38 सूरए सॉद -पहला रूकू
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
ص ۚ وَالْقُرْآنِ ذِي الذِّكْرِ
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي عِزَّةٍ وَشِقَاقٍ
كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّن قَرْنٍ فَنَادَوا وَّلَاتَ حِينَ مَنَاصٍ
وَعَجِبُوا أَن جَاءَهُم مُّنذِرٌ مِّنْهُمْ ۖ وَقَالَ الْكَافِرُونَ هَٰذَا سَاحِرٌ كَذَّابٌ
أَجَعَلَ الْآلِهَةَ إِلَٰهًا وَاحِدًا ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ
وَانطَلَقَ الْمَلَأُ مِنْهُمْ أَنِ امْشُوا وَاصْبِرُوا عَلَىٰ آلِهَتِكُمْ ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ يُرَادُ
مَا سَمِعْنَا بِهَٰذَا فِي الْمِلَّةِ الْآخِرَةِ إِنْ هَٰذَا إِلَّا اخْتِلَاقٌ
أَأُنزِلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ مِن بَيْنِنَا ۚ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّن ذِكْرِي ۖ بَل لَّمَّا يَذُوقُوا عَذَابِ
أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَحْمَةِ رَبِّكَ الْعَزِيزِ الْوَهَّابِ
أَمْ لَهُم مُّلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ فَلْيَرْتَقُوا فِي الْأَسْبَابِ
جُندٌ مَّا هُنَالِكَ مَهْزُومٌ مِّنَ الْأَحْزَابِ
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ ذُو الْأَوْتَادِ
وَثَمُودُ وَقَوْمُ لُوطٍ وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ ۚ أُولَٰئِكَ الْأَحْزَابُ
إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ
सूरए सॉद मक्का में उतरी, इसमें 88 आयतें, पांच रूकू हैं.
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए सॉद का नाम सूरए दाऊद भी है. य सूरत मक्के में उतरी, इसमें पांच रूकू, अठासी आयतें और सात सौ बत्तीस कलिमे और तीन हज़ार सढ़सठ अक्षर हैं.
इस नामवर क़ुरआन की क़सम(2){1}
(2) जो बुज़ुर्गी वाला है कि ये चमत्कारी कलाम है.
बल्कि काफ़िर तकब्बुर (घमण्ड) और ख़िलाफ़ (दुश्मनी) में हैं(3){2}
(3) और नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से दुश्मनी रखते हैं इसलिये सच्चाई को नहीं मानते.
हमने उनसे पहले कितनी संगते खपाई(4)
(4) यानी आपकी क़ौम से पहले कितनी उम्मतें हलाक कर दीं, इसी घमण्ड और नबियों के विरोध के कारण.
तो अब वो पुकारें (5)
(5) यानी अज़ाब उतरने के वक़्त उन्होंने फ़रियाद की.
और छूटने का वक़्त न था(6){3}
(6) कि छुटकारा पा सकते. उस वक़्त की फ़रियाद बेकार थी. मक्के के काफ़िरों ने उनके हाल से इब्रत हासिल न की.
और उन्हें इसका अचंभा हुआ कि उनके पास उन्हीं में का एक डर सुनाने वाला तशरीफ़ लाया(7)
(7) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
और काफ़िर बोले यह जादूगर है बड़ा झूटा{4} क्या उसने बहुत ख़ुदाओं का एक ख़ुदा कर दिया(8)
(8) जब हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो इस्लाम लाए तो मुसलमानों को ख़ुशी हुई और काफ़िरों को बहुत रंज हुआ. वलीद बिन मुग़ीरह ने क़ुरैश के पच्चीस प्रतिष्ठित आदमियों को जमा किया और उन्हें अबू तालिब के पास लाया और उनसे कहा कि तुम हमारे सरदार हो और बुज़ुर्ग हो. हम तुम्हारे पास इसलिये आए है कि तुम हमारे और अपने भतीजे के बीच फै़सला करदो. उनकी जमाअत के छोटे दर्जे के लोगों ने जो आतंक मचा रखा है वह तुम जानते हो. अबू तालिब ने हज़रत सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को बुलाकर अर्ज़ किया कि ये आपकी क़ौम के लोग हैं और आप से सुलह चाहते हैं आप उनकी तरफ़ से ज़रा सा भी मुंह न फेरिये. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया ये मुझसे क्या चाहते हैं, उन्होंने कहा कि हम इतना चाहते हैं कि आप हमें और हमारे मअबूदों का ज़िक्र छोड़ दीजिये. हम आपको और आपके मअबूद की बदगोई के पीछे न पढ़ेंगे. हुज़ूर अलैहिस्सलातो वसल्लाम ने फ़रमाया क्या तुम एक कलिमा क़ुबूल कर सकते हो जिस से अरब और अजम के मालिक और शासक हो जाओ. अबू जहल ने कहा कि एक क्या हम दस कलिमे क़ुबूल कर सकते हैं. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कहो ला इलाहा इल्लल्लाह, इसपर वो लोग उठ गए और कहने लगे कि क्या उन्होंने बहुत से ख़ुदाओं का एक ख़ुदा कर दिया इतनी बहुत सी मख़लूक़ के लिये एक ख़ुदा कैसे काफ़ी हो सकता है.
बेशक यह अजीब बात है {5} और उनमें के सरदार चले(9)
(9) अबू तालिब की मजलिस से आपस में यह कहते.
कि उसके पास से चल दो और अपने ख़ुदाओं पर साबिर रहो बेशक इसमें उसका कोई मतलब है{6} यह तो हमने सबसे पिछले दीन नसरानियत (ईसाइयत) में भी न सुनी(10)
(10) नसरानी भी तीन ख़ुदाओ के क़ाइल थे, ये तो एक ही ख़ुदा बताते है.
यह तो निरी नई गढ़त है {7} क्या उन पर क़ुरआन उतारा गया हम सब में से(11)
(11) मक्का वालों को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मन्सबे नबुव्वत पर हसद आया और उन्होंने यह कहा कि हम में इज़्ज़त और बुज़ुर्गी वाले आदमी मौजूद थे उनमें से किसी पर क़ुरआन न उतरा, ख़ास हज़रत सैयदुल अम्बिया मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर उतरा.
बल्कि वो शक में हैं मेरी किताब से(12)
(12) कि उसके लाने वाले हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को झुटलाते हैं.
बल्कि अभी मेरी मार नहीं चखी है(13){8}
(13) अगर मेरा अज़ाब चख़ लेते तो यह शक, झुटलाने की प्रवृति और हसद कुछ भी बक़ी न रहता और नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तस्दीक़ करते लेकिन उस वक़्त की तस्दीक़ लाभदायक़ न होती.
क्या वो तुम्हारे रब की रहमत के ख़ज़ानची हैं(14)
(14)और क्या नबुव्वत की कुंजियाँ उनके हाथ में हैं जिसे चाहे दें. अपने आपको क्या समझते हैं. अल्लाह तआला और उसकी मालिकियत को नहीं जानते.
वह इज़्ज़त वाला बहुत अता फ़रमाने वाला है(15) {9}
(15) हिकमत के तक़ाजे के अनुसार जिसे जो चाहे अता फ़रमाए. उसने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को नबुव्वत अता फ़रमाई तो किसी को उसमें दख़्ल देने और क्यों कैसे करने की क्या मजाल.
क्या उनके लिये है सल्तनत आसमानों और ज़मीन की और जो कुछ उनके बीच है, तो रस्सियाँ लटकाकर चढ़ न जाएं(16) {10}
(16) और ऐसा इख़्तियार हो तो जिसे चाहे वही के साथ ख़ास करें और संसार की तदबीरें अपने हाथ में लें और जब यह कुछ नहीं तो अल्लाह की हिकमतों और उसके कामों में दख़्ल क्यों देते हैं. उन्हें इसका क्या हक़ है. काफ़िरों को यह जवाब देने के बाद अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से नुसरत और मदद का वादा फ़रमाया है.
यह एक ज़लील लश्कर है उन्हीं लश्करों में से जो वहीं भगा दिया जाएगा (17){11}
(17) यानी इन क़ुरैश की जमाअत उन्हीं लश्करों में से एक है जो आप से पहले नबियों के विरूद्ध गिरोह बांधकर आया करते थे और यातनाएं देते थे. उस कारण हलाक कर दिये गए. अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को ख़बर दी कि यही हाल इनका है इन्हें भी हार होगी. चुनांन्चे बद्र में ऐसा ही हुआ. इसके बाद अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली के लिये पिछले नबियों और उनकी क़ौम का ज़िक्र फ़रमाया.
उनसे पहले झुटला चुके हैं नूह की क़ौम और आद और चौमेख़ा करने वाला फ़िरऔन(18){12}
(18) जो किसी पर ग़ुस्सा करता था तो उसे लिटाकर उसके चारों हाथ पाँव खींच कर चारों तरफ़ खूंटों में बंधवा देता था फिर उसको पिटवाता था और उस पर तरह तरह की सख़्तियाँ करता था.
और समूद और लूत की क़ौम और बन वाले (19)
(19) जो शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम से थे.
ये हैं वो गिरोह(20){13}
(20)जो नबियों के विरूद्ध जत्थे बांधकर आए. मक्के के मुश्रिक उन्हीं समूहों में से हैं.
उनमें कोई ऐसा नहीं जिसने रसूलों को न झुटलाया हो तो मेरा अज़ाब लाज़िम हुआ(21){14}
(21) यानी उन गुज़री उम्मतों ने जब नबियों को झुटलाया तो उनपर अज़ाब लाज़िम हो गया. तो उन कमज़ोरों का क्या हाल होगा जब उनपर अज़ाब उतरेगा.
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