23 सूरए मूमिनून
अठ्ठारहवाँ पारा – क़द अफ़लहा
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
قَدْ أَفْلَحَ ٱلْمُؤْمِنُونَ
ٱلَّذِينَ هُمْ فِى صَلَاتِهِمْ خَٰشِعُونَ
وَٱلَّذِينَ هُمْ عَنِ ٱللَّغْوِ مُعْرِضُونَ
وَٱلَّذِينَ هُمْ لِلزَّكَوٰةِ فَٰعِلُونَ
وَٱلَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَٰفِظُونَ
إِلَّا عَلَىٰٓ أَزْوَٰجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ
فَمَنِ ٱبْتَغَىٰ وَرَآءَ ذَٰلِكَ فَأُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْعَادُونَ
وَٱلَّذِينَ هُمْ لِأَمَٰنَٰتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَٰعُونَ
وَٱلَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَوَٰتِهِمْ يُحَافِظُونَ
أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْوَٰرِثُونَ
ٱلَّذِينَ يَرِثُونَ ٱلْفِرْدَوْسَ هُمْ فِيهَا خَٰلِدُونَ
وَلَقَدْ خَلَقْنَا ٱلْإِنسَٰنَ مِن سُلَٰلَةٍۢ مِّن طِينٍۢ
ثُمَّ جَعَلْنَٰهُ نُطْفَةًۭ فِى قَرَارٍۢ مَّكِينٍۢ
ثُمَّ خَلَقْنَا ٱلنُّطْفَةَ عَلَقَةًۭ فَخَلَقْنَا ٱلْعَلَقَةَ مُضْغَةًۭ فَخَلَقْنَا ٱلْمُضْغَةَ عِظَٰمًۭا فَكَسَوْنَا ٱلْعِظَٰمَ لَحْمًۭا ثُمَّ أَنشَأْنَٰهُ خَلْقًا ءَاخَرَ ۚ فَتَبَارَكَ ٱللَّهُ أَحْسَنُ ٱلْخَٰلِقِينَ
ثُمَّ إِنَّكُم بَعْدَ ذَٰلِكَ لَمَيِّتُونَ
ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ تُبْعَثُونَ
وَلَقَدْ خَلَقْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعَ طَرَآئِقَ وَمَا كُنَّا عَنِ ٱلْخَلْقِ غَٰفِلِينَ
وَأَنزَلْنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۢ بِقَدَرٍۢ فَأَسْكَنَّٰهُ فِى ٱلْأَرْضِ ۖ وَإِنَّا عَلَىٰ ذَهَابٍۭ بِهِۦ لَقَٰدِرُونَ
فَأَنشَأْنَا لَكُم بِهِۦ جَنَّٰتٍۢ مِّن نَّخِيلٍۢ وَأَعْنَٰبٍۢ لَّكُمْ فِيهَا فَوَٰكِهُ كَثِيرَةٌۭ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ
وَشَجَرَةًۭ تَخْرُجُ مِن طُورِ سَيْنَآءَ تَنۢبُتُ بِٱلدُّهْنِ وَصِبْغٍۢ لِّلْءَاكِلِينَ
وَإِنَّ لَكُمْ فِى ٱلْأَنْعَٰمِ لَعِبْرَةًۭ ۖ نُّسْقِيكُم مِّمَّا فِى بُطُونِهَا وَلَكُمْ فِيهَا مَنَٰفِعُ كَثِيرَةٌۭ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ
وَعَلَيْهَا وَعَلَى ٱلْفُلْكِ تُحْمَلُونَ
सूरए मूमिनून मक्का में उतरी, इसमें 118 आयतें, 6 रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
-पहला रूकू
(1) सूरए मूमिनून मकका में उतरी, इसमें 6 रूकू, एक सौ अठ्ठारह आयतें, एक हज़ार आठ सौ चालीस कलिमे और चार हज़ार आठ सौ दो अक्षर हैं.
बेशक मुराद को पहुंचे{1} ईमान वाले जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं(2){2}
(2) उनके दिलों में ख़ुदा का ख़ौफ़ होता है और उनके अंग साकित होत हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि नमाज़ में एकाग्रता यह है कि उसमें दिल लगा हो और दुनिया से ध्यान हटा हुआ हो और नज़र सज्दे की जगह से बाहर न जाए और आँखों के कोनों से किसी तरफ़ न देखे और कोई बेज़रूरत काम न करे और कोई कपड़ा शानों पर न लटकाए, इस तरह कि उसके दोनों किनारे लटकते हों और आपस में मिले न हों और उंगलियाँ न चटखाए और इस क़िस्म की हरकतों से दूर रहे. कुछ ने फ़रमाया कि एकाग्रता यह है कि आसमान की तरफ़ नज़र न उठाए.
और वो जो किसी बेहूदा बात की तरफ़ मुंह नहीं करते(3){3}
(3) हर बुराई और बुरी बात से दूर रहते हैं.
और वो कि ज़कात देने का काम करते हैं(4){4}
(4) यानी उसके पाबन्द हैं और हमेशा उसकी अदायगी करते हैं.
और वो जो अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं{5} मगर अपनी बीबियों या शरई दासियों पर, जो उनके हाथ की मिल्क हैं कि उनपर कोई मलामत नहीं(5){6}
(5) अपनी बीबीयों और दासियों के साथ जाइज़ तरीक़े पर क़ुर्बत करने में.
तो जो इन दो के सिवा कुछ और चाहे, वही हद से बढ़ने वाले हैं(6) {7}
(6) कि हलाल से हराम की तरफ़ बढ़ते हैं, इससे मालूम हुआ कि हाथ से शहवत निकालना या हस्तमैथुन करना हराम है. सईद बिन जुबैर रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया, अल्लाह तआला ने एक उम्मत को अज़ाब किया जो अपनी शर्मगाहों से खेल करते थे.
और वो जो अपनी अमानतों और अपने एहद की रिआयत (लिहाज़) करते हैं(7){8}
(7) चाहे वो अमानतें अल्लाह की हों या लोगों की. और इसी तरह एहद ख़ुदा के साथ हों या बन्दों के साथ, सब को पूरा करना लाज़िम है.
और वो जो अपनी नमाज़ों की निगहबानी करते हैं(8){9}
(8) और उन्हें उनके वक़्तों में उनकी शर्तों और संस्कारों के साथ अदा करते हैं और फ़रायज़, वाजिबात, सुन्नत और नफ़्ल सबकी निगहबानी करते हैं.
यही लोग वारिस हैं{10} कि फ़िरदौस की मीरास पाएंगे, वो उसमें हमेशा रहेंगे{11} और बेशक हमने आदमी को चुनी हुई मिट्टी से बनाया (9){12}
(9) मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इन्सान से मुराद यहाँ हज़रत आदम है.
फिर, उसे (10)
(10) यानी उसकी नस्ल को.
पानी की बूंद किया एक मज़बूत ठहराव में(11){13}
(11)यानी गर्भाशय में
फिर हमने उस पानी की बूंद को ख़ून की फुटक किया, फिर ख़ून की फुटक को गोश्त की बोटी फिर गोश्त की बोटी को हड्डियाँ, फिर उन हड्डियों पर गोश्त पहनाया, फिर उसे और सूरत में उठान दी(12)
(12) यानी उसमें रूह डाली. उस बेजान को जानदार किया, बोलने, सुनने और देखने क शक्ति अता की.
तो बड़ी बरकत वाला है अल्लाह, सब से बेहतर बनाने वाला{14} फिर उसके बाद तुम ज़रूर(13)
(13) अपनी उम्रें पूरी होने पर.
मरने वाले हो{15} फिर तुम सब क़यामत के दिन(14)
(14) हिसाब और बदले के लिये.
उठाए जाओगे {16} और बेशक हमने तुम्हारे ऊपर सात राहें बनाई(15)
(15) इनसे मुराद सात आसमान हैं जो फ़रिश्तों के चढ़ने उतरने के रास्ते हैं.
और हम ख़ल्क़ से ग़ाफ़िल नहीं(16){17}
(16) सब की कहनी, करनी और अन्त:करण को जानते हैं. कोई चीज़ हम से छुपी नहीं.
और हमने आसमान से पानी उतारा(17)
(17) यानी पानी बरसाया.
एक अंदाज़े पर (18)
(18) जितना हमारे इल्म और हिकमत में सृष्टि की हाजतों के लिये चाहिये.
फिर उसे ज़मीन में ठहराया और बेशक हम उसके ले जाने पर क़ादिर (सक्षम) हैं(19){18}
(19) जैसा अपनी क़ुदरत से उतार, ऐसा ही इसपर भी क़ुदरत रखते हैं कि उसको मिटा दें. तो बन्दों को चाहिये कि इस नेअमत की शुक्रगुज़ारी से हिफ़ाज़त करें.
तो उस से हमने तुम्हारे बाग़ पैदा किये खजूरों और अंगूरों के तुम्हारे लिये उनमें बहुत से मेवे हैं(20)
(20) तरह तरह के.
और उनमें से खाते हो(21){19}
(21) जाड़े और गर्मी वग़ैरह मौसमों में, और ऐश करते हो.
और वह पेड़ पैदा किया कि तूरे सीना से निकलता है(22)
(22) इस दरख़्त से मुराद ज़ैतून है
लेकर उगता है तेल और खाने वालों के लिये सालन (23){20}
(23) यह उस में अजीब गुण है कि वह तेल भी है कि तेल के फ़ायदे उससे हासिल किये जाते हैं, जलाया भी जाता है, दवा के तरीक़े पर भी काम में लाया जाता है और सालन का काम भी देता है कि अकेले उससे रोटी खाई जा सकती है.
और बेशक तुम्हारे लिये चौपायों में समझने का मक़ाम है, हम तुम्हें पिलाते हैं उसमें से जो उनके पेट में है(24)
(24) यानी दूध ख़ुशगवार, जो अच्छा आहार होता है.
और तुम्हारे लिये उनमें बहुत फ़ायदे हैं(25)
(25) कि उनके बात, खाल, ऊन वग़ैरह से काम लेते हो.
और उन से तुम्हारी ख़ुराक है(26){21}
(26) कि उन्हें ज़िब्ह करके खा लेते हो.
और उनपर(27)
(27) ख़ुश्की में.
और किश्ती पर(28)
(28) दरियाओं में.
सवार किये जाते हो{22}
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