59-Surah Al-Hashra

59 सूरए हश्र -दूसरा रूकू

59|11|۞ أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ نَافَقُوا يَقُولُونَ لِإِخْوَانِهِمُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَئِنْ أُخْرِجْتُمْ لَنَخْرُجَنَّ مَعَكُمْ وَلَا نُطِيعُ فِيكُمْ أَحَدًا أَبَدًا وَإِن قُوتِلْتُمْ لَنَنصُرَنَّكُمْ وَاللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
59|12|لَئِنْ أُخْرِجُوا لَا يَخْرُجُونَ مَعَهُمْ وَلَئِن قُوتِلُوا لَا يَنصُرُونَهُمْ وَلَئِن نَّصَرُوهُمْ لَيُوَلُّنَّ الْأَدْبَارَ ثُمَّ لَا يُنصَرُونَ
59|13|لَأَنتُمْ أَشَدُّ رَهْبَةً فِي صُدُورِهِم مِّنَ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَفْقَهُونَ
59|14|لَا يُقَاتِلُونَكُمْ جَمِيعًا إِلَّا فِي قُرًى مُّحَصَّنَةٍ أَوْ مِن وَرَاءِ جُدُرٍ ۚ بَأْسُهُم بَيْنَهُمْ شَدِيدٌ ۚ تَحْسَبُهُمْ جَمِيعًا وَقُلُوبُهُمْ شَتَّىٰ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُونَ
59|15|كَمَثَلِ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ قَرِيبًا ۖ ذَاقُوا وَبَالَ أَمْرِهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
59|16|كَمَثَلِ الشَّيْطَانِ إِذْ قَالَ لِلْإِنسَانِ اكْفُرْ فَلَمَّا كَفَرَ قَالَ إِنِّي بَرِيءٌ مِّنكَ إِنِّي أَخَافُ اللَّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ
59|17|فَكَانَ عَاقِبَتَهُمَا أَنَّهُمَا فِي النَّارِ خَالِدَيْنِ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ الظَّالِمِينَ

 

क्या तुमने मुनाफ़िक़ों (दोग़लों) को न देखा(1)
(1) अब्दुल्लाह बिन उबई बिन सुलूल मुनाफ़िक़ और उसके साथियों को.

कि अपने भाइयों काफ़िर किताबियों(2)
(2) यानी बनी क़ुरैज़ा और बनी नुज़ैर के यहूदी.

से कहते हैं कि अगर तुम निकाले गए(3)
(3) मदीना शरीफ़ से.

तो ज़रूर हम तुम्हारे साथ निकल जाएंगे और हरगिज़ तुम्हारे बारे में किसी को न मानेंगे(4)
(4) यानी तुम्हारे ख़िलाफ़ किसी का कहना न मानेंगे न मुसलमानों का, न रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का.

और तुम से लड़ाई हुई तो हम ज़रूर तुम्हारी मदद करेंगे, और अल्लाह गवाह है कि वो झूटे हैं(5){11}
(5) यानी यहूदियों से मुनाफ़िक़ों के ये सब वादे झूटे हैं. इसके बाद अल्लाह तआला मुनाफ़िक़ों के हाल की ख़बर देता है.

अगर वो निकाले गए(6)
(6)यानी यहूदी

तो ये उनके साथ न निकलेंगे, और उनसे लड़ाई हुई तो ये उनकी मदद न करेंगे(7)
(7) चुनांन्चे ऐसा ही हुआ कि यहूदी निकाले गए और मुनाफ़िक़ उनके साथ न निकले और यहूदियों से जंग हुई और मुनाफ़िक़ों ने यहूदियों की मदद न की.
अगर उनकी मदद की भी तो ज़रूर पीठ फेर कर भागेंगे फिर(8)
(8) जब ये मददगार भाग निकलेंगे तो मुनाफ़िक़.

मदद न पाएंगे {12} बेशक (9)
(9) ऐ मुसलमानो.

उनके दिलों में अल्लाह से ज़्यादा तुम्हारा डर है(10)
(10) कि तुम्हारे सामने तो कुफ़्र ज़ाहिर करने में डरते हैं और यह जानते हुए भी कि अल्लाह तआला दिलों की छुपी बातें जानता है, दिल में कुफ्र रखते हैं.

यह इस लिये कि वो नासमझ लोग हैं(11){13}
(11) अल्लाह तआला की अज़मत को नहीं जानते वरना जैसा उससे डरने का हक़ है डरते.

ये सब मिलकर भी तुम से न लड़ेंगे मगर क़िलेबन्द शहरों में या धुसों (शहर-पनाह) के पीछे, आपस में उनकी आंच (जोश) सख़्त है(12)
(12) यानी जब वो आपस में लड़े तो बहुत सख़्ती और क़ुव्वत वाले हैं लेकिन मुसलमानों के मुक़ाबिले में बुज़दिल और नामर्द साबित होंगे.

तुम उन्हें एक जथा समझोगे और उनके दिल अलग अलग हैं, यह इसलिये कि वो बेअक़्ल लोग हैं(13){14}
(13) इसके बाद यहूदियों की एक मिसाल इरशाद फ़रमाई.

उनकी सी कहावत जो अभी क़रीब ज़माने में उनसे पहले थे(14)
(14) यानी उनका हाल मक्के के मुश्रिकों जैसा है कि बद्र में—-

उन्हों ने अपने काम का वबाल चखा(15)
(15) यानी रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ दुश्मनी रखने और कुफ़्र करने का कि ज़िल्लत और रूस्वाई के साथ हलाक किये गए.

और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है(16){15}
(16) और मुनाफ़िक़ों का बनी नुज़ैर यहूदियों के साथ सुलूक ऐसा है जैसे—

शैतान की कहावत जब उसने आदमी से कहा कुफ़्र कर, फिर जब उसने कुफ़्र कर लिया, बोला मैं तुझसे अलग हूँ, मैं अल्लाह से डरता हूँ जो सारे जगत का रब (17){16}
(17) ऐसे ही मुनाफ़िक़ों ने बनी नुज़ैर को मुसलमानों के ख़िलाफ़ उभारा जंग पर आमादा किया उनसे मदद के वादे किये और जब उनके कहे से वो अहले इस्लाम के मुक़ाबले में लड़ने आए तो मुनाफ़िक़ बैठ रहे उनका साथ न दिया.

तो उन दोनों का (18)
(18) यानी उस शैतान और इन्सान का.
अंजाम यह हुआ कि वो दोनों आग में हैं हमेशा उसमें रहे, और ज़ालिमों की यही सज़ा है{17}

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