सूरए – रअद रूकू
सूरए रअद मदीने में उतरी, इसमें 43 आयतें, 6 रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए रअद मक्की है और एक रिवायत हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से यह है कि दो आयतों “ला यज़ालुल लज़ीना कफ़रू तुसबहुम” और “यक़ूलुल लज़ीना कफ़रू लस्ता मुरसलन” के सिवा बाक़ी सब मक्की हैं. दूसरा क़ौल यह है कि यह सूरत मदनी है. इसमें छ: रूकू, तैंतालीस या पैंतालीस आयतें, आठ सौ पचपन कलिमे और तीन हज़ार पांच सो छ: अक्षर हैं.
ये किताब की आयतें हैं(2)
(2) यानी क़ूरआन शरीफ़ की.
और वो जो तुम्हारी तरफ़ तुम्हारे रब के पास से उतरा(3)
(3) यानी क़ुरआन शरीफ़
हक़ है(4)
(4) कि इसमें कुछ शुबह नहीं.
मगर अक्सर आदमी ईमान नहीं लाते(5){1}
(5) यानी मक्का के मुश्रिक यह कहते हैं कि यह कलाम मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) का है. उन्होंने ख़ुद बनाया. इस आयत में उनका रद फ़रमाया. इसके बाद अल्लाह तआला ने अपने रब होने की दलीलें और अपनी क़ुदरत के चमत्कार बयान फ़रमाए जो उसके एक होने को प्रमाणित करते हैं.
अल्लाह है जिसने आसमानों को बलन्द किया बे सुतूनों {खम्भों} के कि तुम देखो(6)
(6) इसके दो मानी हो सकते हैं, एक यह कि आसमानों को बिना सुतूनों के बलन्द किया जैसा कि तुम उनको देखते हो यान हक़ीक़त में कोई सुतून ही नहीं हैं. ये मानी भी हो सकते हैं कि तुम्हारे देखने में आने वाले सुतूनों के बग़ैर बलन्द किया. इस तक़दीर पर मानी ये होंगे कि सुतून तो हैं मगर तुम्हारे देखने में नहीं आते. पहला क़ौल ज़्यादा सही है इसी पर सहमति है, (ख़ाज़िन व जुमल)
फिर अर्श पर इस्तिवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है और सूरज और चांद को मुसख़्खर {वशीभूत} किया(7)
(7) अपनो बन्दों के मुनाफ़े और अपने इलाकों के फ़ायदे के लिये वो आज्ञानुसार घूम रहे हैं.
हर एक एक ठहराए हुए वादे तक चलता है (8)
(8) यानी दुनिया के नाश के समय तक, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि “अजले मुसम्मा” यानी “ठहराए हुए वादे” से उनके दर्ज़ें और मंज़िलें मुराद है यानी वो अपनी मंज़िलों और दर्जों में एक हद तक गर्दिश करते हैं जिस से उल्लंघन नहीं कर सकते, सूरज और चांद में से हर एक के लिये सैरे ख़ास यानी विशेष दिशा की तरफ़ तेज़ या सुस्त रफ़्तार और हरकत की ख़ास मात्रा निर्धारित की है.
अल्लाह काम की तदबीर फ़रमाता और तफ़सील से निशानियां बताता है(9)
(9) अपनी वहदानियत और भरपूर क़ुदरत की.
कहीं तुम अपने रब का मिलना यक़ीन करो(10){2}
(10) और जानो कि जो इन्सान को शून्य के बाद फिर से मौजूद करने में सक्षम है वो उसको मौत के बाद भी ज़िन्दा करने पर क़ादिर है.
और वही है जिसने ज़मीन को फैलाया और उसमें लंगर(11)
(11) यानी मज़बूत पहाड़.
और नहरें बनाई और ज़मीन में हर क़िस्म के फल दो दो तरह के बनाए(12)
(12) काले सफ़ेद, कड़वे मीठे छोटे बड़े, खुश्क और तर, गर्म और सर्द वग़ैरह.
रात से दिन को छुपा लेता है, बेशक इसमें निशानियाँ हैं ध्यान करने वालों को(13){3}
(13) जो समझें कि ये सारी निशानियाँ बनाने वाले और संभाल रखने वाले के अस्तित्व का प्रमाण देती है.
और ज़मीन के मुख़्तलिफ़ {विभिन्न} क़तए {खंड} हैं और हैं पास पास (14)
(14) एक दूसरे से मिले हुए. उनमें से कोई खेती के क़ाबिल है कोई नहीं, कोई पथरीला कोई रतीला.
और बाग़ है अंगूर के और खेती और खजूर के पेड़ एक थाले से आगे और अलग अलग सब को एक ही पानी दिया जाता है, और फलों में हम एक को दूसरे से बेहतर करते हैं, बेशक इसमें निशानियाँ हैं अक़्लमन्दों के लिये(15){4}
(15) हसन बसरी रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया इस में बनी आदम के दिलों की एक मिसाल है कि जिस तरह ज़मीन एक थी, उसके विभिन्न टुकड़े हुए, उनपर आसमान से एक ही पानी बरसा, उससे मुख़्तलिफ़ क़िस्म के फल फुल, बेल बूटे, अच्छे बुरे पैदा हुए. इसी तरह आदमी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से पैदा किये गए. उनपर आसमान से हिदायत उतरी. इस से कुछ लोग नर्म दिल हुए उनमें एकाग्रता और लगन पैदा हुई. कुछ सख़्त हो गए, वो खेल तमाशों बुराईयों में गिरफ़्तार हुए तो जिस तरह ज़मीन के टुकड़े अपने फूल फल में अलग अलग हैं उसी तरह इन्सानी दिल अपनी भावनाओं और रहस्यों में अलग हैं.
और अगर तुम अचंभा करो(16)
(16) ऐ मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, काफ़िरों के झुटलाने से, जबकि आप उनमें सच्चे और अमानत वाले मशहुर थे.
तो अचंभा तो उनके इस कहने का है कि क्या हम मिट्टी होकर फिर नए बनेंगे(17)
(17) और उन्होंने कुछ न समझा कि जिसने शुरू में बग़ैर मिसाल के पैदा कर दिया उसको दोबारा पैदा करना क्या मुश्किल है.
वो हैं जो अपने रब से इन्कारी हुए और वो हैं जिन की गर्दनों में तौक़ होंगे(18)
(18) क़यामत के दिन.
और वो दोज़ख़ वाले हैं, उन्हें उसी में रहना{5} और तुम से अज़ाब की जल्दी करते हैं रहमत से पहले(19)
(19) मक्का के मुश्रिक, और यह जल्दी करना हंसी के तौर पर था. और रहमत से सलामती और आफ़ियत मुराद है.
और उनसे अगलों की सज़ाएं हो चुकीं(20)
(20) वो भी रसूलों को झुटलाते और अज़ाब की हंसी उड़ाते थे. उनका हाल देखकर सबक़ हासिल करना चाहिये.
और बेशक तुम्हारा रब तो लोगों के ज़ुल्म पर भी उन्हें एक तरह की माफ़ी देता है(21)
(21) कि उनके अज़ाब में जल्दी नहीं फ़रमाता और उन्हें मोहलत देता है.
और बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब सख़्त है(22){6}
(22) जब अज़ाब फ़रमाए.
और काफ़िर कहते हैं उनपर उनकी तरफ़ से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी(23)
(23) क़ाफ़िरों का यह क़ौल अत्यन्त बेईमानी का क़ौल था. जितनी आयतें उतर चुकी थीं और चमत्कार दिखाए जा चुके थे सबको उन्होंने शून्य क़रार दे दिया. यह पहले दर्ज़े की नाइन्साफ़ी और सत्य से दुश्मनी हैं. जब हुज्जत क़ायम हो चुके, तर्क पुरा हो जाए और खुले और साफ़ प्रमाण पेश कर दिये जाएं और ऐसी दलीलों से मतलब साबित कर दिया जाए जिनके जवाब से मुख़ालिफ़िन के सारे इल्म वाले हुनर वाले आश्चर्य चकित और विवश रह जाएं और उन्हें मुंह खोलना और ज़बान हिलाना असम्भव हो जाए, ऐसी खुली निशानियाँ और साफ़ प्रमाण और ज़ाहिर चमत्कार देखकर यह कह देना कि कोई निशानी क्यों नहीं उतरती, चमकते दिन में उजाले का इन्कार कर देने से भी ज़्यादा ख़राब और बातिल है और हक़ीक़त में यह सच्चाई को पहचान कर उससे मुंह मोड़ लेना और दुश्मनी है. किसी बात पर जब मज़बूत प्रमाण क़ायम हो जाए, फिर उसपर दोबारा दलील क़ायम करनी ज़रूरी नहीं रहती. ऐसी हालत में दलील तलब करना मात्र दुश्मनी होती है. जब तक कि दलील को ज़ख़्मी न कर दिया जाए, कोई शख़्स दूसरी दलील के तलब करने का हक़ नहीं रखता. अगर यह सिलसिला क़ायम कर दिया जाए कि हर शख़्स के लिये नई दलील नया प्रमाण क़ायम किया जाय जिसको वह मांगे और वही निशानी लाई जाय जो वह तलब करे, तो निशानियों का सिलसिला कभी ख़त्म न होगा. इसलिये अल्लाह की हिकमत यह है कि नबियों को ऐसे चमत्कार दिये जाते हैं जिन से हर व्यक्ति उनकी सच्चाई और नबुव्वत का यक़ीन कर सके. उनके दौर के लोग ज़्यादा अभ्यास और महारत रखते हैं जैसे कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में जादू का इल्म अपने कमाल को पहुंचा हुआ था और उस ज़माने के लोग जादू के बड़े माहिर कामिल थे तो हज़रत मूसा अलैहिसलाम को वह चमत्कार अता हुआ जिसने जादू को बातिल कर दिया और जादूगरों को यक़ीन दिला दिया कि जो कमाल हज़रत मूसा ने दिखाया वह अल्लाह की निशानी है, जादू से उसका मुक़ाबला संभव नहीं. इसी तरह हज़रत ईसा अलैहिस्सलातो वसल्लाम के ज़माने में चिकित्सा विद्या यानी डाक्टरी का इल्म चरम सीमा पर था. हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को बीमारियाँ अच्छा करने और मुर्दे ज़िन्दा करने का वह चमत्कार अता फ़रमाया गया जिससे तिब के माहिर आजिज़ हो गए. वो इस यक़ीन पर मजबूर थे कि यह काम तिब से नामुमकिन है. ज़रूर यह अल्लाह की क़ुदरत का ज़बरदस्त निशान है इसी तरह सैयदे आलम सल्लल्लाहे अलैहे वसल्लम के मुबारक ज़माने में अरब की ज़बान दानी, फ़साहत और बलाग़त बलन्दी पर थी. वो लोग बोल चाल में सारी दुनिया पर छाए हुए थे. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को वह चमत्कार अता फ़रमाया गया जिसने आपके मुख़ालिफ़ों को आजिज़ और हैरान कर दिया. उनके बड़े से बड़े लोग और उनके एहले कमाल की जमाअतें क़ुरआन शरीफ़ के मुकाबले में एक छोटी सी इबारत न पेश कर सके और क़ुरआन शरीफ़ के इस कमाल ने साबित कर दिया कि बेशक यह अल्लाह का कलाम और उसकी महान निशानी है. और इस जैसा बना लाना इन्सान के बस की बात नहीं. इसके अलावा और सैंकड़ों चमत्कार सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने पेश फ़रमाए जिन्होंने हर तबक़े के इन्सानों को आपकी सच्चाई और रिसालत का यक़ीन दिला दिया. इन चमत्कारों के होते हुए यह कह देना कि कोई निशानी क्यों नहीं उतरी, किस क़द्र हटधर्मी, दुश्मनी और सच्चाई से मुकरना है.
तुम तो डर सुनाने वाले हो और हर क़ौम के हादी(24){7}
(24)अपनी नबुव्वत की दलील पेश करने और संतोषजनक चमत्कार दिखाकर अपनी रिसालत साबित कर देने के बाद अल्लाह के अहकाम पहुंचाने और ख़ुदा का ख़ौफ़ दिलाने के सिवा आप पर कुछ लाज़िम नहीं. हर हर शख़्स के लिये उसकी तलब की हुई अलग अलग निशानिशां पेश करना आप पर ज़रूरी नहीं जैसा कि आप से पहले हादियों यानी नबियों का तरीक़ा रहा है.
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