सूरए अनआम मक्के में उतरी, इसमें 165 आयतें और बीस रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला (1)
सूरए अनआम पहला रूकू
सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने आसमान और ज़मीन बनाए (2)
और अंधेरियां और रोशनी पैदा की (3)
उसपर (4)
काफ़िर लोग अपने रब के बराबर ठहराते हैं (5) {1}
वही है जिसने तुम्हें (6)
मिट्टी से पैदा किया फिर एक मीआद (मुद्दत) का हुक्म रखा (7)
और एक निश्चित वादा उसके यहां है (8)
फिर तुम लोग शक करते हो {2} और वही अल्लाह है आसमानों और ज़मीन का (9)
उसे तुम्हारा छुपा और ज़ाहिर सब मालूम है और तुम्हारे काम जानता है {3} और उनके पास कोई भी निशानी अपने रब की निशानियों से नहीं आती मगर उससे मुंह फेर लेते हैं {4} तो बेशक उन्होंने सत्य को झुटलाया (10)
जब उनके पास आया तो अब उन्हें ख़बर हुआ चाहती है उस चीज़ की जिसपर हंस रहे थे (11) {5}
क्या उन्होंने न देखा कि हमने उनसे पहले (12)
कितनी संगते खपा दीं उन्हें हमने ज़मीन में वह जमाव दिया (13)
जो तुमको न दिया और उनपर मूसलाधार पानी भेजा (14)
और उनके नीचे नेहरें बहाईं (15)
तो उन्हें हमने उनके गुनाहों के सबब हलाक किया (16)
और उनके बाद और संगत उठाई (17){6}
और अगर हम तुमपर कागज़ में कुछ लिखा हुआ उतारते (18)
कि वो उसे अपने हाथों से छूते जब भी काफ़िर कहते कि यह नहीं मगर खुला जादू {7} और बोले (19)
उनपर (20)
कोई फ़रिश्ता क्यों न उतारा गया और अगर हम फ़रिश्ता उतारते (21)
तो काम तमाम हो गया होता (22)
फिर उन्हें मोहलत (अवकाश) न दी जाती (23) {8}
और अगर हम नबी को फ़रिश्ता करते (24)
जब भी उसे मर्द ही बनाते (25)
और उनपर वही शुबह रखते जिसमें अब पड़े हैं {9} और ज़रूर ऐ मेहबूब तुमसे पहले रसूलों के साथ भी ठट्ठा किया गया तो वो जो उनसे हंसते ये उनकी हंसी उनको ले बैठी (26) {10}
6 – सूरए अनआम – पहला रूकू
(1) सूरए अनआम मक्के में उतरी. इसमें बीस रूकू और 165 आयतें, तीन हज़ार एक सौ कलिमे और बारह हज़ार नौसो पैंतीस अक्षर हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कुल सूरत एक ही रात में मक्कए मुकर्रमा में उतरी और इसके साथ सत्तर हज़ार फ़रिश्ते आए जिन से आसमानों के किनारे भर गए. यह भी एक रिवायत में है कि वो फ़रिश्ते तस्बीह करते और अल्लाह की पाकी बोलते आए और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम “सुब्हाना रब्बियल अज़ीम” फ़रमाते हुए सिजदे में चले गए.
(2) हज़रत कअब अहबार रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया, तौरात में सब से पहली यही आयत है. इस आयत में बन्दों को इस्तग़ना की शान के साथ अल्लाह की तारीफ़ बयान करने की तालीम फ़रमाई गई है और आसमान व ज़मीन की उत्पत्ति का ज़िक्र इसलिये है कि उनमें देखने वालों के लिये क़ुदरत के बहुत से चमत्कार, हिकमते और सबक़ लेने वाली और फ़ायदे वाली बातें हैं.
(3) यानी हर एक अन्धेरी और रौशनी, चाहे वह अन्धेरी रात की हो या कुफ़्र की या जिहालत की या जहन्नम की. और रौशनी चाहे दिन की हो या ईमान और हिदायत व इल्म व जन्नत की. अन्धेरी को बहुवचन और रौशनी को एक वचन से बयान करने में इस तरफ़ इशारा है कि बातिल की राहें बहुत सी हैं और सच्चाई का रास्ता सिर्फ़ एक, दीने इस्लाम.
(4) यानी ऐसे प्रमाणों पर सूचित होने और क़ुदरत की ऐसी निशानियाँ देखने के बावुजूद.
(5) दूसरों को, यहाँ तक कि पत्थरों को पूजते हैं जबकि इस बात का इक़रार करते हैं कि आसमानों और ज़मीन का पैदा करने वाला अल्लाह है.
(6) यानी तुम्हारी अस्ल हज़रत आदम को, जिनकी नस्ल से तुम पैदा हुए. इसमें मुश्रिकों का रद है जो कहते थे कि जब हम गल कर मिट्टी हो जाएंगे फिर कैसे ज़िन्दा किये जाएंगे. उन्हें बताया गया कि तुम्हारी अस्ल मिट्टी ही से है तो फिर दोबारा पैदा किये जाने पर क्या आश्चर्य. जिस क़ुदरत वाले ने पहले पैदा किया उसकी क़ुदरत से मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने को असंभव समझना नादानी है.
(7) जिसके पूरा हो जाने पर तुम मर जाओगे.
(8) मरने के बाद उठाने का.
(9) उसका कोई शरीक नहीं.
(10) यहाँ सत्य से या क़ुरआन शरीफ़ की आयतें मुराद हैं या सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके चमत्कार.
(11) कि वह कैसी महानता वाली है और उसकी हंसी बनाने का अंजाम कैसा वबाल और अज़ाब.
(12) पिछली उम्मतों में से.
(13) ताक़त व माल और दुनिया के बहुत से सामान देकर.
(14) जिससे खेतियाँ हरी भरी हों.
(15) जिससे बाग़ फले फूले और दुनिया की ज़िन्दगानी के लिये ऐश व राहत के साधन उपलब्ध हों.
(16) कि उन्होंने नबियों को झुटलाया और उनका यह सामान उन्हें हलाक से न बचा सका.
(17) और दूसरे ज़माने वालों को उनका उत्तराधिकारी किया. मतलब यह है कि गुज़री हुई उम्मतों के हाल से सबक़ और नसीहत हासिल करनी चाहिये कि वो लोग ताक़त, दौलत और माल की कसरत और औलाद की बहुतात के बावजूद कुफ़्र और बग़ावत की वजह से हलाक कर दिये गए तो चाहिये कि उनके हाल से सबक़ हासिल करके ग़फ़लत की नींद से जागे.
(18) यह आयत नज़र बिन हारिस और अब्दुल्लाह बिन उमैया और नोफ़ल बिन ख़ूलद के बारे में उतरी जिन्होंने कहा था कि मुहम्मद पर हम हरगिज़ ईमान न लाएंगे जब तक तुम हमारे पास अल्लाह की तरफ़ से किताब न लाओ जिसके साथ चार फ़रिश्ते हों, वो गवाही दें कि यह अल्लाह की किताब है और तुम उसके रसूल हो. इस पर यह आयत उतरी और बताया गया कि ये सब हीले बहाने हैं अगर काग़ज पर लिखी हुई किताब उतार दी जाती और वो उसे अपने हाथों से छूकर और टटोल कर देख भी लेते और यह कहने का मौक़ा भी न होता कि नज़रबन्दी कर दी गई थी. किताब उतरती नज़र आई, था कुछ भी नहीं, तो भी ये बदनसीब ईमान लाने वाले न थे, उसको जादू बताते और जिस तरह चाँद चिर जाने को जादू बताया था और उस चमत्कार को देखकर ईमान न लाए थे उसी तरह इस पर भी ईमान न लाते क्योंकि जो लोग दुश्मनी के कारण इन्कार करते हैं वो आयतों और चमत्कारों से फ़ायदा नहीं उठा पातें.
(19) मुश्रिक लोग.
(20) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.
(21) और फिर भी ये ईमान न लाते.
(22) यानी अज़ाब वाजिब हो जाता और यह अल्लाह की सुन्नत है कि जब काफ़िर कोई निशानी तलब करें और उसके बाद भी ईमान न लाएं तो अज़ाब वाजिब हो जाता है और वो हलाक कर दिये जाते हैं.
(23) एक क्षण की भी, और अज़ाब में देरी न की जाती तो फ़रिश्ते का उतारना जिसको वो तलब करते हैं, उन्हें क्या नफ़ा देता.
(24) यह उन काफ़िरों का जवाब है जो नबी अलैहिस्सलाम को कहा करते थे कि यह हमारी तरह आदमी हैं और इसी पागलपन में वो ईमान से मेहरूम रहते थे. इन्हीं इन्सानों में से रसूल भेजने की हिकमत बताई जाती है कि उनके फ़ायदा उठाने और नबी की तालीम से फैज़ उठाने की यही सूरत है कि नबी आदमी की सूरत में आए क्योंकि फ़रिश्ते को उसकी अस्ली सूरत में देखने की तो ये लोग हिम्मत न कर सकते, देखते ही दहशत से बेहोश हो जाते या मर जाते, इसलिये अगर मान लो रसूल फ़रिश्ता ही बनाया जाता.
(25) और इन्सान की सूरत ही में भेजते ताकि ये लोग उसको देख सकें, उसका कलाम सुन सकें, उससे दीन के अहकाम मालूम कर सकें. लेकिन अगर फ़रिश्ता आदमी की सूरत में आता तो उन्हें फिर वही कहने का मौक़ा रहता कि यह आदमी है. तो फ़रिश्ते को नबी बनाने का क्या फ़ायदा होता.
(26) वो अज़ाब में जकड़े गए. इसमें नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है कि आप दुखी न हों, काफ़िरों का पहले नबियों के साथ भी यही तरीक़ा रहा है और इसका वबाल उन काफ़िरों को उठाना पड़ा है. इसके अलावा मुश्रिकों को चेतावनी है कि पिछली उम्मतों के हाल से सबक़ लें और नबियों के साथ अदब से पेश आएं ताकि पहलों की तरह अज़ाब में न जकड़े जाएं.
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