26 – सूरए शुअरा – दूसरा रूकू
وَإِذْ نَادَىٰ رَبُّكَ مُوسَىٰٓ أَنِ ٱئْتِ ٱلْقَوْمَ ٱلظَّٰلِمِينَ
قَوْمَ فِرْعَوْنَ ۚ أَلَا يَتَّقُونَ
قَالَ رَبِّ إِنِّىٓ أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ
وَيَضِيقُ صَدْرِى وَلَا يَنطَلِقُ لِسَانِى فَأَرْسِلْ إِلَىٰ هَٰرُونَ
وَلَهُمْ عَلَىَّ ذَنۢبٌۭ فَأَخَافُ أَن يَقْتُلُونِ
قَالَ كَلَّا ۖ فَٱذْهَبَا بِـَٔايَٰتِنَآ ۖ إِنَّا مَعَكُم مُّسْتَمِعُونَ
فَأْتِيَا فِرْعَوْنَ فَقُولَآ إِنَّا رَسُولُ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
أَنْ أَرْسِلْ مَعَنَا بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
قَالَ أَلَمْ نُرَبِّكَ فِينَا وَلِيدًۭا وَلَبِثْتَ فِينَا مِنْ عُمُرِكَ سِنِينَ
وَفَعَلْتَ فَعْلَتَكَ ٱلَّتِى فَعَلْتَ وَأَنتَ مِنَ ٱلْكَٰفِرِينَ
قَالَ فَعَلْتُهَآ إِذًۭا وَأَنَا۠ مِنَ ٱلضَّآلِّينَ
فَفَرَرْتُ مِنكُمْ لَمَّا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِى رَبِّى حُكْمًۭا وَجَعَلَنِى مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ
وَتِلْكَ نِعْمَةٌۭ تَمُنُّهَا عَلَىَّ أَنْ عَبَّدتَّ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ
قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ ٱلْعَٰلَمِينَ
قَالَ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَآ ۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ
الَ لِمَنْ حَوْلَهُۥٓ أَلَا تَسْتَمِعُونَ
قَالَ رَبُّكُمْ وَرَبُّ ءَابَآئِكُمُ ٱلْأَوَّلِينَ
قَالَ إِنَّ رَسُولَكُمُ ٱلَّذِىٓ أُرْسِلَ إِلَيْكُمْ لَمَجْنُونٌۭ
قَالَ رَبُّ ٱلْمَشْرِقِ وَٱلْمَغْرِبِ وَمَا بَيْنَهُمَآ ۖ إِن كُنتُمْ تَعْقِلُونَ
قَالَ لَئِنِ ٱتَّخَذْتَ إِلَٰهًا غَيْرِى لَأَجْعَلَنَّكَ مِنَ ٱلْمَسْجُونِينَ
قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكَ بِشَىْءٍۢ مُّبِينٍۢ
قَالَ فَأْتِ بِهِۦٓ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ
فَأَلْقَىٰ عَصَاهُ فَإِذَا هِىَ ثُعْبَانٌۭ مُّبِينٌۭ
وَنَزَعَ يَدَهُۥ فَإِذَا هِىَ بَيْضَآءُ لِلنَّٰظِرِينَ
और याद करो जब तुम्हारे रब ने मूसा को निदा फ़रमाई कि ज़ालिम लोगों के पास जा{10} जो फ़िरऔन की क़ौम है(1)
(1) जिन्होंने कुफ़्र और गुमराही से अपनी जानों पर ज़ुल्म किया और बनी इसराईल को ग़ुलाम बनाकर और उन्हें तरह तरह की यातनाएं देकर उन पर अत्याचार किया. उस क़ौम का नाम क़िब्त है. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उनकी तरफ़ रसूल बनाकर भेजा गया था कि उन्हें उनकी बदकिरदारी पर अल्लाह के अज़ाब से डराएं.
क्या वो न डरेंगे(2){11}
(2) अल्लाह से और अपनी जानों को अल्लाह तआला पर ईमान लाकर और उसकी फ़रमाँबरदारी करके उसके अज़ाब से न बचाएंगे. इसपर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में….
अर्ज़ की ऐ मेरे रब मैं डरता हूँ कि वो मुझे झुटलाएंगे{12} और मेरा सीना तंगी करता है(3)
(3) उनके झुटलाने से.
और मेरी ज़बान नहीं चलती(4)
(4) यानी बात चीत करने में किसी क़दर तकल्लुफ़ होता है. उस तकलीफ़ की वजह से जो बचपन में मुंह में आग का अंगारा रख लेने की वजह से ज़बान में हो गई है.
तो तू हारून को भी रसूल कर (5){13}
(5) ताकि वह रिसालत के प्रचार में मेरी मदद करें. जिस वक़्त हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को शाम में नबुव्वत दी गई उस वक़्त हज़रत हारून अलैहिस्सलाम मिस्र में थे.
और उनका मुझपर एक इल्ज़ाम है(6)
(6) कि मैंने क़िब्ती को मारा था.
तो मैं डरता हूँ कहीं मुझे (7)
(7) उसके बदले में.
क़त्ल कर दें{14} फ़रमाया यूँ नहीं(8)
(8) तुम्हें क़त्ल नहीं कर सकते और अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की प्रार्थना मन्ज़ूर फ़रमा कर हज़रत हारून अलैहिस्सलाम को भी नबी कर दिया और दोनों को हुक्म दिया.
तुम दोनों मेरी आयतें लेकर जाओ हम तुम्हारे साथ सुनते हैं(9){15}
(9) जो तुम कहो और जो तुम्हें दिया जाए.
तो फ़िरऔन के पास जाओ फिर उससे कहो हम दोनों उसके रसूल हैं जो रब है सारे जगत का{16} कि तू हमारे साथ बनी इस्राईल को छोड़ दे(10){17}
(10) ताकि हम उन्हें शाम की धरती पर ले जाएं. फ़िरऔन ने चारसौ बरस तक बनी इस्राईल को ग़ुलाम बनाए रखा था. उस वक़्त बनी इस्राईल की तादाद छ लाख तीस हज़ार थी. अल्लाह तआला का यह हुक्म पाकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम मिस्र की तरफ़ रवाना हुए. आप पशमीने का जुब्बा पहने हुए थे. मुबारक हाथ में लाठी थी जिसके सिरे पर ज़ंबील लटकी हुई थी जिसमें सफ़र का तोशा था. इस शान से आप मिस्र में पहुंच कर अपने मकान मे दाख़िल हुए. हज़रत हारून अलैहिस्सलाम वहीं थे. आपने उन्हें ख़बर दी कि अल्लाह तआला ने मुझे रसूल बनाकर फ़िरऔन की तरफ़ भेजा है और आप को भी रसूल बनाया है कि फ़िरऔन को ख़ुदा की तरफ़ दावत दो. यह सुनकर आपकी वालिदा साहिबा घबराई और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से कहने लगीं कि फ़िरऔन तुम्हें क़त्ल करने के लिये तुम्हारी तलाश में है. जब तुम उसके पास जाओगे तो तुम्हें क़त्ल करेगा. लेकिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम उनके यह फ़रमाने से न रूके हज़रत हारून को साथ लेकर रात के वक़्त फ़िरऔन के दरवाज़े पर पहुंचें दरवाज़ा खटखटाया, पूछा आप कौन हैं? हज़रत ने फ़रमाया मैं हूँ मूसा, सारे जगत के रब का रसूल, फ़िरऔन को ख़बर दी गई. सुबह के वक़्त आप बुलाए गए. आप ने पहुंचकर अल्लाह तआला की रिसालत अदा की और फ़िरऔन के पास जो हुक्म पहुंचाने पर आप मुक़र्रर किये गए थे, वह पहुंचाया, फ़िरऔन ने आपको पहचाना.
बोला क्या हमने तुम्हें अपने यहाँ बचपन मे न पाला और तुमने हमारे यहाँ अपनी उम्र के कई बरस गुज़ारे (11){18}
(11) मुफ़स्सिरों ने कहा तीस बरस. उस ज़माने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फ़िरऔन के लिबास पहनते थे और उसकी सवारियों में सवार होते थे और उसके बेटे मशहूर थे.
और तुमने किया अपना वह काम जो तुमने किया(12)
(12) क़िब्ती को क़त्ल किया.
और तुम नाशुक्रे थे (13){19}
(13) कि तुमने हमारी नेअमत का शुक्रिया अदा न किया और हमारे एक आदमी को क़त्ल कर दिया.
मूसा ने फ़रमाया, मैंने वह काम किया जबकि मुझे राह की ख़बर न थी(14){20}
(14) मैं न जानता था कि घूंसा मारने से वह शख़्स मर जाएगा. मेरा मारना अदब सिखाने के लिये था न कि क़त्ल के लिये.
तौ मैं तुम्हारे यहां से निकल गया जब कि तुम से डरा(15)
(15)कि तुम मुझे क़त्ल करोगे और मदयन शहर को चला गया.
तो मेरे रब ने मुझे हुक्म अता फ़रमाया(16)
(16) मदयन से वापसी के वक़्त. हुक्म से यहाँ या नबुव्वत मुराद है या इल्म.
और मुझे पैग़म्बरों से किया{21} और कोई नेअमत है जिसका तू मुझ पर एहसान जताता है कि तूने ग़ुलाम बनाकर रखे बनी इस्राईल (17){22}
(17) यानी इसमें तेरा क्या एहसान है कि तू ने मेरी तरबियत की और बचपन में मुझे रखा, खिलाया, पहनाया, क्योंकि मेरे तुझ तक पहुंचने का कारण तो यही हुआ कि तूने बनी इस्राईल को ग़ुलाम बनाया, उनकी औलाद को क़त्ल किया. यह तेरा ज़ुल्म इसका कारण हुआ कि मेरे माँ बाप मुझे पाल पोस न सके और मुझे दरिया में डालने पर मजबूर हुए. तू ऐसा न करता तो मैं अपने वालदैन के पास रहता. इसलिये यह बात क्या इस क़ाबिल है कि इसका एहसान जताया जाए. फ़िरऔन मूसा अलैहिस्सलाम की इस तक़रीर से लाजवाब हो गया और उसने अपने बोलने का ढंग बदला और यह गुफ़्तगू छोड़ कर दूसरी बात शुरू की.
फ़िरऔन बोला और सारे जगत का रब क्या है(18){23}
(18) जिसका तुम अपने आपको रसूल बताते हो.
मूसा ने फ़रमाया रब आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनके बीच में है अगर तुम्हें यक़ीन हो (19){24}
(19) यानी अगर तुम चीज़ों को प्रमाण से जानने की योग्यता रखते हो तो उन चीज़ों की पैदायश उसके अस्तित्व यानी होने का खुला प्रमाण है. ईक़ान यानी यक़ीन उस इल्म को कहते हैं जो तर्क से या प्रमाण से हासिल हो. इसीलिये अल्लाह तआला की शान में “मूक़िन” यक़ीन वाला नहीं कहा जाता.
अपने आस पास वालों से बोला क्या तुम ग़ौर से सुनते नहीं (20){25}
(20) उस वक़्त उसके चारों तरफ़ उसकी क़ौम के प्रतिष्ठित लोगों में से पाँच सौ व्यक्ति ज़ेवरों से सजे, सोने की कुर्सीयों पर बैठे थे. उन से फ़िरऔन का यह कहना क्या तुम ग़ौर से नहीं सुनते, इस अर्थ में था कि वो आसमान और ज़मीन को क़दीम समझते थे और उनके नष्ट किये जाने के इन्कारी थे, मतलब यह था कि जब ये चीज़ें क़दीम यानी अपने आप वुजूद में आई तो इनके लिये रब की क्या ज़रूरत. अब हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम ने उन चीज़ों से इस्तदलाल पेश करना चाहा जिनकी पैदाइश और जिनकी फ़ना देखने में आचुकी है.
मूसा ने फ़रमाया रब तुम्हारा और तुम्हारे अगले बाप दादाओ का(21){26}
(21) यानी अगर तुम दूसरी चीज़ों से इस्तदलाल नहीं कर सकते तो ख़ुद तुम्हारे नूफ़ूस से इस्तदलाल पेश किया जाता है. अपने आपको जानते हो, पैदा हुए हो, अपने बाप दादा को जानते हो कि वो नष्ट हो गए. तो अपनी पैदायश से और उनके नष्ट हो जाने से पैदा करने और मिटा देने वाले के अस्तित्व का सुबूत मिलता है.
बोला तुम्हारे ये रसूल जो तुम्हारी तरफ़ भेजे गए है ज़रूर अक़्ल नहीं रखते(22){27}
(22) फ़िरऔन ने यह इसलिये कहा कि वह अपने सिवा किसी मअबूद के अस्तित्व का मानने वाला न था और जो उसके मअबूद होने का अक़ीदा न रखे उसको समझ से वंचित कहता था. हक़ीक़त में इस तरह की गुफ़्तगू मजबूरी और लाचारी के वक़्त आदमी की ज़बान पर आती है. लेकिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने हिदायत का फ़र्ज़ पूरी तरह निभाया और उसकी इस सारी निरर्थक बातचीत के बावुजूद फिर अतिरिक्त बयान की तरफ़ मुतवज्जह हुए.
मूसा ने फ़रमाया, रब पूरब और पश्चिम का और जो कुछ उन के बीच है(23)
(23) क्योंकि पूर्व से सूर्य का उदय करना और पश्चिम में डूब जाना और साल की फ़सलों में एक निर्धारित हिसाब पर चलना और हवाओं और बारिशों वग़ैरह के प्रबन्ध, यह सब उसके वुजूद यानी अस्तित्व और क्षमता यानी क़ुदरत के प्रमाण है.
अगर तुम्हें अक़्ल हो(24){28}
(24) अब फ़िरऔन आश्चर्य चकित हो गया और अल्लाह की क़ुदरत के चिन्हों के इन्कार की राह बाक़ी न रही और कोई जवाब उससे न बन पड़ा.
बोला अगर तुम ने मेरे सिवा किसी और को ख़ुदा ठहराया तो मैं ज़रूर तुम्हें कै़द कर दूंगा(25){29}
(25) फ़िरऔन की क़ैद क़त्ल से बदतर थी. उसका जेल खाना तंग, अंधेरा, गहरा गढा था. उसमें अकेला डाल देता था, न वहाँ कोई आवाज़ सुनाई देती थी, न कुछ नज़र आता था.
फ़रमाया क्या अगरचे मैं तेरे पास रौशन चीज़ लांऊ (26){30}
(26) जो मेरी रिसालत का प्रमाण हो, मुराद इससे चमत्कार है. इसपर फ़िरऔन ने.
कहा तो लाओ अगर सच्चे हो {31} तो मूसा ने अपना असा डाल दिया जभी वह साफ़ खुला अजगर हो गया (27){32}
(27) लाठी अजगर बन कर आसमान की तरफ़ एक मील के बराबर उड़ी फिर उतर कर फ़िरऔन की तरफ़ आई और कहने लगी, ऐ मूसा हुक्म दीजिये. फ़िरऔन ने घबराकर कहा उसकी क़सम जिसने तुम्हें रसूल बनाया, इसे पकड़ो. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे हाथ में लिया तो पहले की तरह लाठी हो गई. फ़िरऔन कहने लगा, इसके सिवा और भी कोई चमत्कार है. आपने फ़रमाया हाँ. और उसको चमकती हथैली दिखाई.
और अपना हाथ(28)
(28) गिरेबान में डालकर.
निकाला तो जभी वह देखने वालों की निगाह में जगमगाने लगा(29){33}
(29) उससे सूरज की सी किरन ज़ाहिर हुई.
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