

काश मुसलमान होते उन्हें छोड़ दो(3){2}
(3) ऐ मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम).

कि खाएं और बरतें(4)
(4) दुनिया की लज़्ज़तें.

और उम्मीद(5)
(5) लम्बी ज़िन्दग़ी, नेअमतों और लज़्ज़तों की, जिसके कारण वो ईमान से मेहरूम हैं.

उन्हें खेल में डाले तो अब जाना चाहते हैं(6){3}
(6) अपना अन्त. इसमें चेतावनी है कि लम्बी उम्मीदों में गिरफ़्तार होना और दुनिया की लज़्ज़तों की तलब में डूब जाना ईमानदार की शान नहीं. हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हु ने फ़रमाया, लम्बी उम्मीदे आख़िरत को भुलाती है और ख़्वाहिशों का अनुकरण सच्चाई से रोकता है.

और जो बस्ती हमने हलाक की उसका एक जाना हुआ नविश्ता (लेखा) था(7){4}
(7) लौहे मेहफ़ूज़ में, उसी निर्धारित समय पर वह हलाक हुई.

कोई गिरोह (जनसमूह) अपने वादे से आगे न बढ़े न पीछे हटे{5}और बोले(8)
(8) मक्का के काफ़िर, और रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से.

कि ऐ वो जिन पर क़ुरआन उतरा बेशक तुम मजनून हो (9){6}
(9) उनका यह क़ौल हंसी उड़ाने के तौर पर था जैसा कि फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की निस्बत कहा था “इन्नारूसूलकुमुल लज़ी उरसिला इलैकुम लमजनूनुन” (यानी बोला, तुम्हारे ये रसूल जो तुम्हारी तरफ़ भेजे गये है. जरूर अक़्ल नहीं रखते- सूरए शुअरा, आयत 27)

हमारे पास फ़रिश्ते क्यों नहीं लाते(10)
(10)जो तुम्हारे रसूल होने क़ुरआन शरीफ़ के अल्लाह की किताब होने की गवाही दें.

अगर तुम सच्चे हो (11){7}
(11)अल्लाह तआला इसके जवाब में फ़रमाता है.

हम फ़रिश्ते बेकार नहीं उतारते और वो उतरें तो उन्हें मुहलत न मिले(12){8}
(12)  फ़िलहाल अज़ाब में गिरफ़्तार कर दिये जाएं

बेशक हमने उतारा है यह क़ुरआन और बेशक हम ख़ुद इसके निगहबान हैं(13){9}
(13) कि फेरबदल और कमी बेशी से इसकी हिफ़ाज़त फ़रमाते हैं.  तमाम जिन्न और इन्सान और सारी सृष्टि के बस में नहीं हैं कि इसमें एक अक्षर की भी कमी बेशी करे या फेर बदल करें. चूंकि अल्लाह तआला ने क़ुरआने करीम की हिफ़ाज़त का वादा फ़रमाया है. इसलिये यह विशेषता सिर्फ क़ुरआन शरीफ़ की है, दूसरी किसी किताब को यह मयस्सर नहीं. यह हिफ़ाज़त कई तरह पर है. एक यह कि क़ुरआने करीम को चमत्कार बनाया कि बशर का कलाम इसमें मिल ही न सके, एक यह कि इसको  ऐतिराज़ और  मुक़ाबले से मेहफ़ूज़ किया कि कोई इस जैसा कलाम बनाने पर क़ादिर न हो, एक यह कि सारी सृष्टि को इसके नेस्त नाबूद और ख़त्म करने या मिटाने से आजिज़ कर दिया कि काफ़िर अपनी सारी सृष्टि दुश्मनी के बावुजूद इस पाक किताब को मिटाने से आजिज़ है.

और बेशक हमने तुमसे पहले अगली उम्मतों में रसूल भेजे{10}और उनके पास कोई रसूल नहीं आता मगर उससे हंसी करते हैं(14){11}
(14) इस आयत में बताया गया कि जिस तरह मक्का के काफ़िरों ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से जिहालत की बातें की और बेअदबी से आपको मजनून या पागल कहा, पुराने ज़माने से काफ़िरों की यही आदत रही है और वो रसूलों के साथ ठट्ठा करते रहे है. इसमें नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है.

ऐसे ही हम उस हंसी को उन मुजरिमों (15)
(15) यानी मक्का के मुश्रिक

के दिलों में राह देते हैं{12} वो उसपर (16)
(16) यानी नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म या क़ुरआन पर.

ईमान नहीं लाते और अगलों की राह पड़ चुकी है(17){13}
(17) कि वो नबियों को झुटलाकर अल्लाह के अज़ाब से हलाक होते रहे हैं, यही हाल उनका है, तो उन्हें अल्लाह के अज़ाब से डरते रहना चाहिये.

और अगर हम उनके लिये आसमान में कोई दरवाज़ा खोल दें कि दिन को उसमें चढ़ते{14} जब भी यही कहते कि हमारी निगाह बांध दी गई. बल्कि हमपर जादू हुआ(18){15}
(18) यानी इन काफ़िरों की दुश्मनी इस दर्ज़े पहुंच गई है कि अगर उनके लिये आसमान में दरवाज़ा खोल दिया जाए और उन्हें उसमें चढ़ना मिले और दिन में उससे गुज़रें और आँखों से देखें, जब भी न मानें और यह कह दें कि हमारी नज़रबन्दी की गई और हम पर जादू हुआ तो जब खुद अपने आँखों देखे से, उन्हें यक़ीन हासिल न हुआ, तो फ़रिश्तों के आने और गवाही देने से, जिसको ये तलब करते हैं, उन्हें क्या फ़ायदा होगा

सूरए – दूसरा रूकू

सूरए   – दूसरा रूकू

और बेशक हमने आसमान मे बुर्ज बनाए(1)
(1) जो गर्दिश (भ्रमण) करने वाले ग्रहों की मंज़िलें हैं, वे बारह हैं. हमल(मेष), सौर (वृषभ), जौज़ा(मिथुन), सरतान(कर्क), असद (सिंह), सम्बला(कन्या), मीज़ान(तुला), अक़रब (वृश्चिक), कौस (धनु), जदी(मकर), दलव(कुम्भ), हूत(मीन).

और उसे देखने वालों के लिये आरास्ता किया(2){16}
(2) सितारों से.

और उसे हमने हर शैतान मरदूद से मेहफ़ूज़ रखा(3){17}
(3) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, शैतान आसमानों में दाख़िल होते थे और वहाँ की ख़बरें ज्योतिषियों के पास लाते थे. जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो शैतान तीन आसमानों से रोक दिये गये. जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की विलादत हुई तो तमाम आसमानों से रोक दिये गये.

मगर जो चोरी छुपे सुनने जाए तो उसके पीछे पड़ता है रौशन शोला(4){18}
(4) शहाब उस सितारे को कहते हैं जो शोले की तरह रौशन होता है और फ़रिश्तें उससे शैतान को मारते हैं.

और हमने ज़मीन फैलाई और उसमें लंगर डाले (5)
(5) पहाड़ों के, ताकि वो सलामत और स्थिर रहे और हरकत न करे.

और उसमें हर चीज़ अंदाज़े से उगाई{19} और तुम्हारे लिये उसमें रोज़ियां कर दीं(6)
(6) ग़ल्ले, फल वग़ैरह.

और वो कर दिये जिन्हें तुम रिज़्क़ नहीं देते(7){20}
(7) दासी, ग़ुलाम, चौपाए और सेवक वग़ैरह.

और कोई ची़ज़ नहीं जिसके हमारे पास ख़ज़ाने न हो(8)
(8) ख़ज़ाने होना, यानी इक़्तिदार, सत्ता और इख़्तियार मानी ये हैं कि हम हर चीज़ के पैदा करने पर क़ादिर है जितनी चाहें और जो अन्दाज़ा हिकमत के मुताबिक हो.

और हम उसे नहीं उतारते मगर एक मालूम अंदाज़ से{21}और हम ने हवाएं भेजीं बादलों को बारवर (फलदायक) करने वालियाँ (9)
(9) आबादियों को पानी से भरती और सैराब करती हैं

तो हमने आसमान से पानी उतारा फिर वह तुम्हें पीने को दिया और तुम कुछ उसके ख़ज़ानची नहीं (10){22}
(10) कि पानी तुम्हारे इख़्तियार में हो, जबकि तुम्हें इसकी हाजत है. इसमें अल्लाह तआला की क़ुदरत और बन्दों की विवशता की बड़ी दलील है.

और बेशक हम ही जिलाएं और हम ही मारें और हम ही वारिस हैं (11){23}
(11) यानी सारी सृष्टि नष्ट होने वाली हैं और हम ही बाकी रहने वालें हैं और मुल्क का दावा करने वाले की मिल्क ज़ाया (नष्ट) हो जाएगी और सब मालिकों का मालिक बाक़ी रहेगा.

और बेशक हमें मअलूम हैं जो तुम में आगे बढ़े और बेशक हमें मअलूम है जो तुम में पीछे रहे(12){24}
(12) यानी पहली उम्मतें और उम्मतें मुहम्मदिया, जो उम्मतों में सबसे पिछली है या वो जो ताअत  और भलाई में पहल करने वाले हैं और जो सुस्ती से पीछे रह जाते वाले हैं या वो जो बुज़ुर्गी हासिल करने के लिये आगे बढ़ने वाले हैं और वो जो उज्र से पीछे रह जाने वाले हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने नमाज़ की जमाअत की पहली सफ़ की अच्छाईयाँ बयान की, तो सहाबा में पहली सफ़ में शामिल होने की होड़ लगी और उनकी भीड़ होने लगी. जिन लोगो के मकान मस्जिद शरीफ़ से दूर थे, वो अपने मकान बेचकर क़रीब में मकान ख़रीदने की कोशिश करने लगे ताकि पहली सफ़ में जगह मिलने से कभी मेहरूम न हो. इसपर यह आयत उतरी और उन्हें तसल्ली दी गई कि सवाब नियतों पर है और अल्लाह तआला अगलो को भी जानता है और जो उज्र से पीछे रह गए हैं उनको भी जानता है और उनकी नियतों से भी बाख़बर है और उसपर कुछ छुपा हुआ नहीं हैं.

और बेशक तुम्हारा रब ही उन्हें क़यामत मे उठाएगा(13)बेशक वही इल्म व हिकमत वाला है{25}
(13) जिस हाल पर वो मरे होंगे.

सूरए – तीसरा रूकू

सूरए   – तीसरा रूकू



और बेशक हमने आदमी को (1)
(1) यानी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सूखी.

बजती हुई मिट्टी से बनाया जो अस्ल में एक सियाह गारा थी(2){26}
(2) अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के पैदा करने का इरादा फ़रमाया तो दस्ते क़ुदरत ने ज़मीन से एक मुट्ठी ख़ाक ली. उसको पानी में ख़मीर किया, जब वह गारा सियाह हो गया और उसमें बू पैदा हुई, तो उसमें इन्सानी सूरत बनाई. फिर वह सूख कर ख़ुश्क हो गया, तो जब हवा उसमें जाती तो वह बजता और उसमें आवाज़ पैदा होती. जब सूरज की गर्मी से वह पक्का हो गया तो उसमें रूह फूंकी और वह इन्सान हो गया.

और जिन्न को उससे पहले बनाया बेधुंए की आग से(3){27}
(3) जो अपनी गर्मी और लताफ़त से मसामों में दाख़िल हो जाती है .

और याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से फ़रमाया कि मैं आदमी को बनाने वाला हूँ बजती मिट्टी से जो बदबूदार सियाह गारे से है{28} तो जब मैं उसे ठीक कर लूं और उसमें अपनी तरफ़ की ख़ास इज़्ज़त वाली रूह फूंक दूं(4)
(4) और उसको ज़िन्दगी अता फ़रमाई.

तो उसके (5)
(5) . . . के आदर और सम्मान.

लिये सिजदे में गिर पड़ना{29} तो जितने फ़रिश्ते थे सब के सब सिजदे में गिरे {30} सिवा इबलीस के, उसने सज्दा वालों का साथ  न माना(6){31}
(6)  और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सज्दा न किया तो अल्लाह तआला ने.

फ़रमाया ऐ इबलीस तुझे क्या हुआ कि सज्दा करने वालों से अलग रहा{32} बोला मुझे ज़ेबा (मुनासिब) नहीं कि बशर को सज्दा करूं जिसे तूने बजती मिट्टी से बनाया जो सियाह बूदार गारे से थी{33} फ़रमाया तू जन्नत से निकल जा कि तू मरदूद है{34} और बेशक क़यामत तक तुझपर लअनत है(7) {35}
(7) कि आसमान और ज़मीन वाले तुमपर लअनत करेंगे और जब क़यामत का दिन आएगा तो उस लअनत के साथ हमेशा के अज़ाब में जकड़ दिया जाएगा जिससे कभी रिहाई न होगी. यह सुनकर शैतान.

बोला ऐ मेरे रब तु मुझे मुहलत दे उस दिन तक कि वो उठाए जाएं(8){36}
(8) यानी क़यामत के दिन तक. इससे शैतान का मतलब यह था कि कभी न मरे, क्योंकि क़यामत के बाद कोई न मरेगा और क़यामत तक की उसने मोहलत मांग ही ली. लेकिन उसकी दुआ को अल्लाह तआला ने इस तरह क़ुबूल किया कि.

फ़रमाया तू उनमें है जिनको मुहलत है{37}उस मालूम वक़्त के दिन तक (9){38}
(9)जिसमें सारी सृष्टि मर जाएगी और वह नफ़खए ऊला है, तो शैतान के मुर्दा रहने की मुद्दत नफ़ख़ए ऊला यानी सूर के पहली बार फूंके जाने से दूसरी बार फूंके जाने तक, चालीस बरस है और उसको इस क़द्र मोहलत देना, उसके सम्मान के लिए नहीं, बल्कि उसकी बला, शक़ावत और अज़ाब की ज़ियादती के लिये है. यह सुनकर.

बोला ऐ रब मेरे क़सम इसकी कि तूने मुझे गुमराह किया मैं उन्हें ज़मीन में भुलावे दूंगा(10)
(10) यानी दुनिया में गुनाहों की रग़बत दिलाऊंगा.

और ज़रूर मैं उन सब को (11)
(11) दिलों में वसवसा डालकर.

बेराह करूंगा{39} मगर जो उनमें तेरे चुने हुए बन्दे हैं(12){40}
(12) जिन्हें तूने अपनी तौहीद और इबादत के लिये बरगुज़ीदा फ़रमा लिया उसपर शैतान का वसवसा और उसका बहकावा न चलेगा.

फ़रमाया यह रास्ता सीधा मेरी तरफ आता है{41} बेशक मेरे(13)
(13) ईमानदार.

बन्दों पर तेरा कुछ क़ाबू नहीं सिवा उन गुमराहों के जो तेरा साथ दें(14){42}
(14) यानी जो काफ़िर कि तेरे अनुयायी और फ़रमाँबरदार हो जाएं और तेरे अनुकरण का इरादा कर लें.

और बेशक जहन्नम उन सबका वादा है(15){43}
(15) इब्लीस का भी और उसका अनुकरण करने वालों का भी.

उसके सात दरवाज़े हैं(16)
(16) यानी सात तबके. इब्ने जुरैह का क़ौल है कि दोज़ख़ के सात दर्जे हैं- जहन्नम, लज़ा, हुतमा, सईर, सक़र, जहीम, हाविया.

हर दरवाज़े के लिये उनमें से एक हिस्सा बटा हुआ है(17){44}
(17) यानी शैतान का अनुकरण करने वाले भी सात हिस्सों में बटे हैं उनमें से हर एक के लिये जहन्नम का एक दर्जा सुरक्षित है.

सूरए – चौथा रूकू

सूरए   – चौथा रूकू

बेशक डर वाले बाग़ों और चश्मों में हैं(1){45}
(1) उनसे कहा जाएगा कि.

उनमें दाख़िल हो सलामती के साथ अमान में(2){46}
(2) यानी जन्नत में दाख़िल हो, अम्न व सलामती के साथ. न यहाँ से निकाले जाओ न मौत आये न कोई आफ़त रूनुमा हो. न कोई ख़ौफ़ न परेशानी.

और हमने उनके सीनों में जो कुछ (3)
(3) दुनिया में.

कीने थे सब खींच लिये(4)
(4) और उनके अन्त:करण को इर्ष्या, हसद दुश्मनी और कटुता वग़ैरह बुरी ख़सलतों से पाक कर दिया वो…..

आपस में भाई हैं (5)
(5) एक दूसरे के साथ महब्बत करने वाले. हज़रत अली मुर्तजा़ रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि मुझे उम्मीद है कि मैं और उस्मान और तलहा और जुबैर उन्हीं में से हैं, यानी हमारे सीनो से दुश्मनी और कटुता हसद व इर्ष्या निकाल दी गई है, हम आपस में ख़ालिस महब्बत रखने वाले हैं. इसमें राफ़ज़ियों का रद है.

तख़्तों पर रू बरू बैठे {47} न उन्हें उसमें कुछ तक़लीफ़ पहुंचे न वो उसमें से निकाले जाएं {48} ख़बर दो(6)
(6) ऐ मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम.

मेरे बन्दों को कि बेशक मैं ही हूँ बख़्शने वाला मेहरबान {49} और मेरा ही अज़ाब दर्दनाक अज़ाब है{50} और उन्हें अहवाल सुनाओ इब्राहीम के मेहमानों का(7){51}
(7) जिन्हें अल्लाह तआला ने इसलिये भेजा था कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बेटे की ख़ुशख़बरी दें और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम को हलाक करें. ये मेहमान हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम थे, कई फ़रिश्तों के साथ.

जब वो उसके पास आए तो बोले सलाम(8)
(8) यानी फ़रिश्तों ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को सलाम किया और आपका आदर सत्कार किया तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनसे.

कहा हमें तुम से डर मालूम होता है(9){52}
(9) इसलिये कि बे इजाज़त और बे वक़्त आए और खाना नहीं खाया.

उन्होंने कहा डरिये नहीं हम आपको एक इल्म वाले लड़के की बशारत (ख़ुशख़बरी)देते हैं(10){53}
(10) यानी हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम की, इस पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने.

कहा क्या इसपर मुझे बशारत देते हो कि मुझे बुढ़ापा पहुंच गया अब काहे पर बशारत देते हो  (11){54}
(11) यानी ऐसे बुढ़ापे में औलाद होना अजीब बात है, किस तरह औलाद होगी, क्या हमें फिर से जवान किया जाएगा या इसी हालत में बेटा अता फ़रमाया जाएगा, फ़रिश्तों ने….

कहा हमने आपको सच्ची बशारत दी है(12)
(12) अल्लाह का हुक्म इसपर जारी हो चुका कि आपके बेटा हो और उसकी सन्तान बहुत फैले.

आप नाउम्मीद न हों{55} कहा अपने रब की रहमत से कौन नाउम्मीद हो मगर वही जो गुमराह  हुए(13){56}
(13) यानी मैं उसकी रहमत से ना उम्मीद नहीं, क्योंकि रहमत से निराश काफ़िर होते हैं. हाँ उसकी सुन्नत, जो दुनिया में जारी है उससे यह बात अजीब मालूम हुई. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फ़रिश्तों से..

कहा फिर तुम्हारा क्या काम है ऐ फ़रिश्तों (14){57}
(14) यानी इस बशारत के सिवा और क्या काम है जिसके  लिये तुम भेजे गये हो.

बोले हम एक मुजरिम क़ौम की तरफ़ भेजे गए हैं(15){58}
(15) यानी क़ौमे लूत की तरफ़, कि हम उन्हें हलाक करें.

मगर लूत के घर वाले, उन सबको हम बचालेंगे(16){59}
(16) क्योंकि वो ईमानदार है.

सूरए हिज्र -पांचवाँ रूकू

सूरए हिज्र -पांचवाँ रूकू


तो जब लूत के घर फ़रिश्ते आए (1){61}
(1) ख़ूबसूरत नौज़वानों की शक्ल में. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को डर हुआ की क़ौम उनके पीछे पड़ जाएगी, तो आपने फ़रिश्तों से….

 कहा तुम तो कुछ बेगाने लोग हो (2){63}
(2) न तो यहाँ के निवासी हो, न कोई मुसाफ़िरत की निशानी तुम में पाई जाती है. क्यों आए हो, फ़रिश्तों ने…..

कहा बल्कि हम तो आपके पास वह (3)
(3) अज़ाब जिसके उतरने का आप अपनी क़ौम को ख़ौफ़ दिलाया करते थे.

लाए हैं जिसमें ये लोग शक करते थे(4){63}
(4) और आपको झुटलाते थे.

और हम आपके पास सच्चा हुक्म लाए हैं और बेशक हम सच्चे हैं {64} तो अपने घर वालों को कुछ रात रहे लेकर बाहर जाइये और आप उनके पीछे चलिये और तुम में कोई पीछे फिर कर देखे(5)
(5) कि क़ौम पर क्या बला नाज़िल हुई और वो किस अज़ाब में जकड़े गये.

और जहां को हुक्म है सीधे चले जाइये (6){65}
(6) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि हुक्म शाम प्रदेश को जाने का था.

और हमने उसे उस हुक्म का फैसला सुना दिया कि सुबह होते इन काफ़िरों की जड़ कट जाएगी(7){66}
(7) और तमाम क़ौम अज़ाब से हलाक कर दी जाएगी.

और शहर वाले(8)
(8) यानी सदूम शहर के रहने वाले हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम के लोग. हज़रत लूत के यहाँ ख़ूबसूरत नौज़वानों के आने की ख़बर सुनकर ग़लत इरादे और नापाक नियत से.

ख़ुशियां मनाते आए {67} लूत ने कहा ये मेरे मेहमान हैं(9)
(9) और मेहमान का सत्कार लाज़िम होता है, तुम उनके निरादर का इरादा करके.

मुझे फ़जीहत न करो(10){68}
(10)कि मेहमान की रूसवाई मेज़बान के लिये ख़िजालत और शर्मिन्दगी का कारण होती है.

और अल्लाह से डरो और मुझे रूस्वा न करो (11){69}
(11) उनके साथ बुरा इरादा करके. इसपर क़ौम के लोग हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से.

बोले क्या हमने तुम्हें मना न किया था कि औरों के मामले में दख़्ल न दो{70}कहा ये क़ौम की औरतें मेरी बेटियां हैं अगर तुम्हें करना है(12){71}
(12) तो उनसे निकाह करो और हराम से बाज़ रहो. अब अल्लाह तआला अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाता है.

ऐ मेहबूब तुम्हारी जान की क़सम (13)
(13) और अल्लाह की सृष्टि में से कोई जान अल्लाह की बारगाह में आपकी पाक जान की तरह इज़्ज़त और पाकी नहीं रखती और अल्लाह तआला ने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्र के सिवा किसी की उम्र और ज़िन्दगी की क़सम याद नहीं फ़रमाई. यह दर्जा सिर्फ हुज़ूर ही का है. अब इस क़सम के बाद इरशाद होता है.

बेशक वो अपने नशे में भटक रहे हैं {72} तो दिन निकलते उन्हें चिंघाड़ ने आ लिया (14){73}
(14) यानी हौलनाक और भयानक आवाज़ ने.

तो हमने उस बस्ती का ऊपर का हिस्सा उसके नीचे का हिस्सा कर दिया(15)
(15) इस तरह की हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम उस ज़मीन के टुकड़े को उठाकर आसमान के क़रीब ले गए और वहाँ से औंधा करके ज़मीन पर डाल दिया.

और उनपर कंकर के पत्थर बरसाए{74} बेशक उसमें निशानियां हैं समझ वालों के लिये {75} और बेशक वह बस्ती उस राह पर है जो अब तक चली है(16){76}
(16) और क़ाफ़िले उसपर गुज़रते हैं और अल्लाह के ग़ज़ब के निशान उनके देखने में आते हैं.

बेशक उसमें निशानियां हैं ईमान वालों को {77} और बेशक झाड़ी वाले ज़रूर ज़ालिम थे (17){78}
(17) यानी क़ाफ़िर थे. ऐका का झाड़ी को कहते है. इन लोगों का शहर हरे भरे जंगलों और हरियालियों के बीच था. अल्लाह तआला ने हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को उन पर रसूल बना कर भेजा. उन लोगो ने नाफ़रमानी की, और हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को झुटलाया.

 तो हमने उनसे बदला लिया(18)
(18) यानी अज़ाब भेजकर हलाक किया.

और बेशक ये दोनो बस्तियाँ (19)
(19) यानी क़ौमे लूत के शहर और ऐका वालों के..

खुले रास्ते पर पड़ती हैं (20){79}
(20) जहाँ आदमी गुजरते हैं और देखते हैं तो ऐ मक्का वालों तुम उनको देखकर क्यों सबक नहीं पकड़ते.