54 Surah Al-Qamar

54 सूरए  क़मर

54|1|بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ
54|2|وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ
54|3|وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءَهُمْ ۚ وَكُلُّ أَمْرٍ مُّسْتَقِرٌّ
54|4|وَلَقَدْ جَاءَهُم مِّنَ الْأَنبَاءِ مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ
54|5|حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ ۖ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ
54|6|فَتَوَلَّ عَنْهُمْ ۘ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَىٰ شَيْءٍ نُّكُرٍ
54|7|خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنتَشِرٌ
54|8|مُّهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ ۖ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَٰذَا يَوْمٌ عَسِرٌ
54|9|۞ كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ
54|10|فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانتَصِرْ
54|11|فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاءِ بِمَاءٍ مُّنْهَمِرٍ
54|12|وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاءُ عَلَىٰ أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ
54|13|وَحَمَلْنَاهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ
54|14|تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاءً لِّمَن كَانَ كُفِرَ
54|15|وَلَقَد تَّرَكْنَاهَا آيَةً فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
54|16|فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|17|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
54|18|كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|19|إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّ
54|20|تَنزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنقَعِرٍ
54|21|فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|22|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ

सूरए क़मर मक्के में उतरी, इसमें 55 आयतें, तीन रूकू हैं.
-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए क़मर मक्की है सिवाय आयत “सयुह़ज़मुल जमओ”  के. इस में तीन रूकू, पचपन आयतें और तीन सौ बयालीस कलिमे और एक हज़ार चार सौ तेईस अक्षर हैं.

पास आई क़यामत और(2)
(2) उसके नज़्दीक़ होने की निशानी ज़ाहिर हुई है कि नबिये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के चमत्कार से…

शक़ हो गया (चिर गया) चांद(3) {1}
(3) दो टुकड़े हो कर. शक़्क़ुल क़मर जिसका इस आयत में बयान है नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के खुले चमत्कारों में से है. मक्के वालों ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से एक चमत्कार की मांग की थी तो हुज़ूर ने चाँद टुकड़े करके दिखाया. चाँद के दो हिस्से हो गए एक हिस्सा दूसरे से अलग हो गया और फ़रमाया कि गवाह रहो. क़ुरैश ने कहा कि मुहम्मद ने जादू से हमारी नज़र बन्दी कर दी है. इसपर उन्हीं की जमाअत के लोगों ने कहा कि अगर यह नज़र बन्दी है तो बाहर कहीं भी किसी को चाँद के दो हिस्से नज़र न आए होंगे. अब तो काफ़िले आने वाले हैं उनकी प्रतीक्षा करो और मुसाफ़िरों से पूछो. अगर दूसरी जगहों पर भी चाँद शक़ होना देखा गया है तो बेशक चमत्कार है. चुनांन्चे सफ़र से आने वालों से पूछा. उन्होंने बयान किया कि हम ने देखा कि उस रोज़ चाँद के दो हिस्से हो गए थे. मुश्रिकों को इन्कार की गुन्जाइश न रही वो जिहालत के तौर पर जादू ही जादू कहते रहे. सही हदीसों में इस महान चमत्कार का बयान है और ख़बर इस दर्जा शोहरत को पुहुंच गई है कि इसका इन्कार करना अक़्ल और इन्साफ़ से दुश्मनी और बेदीनी है.

और अगर देखें (4)
(4) मक्के वाले नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और उनकी सच्चाई पर दलालत करने वाली.

कोई निशानी तो मुंह फेरते(5)
(5) उसकी तस्दीक़ और नबी अलैहिस्सलातो वस्सलाम पर ईमान लाने से.

और कहते हैं यह तो जादू है चला आता {2} और उन्हों ने झुटलाया(6)
(6) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की और उन चमत्कारों को जो अपनी आँखों से देखे.

और अपनी ख़्वाहिशों के पीछे हुए (7)
(7) उन बातिल बातों के जो शैतान ने उनके दिल में बिठा रखी थीं कि अगर नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के चमत्कारों की तस्दीक़ की तो उनकी सरदारी सारे जगत में सर्वमान्य हो जाएगी और क़ुरैश की कुछ भी इज़्ज़त और क़द्र बाक़ी न रहेगी.

और हर काम क़रार पा चुका है(8){3}
(8) वह अपने वक़्त पर ही होने वाला है कोई उसको रोकने वाला नहीं. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दीन ग़ालिब होकर रहेगा.

और बेशक उनके पास वो ख़बरें आई(9)
(9) पिछली उम्मतों की जो अपने रसूलों को झुटलाने के कारण हलाक किये गए.

जिनमें काफ़ी रोक थी(10){4}
(10) कुफ़्र और झुटलाने से और इन्तिहा दर्जे को नसीहत.

इन्तिहा को पहुंची हुई हिकमत, फिर क्या काम दें डर सुनाने वाले {5} तो तुम उनसे मुंह फेर लो(11)
(11) क्योंकि वो नसीहत और डराने से सबक़ सीखने वाले नहीं.

जिस दिन बुलाने वाला(12)
(12) यानी हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम बैतुल मक़दिस के गुम्बद पर खड़े होकर.

एक सख़्त बे पहचानी बात की तरफ़ बुलाएगा(13){6}
(13) जिसकी तरह की सख़्ती कभी न देखी होगी और वह क़यामत और हिसाब की दहशत है.

नीची आँखें किये हुए क़ब्रों से निकलेंगे गोया वो टिड्डी हैं फैली हुई (14) {7}
(14) हर तरफ़ ख़ौफ़ से हैरान, नहीं जानते कहाँ जाएं.

बुलाने वाले की तरफ़ लपकते हुए(15)
(15) यानी हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम की आवाज़ की तरफ़.

काफ़िर कहेंगे यह दिन सख़्त है {8} उनसे(16)
(16) यानी क़ुरैश से.

पहले नूह की क़ौम ने झुटलाया तो हमारे बन्दे(17)
(17) नूह अलैहिस्सलाम.

को झूटा बताया और बोले यह मजनून (पागल) है और उसे झिड़का(18){9}
(18) और धमकाया कि अगर तुम अपनी नसीहत और उपदेश और दावत से बाज़ न आए तो तुम्हें हम क़त्ल कर देंगे संगसार कर डालेंगे.

तो उसने अपने रब से दुआ की कि मैं मग़लूब हूँ तो मेरा बदला ले{10} तो हमने आसमान के दरवाज़े खोल दिये ज़ोर के बहते पानी से (19){11}
(19) जो चालीस रोज़ तक न थमा.

और ज़मीन चश्मे करके बहा दी(20)
(20) यानी ज़मीन से इतना पानी निकला कि सारी ज़मीन चश्मों की तरह हो गई.

तो दोनों पानी(21)
(21) आसमान से बरसने वाले और ज़मीन से उबलने वाले.

मिल गए उस मिक़दार (मात्रा) पर जो मुक़द्दर थी(22){12}
(22) और लौहे मेहफ़ूज़ में लिखा था कि तूफ़ान इस हद तक पहुंचेगा.

और हमने नूह को सवार किया(23)
(23) एक किश्ती.

तख़्तों और कीलों वाली पर{13} कि हमारी निगाह के रूबरू बहती(24)
(24) हमारी हिफ़ाज़त में.

उसके सिले में(25)
(25) यान हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के.

जिसके साथ कुफ़्र किया गया था {14} और हमने उसे (26)
(26) यानी उस वाक़ए को कि काफ़िर डुबो कर हलाक कर दिये गए और हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को निजात दी गई और कुछ मुफ़स्सिरों के नज़्दीक “तरकनाहा” की ज़मीर किश्ती की तरफ़ पलटती है. क़तादह से रिवायत है कि अल्लाह तआला ने उस किश्ती को सरज़मीने जज़ीरा में और कुछ के नज़्दीक जूदी पहाड़ पर मुद्दतों बाक़ी रखा. यहाँ तक कि हमारी उम्मत के पहले लोगों ने उसको देखा.

निशानी छोड़ा तो है कोई ध्यान करने वाला(27){15}
(27) जो नसीहत माने और इबरत हासिल करे.

तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब और मेरी धमकियाँ {16} और बेशक हमने क़ुरआन याद करने के लिये आसान फ़रमा दिया तो है कोई याद करने वाला (28){17}
(28) इस आयत में क़ुरआन शरीफ़ की तालीम और तअल्लुम और उसके साथ लगे रहने और उसको कन्ठस्त करने की तर्ग़ीब है और यह भी मालूम होता है कि क़ुरआन याद करने वाले की अल्लाह तआला की तरफ़ से मदद होती है. और इसका याद करना आसान बना देने का ही फल है कि बच्चे तक इसको याद कर लेते हैं सिवाय इसके कोई मज़हबी किताब ऐसी नहीं है जो याद की जाती हो और सहूलत से याद हो जाती हो.

आद ने झुटलाया(29)
(29) अपने नबी हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को. इसपर वह अज़ाब में जकड़े गए.

तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब और मेरे डर दिलाने के फ़रमान(30){18}
(30)जो अज़ाब उतरने से पहले आ चुके थे.

बेशक हमने उनपर एक सख़्त आंधी भेजी (31)
(31)बहुत तेज़ चलने वाली निहायत ठण्डी सख़्त सन्नाटे वाली.

ऐसे दिन में जिसकी नहूसत उनपर हमेशा के लिये रही(32) {19}
(32) यहाँ तक कि उनमें कोई न बचा, सब हलाक हो गए और वह दिन महीने का पिछला बुध था.
लोगों को यूं दे मारती थी कि मानो वो उखड़ी हुई खजूरों के डुन्ड (सूखे तने) हैं {20} तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान {21} और बेशक हमने आसान किया क़ुरआन याद करने के लिये तो है कोई याद करने वाला{22}

 

54 Surah Al-Qamar

54 सूरए   क़मर -दूसरा रूकू

 

54|23|كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِالنُّذُرِ
54|24|فَقَالُوا أَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهُ إِنَّا إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
54|25|أَأُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٌ
54|26|سَيَعْلَمُونَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْأَشِرُ
54|27|إِنَّا مُرْسِلُو النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْ
54|28|وَنَبِّئْهُمْ أَنَّ الْمَاءَ قِسْمَةٌ بَيْنَهُمْ ۖ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ
54|29|فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ
54|30|فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|31|إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَكَانُوا كَهَشِيمِ الْمُحْتَظِرِ
54|32|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
54|33|كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ بِالنُّذُرِ
54|34|إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ ۖ نَّجَّيْنَاهُم بِسَحَرٍ
54|35|نِّعْمَةً مِّنْ عِندِنَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي مَن شَكَرَ
54|36|وَلَقَدْ أَنذَرَهُم بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ
54|37|وَلَقَدْ رَاوَدُوهُ عَن ضَيْفِهِ فَطَمَسْنَا أَعْيُنَهُمْ فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
54|38|وَلَقَدْ صَبَّحَهُم بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّ
54|39|فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
54|40|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ

समूद ने रसूलों को झुटलाया(1){23}
(1) अपने नबी हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम का इन्कार करके और उनपर ईमान न लाकर.

तो बोले क्या हम अपने में के एक आदमी की ताबेदारी करें(2)
(2) यानी हम बहुत से होकर एक आदमी के ताबे हो जाएं. हम ऐसा न करेंगे क्योंकि अगर ऐसा करें.

जब तो हम ज़रूर गुमराह और दीवाने हैं(3){24}
(3) यह उन्होंने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम का कलाम लौटाया. आपने उनसे फ़रमाया था कि अगर तुमने मेरा इत्तिबाअ न किया तो तुम गुमराह और नासमझ हो.

क्या हम सब में से उस पर (4)
(4) यानी हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम पर.

ज़िक्र उतारा गया (5)
(5) वही नाज़िल की गई और कोई हम में इस क़ाबिल ही न था.

बल्कि यह सख़्त झूटा इतरौना (शैख़ीबाज़) है(6) {25}
(6) कि नबुव्वत का दावा करके बड़ा बनना चाहता है. अल्लाह तआला फ़रमाता है.

बहुत जल्द कल जान जाएंगे(7)
(7) जब अज़ाब में जकड़े जाएंगे.

कौन था बड़ा झूटा इतरौना {26} हम नाक़ा भेजने वाले हैं उनकी जांच को(8)
(8) यह उस पर फ़रमाया गया कि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने आप से कहा था कि आप पत्थर से एक ऊंटनी निकाल दीजिये. आपने उनसे ईमान की शर्त करके यह बात मंजूर कर ली थी. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने ऊंटनी भेजने का वादा फ़रमाया और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से इरशाद किया.

तो ऐ सालेह तू राह देख(9)
(9) कि वो क्या करते हैं और उनके साथ क्या किया जाता है.

और सब्र कर(10){27}
(10) उनकी यातना पर.

और उन्हें ख़बर दे दे कि पानी उनमें हिस्सों से है(11)
(11) एक दिन उनका, एक दिन ऊंटनी का.

हर हिस्से पर वह हाज़िर हो जिसकी बारी है(12){28}
(12) जो दिन ऊंटनी का है उस दिन ऊंटनी हाज़िर हो और जो दिन क़ौम को है उस दिन क़ौम पानी पर हाज़िर हो.

तो उन्होंने अपने साथी को(13)
(13)यानी क़दार बिन सालिफ़ को ऊंटनी को क़त्ल करने के लिये.

पुकारा तो उसने (14)
(14)तेज़ तलवार.

लेकर उसकी कूंचे काट दीं(15) {29}
(15) और उसको क़त्ल कर डाला.

फिर कैसा हुआ मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान (16){30}
(16) जो अज़ाब उतरने से पहले मेरी तरफ़ से आए थे और अपने वक़्त पर वाक़े हुए.

बेशक हमने उनपर एक चिंघाड़ भेजी (17)
(17) यानी फ़रिश्ते की हौलनाक आवाज़.

जभी वो हो गए जैसे घेरा बनाने वाले की बची हुई घास सूखी रौंदी हुई (18){31}
(18) यानी जिस तरह चर्वाहे जंगल में अपनी बकरियों की हिफ़ाज़त के लिये घास काँटों का घेरा बना लेते हैं उसमें से कुछ घास बच रह जाती है और वह जानवरों के पाँव में रूंध कर कण कण हो जाती है. यह हालत उनकी हो गई.

और बेशक हमने आसान किया क़ुरआन याद करने के लिये तो है कोई याद करने वाला {32} लूत की क़ौम ने रसूलों को झुटलाया {33} बेशक हमने उनपर (19)
(19) इस झुटलाने की सज़ा में.

पथराव भेजा (20)
(20) यानी उनपर छोटे छोटे संगरेज़े बरसाए.

सिवाय लूत के घर वालों के (21)
(21) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और उनकी दोनो साहिबज़ादियाँ इस अज़ाब से मेहफ़ूज़ रहीं.

हमने उन्हें पिछले पहर(22)
(22) यानी सुबह होने से पहले.

बचा लिया {34} अपने पास की नेअमत फ़रमा कर, हम यूंही सिला देते हैं उसे जो शुक्र करे(23)
{35}
(23) अल्लाह तआला की नेअमतों का और शुक्रगुज़ार वह है जो अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनकी फ़रमाँबरदारी करे.

और बेशक उसने(24)
(24) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने.

उन्हें हमारी गिरफ़्त से(25)
(25) हमारे अज़ाब से.

डराया तो उन्होंने डर के फ़रमानों में शक किया(26) {36}
(26) और उनकी तस्दीक़ न की.

उन्होंने उसे उसके मेहमानों से फुसलाना चाहा(27)
(27) और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से कहा कि आप हमारे और अपने मेहमानों के बीच न पड़ें और उन्हें हमारे हवाले कर दें और यह उन्होंने ग़लत नीयत और बुरे इरादे से कहा था और मेहमान फ़रिश्ते थे उन्होंने हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से कहा कि आप उन्हें छोड़ दीजिये,घर में आने दीजिये. जभी वो घर में आए तो हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने एक दस्तक दी.

तो हमने उनकी आँखों मेट दीं (चौपट कर दीं) (28)
(28) और वो फ़ौरन अन्धे हो गए और आँखें ऐसी नापैद हो गई कि निशान भी बाक़ी न रहा. चेहरे सपाट हो गए. आश्चर्य चकित मारे मारे फिरते थे दरवाज़ा हाथ न आता था. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने उन्हें दरवाज़े से बाहर किया.

फ़रमाया चखो मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान(29) {37}
(29)जो तुम्हें हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने सुनाए थे.

और बेशक सुबह तड़के उनपर ठहरने वाला अज़ाब आया(30) {38}
(30) जो अज़ाब आख़िरत तक बाक़ी रहेगा.
तो चखो मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान{39} और बेशक हमने आसान किया क़ुरआन याद करने के लिये तो है कोई याद करने वाला{40}

54 Surah Al-Qamar

54 सूरए   क़मर -तीसरा रूकू

وَلَقَدْ جَاءَ آلَ فِرْعَوْنَ النُّذُرُ
كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذْنَاهُمْ أَخْذَ عَزِيزٍ مُّقْتَدِرٍ
أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِّنْ أُولَٰئِكُمْ أَمْ لَكُم بَرَاءَةٌ فِي الزُّبُرِ
أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُّنتَصِرٌ
سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ
بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَىٰ وَأَمَرُّ
إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ
إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ
وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ
وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُّسْتَطَرٌ
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ
فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ عِندَ مَلِيكٍ مُّقْتَدِرٍ

और बेशक फ़िरऔन वालों के पास रसूल आएं(1){41}
(1) हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम, तो फ़िरऔनी उनपर ईमान न लाए.

उन्होंने हमारी सब निशानियाँ झुटलाई(2)
(2) जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दी गई थीं.

तो हमने उनपर (3)
(3) अज़ाब के साथ.

गिरफ़्त की जो एक इज़्ज़त वाले और अज़ीम क़ुदरत वाले की शान थी{42} क्या (4)
(4) ऐ मक्के वालों.

तुम्हारे काफ़िर उनसे बेहतर हैं (5)
(5) यानी उन क़ौमों से ज़्यादा क़वी और मज़बूत हैं या कुफ़्र और दुश्मनी में कुछ उनसे कमे हैं.

या किताबों में तुम्हारी छुट्टी लिखी हुई है(6){43}
(6) कि तुम्हारे कुफ़्र की पकड़ न होगी और तुम अल्लाह के अज़ाब से अम्न में रहोगे.

या ये कहते हैं(7)
(7) मक्के के काफ़िर.

कि हम सब मिलकर बदला ले लेंगे(8){44}
(8) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से.

अब भगाई जाती है यह जमाअत(9)
(9) मक्के के काफ़िरों की.

और पीठें फेर देंगे(10){45}
(10) और इस तरह भागेंगे कि एक भी क़ायम न रहेगा. बद्र के रोज़ जब अबू जहल ने कहा कि हमसब मिलकर बदला ले लेंगे, तब यह आयत उतरी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ज़िरह पहन कर यह आयत तिलावत फ़रमाई. फिर ऐसा ही हुआ कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की फ़त्ह हुई और काफ़िर परास्त हुए.

बल्कि उनका वादा क़यामत पर है(11)
(11)  यानी उस अज़ाब के बाद उन्हें क़यामत के दिन के अज़ाब का वादा है.

और क़यामत निहायत (अत्यन्त) कड़वी और सख़्त कड़वी(12){46}
(12) दुनिया के अज़ाब से उसका अज़ाब बहुत ज़्यादा सख़्त है.

बेशक मुजरिम गुमराह और दीवाने हैं(13){47}
(13)न समझते है न राह पाते हैं. (तफ़सीरे कबीर)

जिस दिन आग में अपने मुंहों पर घसीटे जाएंगे, और फ़रमाया जाएगा चखों दोज़ख़ की आंच {48} बेशक हम ने हर चीज़ एक अन्दाज़े से पैदा फ़रमाई (14){49}
(14) अल्लाह की हिकमत के अनुसार. यह आयत क़दिरयों के रद में उतरी जो अल्लाह की क़ुदरत के इन्कारी हैं और दुनिया में जो कुछ होता है उसे सितारों वगै़रह की तरफ़ मन्सूब करते हैं. हदीसों में उन्हें इस उम्मत का मजूस कहा गया है और उनके पास उठने बैठने और उनके साथ बात चीत करने और वो बीमार हो जाएं तो उनकी पूछ ताछ करने और मर जाएं तो उनके जनाज़े में शरीक होने से मना फ़रमाया गया है और उन्हें दज्जाल का साथी फ़रमाया गया. वो बदतरीन लोग हैं.

और हमारा काम तो एक बात की बात है जैसे पलक मारना(15) {50}
(15) जिस चीज़ के पैदा करने का इरादा हो वह हुक्म के साथ ही हो जाती है.

और बेशक हमने तुम्हारी वज़अ के(16)
(16) काफ़िर पहली उम्मतों के.

हलाक कर दिये तो है कोई ध्यान करने वाला(17){51}
(17) जो इब्रत हासिल करें और नसीहत माने.

और उन्होंने जो कुछ किया सब किताबों में है (18){52}
(18)यानी बन्दों के सारे कर्म आमाल के निगहबान फ़रिश्तो के लेखों में है.

और हर छोटी बड़ी चीज़ लिखी हुई है (19){53}
(19) लौहे मेहफ़ूज़ में.

बेशक परहेज़गार बाग़ों और नहर में हैं{54} सच की मजलिस में अज़ीम क़ुदरत वाले बादशाह के हुज़ूर(20){55}
(20) यानी उसकी बारगाह के प्यारे चहीते हैं.

53 Surah Al-Najm

53 सूरए नज्म

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
وَالنَّجْمِ إِذَا هَوَىٰ
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوَىٰ
وَمَا يَنطِقُ عَنِ الْهَوَىٰ
إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَىٰ
عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَىٰ
ذُو مِرَّةٍ فَاسْتَوَىٰ
وَهُوَ بِالْأُفُقِ الْأَعْلَىٰ
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّىٰ
فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ أَوْ أَدْنَىٰ
فَأَوْحَىٰ إِلَىٰ عَبْدِهِ مَا أَوْحَىٰ
مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَأَىٰ
أَفَتُمَارُونَهُ عَلَىٰ مَا يَرَىٰ
وَلَقَدْ رَآهُ نَزْلَةً أُخْرَىٰ
عِندَ سِدْرَةِ الْمُنتَهَىٰ
عِندَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَىٰ
إِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشَىٰ
مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغَىٰ
لَقَدْ رَأَىٰ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِ الْكُبْرَىٰ
أَفَرَأَيْتُمُ اللَّاتَ وَالْعُزَّىٰ
وَمَنَاةَ الثَّالِثَةَ الْأُخْرَىٰ
أَلَكُمُ الذَّكَرُ وَلَهُ الْأُنثَىٰ
تِلْكَ إِذًا قِسْمَةٌ ضِيزَىٰ
إِنْ هِيَ إِلَّا أَسْمَاءٌ سَمَّيْتُمُوهَا أَنتُمْ وَآبَاؤُكُم مَّا أَنزَلَ اللَّهُ بِهَا مِن سُلْطَانٍ ۚ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَمَا تَهْوَى الْأَنفُسُ ۖ وَلَقَدْ جَاءَهُم مِّن رَّبِّهِمُ الْهُدَىٰ
أَمْ لِلْإِنسَانِ مَا تَمَنَّىٰ
فَلِلَّهِ الْآخِرَةُ وَالْأُولَىٰ

सूरए नज्म मक्के में उतरी, इसमें 62 आयतें, तीन रूकू हैं.
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए नज्म मक्की है, इसमें तीन रूकू, बासठ आयतें, तीन सौ साठ कलिमें, एक हज़ार चार सौ पाँच अक्षर हैं. यह वह पहली सूरत है जिसका रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ऐलान फ़रमाया और हरम शरीफ़ में मुश्रि कों के सामने पढ़ी.

इस प्यारे चमकते तारे मुहम्मद की क़सम जब यह मेअराज से उतरे(2){1}
(2) नज्म की तफ़सीर में मुफ़स्सिरों के बहुत से क़ौल हैं कुछ ने सुरैया मुराद लिया है अगरचे सुरैया कई तारे हैं लेकिन नज्म का इतलाक़ उनपर अरब की आदत है. कुछ ने नज्म से नजूम की जिन्स मुराद ली है. कुछ ने वो वनस्पति जो तने नहीं रखते, ज़मीन पर फैलते हैं. कुछ ने नज्म से क़ुरआन मुराद लिया है लेकिन सबसे अच्छी तफ़सीर वह है जो इमाम अहमद रज़ा ने इख़्तियार फ़रमाई कि नज्म से मुराद है नबियों के सरदार मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मुबारक ज़ात.(ख़ाज़िन)

तुम्हारे साहब न बहके न बेराह चले(3){2}
(3) साहब से मुराद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हैं. मानी ये हैं कि हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कभी सच्चाई के रास्ते और हिदायत से मुंह न फेरा, हमेशा अपने रब की तौहीद और इबादत में रहे. आपके पाक दामन पर कभी किसी बुरे काम की धूल न आई. और बेराह न चलने से मुराद यह है कि हुज़ूर हमेशा सच्चाई और हिदायत की आला मंज़िल पर फ़ायज़ रहे. बुरे और ग़लत अक़ीदे भी कभी आपके मुबारक वुजूद तक न पहुंच सके.

और वह कोई बात अपनी ख़्वाहिश से नहीं करते{3} वह तो नहीं मगर वही जो उन्हें की जाती है(4)
{4}
(4) यह पहले वाक्य की दलील है कि हुज़ूर का बहकना और बेराह चलना संभव ही नहीं क्योंकि आप अपनी इच्छा से कोई बात फ़रमाते ही नहीं, जो फ़रमाते हैं वह अल्लाह की तरफ़ से वही होती है और इसमें हुज़ूर के ऊंचे दर्जे और आपकी पाकीज़गी का बयान है. नफ़्स का सबसे ऊंचा दर्जा यह है कि वह अपनी ख़्वाहिश छोड़ दे. (तफ़सीरे कबीर) और इसमें यह भी इशारा है कि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह की ज़ात और सिफ़ात और अफ़आल में फ़ना के उस ऊंचे दर्जे पर पहुंचे कि अपना कुछ बाक़ी न रहा. अल्लाह की तजल्ली का ऐसा आम फ़ैज़ हुआ कि जो कुछ फ़रमाते हैं वह अल्लाह की तरफ़ से होता है. (रूहुल बयान)

उन्हें (5)
(5) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को.

सिखाया(6)
(6) जो कुछ अल्लाह तआला ने उनकी तरफ़ वही फ़रमाया  और इस तालीम से मुराद क़ल्बे मुबारक तक पहुंचा देना है.

सख़्त क़ुव्वतों वाले {5} ताक़तवर ने(7)
(7) कुछ मुफ़स्सिरीन इस तरफ़ गए हैं कि सख़्त क़ुव्वतों वाले ताक़तवर से मुराद हज़रत जिब्रईल हैं और सिखाने से मुराद अल्लाह की वही का पहुंचना है. हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि शदीदुल क़ुवा ज़ू मिर्रतिन से मुराद अल्लाह तआला है उसने अपनी ज़ात को इस गुण के साथ बयान फ़रमाया. मानी ये है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अल्लाह तआला ने बेवास्ता तालीम फ़रमाई. (तफ़सीर रूहुल बयान)

फिर उस जलवे ने क़स्द फ़रमाया(8){6}
(8) आम मुफ़स्सिरों ने फ़स्तवा का कर्ता भी हज़रत जिब्रईल को क़रार दिया है और ये मानी लिये है कि हज़रत जिब्रईल अमीन अपनी असली सूरत पर क़ायम हुए और इसका कारण यह है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन्हे उनकी असली सूरत में देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर फ़रमाई थी तो हज़रत जिब्रईल पूर्व की ओर से हुज़ूर के सामने नमूदार हुए और उनके वुजूद से पूर्व से पश्चिम तक भर गया. यह भी कहा गया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सिवा किसी इन्सान ने हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम को उनकी असली सूरत में नहीं देखा. इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि हज़रत जिब्रईल को देखना तो सही है और हदीस से साबित है लेकिन यह हदीस में नहीं है कि इस आयत में हज़रत जिब्रईल को देखना मुराद है बल्कि ज़ाहिरे तफ़सीर में यह है कि मुराद फ़स्तवा से सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का मकाने आली और ऊंची मंज़िल में इस्तवा फ़रमाना है. (कबीर) तफ़सीरे रूहुल बयान में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने आसमानों के ऊपर क़याम फ़रमाया और हज़रत जिब्रईल सिद्रतुल मुन्तहा पर रूक गए. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम आगे बढ गए और अर्श के फैलाव से भी गुज़र गए और इमाम अहमद रज़ा का अनुवाद इस तरफ़ इशारा करता है कि इस्तवा की अस्नाद अल्लाह तआला की तरफ़ है और यही क़ौल हसन रदियल्लाहो अन्हो का है.

और वह आसमाने बरीं के सबसे बलन्द किनारे पर था(9){7}
(9) यहाँ भी आम मुफ़स्सिरीन इस तरफ़ गए हैं कि यह हाल जिब्रईले अमीन का है. लेकिन इमाम रोज़ी फ़रमाते हैं कि ज़ाहिर यह है कि यह हाल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का है कि आप आसमानों के ऊपर थे जिस तरह कहने वाला कहता है कि मैंने छत पर चाँद देखा. इसके मानी ये नहीं होते कि चाँद छत पर या पहाड़ पर था, बल्कि यही मानी होते हैं कि देखने वाला छत पर या पहाड़ पर था. इसी तरह यहाँ मानी हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम आसमानों के ऊपर पहुंचे तो अल्लाह की तजल्ली आपकी तरफ़ मुतवज्जह हुई.

फिर वह जलवा नज़्दीक हुआ(10)
(10) इसके मानी ये भी मुफ़स्सिरों के कई क़ौल हैं. एक क़ौल यह है कि हज़रत जिब्रईल का सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से क़रीब होना मुराद है कि वह अपनी असली सूरत दिखा देने के बाद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के कुर्ब में हाजिर हुए. दूसरे मानी ये हैं कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह तआला के क़ुर्ब से मुशर्रफ़ हुए. तीसरे यह कि अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अपने क़ुर्ब की नेअमत से नवाज़ा और यही ज़्यादा सही है.

फिर ख़ूब उतर आया(11){8}
(11) इसमें चन्द क़ौल हैं कि एकतो यह कि नज़्दीक़ होने से हुज़ूर का ऊरूज और वुसूल मुराद है और उतर आने से नुज़ूल व रूजू, तो हासिले मानी ये हैं कि हक़ तआला के क़ुर्ब में बारयाब हुए फिर मिलन की नेअमतो से फ़ैज़याब होकर ख़ल्क़ की तरफ़ मुतवज्जह हुए. दूसरा क़ौल यह है कि हज़रत रब्बुल इज़्ज़त अपने लुत्फ़ व रहमत के साथ अपने हबीब से क़रीब हुआ और इस क़ुर्ब में ज़ियादती फ़रमाई. तीसरा क़ौल यह है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अल्लाह की बारगाह में क़ुर्ब पाकर ताअत का सज्दा अदा किया (रूहुल बयान) बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है कि क़रीब हुआ जब्बार रब्बुल इज़्ज़त. (ख़ाज़िन)

तो उस जलवे और उस मेहबूब में दो हाथ का फ़ासला रहा बल्कि उस से भी कम (12){9}
(12) यह  इशारा है ताकीदे क़ु्र्ब की तरफ़ कि क़ुर्ब अपने कमाल को पहुंचा और जो नज़्दीकी अदब के दायरे में रहकर सोची जा सकती है वह अपनी चरम सीमा को पहुंची.

अब वही फ़रमाई अपने बन्दे को जो वही फ़रमाई(13){10}
(13) अक्सर मुफ़स्सिरों के नज़्दीक इसके मानी ये हैं कि अल्लाह तआला ने अपने ख़ास बन्दे हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को वही फ़रमाई. (जुमल) हज़रत जअफ़रे सादिक़ रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने अपने बन्दे को वही फ़रमाई, जो वही फ़रमाई वह बेवास्ता थी कि अल्लाह तआला और उसके हबीब के बीच कोई वास्ता न था और ये ख़ुदा और रसूल के बीच के रहस्य हैं जिन पर उनके सिवा किसी को सूचना नहीं. बक़ली ने कहा कि अल्लाह तआला ने इस रहस्य को तमाम सृष्टि से छुपा रखा और न बयान फ़रमाया कि अपने हबीब को क्या वही फ़रमाई और मुहिब व मेहबूब के बीच ऐसे राज़ होते हैं जिनको उनके सिवा कोई नहीं जानता. (रूहुल बयान) उलमा ने यह भी बयान किया है कि उस रात में जो आपको वही फ़रमाई गई वह कई क़िस्म के उलूम थे. एक तो शरीअत और अहकाम का इल्म जिसकी सब को तबलीग़ की जाती है, दूसरे अल्लाह तआला की मअरिफ़तें जो ख़ास लोगों को बताई जाती हैं, तीसरे हक़ीक़तें और अन्दर की बातें जो ख़ासूल ख़ास लोगों को बताई जाती है, और एक क़िस्म वो राज़ जो अल्लाह और उसके रसूल के साथ ख़ास हैं कोई उनका बोझ नहीं उठा सकता, (रूहुल बयान)

दिल ने झूट न कहा जो देखा(14){11}
(14) आँख ने यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के क़ल्बे मुबारक ने उसकी तस्दीक़ की जो चश्मे मुबारक ने देखा. मानी ये हैं कि आँख से देखा. दिल से पहचाना और इस देखने और पहचानने में शक और वहम ने राह न पाई. अब यह बात कि क्या देखा? कुछ मुफ़स्सिरों का कहना है कि सैयदे आलम सल्लल्ल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपने रब को देखा और यह देखना किस तरह था? सर की आँखों से या दिल की आँखों से? इस मे मुफ़स्सिरों के दोनो क़ौल पाए जाते हैं. हज़रत इब्ने अब्बास का क़ौल है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने रब तआला को अपने क़ल्बे मुबारक से दोबार देखा (मुस्लिम) एक ज़माअत इस तरफ़ गई कि आपने रब तआला को हक़ीक़त में सर की आँखों से देखा. यह क़ौल हज़रत अनस बिन मालिक और हसन व अकरमह का है और हज़रत इब्ने अब्बास से रिवायत है कि अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम को ख़ुल्लत और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को कलाम और सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अपने दीदार से इम्तियाज़ बख़्शा. कअब ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से दोबारा कलाम फ़रमाया और हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अल्लाह तआला को दोबार देखा (तिर्मिज़ी) लेकिन हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा ने दीदार का इन्कार किया और आयत को जिब्रईल के दीदार पर महमूल किया और फ़रमाया कि जो कोई कहे कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपने रब को देखा, उसने झूट कहा और प्रमाण में आयत “ला तुदरिकुहुल अब्सार” (आंखें उसे अहाता नहीं करतीं – सूरए अनआम, आयत 103) तिलावत फ़रमाई. यहाँ चन्द बातें क़ाबिले लिहाज़ हैं एक यह कि हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा का क़ौल नफ़ी में है और हज़रत इब्ने अब्बास का हाँ में और हाँ वाला क़ौल ही ऊपर होता है क्योंकि ना कहने वाला किसी चीज़ की नफ़ी इसलिये करता है कि उसने सुना नहीं और हाँ करने वाला हाँ इसलिये करता है कि उसने सुना और जाना. तो इल्म हाँ कहने वाले के पास है. इसके अलावा हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा ने यह कलाम हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से नक़्ल नहीं किया बल्कि आयत से अपने इस्तम्बात (अनुमान) पर ऐतिमाद फ़रमाया. यह हज़रते सिद्दीका रदियल्लाहो अन्हा की राय और आयत में इदराक यानी इहाता की नफ़ी है, न रूयत की. सही मसअला यह है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के दीदार से मुशर्रफ़ फ़रमाए गए. मुस्लिम शरीफ़ की हदीसे मरफ़ूअ से भी यही साबित है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा जो बहरूल उम्मत हैं, वह भी इसी पर हैं. मुस्लिम की हदीस है  “रऐतो रब्बी बिऐनी व बिक़ल्बी” मैं ने अपने रब को अपनी आँख और अपने दिल से देखा. हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहो अन्हो क़सम खाते थे कि मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मेराज की रात अपने रब को देखा. हज़रत इमाम अहमद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि मैं हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा की हदीस का क़ायल हूँ. हुज़ूर ने अपने रब को देखा, उसको देखा, उसको देखा. इमाम साहब यह फ़रमाते ही रहे यहाँ तक कि साँस ख़त्म हो गई.

तो क्या तुम उनसे उनके देखे हुए पर झगड़ते हो(15) {12}
(15) यह मुश्रिकों को ख़िताब है जो मेराज की रात के वाक़िआत का इन्कार करते और उसमें झगड़ा करते.

और उन्हों ने वह जलवा दो बार देखा(16){13}
(16) क्योंकि कम कराने की दरख़ास्तों के लिये चन्द बार आना जाना हुआ. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने रब तआला को अपने क़ल्बे मुबारक से दोबार देखा और उन्हीं से यह भी रिवायत है कि हुज़ूर ने रब तआला को आँख से देखा.

सिदरतुल मुन्तहा के पास(17){14}
(17) सिद्रतुल मुन्तहा एक दरख़्त है जिसकी अस्ल जड़ छटे आसमान में है और इसकी शाखें सातवें आसमान में फैली हुई हैं और बलन्दी में वह सातवें आसमान से भी गुज़र गया. फ़रिश्ते और शहीदों और नेक लोगों की रूहें उससे आगे नहीं बढ़ सकती.

उसके पास जन्नतुल मावा है {15} जब सिदरह पर छा रहा था जो छा रहा था (18){16}
(18) यानी फ़रिश्ते और अनवार.

आँख न किसी तरफ़ फिरी न हद से बढ़ी  (19){17}
(19) इसमें सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की भरपूर क़ुव्वत का इज़हार है कि उस मक़ाम में जहाँ अक़लें हैरत नें डूबी हुई हैं, आप साबित क़दम रहे और जिस नूर का दीदार मक़सूद था उससे बेहराअन्दोज़ हुए. दाएं बाएं किसी तरफ़ मुलतफ़ित न हुए. न मक़सूद की दीद से आँख फेरी, न हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तरह बेहोश हुए, बल्कि इस मक़ामे अज़ीम में साबित रहे.

बेशक अपने रब की बहुत बड़ी निशानियां देखीं(20){18}
(20) यानी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने शबे मेअराज़ मुल्क और मलकूत के चमत्कारों को देखा और आप का इल्म तमाम मअलूमाते ग़ैबियह मलकूतियह से भर गया जैसा कि हदीस शरीफ़ इख़्तिसामे मलायकह में वारिद हुआ है और दूसरी हदीसों में आया है. (रूहुल बयान)

तो क्या तुमने देखा लात और उज़्ज़ा {19} और उस तीसरी मनात को(21){20}
(21) लात व उज़्ज़ा और मनात बुतों के नाम हैं जिन्हें मुश्रिक पूजते थे. इस आयत में इरशाद फ़रमाया कि क्या तुमने उन बुतों को देखा, यानी तहक़ीक व इन्साफ़ की नज़र से, अगर इस तरह देखा हो तो तुम्हें मालूम हो गया कि यह महज़ बेक़ुदरत बुतों को पूजना और उसका शरीक ठहराना किस क़दर अज़ीम ज़ुल्म और अक़्ल के ख़िलाफ़ बात है. मक्के के मुश्रिक कहा करते थे कि ये बुत और फ़रिश्ते ख़ुदा की बेटियाँ हैं. इस पर अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है.

क्या तुम को बेटा और उसको बेटी(22){21}
(22) जो तुम्हारे नज़्दीक ऐसी बुरी चीज़ है कि जब तुम में से किसी को बेटी पैदा होने की ख़बर दी जाती है तो उसका चेहरा बिगड़ जाता है और रंग काला हो जाता है और लोगों से छुपता फिरता है यहाँ तक कि तुम बेटियों को ज़िन्दा दर गोर कर डालते हो, फिर भी अल्लाह तआला की बेटियाँ बताते हो.

जब तो यह सख़्त भौंडी तक़सीम है(23){22}
(23) कि जो अपने लिये बुरी समझते हो, वह ख़ुदा के लिये तजवीज़ करते हो.

वो तो नहीं मगर कुछ नाम कि तुम ने और तुम्हारे बाप दादा ने रख लिये हैं(24)
(24) यानी उन बुतों का नाम इलाह और मअबूद तुमने और तुम्हारे बाप दादा ने बिल्कुल बेजा और ग़लत तौर पर रख लिया है, वो न हक़ीक़त में इलाह हैं न मअबूद.

अल्लाह ने उनकी कोई सनद नहीं उतारी, वो तो निरे गुमान और नफ़्स की ख़्वाहिशों के पीछे हैं(25)
(25) यानी उनका बूतों को पूजना अक़्ल व इल्म व तालीमे इलाही के ख़िलाफ़, केवल अपने नफ़्स के इत्बिअ, हटधर्मी और वहम परस्ती की बिना पर है.

हालांकि बेशक उनके पास उनके रब की तरफ़ से हिदायत आई (26){23}
(26) यानी किताबे इलाही और ख़ुदा के रसूल जिन्हों ने सफ़ाई के साथ बार बार यह बताया कि बुत मअबूद नहीं हैं और अल्लाह तआला के सिवा कोई भी इबादत के लायक़ नहीं.

क्या आदमी को मिल जाएगा जो कुछ वह ख़्याल बांधे(27){24}
(27) यानी काफ़िर जो बुतों के साथ झुटी उम्मीदें रखतें हैं कि वो उनके काम आएंगे. ये उम्मीदें बातिल है.

तो आख़िरत और दुनिया सब का मालिक अल्लाह ही है(28){25}
(28) जिसे जो चाहे दे. उसी की इबादत करना और उसी को राज़ी रखना काम आएगा.

53 Surah Al-Najm

53 सूरए नज्म -दूसरा रूकू

۞ وَكَم مِّن مَّلَكٍ فِي السَّمَاوَاتِ لَا تُغْنِي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا إِلَّا مِن بَعْدِ أَن يَأْذَنَ اللَّهُ لِمَن يَشَاءُ وَيَرْضَىٰ
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ لَيُسَمُّونَ الْمَلَائِكَةَ تَسْمِيَةَ الْأُنثَىٰ
وَمَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ ۖ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ ۖ وَإِنَّ الظَّنَّ لَا يُغْنِي مِنَ الْحَقِّ شَيْئًا
فَأَعْرِضْ عَن مَّن تَوَلَّىٰ عَن ذِكْرِنَا وَلَمْ يُرِدْ إِلَّا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا
ذَٰلِكَ مَبْلَغُهُم مِّنَ الْعِلْمِ ۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اهْتَدَىٰ
وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ لِيَجْزِيَ الَّذِينَ أَسَاءُوا بِمَا عَمِلُوا وَيَجْزِيَ الَّذِينَ أَحْسَنُوا بِالْحُسْنَى
الَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ إِلَّا اللَّمَمَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِ ۚ هُوَ أَعْلَمُ بِكُمْ إِذْ أَنشَأَكُم مِّنَ الْأَرْضِ وَإِذْ أَنتُمْ أَجِنَّةٌ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ ۖ فَلَا تُزَكُّوا أَنفُسَكُمْ ۖ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقَىٰ

 

और कितने ही फ़रिश्तें हैं आसमानों में कि उनकी सिफ़ारिश कुछ काम नहीं आती मगर जब कि अल्लाह इज़ाज़त दे दे जिसके लिये चाहे और पसन्द फ़रमाए(1){26}
(1) यानी फ़रिश्ते, जबकि वो अल्लाह की बारगाह में इज़्ज़त रखते हैं इसके बाद सिर्फ़ उसके लिए शफ़ाअत करेंगे जिसके लिये अल्लाह तआला की मर्ज़ी हो यानी तौहीद वाले मूमिन के लिये. तो बुतों से शफ़ाअत की उम्मीद रखना अत्यन्त ग़लत है कि न उन्हें हक़ तआला की बारगाह में क़ुर्ब हासिल, न काफ़िर शफ़ाअत के योग्य.

बेशक वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते(2)
(2) यानी काफ़िर जो दोबारा ज़िन्दा किये जाने का इन्कार करते हैं.

मलायक़ा (फ़रिश्तों) का नाम औरतों का सा रखते हैं(3){27}
(3) कि उन्हें ख़ुदा की बेटियाँ बताते हैं.

और उन्हें इसकी कुछ ख़बर नहीं, वो तो निरे गुमान के पीछे हैं, और बेशक गुमान यक़ीन की जगह कुछ काम नहीं देता (4){28}
(4) सही बात और वास्तविकता इल्म और यक़ीन से मालूम होती है न कि वहम और गुमान से.

तो तुम उससे मुंह फेर लो जो हमारी याद से फिरा (5)
(5) यानी क़ुरआन पर ईमान से.

और उसने न चाही मगर दुनिया की ज़िन्दगी(6){29}
(6) आख़िरत पर ईमान न लाया कि उसका तालिब होता.

यहाँ तक उनके इल्म की पहुंच है(7)
(7) यानी वो इस क़द्र कम इल्म और कमअक़्ल है कि उन्होंने आख़िरत पर दुनिया को प्राथमिकता दी है या ये मानी हैं कि उनके इल्म की इन्तिहा वहम और गुमान हैं जो उन्हों ने बाँध रखे हैं कि (मआज़ल्लाह) फ़रिश्ते ख़ुदा की बेटियाँ हैं उनकी शफ़ाअत करेंगे और इस बातिल वहम पर भरोसा करके उन्हों ने ईमान और क़ुरआन की पर्वाह न की.

बेशक तुम्हारा रब ख़ूब जानता है जो उसकी राह से बहका और वह ख़ूब जानता है जिसने राह पाई {30} और अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में ताकि बुराई करने वालों को उनके किये का बदला दे और नेकी करने वालों को निहायत (अत्यन्त) अच्छा (सिला) इनआम अता फ़रमाए {31} वो जो बड़े गुनाहों और बेहयाइयों से बचते हैं (8)
(8) गुनाह वह अमल है जिसका करने वाला अज़ाब का मुस्तहिक़ हो और कुछ जानकारों ने फ़रमाया किगुनाह वह है जिसका करने वाला सवाब से मेहरूम हो. कुछ का कहना है नाजायज़ काम करने को गुनाह कहते हैं. बहरहाल गुनाह की दो क़िस्में हैं सग़ीरा और कबीरा. कबीरा वो जिसका अज़ाब सख़्त हो और कुछ उलमा ने फ़रमाया कि सग़ीरा वो जिसपर सज़ा न हो. कबीरा वो जिसपर सज़ा हो, और फ़वाहिश वो जिसपर हद हो.

मगर इतना कि गुनाह के पास गए और रूक गए (9)
(9) कि इतना तो कबीरा गुनाहों से बचने की बरकत से माफ़ हो जाता है.

बेशक तुम्हारे रब की मग़फ़िरत वसीअ है, वह तुम्हें ख़ूब जानता है (10)
(10) यह आयत उन लोगों के हक़ में नाज़िल हुई जो नेकियाँ करते थे और अपने कामों की तारीफ़ करते थे और कहते थे कि हमारी नमाज़ें, हमारे रोज़े, हमारे हज—

तुम्हें मिट्टी से पैदा किया और जब तुम अपनी माँओ के पेट में हमल (गर्भ) थे, तो आप अपनी जानों को सुथरा न बताओ (11)
(11) यानी घमण्ड से अपनी नेकियों की तारीफ़ न करो क्योंकि अल्लाह तआला अपने बन्दों के हालात का ख़ुद जानने वाला है, वह उनकी हस्ती की शुरूआत से आख़िर तक सारे हालात जानता है. इस आयत में बनावटीपन, दिखावे और अपने मुंह मियाँ मिटठू बनने को मना किया गया है. लेकिन अगर अल्लाह की नेअमत के ऐतिराफ़ और फ़रमाँबरदारी व इबादत और अल्लाह के शुक्र  के लिये नेकियों का ज़िक्र किया जाए तो जायज़ है.

वह ख़ूब जानता है जो परहेज़गार हैं (12) {32}
(12) और उसी का जानना काफ़ी, वही जज़ा देने वाला है. दूसरों पर इज़हार और दिखावे का क्या फ़ायदा.