22 सूरए हज -पहला रूकू

22 सूरए हज -पहला रूकू


सूरए हज मदीने में उतरी, इसमें 78 आयतें, दस रूकू हैं.

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए हज हज़रत इब्ने अब्बास और मुजाहिद के क़ौल के अनुसार मक्का में उतरी, सिवा छ आयतों के जो “हाज़ाने ख़स्माने” से शुरू होती हैं. इस सूरत में दस रूकू, 78 आयतें, एक हज़ार दो सौ इक्यानवे कलिमात और पाँच हज़ार पछत्तर अक्षर हैं.

ऐ लोगों अपने रब से डरो(2)
(2) उसके अज़ाब का ख़ौफ़ करो और उसकी फ़रमाँबरदारी में लग जाओ.

बेशक क़यामत का ज़लज़ला(3)
(3)  जो क़यामत की निशानियों में से है और क़यामत के क़रीब सूरज के पश्चिम से निकलने के नज़दीक वाक़े होगा.

बड़ी सख़्त चीज़ है{1} जिस दिन तुम उसे देखोगे हर दूध पिलाने वाली(4)
(4)  उसकी दहशत से.

अपने दूध पीते को भूल जाएगी और हर गाभिनी(5)
(5) यानी गर्भ वाली उस दिन के हौल से.

अपना गाभ डाल देगी(6)
(6) गर्भ गिर जाएंगे.

और तू लोगों को देखेगा जैसे नशे में हैं और वो नशे में न होंगे(7)
(7) बल्कि अल्लाह के अज़ाब के ख़ौफ़ से लोगों के होश जाते रहेंगे.

मगर यह कि अल्लाह की मार कड़ी है{2} और कुछ लोग वो हैं कि अल्लाह के मामले में झगड़ते हैं वे जाने बूझे और हर सरकश शैतान के पीछे हो लेते हैं(8){3}
(8) यह आयत नज़र बिन हारिस के बारें में उतरी जो बड़ा ही झगड़ालू था और फ़रिश्तों को ख़ुदा की बेटियाँ और क़ुरआन को पहलो के किस्से बताता था और मौत के बाद उठाए जाने का इन्कार करता था.

जिस पर लिख दिया गया है कि जो इसकी दोस्ती करेगा तो यह ज़रूर उसे गुमराह कर देगा और उसे दोज़ख़ के अज़ाब की राह बताएगा(9){4}
(9) शैतान के अनुकरण के नुक़सान बताकर दोबारा उठाए जाने वालों पर हुज्जत क़ायम फ़रमाई जाती हैं.

ऐ लोगो अगर तुम्हें क़यामत के दिन जीने में कुछ शक हों तो यह ग़ौर करो कि हमने तुम्हें पैदा किया मिट्टी से(10)
(10) तुम्हारी नस्ल की अस्ल यानी तुम्हारे सबसे बड़े दादा हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को उससे पैदा करके.

फिर पानी की बूंद से(11)
(11)  यानी विर्य की बूंद से उनकी तमाम सन्तान को.

फिर ख़ून की फुटक से(12)
(12)  कि नुत्फ़ा गन्दा ख़ून हो जाता है.

फिर गोश्त की बोटी से नक़शा बनी और बे बनी(13)
(13) यानी सूरत वाली और बग़ैर सूरत वाली. बुखारी और मुस्लिम की हदीस में है, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया तुम लोगों की पैदायश का माद्दा माँ के पेट में चालीस रोज़ तक नुत्फ़ा रहता है फिर इतनी ही मुद्दत में बन्धा हुआ ख़ून हो जाता है, फिर इतनी ही मुद्दत गोश्त की बोटी की तरह रहता है. फिर अल्लाह तआला फ़रिश्ता भेजता है जो उसका रिज़्क़, उसकी उम्र, उसके कर्म, उसके बुरे या अच्छे होने की लिखता है, फिर उसमें रूह फूंकता है, (हदीस) अल्लाह तआला इन्सान की पैदाइश इस तरह फ़रमाता है और उसको एक हाल से दूसरे हाल की तरफ़ मुन्तक़िल करता है, यह इसलिये बयान फ़रमाया गया है.

ताकि हम तुम्हारे लिये निशानियां ज़ाहिर फ़रमाएं(14)
(14) और तुम अल्लाह की भरपूर क़ुदरत और हिकमत को जानो और अपनी पैदाइश की शुरूआत के हालात पर नज़र करके समझ लो कि जो सच्ची क़ुदरत वाला बेजान मिट्टी में इतने इन्क़लाब करके जानदार आदमी बना देता है, वह मरे हुए इन्सान को ज़िन्दा करे तो उसकी क़ुदरत से क्या दूर है.

और हम ठहराए रखते हैं माओ के पेट में जिसे चाहें एक निश्चित मीआद तक(15)
(15) यानी पैदायश के वक़्त तक.

फिर तुम्हें निकालते हैं बच्चा फिर(16)
(16) तुम्हें उम्र देते हैं.

इसलिये कि तुम अपनी जवानी को पहुंचो(17)
(17) और तुम्हारी अक़्ल और क़ुव्वत कामिल हो.

और तुम में कोई पहले मर जाता है और कोई सबसे निकम्मी उम्र तक डाला जाता है (18)
(18) और उसको इतना बुढापा आ जाता है कि अक़्ल और हवास अपनी जगह नहीं रहते और ऐसा हो जाता है.

कि जानने के बाद कुछ न जाने(19)
(19) और जो जानता हो वह भूल जाए. अकरमह ने कहा कि जो क़ुरआन को हमेशा पढ़ता रहेगा, इस हालत को न पहुंचेगा. इसके बाद अल्लाह तआला मरने के बाद उठने पर दूसरी दलील बयान फ़रमाता है.

और तू ज़मीन को देखे मुरझाई हुई(20)
(20) ख़ुश्क और बिना हरियाली का.

फिर जब हमने उसपर पानी उतारा तरो ताज़ा हुई और उभर आई और हर रौनक़दार जोड़ा(21)
(21) यानी हर क़िस्म का ख़ुशनुमा सब्ज़ा.

उगा लाई (22){5}
(22) ये दलीलें बयान फ़रमाने के बाद निष्कर्ष बयान फ़रमाया जाता है.

यह इसलिये है कि अल्लाह ही हक़ है(23)
(23) और यह जो कुछ ज़िक्र किया गया. आदमी की पैदायश और सूखी बंजर ज़मीन को हरा भरा कर देना. उसके अस्तित्व और हिकमत की दलीलें हैं, इन से उसका वुजूद भी साबित होता है.

और यह कि वह मुर्दे जिलाएगा और यह कि वह सब कुछ कर सकता है{6} और इसलिये कि क़यामत आने वाली उसमें कुछ शक नहीं और यह कि अल्लाह उठाएगा उन्हें जो कब्रों में है{7} और कोई आदमी वह है कि अल्लाह के बारे में यूं झगड़ता है कि न तो इल्म न कोई दलील और न कोई रौशन नविश्ता (लेखा) (24){8}
(24) यह आयत अबू जहल वग़ैरह काफ़िरों की एक जमाअत के बारे में उतरी जो अल्लाह तआला की सिफ़ात में झगड़ा करते थे और उसकी तरफ़ ऐसे गुण जोड़ा करते थे जो उसकी शान के लायक़ नहीं. इस आयत में बताया गया कि आदमी को कोई बात बग़ैर जानकारी और बिना प्रमाण और तर्क के नहीं कहनी चाहिये. ख़ासकर शाने इलाही में. और जो बात इल्म वाले के खिलाफ़ बेइल्मी से कही जाएगी, वह झूट होगी फिर उसपर यह अन्दाज़ कि ज़ोर दे और घमण्ड के तौर पर.

हक़ से अपनी गर्दन मोड़े हुए ताकि अल्लाह की राह से बहका दे(25)
(25) और उसके दीन से फेर दे.

उसके लिये दुनिया में रूसवाई है(26)
(26) चुनांचे बद्र में वह ज़िल्लत और ख़्वारी के साथ मारा गया.े

और क़यामत के दिन हम उसे आग का अज़ाब चखाएंगे(27) {9}
(27) और उससे कहा जाएगा.

यह उसका बदला है जो तेरे हाथों ने आगे भेजा(28)
(28) यानी जो तूने दुनिया में किया, कुफ़्र और झुटलाया.

और अल्लाह बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता(29){10}
(29) और किसी को बे जुर्म नहीं पकड़ता.

22 सूरए हज -दूसरा रूकू

22 सूरए  हज -दूसरा रूकू


और कुछ आदमी अल्लाह की बन्दगी एक किनारे पर करते हैं,(1)
(1) उस में इत्मीनान से दाख़िल नहीं होते  और उन्हें पायदारी हासिल नहीं होती. शक शुब्ह संदेह और आशंका में पड़े रहते हैं जिस तरह पहाड़ के किनारे खड़ा हुआ आदमी डगमगाता रहता है. यह आयत अरब देहातियों की एक जमाअत के बारे में उतरी जो आस पास से आकर मदीने में दाखिल होते और इस्लाम लाते थे. उनकी हालत यह थी कि अगर वो ख़ूब स्वस्थ रहे और उनकी दौलत बढ़ी और उनके बेटा हुआ तब तो कहते थे कि इस्लाम अच्छा दीन है, इसमें आकर हमें फ़ायदा हुआ और अगर कोई बात अपनी उम्मीद के ख़िलाफ़ हुई जैसे कि बीमार पड़ गए या लड़की हो गई या माल की कमी हुई तो कहते थे जबसे हम इस दीन में दाख़िल हुए हैं हमें नुक़सान ही हुआ. और दीन से फिर जाते थे. ये आयत उनके हक में उतरी और बताया गया कि उन्हें अभी दीन में पायदारी ही हासिल नहीं हुई, उनका हाल यह है.

फिर अगर उन्हे कोई भलाई पहुंच गई जब तो चैन से हैं, और जब कोई जांच आकर पड़ी, (2)
(2) किसी क़िस्म की सख़्ती पेश आई.

मुंह के बल पलट गए,(3)
(3) मुर्तद हो गए और कुफ़्र की तरफ़ लौट गए.

दुनिया और आख़िरत दोनों का घाटा,(4)
(4) दुनिया का घाटा तो यह कि जो उनकी उम्मीदें थीं वो पूरी न हुई और दीन से फिरने के कारण उनका क़त्ल जायज़ हुआ और आख़िरत का घाटा हमेशा का अज़ाब.

यही है खुला नुक़सान (5){11}
(5)  वो लोग मुर्तद होने के बाद बुत परस्ती करते हैं और….

अल्लाह के सिवा ऐसे को पूजते हैं जो उनका बुरा भला कुछ न करे,(6)
(6) क्योंकि वह बेजान हैं.

यही है दूर की गुमराही{12} ऐसे को पूजते हैं जिसके नफ़े से(7)
(7) यानी जिसकी पूजा के ख़याली नफ़े से उसके पूजने के…

नुक़सान की तवक़्क़ो(आशा) ज़्यादा है, (8)
(8) यानी दुनिया और आख़िरत के अज़ाब की.

बेशक(9)
(9) वो बुत.

क्या ही बुरा मौला और बेशक क्या ही बुरा साथी{13} बेशक अल्लाह दाख़िल करेगा उन्हें जो ईमान लाए और भले काम किये बाग़ों में जिन के नीचे नहरें बहें, बेशक अल्लाह करता है जो चाहे(10){14}
(10) फ़रमाँबरदारों पर ईनआम और नाफ़रमानों पर अज़ाब.

जो यह ख़याल करता हो कि अल्लाह अपने नबी(11)
(11)  हज़रत मुहम्मदें मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

की मदद न फ़रमाएगा दुनिया(12)
(12)  मैं उनके दीन को ग़लबा अता फ़रमा कर.

और आख़िरत में (13)
(13) उनके दर्ज़ें बलन्द करके.

तो उसे चाहिये कि ऊपर को एक रस्सी ताने फिर अपने आपको फांसी देले फिर देखे कि उसका यह दाँव कुछ ले गया उस बात को जिसकी उसे जलन है(14){15}
(14) यानी अल्लाह तआला अपने नबी की मदद ज़रूर फ़रमाएगा. जिसे उससे जलन हो, वह अपनी आख़िरी कोशिश ख़त्म भी कर दे और जलन में मर भी जाए तो भी कुछ नहीं कर सकता.

और बात यही है कि हमने यह क़ुरआन उतारा रौशन आयतें और यह कि अल्लाह राह देता है जिसे चाहे{16} बेशक मुसलमान और यहूदी और सितारा पूजने वाले और ईसाई और आग की पूजा करने वाले और मूर्ति पूजक बेशक अल्लाह उन सब में क़यामत के दिन फैसला कर देगा, (15)
(15) मूमिन को जन्नत अता फ़रमाएगा और काफ़िरों को, किसी क़िस्म के भी हों, जहन्नम में दाख़िल करेगा.

बेशक हर चीज़ अल्लाह के सामने है {17} क्या तुमने न देखा(16)
(16) ऐ हबीबे अकरम सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम !

कि अल्लाह के लिये सज्दा करते हैं वो जो आसमानों और ज़मीन में हैं और सूरज और चांद और तारे और पहाड़ और दरख़्त और चौपाए (17)
(17) यकसूई वाला सज्दा, जैसा अल्लाह चाहे.

और बहुत आदमी(18)
(18) यानी मूमिनीन, इसके अलावा सज्दए ताअत और सज्दए इबादत भी.

और बहुत वो हैं जिनपर अज़ाब मुक़र्रर (निश्चित) हो चुका(19)
(19) यानी काफ़िर.{12}

और जिसे चाहे अल्लाह ज़लील करे(20)
(20) उसकी शक़ावत और बुराई के कारण.

उसे कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं बेशक अल्लाह जो चाहे करे{18} ये दो फ़रीक़ (पक्ष) हैं(21)
(21) यानी ईमान वाले और पाँचों क़िस्म के काफ़िर जिनका ज़िक़्र ऊपर किया गया हैं.

कि अपने रब में झगड़े,(22)
(22) यानी इस दीन के बारे में और उसकी सिफ़त में.

तो जो काफ़िर हुए उनके लिये आग के कपड़े ब्यौंते (काटे) गए हैं, (23)
(23) यानी आग उन्हें हर तरफ़ से घेर लेगी.

और उनके सरो पर खोलता पानी डाला जाएगा(24){19}
(24) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, ऐसा तेज़ गर्म कि अगर उसकी एक बूंद दुनिया के पहाड़ों पर डाल दी जाए तो उनको गला डाले.

जिससे गल जाएगा जो कुछ उनके पेटों में है और उनकी खालें(25){20}
(25) हदीस शरीफ़ में है, फिर उन्हें वैसा ही कर दिया जाएगा. (तिरमिज़ी)

और उनके लिये लोहे के गुर्ज़ (गदा) हैं(26){21}
(26) जिनसे उनको मारा जाएगा.

जब घुटन के कारण उसमें से निकलना चाहेंगे (27)
(27) यानी दोज़ख़ में से, तो गुर्ज़ों से मारकर.
फिर उसी में लौटा दिये जाएंगे, और हुक्म होगा कि चखो आग का अज़ाब{22}

22 सूरए हज -तीसरा रूकू

22 सूरए  हज -तीसरा रूकू

बेशक अल्लाह दाख़िल करेगा उन्हें जो ईमान लाए और अच्छे काम किये बहिश्तों (स्वर्ग)में जिनके नीचे नहरें बहें उसमें पहनाए जाएंगे सोने के कंगन और मोती, (1)
(1) ऐसे जिनकी चमक पूर्व से पश्चिम तक रौशन कर डाले. (तिरमिज़ी)

और वहां उनकी पोशाक रेशम है(2){23}
(2) जिसका पहनना दुनिया में मर्दों को हराम है. बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, जिसने दुनिया में रेशम पहना, आख़िरत में न पहनेगा.

और उन्हें पाकीज़ा बात की हिदायत की गई (3)
(3) यानी दुनिया में, और पाकीज़ा बात से तौहीद का कलिमा मुराद है. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा, क़ुरआन मुराद है.

और सब ख़ूबियों सराहे की राह बताई गई(4){24}
(4) यानी अल्लाह का दीन, इस्लाम.

बेशक वो जिन्हों ने कुफ़्र किया और रोकते हैं अल्लाह की राह(5)
(5) यानी उसके दीन और उसकी इताअत से.

और उस अदब (आदर) वाली मस्जिद से (6)
(6) यानी उस में दाख़िल होने से. यह आयत सुफ़ियान बिन हर्ब वग़ैरह के बारे में उतरी जिन्होंने सैयदे आलम सललल्लाहो अलैहे वसल्लम को मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल होने से रोका था. मस्जिदे हराम से या ख़ास काबा मुराद है, जैसा कि इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैहे फ़रमाते हैं. उस सूरत में मानी ये होंगे कि वह सारे लोगों का क़िबला है. वहाँके रहने वाले और परदेसी सब बराबर हैं. सब के लिये उस का आदर और पाकी और उसमें हज के संस्करों की अदायगी एक सी है. और तवाफ़ और नमाज़ की फ़ज़ीलत में शहरी और परदेसी के बीच कोई अन्तर नहीं. और इमामे आज़म अबू हनीफ़ा रदियल्लाहो अन्हो के नज़दीक यहाँ मस्जिदे हराम से मक्कए मुकर्रमा यानी पूरा हरम मुराद है. इस सूरत में मानी ये होंगे कि हरम शरीफ़ शहरी और परदेसी सब के लिए एकसा है. उसमें रहने और ठहरने का हर किसी को हक़ है सिवाय इसके कि कोई किसी को निकाले नहीं. इसीलिये इमाम साहिब मक्कए मुकर्रमा की ज़मीन के क्रय विक्रय और किराए को मना फ़रमाते हैं. जैसा कि हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि मक्कए मुकर्रमा हरम है इसकी ज़मीने बेची न जाएं. (तफ़सीरे अहमदी)

जिसे हमने सब लोगों के लिये मुकर्रर किया कि उसमें एकसा हक़ (अधिकार) है वहां के रहने वाले और परदेसी का और जो उसमें किसी ज़ियादती का नाहक़ इरादा करे हम उसे दर्दनाक अज़ाब चखाएंगे(7){25}
(7) “किसी ज़ियादती का नाहक इरादा करे” नाहक़ ज़ियादगी से या शिर्क और बुत परस्ती मुराद है. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि हर वर्जित क़ौल और काम मुराद है, यहाँ तक कि ख़ादिम को गाली देना भी. कुछ ने कहा इससे मुराद है हरम में बग़ैर इहराम के दाख़िल होना. या मना की हुई बातों का करना जैसे शिकार मारना और पेड़ काटना. और हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया मुराद यह है कि जो तुझे न क़त्ल करे, तू उसे क़त्ल करे या जो तुझ पर ज़ुल्म न करे, तू उस पर ज़ुल्म करे. हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत है कि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन अनीस को दो आदिमयों के साथ भेजा था जिन में एक मुहाजिर था दूसरा अन्सारी. उन लोगो ने अपनी अपनी वंशावली यानी नसब बयान किये तो अब्दुल्लाह बिन अनीस को ग़ुस्सा आया और उसने अन्सारी को क़त्ल कर दिया और ख़ुद मुर्तद होकर मक्कए मुकर्रमा की तरफ़ भाग गया. इस पर यह आयत उतरी.

22 सूरए हज -चौथा रूकू

22 सूरए   हज -चौथा रूकू


और जबकि हमने इब्राहीम को उस घर का ठिकाना ठीक बता दिया(1)
(1) काबा शरीफ़ की तामीर के वक़्त. पहले यह इमारत हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने बनाई थी, तूफ़ाने नूह के वक़्त वह आसमान पर उठा ली गई. अल्लाह तआला ने एक हवा मुक़र्रर की जिसने उसकी जगह को साफ़ कर दिया और एक क़ौल यह है कि अल्लाह तआला ने एक बादल भेजा जो ख़ास उस स्थान के मुक़ाबिल था जहाँ काबाए मुअज़्ज़मा की इमारत थी. इस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को काबे की जगह बताई गई और आपने उस पुरानी बुनियाद पर काबे की इमारत तामीर की और अल्लाह तआला ने आपको वही फ़रमाई.

और हुक्म दिया कि मेरा कोई शरीक न कर और मेरा घर सुथरा रख(2)
(2) शिर्क से और बुतों से और हर क़िस्म की नापाकियों से.

तवाफ़ (परिक्रमा) वालों और एतिकाफ़ (मस्जिद में बैठना) वालों और रूकू सज्दे वालों के लिये (3)(26)
(3) यानी नमाज़ियों के.

और लोगों में हज की आम निदा (घोषणा) कर दे(4)
(4) चुनांचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अबू क़ुबैस पहाड़ पर चढ़कर जगत के लोगों को आवाज़ दी कि बैतुल्लाह का हज करों. जिनकी क़िस्मत में हज है उन्होंने बापों की पीठ और माओं के पेट से जवाब दिया : “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” हम हाज़िर हैं ऐ हमारे रब, हम हाज़िर हैं. हसन रदियल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि इस आयत में “अज़्ज़िन” यानी “आम पुकार कर दे” का सम्बोधन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को है. चुनांचे आख़िरी हज में एलान फ़रमा दिया और इरशाद किया कि ऐ लोगो, अल्लाह ने तुम पर हज फ़र्ज़ किया तो हज करो.

वो तेरे पास हाज़िर होंगे प्यादा और हर दुबली ऊंटनी पर कि हर दूर की राह से आती है(5){27}
(5) और बहुत ज़्यादा सफ़र और घूमने से दुबली हो जाती हैं.

ताकि वो अपना फ़ायदा पाएं(6)
(6) दीनी भी और दुनियावी भी जो इस इबादत के साथ ख़ास हैं, दूसरी इबादत में नहीं पाए जाते.

और अल्लाह का नाम लें(7)
(7) ज़िब्ह के समय.

जाने हुए दिनों में(8)
(8) जाने हुए दिनों से ज़िलहज का अशरा यानी दस दिन मुराद हैं जैसा कि हज़रत अली और इब्ने अब्बास व हसन और क़तादा रदियल्लाहों अन्हुम का क़ौल है और यही मज़हब है हमारे इमामे आज़म हज़रत अबू हनीफ़ा रदियल्लाहो अन्हो का और साहिबैन के नज़्दीक जाने हुए दिनों से क़ुर्बानी के दिन मुराद हैं. यह क़ौल है. हज़रत इब्ने उमर रदियल्लाहो अन्हो का और हर सूरत में यहाँ इन दिनों से ख़ास ईद का दिन मुराद है. (तफ़सीरे अहमदी)

इसपर कि उन्हें रोज़ी दी बेज़बान चौपाए(9)
(9) ऊंट, गाय, बकरी और भेड़.

तो उनमें से ख़ुद खाओ और मुसीबत के मारे मोहताज (दरिद्र) को खिलाओ (10){28}
(10) हर एक क़ुर्बानी से, जिन का इस आयत में बयान है, खाना जायज़ है, बाक़ी क़ुर्बानियों से जायज़ नहीं. (तफ़सीरे अहमदी)

फिर अपना मैल कुचैल उतारें(11)
(11) मूंछ कतरवाएं, नाख़ुन तराशें, बग़लों और पेडू के बाल साफ़ करें.

और अपनी मन्नतें पूरी करें(12)
(12) जो उन्होंने मानी हों.

और उस आज़ाद घर का तवाफ़ (परिक्रमा) करें(13){29}
(13) इससे तवाफ़े ज़ियारत यानी हज़ का फ़र्ज़ तवाफ़ मुराद है. हज के मसाइल तफ़सील से सूरए बक़रा पारा दो में ज़िक्र हो चुके.

बात यह है और जो अल्लाह की हुरमतों (निषेधों) का आदर करें(14)
(14) यानी उसके एहकाम की, चाहे वो हज के संस्कार हों या उनके सिवा और आदेश. कुछ मुफ़स्सिरों ने इस से हज के संस्कार मुराद लिये हैं और कुछ ने बैते हराम, व मशअरे हराम व शहरे हराम व बलदे हराम व मस्जिदे हराम मुराद लिये हैं.

तो वह उसके लिये उसके रब के यहाँ भला है और तुम्हारे लिये हलाल किये गए बेज़बान चौपाए(15)
(15) कि उन्हें ज़िब्ह करके खाओ.

सिवा उनके जिनकी मुमानिअत(मनाही) तुम पर पढ़ी जाती है(16)
(16) क़ुरआन शरीफ़ में, जैसे कि सुरए माइदा की आयत “हुर्रिमत अलैकुम” में बयान फ़रमाई गई.

तो दूर हो बुतों गन्दगी से (17)
(17) जिनकी पूजा करना बदतरीन गन्दगी में लिथड़ना है.

और बचो झुटी बात से {30} एक अल्लाह के होकर कि उसका साझी किसी को न करो और जो अल्लाह का शरीक करे वह मानो गिरा आसमान से कि परिन्दे उसे ले जाते हैं(18)
(18) और बोटी बोटी करके खा जाते हैं.

या हवा उसे किसी दूर जगह फैंकती है(19){31}
(19) मुराद यह है कि शिर्क करने वाला अपनी जान को बहुत बुरी हलाकत में डालता है. ईमान को बलन्दी में आसमान से मिसाल दी गई है और ईमान छोड़ने वाले को आसमान से गिराने वाले के साथ और उसकी नफ़सानी ख़्वाहिशों को जो उसके विचारों को उलट पुलट करती हैं, बोटी बोटी ले जाने वाले पक्षियों के साथ और शैतानों को जो उसको गुमराही की घाटी में फैंकते है, हवा के साथ उपमा दी गई है और इस नफ़ीस मिसाल से शिर्क का बुरा परिणाम समझाया गया.

बात यह है और जो अल्लाह के निशानों का आदर करें तो यह दिलों की परहेज़गारी से है(20){32}
(20) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अल्लाह के निशानों से मुराद क़ुरबानी के जानवर हैं और उनका आदर यह है कि मोटे ताज़े ख़ूबसूरत और क़ीमती लिये जाएं.

तुम्हारे लिये चौपायों में फ़ायदें हैं(21)
(21)  ज़रूरत के वक़्त उन पर सवार होने और उनका दूध पीने के.

एक निश्चित मीआद तक(22)
(22) यानी उनके ज़िब्ह के वक़्त तक.

फिर उनका पहुँचना है उस आज़ाद घर तक(23){33}
(23) यानी हरम शरीफ़ तक जहाँ वो ज़िब्ह किये जाएं.

22 सूरए हज -पांचवाँ रूकू

22 सूरए  हज -पांचवाँ रूकू

और हर उम्मत के लिये(1)
(1) पिछली ईमानदार उम्मतों में से.

हमने एक क़ुरबानी मुक़र्रर फ़रमाई कि अल्लाह का नाम लें उसके दिये हुए बेज़बान चोपायों पर(2)
(2) उनके ज़िब्ह के वक़्त.

तो तुम्हारा मअबूद एक मअबूद है(3)
(3) तो ज़िब्ह के वक़्त सिर्फ़ उसी का नाम लो. इस आयत में दलील है इसपर कि ख़ुदा के नाम का ज़िक्र करना      ज़िब्ह के लिये शर्त है. अल्लाह तआला ने हर उम्मत के लिये मुक़र्रर फ़रमा दिया था कि उसके लिये तक़र्रूब के तरीक़े पर क़ुरबानी करें और तमाम क़ुरबानियों पर उसी का नाम लिया जाए.

तो उसी के हुज़ूर गर्दन रखो(4)
(4) और सच्चे दिल से उसकी आज्ञा का पालन करो.

और ऐ मेहबूब ख़ुशी सुना दो उन तवाज़ों वालों को {34} कि जब अल्लाह का ज़िक्र होता है उनके दिल डरने लगते हैं  (5)
(5) उसके हैबत और जलाल से.

और जो मुसीबत पड़े उसके सहने वाले और नमाज़ क़ायम रखने वाले और हमारे दिये से ख़र्च करते हैं(6){35}
(6) यानी सदक़ा देते हैं.

और क़ुरबानी के डीलदार जानवर ऊंट और गाय हमने तुम्हारे लिये अल्लाह की निशानियों से किये(7)
(7) यानी उसके दीन के ऐलाम से.

तुम्हारे लिये उनमें भलाई है, (8)
(8) दुनिया में नफ़ा और आख़िरत में अज्र और सवाब.

तो उनपर अल्लाह का नाम लो(9)
(9) उनके ज़िब्ह के वक़्त जिस हाल में कि वो हों.

एक पांव बंधे तीन पाँव से खड़े(10){}
(10) ऊंट के ज़िब्ह का यही मस्नून तरीक़ा है.

फिर जब उनकी कर्वटें गिर जाएं(11)
(11) यानी ज़िब्ह के बाद उनके पहलू ज़मीन पर गिरें और उनकी हरकत ठहर जाए.

तो उनमें से ख़ुद खाओ(12)
(12) अगर तुम चाहो.

और सब्र से बैठने वाले और भीख मांगने वाले को खिलाओ, हमने यूही उनको तुम्हारे बस में दे दिया कि तुम एहसान मानो{36} अल्लाह को हरगिज़ न उनके गोश्त पहुचँते हैं न उनके ख़ून, हाँ तुम्हारी परहेज़गारी उस तक पहुँचती हे(13)
(13) यानी क़ुरबानी करने वाले सिर्फ़ नियत की सच्चाई और तक़वा की शर्तों  की रिआयत से अल्लाह तआला को राज़ी कर सकते हैं. जिहालत के ज़माने के काफ़िर अपनी क़ुरबानियों के ख़ून से काबे की दीवारों को गन्दा करते थे और इसको तक़र्रूब का साधन मानत थे. इसपर यह आयत उतरी.

यूंही उनको तुम्हारे बस में कर दिया कि तुम अल्लाह की बड़ाई बोलो इस पर कि तुम को हिदायत फ़रमाई, और ऐ मेहबूब ख़ुश ख़बरी सुनाओ नेकी वालों को (14){37}
(14) सवाब की.

बेशक अल्लाह बलाएं टालता है मुसलमानों की(15)
(15) और उनकी मदद फ़रमाता है.

बेशक अल्लाह दोस्त नहीं रखता हर बड़े दग़ाबाज़ नाशुक्रे को(16){38}
(16) यानी काफ़िरों को, जो अल्लाह और उसके रसूल की ख़ियानत और ख़ुदा की नेअमतों की नाशुक्री करते हैं.