30 – सूरए रूम-
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الم
غُلِبَتِ الرُّومُ
فِي أَدْنَى الْأَرْضِ وَهُم مِّن بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُونَ
فِي بِضْعِ سِنِينَ ۗ لِلَّهِ الْأَمْرُ مِن قَبْلُ وَمِن بَعْدُ ۚ وَيَوْمَئِذٍ يَفْرَحُ الْمُؤْمِنُونَ
بِنَصْرِ اللَّهِ ۚ يَنصُرُ مَن يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ
وَعْدَ اللَّهِ ۖ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ وَعْدَهُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
يَعْلَمُونَ ظَاهِرًا مِّنَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَهُمْ عَنِ الْآخِرَةِ هُمْ غَافِلُونَ
أَوَلَمْ يَتَفَكَّرُوا فِي أَنفُسِهِم ۗ مَّا خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُّسَمًّى ۗ وَإِنَّ كَثِيرًا مِّنَ النَّاسِ بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ لَكَافِرُونَ
أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَأَثَارُوا الْأَرْضَ وَعَمَرُوهَا أَكْثَرَ مِمَّا عَمَرُوهَا وَجَاءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ ۖ فَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَٰكِن كَانُوا أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوأَىٰ أَن كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُونَ
सूरए रूम मक्का में उतरी, इसमें 60 आयतें, 6 रूकू हैं.
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए रूम मक्के में उतरी. इसमें छ रूकू, साठ आयतें, आठ सौ उन्नीस कलिमे, तीन हज़ार पाँच सौ चौंतीस अक्षर हैं.
अलिफ़ लाम मीम (2){1}
(2) फ़ारस और रूम के बीच लड़ाई थी और चूंकि फ़ारस वाले आग के पुजारी मजूसी थे इसलिये अरब के मुश्रिक उनका ग़लबा पसन्द करते थे. रूम के लोग किताब वाले थे इसलिये मुसलमानों को उनका ग़लबा अच्छा मालूम होता था. फ़ारस के बादशाह खुसरो पर्वेज़ ने रूम वालों पर लश्कर भेजा और रूम के क़ैसर ने भी लश्कर भेजा. ये लश्कर शाम प्रदेश के क़रीब आमने सामने हुए. फ़ारस वाले ग़ालिब हुए. मुसलमानों को यह ख़बर अच्छी न लगी. मक्का के काफ़िर इससे ख़ुश होकर मुसलमानों से कहने लगे कि तुम भी किताब वाले और ईसाई भी किताब वाले. और हम भी बेपढ़े लिखे और फ़ारस वाले भी बेपढ़े लिखे. हमारे भाई फ़ारस वाले तुम्हारे भाई रूमियों पर ग़ालिब हुए. हमारी तुम्हारी जंग हुई तो हम भी तुमपर विजयी होंगे. इसपर यह आयतें उतरीं और उनमें ख़बर दी गई कि चन्द साल में फिर रूम वाले फ़ारस वालों पर ग़ालिब आ जाएंगे. ये आयतें सुनकर हज़रत अबुबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ने मक्के के काफ़िरों में जाकर ऐलान कर दिया कि ख़ुदा की क़सम रूमी फ़ारस वालों पर ज़रूर ग़लबा पाएंगे. ऐ मक्का वालों तुम इस वक़्त के जंग के नतीजे से ख़ुश मत हो. हमें हमारे नबी मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ख़बर दी है. उबई बिन ख़लफ़ काफ़िर आपके सामने खड़ा हो गया और आपके उसके बीच सौ सौ ऊंट की शर्त हो गई. अगर नौ साल में फ़ारस वाले ग़ालिब आ जाएं तो सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहो अन्हो उबई को सौ ऊंट देंगे और अगर रूमी विजयी हों तो उबई आपको सौ ऊंट देगा. उस वक़्त तक जुए की हुर्मत नहीं उतरी थी. हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफ़ा और इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाहे अलैहिमा के नज़दीक़ हर्बी काफ़िरों के साथ इस तरह के मामलात जायज़ हैं और यही वाक़िआ उनकी दलील है. सात साल के बाद इस ख़बर की सच्चाई ज़ाहिर हुई और हुदैबियह की लड़ाई में या बद्र के दिन रूम वाले फ़ारस वालों पर ग़ालिब आए. रूमियों ने मदाइन में अपने घोड़े बांधे और इराक़ में रूमियह नामी एक शहर की नींव रखी. हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ने शर्त के ऊंट उबई की औलाद से वुसूल किये क्योंकि इस बीच वह मर चुका था. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हें हुक्म दिया कि शर्त के माल का सदक़ा कर दें. यह ग़ैबी ख़बर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म की नबुव्वत की सच्चाई और क़ुरआने अज़ीम के कलामे इलाही होने की दलील है. (ख़ाज़िन)
रूमी पराजित हुए{2} पास की ज़मीन में(3)
(3) यानी शाम की उस धरती में जो फ़ारस के समीपतर है.
और अपनी पराजय के बाद बहुत जल्द विजयी होंगे(4){3}
(4) फ़ारस वालों पर.
चन्द बरस में (5)
(5) जिन की हद नौ बरस हैं.
हुक्म अल्लाह ही का है आगे और पीछे(6)
(6) यानी रूमियों के ग़लबे से पहले भी और उसके बाद भी. मुराद यह है कि पहले फ़ारस वालों का विजयी होना और दोबारा रूम वालों का, यह सब अल्लाह के हुक्म और इरादे और उसके लिखे से हैं.
और उस दिन ईमान वाले ख़ुश होंगे {4} अल्लाह की मदद से(7)
(7) कि उसने किताबियों को ग़ैर किताबियों पर विजय दी और उसी दिन बद्र में मुसलमानों को मुश्रिकों पर. और मुसलमानों की सच्चाई और नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और क़ुरआन शरीफ़ की ख़बर की तस्दीक़ ज़ाहिर फ़रमाई.
मदद करता है जिसकी चाहे, और वही है इज़्ज़त वाला मेहरबान{5} अल्लाह का वादा(8)
(8) जो उसने फ़रमाया था कि रूमी चन्द साल में फिर ग़ालिब होंगे.
अल्लाह अपना वादा ख़िलाफ़ नहीं करता लेकिन बहुत लोग नहीं जानते(9){6}
(9) यानी बेइल्म हैं.
जानते हैं आँखों के सामने की दुनियावी (सांसारिक) ज़िन्दगी (10)
(10) व्यापार, खेती बाड़ी, निर्माण वग़ैरह दुनियावी धन्धे. इसमें इशारा है कि दुनिया की भी हक़ीक़त नहीं जानते, उसका भी ज़ाहिर ही जानते हैं.
और वो आख़िरत से पूरे बेख़बर हैं{7} क्या उन्होंने अपने जी में न सोचा कि अल्लाह ने पैदा न किये आसमान और ज़मीन और जो कुछ उनके बीच है मगर सच्चा (11)
(11) यानी आसमान और ज़मीन और जो कुछ उनके बीच हैं, अल्लाह तआला ने उनको बिना कारण और यूंही नहीं बनाया, उनकी पैदाइश में बेशुमार हिकमतें हैं.
और एक निश्चित मीआद से, (12)
(12) यानी हमेशा के लिये नहीं बनाया, बल्कि एक मुद्दत निर्धारित कर दी है. जब वह मुद्दत पूरी हो जाएगी तो ये फ़ना हो जाएंगे और वह मुद्दत क़यामत क़ायम होने का वक़्त है.
और बेशक बहुत से लोग अपने रब से मिलने का इन्कार रखते हैं (13){8}
(13) यानी मरने के बाद दोबारा उठाए जाने पर ईमान नहीं लाते.
और क्या उन्होंने ज़मीन में सफ़र न किया कि देखते कि उनसे अगलों का अंज़ाम कैसा हुआ(14)
(14) कि रसूलों को झुटलाने के कारण हलाक किये गए, उनके उजड़े हुए शहर और उनकी बर्बादी के निशान देखने वालों के लिये इब्रत हासिल करने की चीज़ हैं.
वो उनसे ज़्यादा ज़ोरआवर (शक्तिशाली) थे और ज़मीन जोती और आबाद की उन(15)
(15) मक्का वाले.
की आबादी से ज़्यादा और उनके रसूल उनके पास रौशन निशानियां लाए(16)
(16) तो वो उनपर ईमान न लाए. फिर अल्लाह तआला ने उन्हें हलाक किया.
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