उनकी कहावत जो अपने माल अल्लाह की राह मे ख़र्च करते हैं(1)
उस दिन की तरह जिसने उगाई सात बालें (2)
हर बाल में सौ दाने (3)
और अल्लाह इस से भी ज़्यादा बढ़ाए जिस के लिये चाहे और अल्लाह वुसअत (विस्तार) वाला इल्म वाला है वो जो अपने माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते है (4)
फिर दिये पीछे न एहसान रखें न तकलीफ़ दें (5)
उनका नेग उनके रब के पास है और उन्हें न कुछ डर हो न कुछ ग़म अच्छी बात कहना और दरगुज़र (क्षमा) करना (6)
उस ख़ैरात से बेहतर है जिसके बाद सताना हो (7)
और अल्लाह बे-परवाह हिल्म (सहिष्णुता) वाला है ऐ ईमान वालो अपने सदक़े (दान) बातिल न करदो एहसान रखकर और ईजा (दुख:) देकर (8)
उसकी तरह जो अपना माल लोगों के दिखावे के लिए ख़र्च करे और अल्लाह क़यामत पर ईमान न लाए तो उसकी कहावत ऐसी है जैसे एक चट्टान कि उसपर मिट्टी है अब उसपर ज़ोर का पानी पड़ा जिसने उसे निरा पत्थर कर छोड़ा (9)
अपनी कमाई से किसी चीज़ पर क़ाबू न पाएंगे और अल्लाह काफ़िरों को राह नहीं देता और उनकी कहावत, जो अपने माल अल्लाह की रज़ा चाहने में ख़र्च करते हैं और अपने दिल जमाने को ,(10)
उस बाग़ की सी है जो भोड़ (रेतीली ज़मीन) पर हो उस पर ज़ोर का पानी पड़ा तो दो ने मेवा लाया फिर अगर ज़ोर का मेंह उसे न पहुंचे तो ओस काफ़ी है (11)
और अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है (12)
क्या तुम में कोई इसे पसन्द रखेगा (13)
कि उसके पास एक बाग़ हो खजूरों और अंगूरों का (14)
जिसके नीचे नदियां बहतीं उसके लिये उसमें हर क़िस्म के फलों से है (15)
और उसे बुढ़ापा आया (16)
और उसके नातवाँ (कमज़ोर) बच्चे हैं (17)
तो आया उसपर एक बगोला जिसमें आग थी तो जल गया (18)
ऐसा ही बयान करता है अल्लाह तुमसे अपनी आयतें कि कहीं तुम ध्यान लगाओ (19) (266)
तफ़सीर : सूरए बक़रह – छत्तीसवाँ रूकू
(1) चाहे ख़र्च करना वाजिब हो या नफ़्ल, भलाई के कामों से जुड़ा होना आम है. चाहे किसी विद्यार्थी को किताब ख़रीद कर दी जाए या कोई शिफ़ाख़ाना बना दिया जाए या मरने वालों के ईसाले सवाब के लिये सोयम, दसवें, बीसवें, चालीसवें के तरीक़े पर मिस्कीनों को खाना खिलाया जाए.
(2) उगाने वाला हक़ीक़त में अल्लाह ही है. दाने की तरफ़ उसकी निस्बत मजाज़ी है. इससे मालूम हुआ कि मजाज़ी सनद जायज़ है जबकि सनद करने वाला ग़ैर ख़ुदा के तसर्रूफ़ में मुस्तक़िल एतिक़ाद न करना हो. इसी लिये यह कहना भी जायज़ है कि ये दवा फ़ायदा पहुंचाने वाली है, यह नुक़सान देने वाली है, यह दर्द मिटाने वाली है, माँ बाप ने पाला, आलिम ने गुमराही से बचाया, बुज़ुर्गों ने हाजत पूरी की, वग़ैरह. सबमें मजाज़ी सनदें हैं और मुसलमान के अक़ीदे में करने वाला हक़ीक़त में अल्लाह ही है. बाक़ी सब साधन है.
(3) तो एक दाने के सात सौ दाने हो गए, इसी तरह ख़ुदा की राह में ख़र्च करने से सात सौ गुना अज्र हो जाता है.
(4) यह आयत हज़रत उस्माने ग़नी और हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ़ रदियल्लाहो अन्हुमा के बारे में उतरी. हज़रत उस्मान रदियल्लाहो अन्हो ने ग़ज़वए तबूक के मौक़े पर इस्लामी लश्कर के लिये एक हज़ार ऊंट सामान के साथ पेश किये और अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रदियल्लाहो अन्हो ने चार हज़ार दरहम सदक़े के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर किये और अर्ज़ किया कि मेरे पास कुल आठ हज़ार दरहम थे, आधे मैंने अपने और अपने बच्चों के लिये रख लिये और आधे ख़ुदा की राह में हाज़िर हैं. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, जो तुमने दिये और जो तुमने रखे, अल्लाह तआला दोनों में बरकत अता फ़रमाए.
(5) एहसान रखना तो यह कि देने के बाद दूसरों के सामने ज़ाहिर करें कि हमने तेरे साथ ऐसे सुलूक किये और उसको परेशान कर दें. और तकलीफ़ देना यह कि उसको शर्म दिलाएं कि तू नादार था, मुफ़्लिस था, मजबूर था, निकम्मा था, हमने तेरी देखभाल की, या और तरह दबाव दें, यह मना फ़रमाया गया.
(6) यानी अगर सवाल करने वाले को कुछ न दिया जाए तो उससे अच्छी बात कहना और सदव्यवहार के साथ जवाब देना, जो उसको नाग़वार न गुज़रे और अगर वह सवाल किये ही जाए या ज़बान चलाए, बुरा भला कहने लगे, तो उससे मुंह फेर लेना.
(7) शर्म दिला कर या एहसान जताकर या और कोई तकलीफ़ पहुंचा कर.
(8) यानी जिस तरह मुनाफ़िक़ को अल्लाह की रज़ा नहीं चाहिये, वह अपना माल रियाकारी यानी दिखावे के लिये ख़र्च करके बर्बाद कर देता है, इसी तरह तुम एहसान जताकर और तकलीफ़ देकर अपने सदक़ात और दान का पुण्य तबाह न करो.
(9) ये मुनाफ़िक़ रियाकर के काम की मिसाल है कि जिस तरह पत्थर पर मिट्टी नज़र आती है लेकिन बारिश से वह सब दूर हो जाती है, ख़ाली पत्थर रह जाता है, यही हाल मुनाफ़िक़ के कर्म का है और क़यामत के दिन वह तमाम कर्म झूटे ठहरेंगे, क्योंकि अल्लाह की रज़ा और ख़ुशी के लिये न थे.
(10) ख़ुदा की राह में ख़र्च करने पर.
(11) यह ख़ूलूस वाले मूमिन के कर्मों की एक मिसाल है कि जिस तरह ऊंचे इलाक़े की बेहतर ज़मीन का बाग़ हर हाल में ख़ूब फलता है, चाहे बारिश कम हो या ज़्यादा, ऐसे ही इख़लास वाले मूमिन का दान और सदक़ा ख़ैरात चाहे कम हो या ज़्यादा, अल्लाह तआला उसको बढ़ाता है.
(12) और तुम्हारी नियत और इख़लास को जानता है.
(13) यानी कोई पसन्द न करेगा क्योंकि यह बात किसी समझ वाले के गवारा करने के क़ाबिल नहीं है.
(14) अगरचे उस बाग़ में भी क़िस्म क़िस्म के पेड़ हों मगर खजूर और अंगूर का ज़िक्र इसलिये किया कि ये ऊमदा मेवे हैं.
(15) यानी वह बाग़ आरामदायक और दिल को लुभाने वाला भी है, और नफ़ा देने वाली ऊमदा जायदाद भी.
(16) जो हाजत या आवश्यकता का समय होता है और आदमी कोशिश और परिश्रम के क़ाबिल नहीं रहता.
(17) जो कमाने के क़ाबिल नहीं और उनके पालन पोषण की ज़रूरत है, और आधार केवल बाग़ पर, और बाग़ भी बहुत ऊमदा है.
(18) वह बाग़, तो इस वक़्त उसके रंजो ग़म और हसरतो यास की क्या इन्तिहा है. यही हाल उसका है जिसने अच्छे कर्म तो किये हों मगर अल्लाह की ख़ुशी के लिये नहीं, बल्कि दिखावे के लिये, और वह इस गुमान में हो कि मेरे पास नेकियों का भण्डार है. मगर जब सख़्त ज़रूरत का वक़्त यानी क़यामत का दिन आए, तो अल्लाह तआला उन कर्मों को अप्रिय करदे. उस वक़्त उसको कितना दुख और कितनी मायूसी होगी. एक रोज़ हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने सहाबए किराम से फ़रमाया कि आप की जानकारी में यह आयत किस बारे में उतरी है. हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि ये उदाहरण है कि एक दौलतमंद व्यक्ति के लिये जो नेक कर्म करता हो, फिर शैतान के बहकावे से गुमराह होकर अपनी तमाम नेकियों को ज़ाया या नष्ट कर दे. (मदारिक व ख़ाज़िन)
(19) और समझो कि दुनिया फ़ानी, मिटजाने वाली और आक़िबत आनी है.
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