25 सूरए फ़ुरक़ान
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
تَبَارَكَ ٱلَّذِى نَزَّلَ ٱلْفُرْقَانَ عَلَىٰ عَبْدِهِۦ لِيَكُونَ لِلْعَٰلَمِينَ نَذِيرًا
ٱلَّذِى لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَلَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًۭا وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٌۭ فِى ٱلْمُلْكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَىْءٍۢ فَقَدَّرَهُۥ تَقْدِيرًۭا
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةًۭ لَّا يَخْلُقُونَ شَيْـًۭٔا وَهُمْ يُخْلَقُونَ وَلَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ ضَرًّۭا وَلَا نَفْعًۭا وَلَا يَمْلِكُونَ مَوْتًۭا وَلَا حَيَوٰةًۭ وَلَا نُشُورًۭا
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنْ هَٰذَآ إِلَّآ إِفْكٌ ٱفْتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَيْهِ قَوْمٌ ءَاخَرُونَ ۖ فَقَدْ جَآءُو ظُلْمًۭا وَزُورًۭا
وَقَالُوٓا۟ أَسَٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ ٱكْتَتَبَهَا فَهِىَ تُمْلَىٰ عَلَيْهِ بُكْرَةًۭ وَأَصِيلًۭا
قُلْ أَنزَلَهُ ٱلَّذِى يَعْلَمُ ٱلسِّرَّ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
وَقَالُوا۟ مَالِ هَٰذَا ٱلرَّسُولِ يَأْكُلُ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشِى فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۙ لَوْلَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مَلَكٌۭ فَيَكُونَ مَعَهُۥ نَذِيرًا
أَوْ يُلْقَىٰٓ إِلَيْهِ كَنزٌ أَوْ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةٌۭ يَأْكُلُ مِنْهَا ۚ وَقَالَ ٱلظَّٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًۭا مَّسْحُورًا
ٱنظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلْأَمْثَٰلَ فَضَلُّوا۟ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًۭا
सूरए फ़ुरक़ान मक्का में उतरी, इसमें 77 आयतें, 6 रूकू हैं.
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए फ़ुरक़ान मक्के में उतरी. इसमें 6 रूकू, 77 आयतें, 812 कलिमे और 3703 अक्षर है.
बड़ी बरकत वाला है वह जिसने उतारा क़ुरआन अपने बन्दे पर(2)
(2) यानी सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.
जो सारे जगत को डर सुनाने वाला हो(3){1}
(3) इसमें हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत के सार्वजनिक होने पर बयान है कि आप सारी सृष्टि की तरफ़ रसूल बनाकर भेजे गए, जिन्न हों या इन्सान, फ़रिश्ते हों या दूसरी मख़लूक़, सब आपके उम्मती हैं क्योंकि आलम मासिवल्लाह को कहते हैं और उसमें ये सब दाख़िल हैं. फ़रिश्तों को इससे अलग करना, जैसा कि जलालैन में शैख़ महल्ली से और कबीर में इमाम राज़ी से और शअबलि ईमान में बेहक़ी से सादिर हुआ, बे-दलील है. और इजमाअ का दावा साबित नहीं. चुनांचे इमाम सुबकी और बाज़री और इब्ने हज़म और सियूती ने इसका तअक्क़ुब किया और खुद इमाम राज़ी को तसलीम है कि आलम अल्लाह को छोडकर सब को कहते हैं. तो वह सारी सृष्टि को शामिल है, फ़रिश्तों को इससे अलग करने पर कोई दलील नहीं. इसके अलावा मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है – उर्सिल्तु इलल ख़ल्क़े काफ्फ़तन, यारी मैं सारी सृष्टि की तरफ़ रसूल बनाकर भेजा गया. अल्लामा अली क़ारी ने मिर्क़ात में इसकी शरह में फ़रमाया, यानी तमाम मौजूदात की तरफ़, जिन्न हों या इन्सान, फ़रिश्ते हों या जानवर या पेड़ पौदे या पत्थर. इस मसअले की पूरी व्याख्या तफ़सील के साथ इमाम क़ुस्तलानी की मवाहिबुल लदुनियह में है.
वह जिसके लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाहत और उसने न इख़्तियार फ़रमाया बच्चा(4)
(4) इसमें यहूद और ईसाइयों का रद है जो हज़रत उज़ैर और मसीह अलैहुमस्सलाम को ख़ुदा का बेटा कहते हैं.
और उसकी सल्तनत में कोई साझी नहीं(5)
(5) इसमें बुत परस्तों का रद है जो बुतों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं.
उसने हर चीज़ पैदा करके ठीक अन्दाज़े पर रखी{2} और लोगों ने उसके सिवा और ख़ुदा ठहरा लिये(6)
(6) यानी बुत परस्तों ने बुतों को ख़ुदा ठहराया जो ऐसे आजिज़ और बेक़ुदरत है.
कि वो कुछ नहीं बनाते और ख़ुद पैदा किये गए हैं और ख़ुद अपनी जानों के भले बुरे के मालिक नहीं और न मरने का इख़्तियार न जीने का न उठने का{3} और काफ़िर बोले(7)
(7) यानी नज़र बिन हारिस और उसके साथी क़ुरआन की निस्बत, कि..
यह तो नहीं मगर एक बोहतान जो उन्होंने बना लिया है(8)
(8) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.
और इसपर और लोगों ने(9)
(9) और लोगों से नज़र बिन हारिस की मुराद यहूदी थे और अदास व यसार वग़ैरह एहले किताब.
उन्हें मदद दी है, बेशक वो(10)
(10) नज़र बिन हारिस वग़ैरह मुश्रिक, जो यह बेहूदा बात कहने वाले थे.
ज़ुल्म और झूट पर आए{4} और बोले(11)
(11) वही मुश्रिक लोग क़ुरआन शरीफ़ की निस्बत, कि यह रूस्तम और स्फ़न्दयार वग़ैरह के क़िस्सों की तरह.
अगलों की कहानियां हैं जो उन्होंने(12)
(12) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.
लिख ली हैं तो वो उनपर सुब्ह शाम पढ़ी जाती हैं{5} तुम फ़रमाओ इसे तो उसने उतारा है जो आसमानों और ज़मीन की हर छुपी बात जानता है(13)
(13) यानी क़ुरआन शरीफ़ अज्ञात यानी ग़ैब की उलूम पर आधारित हे. यह साफ़ दलील है इसकी कि वह अल्लाह की तरफ़ से है जो सारे ग़ैब जानता है.
बेशक वह बख़्शने वाला मेहरबान है(14){6}
(14) इसीलिये काफ़िरों को मोहलत देता है और अज़ाब में जल्दी नहीं फ़रमाता.
और बोले(15)
(15) क़ुरैश के काफ़िर.
इस रसूल को क्या हुआ खाना खाता है और बाज़ार में चलता है, (16)
(16) इससे उनकी मुराद यह थी कि आप नबी होते तो न खाते न बाज़ारों में चलते और यह भी न होता तो..
क्यों न उतारा गया उनके साथ कोई फ़रिश्ता कि उनके साथ डर सुनाता(17){7}
(17) और उनकी तस्दीक़ करता और उनकी नबुव्वत की गवाही देता.
या ग़ैब से उन्हें कोई ख़ज़ाना मिल जाता या उनका कोई बाग़ होता जिसमें से खाते, (18)
(18) मालदारों की तरह.
और ज़ालिम बोले (19)
(19) मुसलमानों से.
तुम तो पैरवी नहीं करते मगर एक ऐसे मर्द की जिसपर जादू हुआ(20){8}
(20) और मआज़ल्लाह, उसकी अक़्ल जगह पर न रही, ऐसी तरह तरह की बेहूदा बातें उन्हों ने बकीं.
ऐ मेहबूब देखो कैसी कहावतें तुम्हारे लिये बना रहे हैं, तो गुमराह हुए कि अब कोई राह नहीं पाते{9}
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