60-Surah Al-Mumtahinah

60 सूरए मुम्तहिनह -दूसरा रूकू

60|7|۞ عَسَى اللَّهُ أَن يَجْعَلَ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَ الَّذِينَ عَادَيْتُم مِّنْهُم مَّوَدَّةً ۚ وَاللَّهُ قَدِيرٌ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
60|8|لَّا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُقَاتِلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَلَمْ يُخْرِجُوكُم مِّن دِيَارِكُمْ أَن تَبَرُّوهُمْ وَتُقْسِطُوا إِلَيْهِمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ
60|9|إِنَّمَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ قَاتَلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَأَخْرَجُوكُم مِّن دِيَارِكُمْ وَظَاهَرُوا عَلَىٰ إِخْرَاجِكُمْ أَن تَوَلَّوْهُمْ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُمْ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
60|10|يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا جَاءَكُمُ الْمُؤْمِنَاتُ مُهَاجِرَاتٍ فَامْتَحِنُوهُنَّ ۖ اللَّهُ أَعْلَمُ بِإِيمَانِهِنَّ ۖ فَإِنْ عَلِمْتُمُوهُنَّ مُؤْمِنَاتٍ فَلَا تَرْجِعُوهُنَّ إِلَى الْكُفَّارِ ۖ لَا هُنَّ حِلٌّ لَّهُمْ وَلَا هُمْ يَحِلُّونَ لَهُنَّ ۖ وَآتُوهُم مَّا أَنفَقُوا ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ أَن تَنكِحُوهُنَّ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ ۚ وَلَا تُمْسِكُوا بِعِصَمِ الْكَوَافِرِ وَاسْأَلُوا مَا أَنفَقْتُمْ وَلْيَسْأَلُوا مَا أَنفَقُوا ۚ ذَٰلِكُمْ حُكْمُ اللَّهِ ۖ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
60|11|وَإِن فَاتَكُمْ شَيْءٌ مِّنْ أَزْوَاجِكُمْ إِلَى الْكُفَّارِ فَعَاقَبْتُمْ فَآتُوا الَّذِينَ ذَهَبَتْ أَزْوَاجُهُم مِّثْلَ مَا أَنفَقُوا ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي أَنتُم بِهِ مُؤْمِنُونَ
60|12|يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِذَا جَاءَكَ الْمُؤْمِنَاتُ يُبَايِعْنَكَ عَلَىٰ أَن لَّا يُشْرِكْنَ بِاللَّهِ شَيْئًا وَلَا يَسْرِقْنَ وَلَا يَزْنِينَ وَلَا يَقْتُلْنَ أَوْلَادَهُنَّ وَلَا يَأْتِينَ بِبُهْتَانٍ يَفْتَرِينَهُ بَيْنَ أَيْدِيهِنَّ وَأَرْجُلِهِنَّ وَلَا يَعْصِينَكَ فِي مَعْرُوفٍ ۙ فَبَايِعْهُنَّ وَاسْتَغْفِرْ لَهُنَّ اللَّهَ ۖ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
60|13|يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَوَلَّوْا قَوْمًا غَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ قَدْ يَئِسُوا مِنَ الْآخِرَةِ كَمَا يَئِسَ الْكُفَّارُ مِنْ أَصْحَابِ الْقُبُورِ

क़रीब है कि अल्लाह तुम में और उनमें जो उनमें से(1)
(1) यानी मक्के के काफ़िरों में से.

तुम्हारे दु्श्मन हैं दोस्ती कर दे(2)
(2) इस तरह कि उन्हें ईमान की तौफ़ीक़ दे. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने ऐसा किया और फ़त्हे मक्का के बाद उनमें से बहुत से लोग ईमान ले आए और मूमिनों के दोस्त और भाई बन गए और आपसी प्यार बढ़ा. जब ऊपर की आयतें उतरीं तो ईमान वालों ने अपने रिश्तेदारों की दुश्मनी में सख़्ती की, उनसे बेज़ार हो गए और इस मामले में बड़े सख़्त हो गए तो अल्लाह तआला ने यह आयत उतार कर उन्हें उम्मीद दिलाई कि उन काफ़िरों का हाल बदलने वाला है. और यह आयत उतरी.

और अल्लाह क़ादिर (सक्षम) है(3)
(3) दिल बदलने और हाल तब्दीन करने पर.

और बख़्शने वाला मेहरबान है {7} अल्लाह तुम्हें उनसे (4)
(4) यानी उन काफ़िरों से. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह आयत ख़ूज़ाअह के हक़ में उतरी जिन्होंने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इस शर्त पर सुलह की थी कि न आपसे लड़ेंगे न आपके विरोधियों का साथ देंगे. अल्लाह तआला ने उन लोगों के साथ सुलूक करने की इजाज़त दे दी. हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने फ़रमाया कि यह आयत उनकी वालिदा अस्मा बिन्ते अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो के हक़ में नाज़िल हुई. उनकी वालिदा मदीनए तैय्यिबह उनके लिये तोहफ़े लेकर आई थीं और थीं मुश्रिका. तो हज़रत अस्मा ने उनके तोहफ़े क़ुबूल न किये और उन्हें अपने घर में आने की आज्ञा न दी और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से दरियाफ़्त किया कि क्या हुक्म है. इसपर यह आयत उतरी और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इजाज़त दी कि उन्हें घर में बुलाएं, उनके तोहफ़े क़ुबूल करें उनके साथ अच्छा सुलूक करें.

मना नहीं करता जो तुम से दीन में न लड़े और तुम्हें तुम्हारे घरो से न निकाला कि उनके साथ एहसान करो और उनसे इन्साफ़ का बर्ताव बरतो, बेशक इन्साफ़ वाले अल्लाह को मेहबूब हैं{8} अल्लाह तुम्हें उन्हीं से मना करता है जो तुम से दीन में लड़े या तुम्हें तुम्हारे घरो से निकाला या तुम्हारे निकालने पर मदद की कि उनसे दोस्ती करो (5)
(5) यानी ऐसे काफ़िरों से दोस्ती मना है.

और जो उनसे दोस्ती करे तो वही सितमगार हैं {9}ऐ ईमान वालो! जब तुम्हारे पास मुसलमान औरतें कुफ़्रिस्तान से अपने गर छोड़ कर आएं तो उनका इम्तिहान करो(6)
(6) कि उनकी हिजरत ख़ालिस दीन के लिये है ऐसा तो नहीं है कि उन्होंने शौहरों की दुशमनी में घर छोड़ा हो. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि उन औरतों को क़सम दी जाए कि वो न शौहरों की दुश्मनी में निकली हैं और न किसी दुनियावी कारण से. उन्होंने केवल अपने दीन और ईमान के लिये हिजरत की है.

अल्लाह उनके ईमान का हाल बेहतर जानता है फिर अगर तुम्हें ईमान वालियाँ मालूम हों तो उन्हें काफ़िरों को वापस न दो, न ये(7)
(7) मुसलमान औरतें.

उन्हें हलाल(8)
(8) यानी काफ़िरों को.

न वो इन्हें हलाल(9)
(9) यानी न काफ़िर मर्द मुसलमान औरतों को हलाल. औरत मुसलमान होकर काफ़िर की बीबी होने से बाहर हो गई.

और उनके काफ़िर शौहरों को दे दो जो उनका ख़र्च हुआ(10)
(10) यानी जो मेहर उन्होंने उन औरतों को दिये थे वो उन्हें लौटा दो. यह हुक्म ज़िम्मा के लिये हैं जिनके हक़ में यह आयत उतरी लेकिन हर्बी औरतों के मेहर वापस करना न वाजिब है न सुन्नत. और ये मेहर देना उस सूरत में है जबकि औरत का काफ़िर शौहर उसको तलब करे और अगर तलब न करे तो उसको कुछ न दिया जाएगा. इसी तरह अगर काफ़िर ने उस मुहाजिरा को मेहर नहीं दिया था तो भी वह कुछ न पाएगा. यह आयत सुलह हुदैबियह के बाद उतरी. सुलह में यह शर्त थी कि मक्के वालों में से जो शख़्स ईमान लाकर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो उसको मक्के वाले वापस ले सकते हैं. इस आयत में यह बयान फ़रमा दिया गया कि यह शर्त सिर्फ़ मर्दों के लिये है औरतों की तसरीह एहदनामे में नहीं न औरतें इस क़रारदाद में दाख़िल हो सकती हैं क्योंकि मुसलमान औरतें काफ़िर के लिये हलाल नहीं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि यह आयत पहले आदेश को स्थगित करने वाली है यह इस सूरत में है कि औरतें सुलह के एहद में दाख़िल हों मगर औरतों को इस एहद में दाख़िल होना सही नहीं क्योंकि हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो से एहदनामे के ये अल्फ़ाज़ आए हैं कि हम में से जो मर्द आपके पास पहुंचे चाहे वह आप के दीन पर ही हो आप उसको वापस कर देंगे.

और तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि उनसे निकाह कर लो(11)
(11) यानी हिजरत करने वाली औरतों से अगरचे दारूल हर्ब में उनके शौहर हों. क्योंकि इस्लाम लाने से वो उन शौहरों पर हराम हो गई और उनकी ज़ौजियत में न रहीं.

जब उनके मेहर उन्हें दो(12)
(12) मेहर देने से मुराद उसको ज़िम्मे लाज़िम कर लेना है अगरचे बिलफेअल न दिया जाए. इससे यह साबित हुआ कि इन औरतों से निकाह करने पर नया मेहर वाजिब होगा. उनके शौहरों को जो अदा कर दिया गया वह उसमें जोड़ा या गिनती नहीं किया जाएगा.

और काफ़िरनियों के निकाह पर जमे न रहो(13)
(13) यानी जो औरतें दारूल हर्ब में रह गईं या इस्लाम से फिर कर दारूल हर्ब में चली गईं उनसे ज़ौज़ियत का सम्बन्ध न रखो. चुनांन्चे यह आयत उतरने के बाद असहाबे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन काफ़िर औरतों को तलाक़ दे दी जो मक्कए मुकर्रमा में थीं. अगर मुसलमान की औरत इस्लाम से फिर जाए तो उसके निकाह की क़ैद से बाहर न होगा.

और मांग लो जो तुम्हारा ख़र्च हुआ(14)
(14) यानी उन औरतों को तुमने जो मेहर दिये थे वो उन काफ़िरों से वुसूल करलो जिन्होंने उनसे निकाह किया.

और काफ़िर मांग लें जो उन्होंने ख़र्च किया(15)
(15) अपनी औरतों पर जो हिजरत करके दारूल इस्लाम में चली आईं उनके मुसलमान शौहरों से जिन्होंने उनसे निकाह किया.

यह अल्लाह का हुक्म है, वह तुम में फैसला फ़रमाता है, और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है {10} और अगर मुसलमानों के हाथ से कुछ औरतें काफ़िरों की तरफ़ निकल जाएं(16)
(16) इस आयत के उतरने के बाद मुसलमानों ने तो मुहाजिरह औरतों के मेहर उनके काफ़िर शौहरों को अदा कर दिये और काफ़िरों ने इस्लाम से फिर जाने वाली औरतों के मेहर मुसलमानों को अदा करने से इन्कार किया. इसपर यह आयत उतरी.

फिर तुम काफ़िरों को सज़ा दो(17)
(17) जिहाद में और उनसे ग़नीमत पाओ.

तो जिनकी औरतें जाती रही थीं (18)
(18) यानी इस्लाम से फिर कर दारूल हर्ब में चली गईं थीं.

ग़नीमत में से उतना दे दो जो उनका ख़र्च हुआ था (19)
(19) उन औरतों के मेहर देने में, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मूमिन मुहाजिरीन की औरतों में से छ औरतें ऐसी थी जिन्हों ने दारूल हर्ब को इख़्तियार किया और मुश्रिकों के साथ जुड़ गईं और इस्लाम से फिर गईं. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उनके शौहरों को माले ग़नीमत से उनके मेहर अता फ़रमाए. इन आयतों में मुहाजिर औरतों के इम्तिहान और काफ़िरों ने जो अपनी बीबीयों पर ख़र्च किया हो वह हिजरत के बाद उन्हें देना और मुसलमानों ने जो अपनी बीबीयों पर ख़र्च किया हो वह उनके मुर्तद होकर काफ़िरों से मिल जाने के बाद उनसे मांगना और जिनकी बीबियाँ मुर्तद होकर चली गईं हों उन्होंने जो उनपर ख़र्च किया था वह उन्हें माले ग़नीमत में से देना, ये तमाम अहकाम स्थगित हो गए आयतें सैफ़ या आयतें ग़नीमत या सुन्नत से, क्योंकि ये अहकाम जभी तक बाकि रहे जब तक ये एहद रहा और जब यह एहद उठ गया तो अहकाम भी न रहे.

और अल्लाह से डरो जिसपर तुम्हें ईमान है{11} ऐ नबी जब तुम्हारे हुज़ूर मुसलमान औरतें हाज़िर हों इस पर बैअत करने को कि अल्लाह का कुछ शरीक न ठहराएंगी न चोरी करेगी और न बदकारी और न अपनी औलाद को क़त्ल करेगी(20)
(20) जैसा कि जिहालत के ज़माने में तरीक़ा था कि लड़कियों को शर्मिन्दगी के ख़याल और नादारी के डर से ज़िन्दा गाड़ देते थे. उससे और हर नाहक़ क़त्ल से बाज़ रहना इस एहद में शामिल है.

और न वह बोहतान लाएंगी जिसे अपने हाथों और पाँवों के बीच यानी मौज़ए बिलादत (गुम्तांग) में उठाएं (21)
(21) यानी पराया बच्चा लेकर शौहर को धोखा दें और उसको अपने पेट से जना हुआ बताएं जैसा कि इस्लाम के पहले के काल में तरीक़ा था.
और किसी नेक बात में तुम्हारी ना फ़रमानी न करेगी(22)
(22) नेक बात अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी है.

तो उनसे बैअत लो और अल्लाह से उनकी मग़फ़िरत चाहो (23)
(23) रिवायत है कि जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फ़त्ह मक्का के दिन मर्दों की बैअत लेकर फ़ारिग़ हुए तो सफ़ा पहाड़ी पर औरतों से बैअत लेना शुरू की और हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो नीचे खड़े हुए हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का कलामे मुबारक औरतों को सुनाते जाते थे. हिन्द बिन्ते उतबह अबू सुफ़ियान की बीवी डरी हुई बुर्क़ा पहन कर इस तरह हाज़िर हुई कि पहचानी न जाए. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं तुम से इस बात पर बैअत लेता हूँ कि तुम अल्लाह तआला के साथ किसी चीज़ को शरीक न करो. हिन्द ने कहा कि आप हम से वह एहद लेते हैं जो हमने आपको मर्दों से लेते नहीं देखा और उस रोज़ मर्दों में सिर्फ़ इस्लाम और जिहाद पर बैअत की गई थी. फिर हुज़ूर ने फ़रमाया और चोरी न करेंगी. तो हिन्द ने अर्ज़ किया कि अबू सुफ़ियान कंजूस आदमी है और मैंने उनका माल ज़रूर लिया है, मैं नहीं समझती मुझे हलाल हुआ या नहीं. अबू सुफ़ियान हाज़िर थे उन्होंने कहा जो तूने पहले लिया और जो आगे ले सब हलाल. इस पर नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुस्कुराए और फ़रमाया तू हिन्द बिन्ते उतबह है? अर्ज़ किया जी हाँ, मुझ से जो कुछ क़ुसूर हुए हैं माफ़ फ़रमाइये. फिर हुज़ूर ने फ़रमाया, और न बदकारी करेंगी. तो हिन्द ने कहा क्या कोई आज़ाद औरत बदकारी करती है. फिर फ़रमाया, न अपनी औलाद को क़त्ल करें, हिन्द ने कहा, हमने छोटे छोटे पाले जब बड़े हो गए तुमने उन्हें क़त्ल कर दिया. तुम जानो और वो जानें. उसका लड़का हुन्जुला बिन अबी सुफ़ियान बद्र में क़त्ल कर दिया गया था. हिन्द की ये बातचीत सुनकर हज़रत उमर रदियल्लाहो अनहो को बहुत हंसी आई फिर हुज़ूर ने फ़रमाया कि अपने हाथ पाँवों के बीच कोई लांछन नहीं घंड़ेगी. हिन्द ने कहा ख़ुदा की क़स्म बोहतान बहुत बुरी चीज़ है और हुज़ूर हमको नेक बातों और अच्छी आदतों का हुक्म देते हैं. फिर हुज़ूर ने फ़रमाया कि किसी नेक बात में रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) की नाफ़रमानी नहीं करेंगी. इसपर हिन्द ने कहा कि इस मजलिस में हम इसलिये हाज़िर ही नहीं हुए कि अपने दिल में आपकी नाफ़रमानी का ख़याल आने दें. औरतों ने इन सारी बातों का इक़रार किया और चार सौ सत्तावन औरतों ने बैअत की. इस बैअत में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुसाफ़हा न फ़रमाया और औरतों को दस्ते मुबारक छूने न दिया. बैअत की कै़फ़ियत में भी यह बयान किया गया है कि एक प्याला पानी में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपना दस्ते मुबारक डाला फिर उसी में औरतों ने अपने हाथ डाले और यह भी कहा गया बैअत कपड़े के वास्ते से ली गई और बईद नहीं कि दोनों सूरतें अमल में आई हो. बैअत के वक़्त कैंची का इस्तेमाल मशायख़ का तरीक़ा हे. यह भी कहा गया है कि यह हज़रत अली मुर्तजा़ रदियल्लाहो अन्हो की सुन्नत है. ख़िलाफ़त के साथ टोपी देना मशायख़ का मामूल है और कहा गया है कि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मन्क़ूल है औरतों की बैअत में अजनबी औरत का हाथ छूना हराम है या बैअत ज़बान से हो या कपड़े वग़ैरह की मदद से.

बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है, {12} ऐ ईमान वालो ! उन लोगों से दोस्ती न करो जिन पर अल्लाह का ग़ज़ब है (24)
(24) इन लोगों से मुराद यहूदी है.

वो आख़िरत से आस तोड़ बैठे हैं (25)
(25)क्योंकि उन्हें पिछली किताबों से मालूम हो चुका था और वो यक़ीन से जानते थे कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह तआला के रसूल है और यहूदियों ने इसे झुटलाया है इसलिये उन्हें अपनी मग़फ़िरत की उम्मीद नहीं.

जैसे काफ़िर आस तोड़ बैठे क़ब्रवालों से(26){13}
(26)फिर दुनिया में वापस आने की, या ये मानी हैं कि यहूदी आख़िरत के सवाब से ऐसे निराश हुए जैसे कि मरे हुए काफ़िर अपनी क़ब्रों में अपने हाल को जानकर आख़िरत के सवाब से बिल्कुल मायूस हैं.

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2 Responses

  1. Asslamualikum Aap bahut achcha kam kar rahe hai Jajakallah Khair Allah Apke Ilm mai BArkat de Amin
    Baki ki surah ki tafsir bhi agar zari karenge to hum jaise logo ko fayda hoga or allah taala apko iska azar dega jajakallah kahir

  2. Assalam alaikum
    Aap log bahut achchha kam kar rahe h, jazakallah fiddarain.
    Agr ho sake to aap only hindi tarjuma ka ek book banaye aur dusra tafsir k sath alag alag
    Kai bar aisa hota h k ham safar me hote h ya kahi aisi jagah bethe hote h jaha hamare pas time hota h to news paper aur koi magzine parhne se lakh behtar h k ham tarjuma parhe
    Plz zaroor kare
    Mene pavtra quran hindi me jisme sirf tarjuma h dekhi hjisko maulana wahiduddin ne likha h
    ALLAH apko asani de.
    Assalam Alaikum

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