सूरए यूसुफ़ – दूसरा रूकू


बेशक यूसुफ़ और उसके भाईयों में(1)
(1) हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम की पहली बीबी लिया बिन्ते लियान आपके माँमू की बेटी हैं. उनसे आपके छ: बेटे हुए रूबील, शमऊन, लावा, यहूदा, ज़बलून, यशजर, और चार बेटे हरम से हुए दान, नफ़ताली, जावा, आशर, उनकी माएं ज़ुल्फ़ह और बिल्हा. लिया के इन्तिक़ाल के बाद हज़रत यअक़ूब ने उनकी बहन राहील से निकाह फ़रमाया. उनसे दो बेटे हुए यूसुफ़ और बिन यामीन. ये हज़रत यअक़ूब के बारह बेटे हैं. इन्हीं को आस्वात कहते हैं.
पूछने वालों के लिये निशानियां हैं (2){7}
(2) पूछने वालों से यहूदी मुराद हैं जिन्होंने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम का हाल और औलाद,हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम के कनआन प्रदेश से मिस्र प्रदेश की तरफ़ मुन्तक़िल होने का कारण दरियाफ़्त किया था. जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के हालात बयान फ़रमाए और यहूदियों ने उनको तौरात के मुताबिक़ पाया तो उन्हें हैरत हुई कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्ल्म ने किताबें पढ़ने और उलमा और धर्मशास्त्रियों की मजलिस में बैठने और किसी से कुछ सीखने के बग़ैर इस क़द्र सही वाक़िआत केसे बयान फ़रमाए. यह दलील है कि आप ज़रूर नबी हैं और क़ुरआन शरीफ़ ज़रूर अल्लाह तआला का भेजा हुआ कलाम है और अल्लाह तआला ने आप को पाक इल्म से नवाज़ा. इसके अलावा इस वाक़ए में बहुत से सबक़ और हिकमतें हैं.
जब बोले(3)
(3) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई.
कि ज़रूर यूसुफ़ और उसका भाई (4)
(4) हक़ीक़ी बिन यामीन.
हमारे बाप को हम से ज़्यादा प्यारे हैं और हम एक जमाअत (समूह) हैं (5)
(5) क़वी है, ज़्यादा काम आ सकते है, ज़्यादा फ़ायदा पहुंचा सकते हैं. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम छोटे है क्या कर सकते हें.
बेशक हमारे बाप खुल्लम खुल्ला उनकी महब्बत में डूबे हुए हैं (6){8}
(6) और यह बात उनके ख़याल में न आई कि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की वालिदा का उनकी अल्पायु में इन्तिक़ाल हो गया इसलिये वह ज़्यादा प्यार दुलार और महब्बत के हक़दार हुए और उनमें हिदायत और साफ़ सुथरे होने की वो निशानियां पाई जाती हैं जो दूसरे भाइयों में नहीं है. यही कारण है कि हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम को हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के साथ ज़्यादा महब्बत है, ये सब बातें ख़याल में न लाकर, उन्हें अपने वालिद का हज़रत यूसुफ़ से ज़्यादा महब्बत करना बुरा लगा और उन्होंने आपस में मिलकर मशवरा किया कि कोई ऐसी तदबीर सोचनी चाहिये जिससे हमारे वालिद साहिब को हमारी तरफ़ ज़्यादा महब्बत हो. कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा है कि शैतान भी इस मशवरे की बैठक में शरीक हुआ और उसने हज़रत यूसुफ़ के क़त्ल की राय दी और मशवरे की बात चीत इस तरह हुई.
यूसुफ़ को मार डालो या कहीं ज़मीन में फैंक आओ(7)
(7) आबादियों से दूर, बस यही सूरत है जिन से.
कि तुम्हारे बाप का मुंह सिर्फ़ तुम्हारी ही तरफ़ रहे (8)
(8) और उन्हें बस तुम्हारी ही महब्बत हो और किसी की नहीं.
और उसके बाद फिर नेक हो जाना(9){9}
(9) और तौबह कर लेना.
उनमें एक कहने वाला(10)
(10) यानी यहूदा या रूबील.
बोला कि यूसुफ़ को मारो नहीं (11)
(11) क्योंकि क़त्ल महापाप है.
और उसे अंधे कुंऐ में डाल दो कि कोई चलता उसे आकर ले जाए (12)
(12) यानी कोई मुसाफ़िर वहाँ गुज़रे और उन्हें किसी मुल्क को ले जाए इसे भी उद्देश्य पूरा है कि न वहाँ रहेंगे न वालिद साहिब की मेहरबानी की नज़र इस तरह उनपर होगी.
अगर तुम्हें करना है(13){10}
(13) इसमें इशारा है कि चाहिये तो यह कि कुछ भी न करो लेकिन अगर तुमने इरादा कर ही लिया है तो बस इतने पर ही सब्र कर लो. चुनांचे सब इसपर सहमत हो गए और अपने वालिद से.
बोले ऐ हमारे बाप आप को क्या हुआ कि यूसुफ़ के मामले में हमारा भरोसा नहीं करते और हम तो इसका भला चाहने वाले हैं{11} कल इसे हमारे साथ भेज दीजिये कि मेवे खाए और खेले (14)
(14) यानी तफ़रीह के हलाल तरीक़ों से आनंद उठाएं जैसे कि शिकार और तीर अन्दाज़ी वग़ैरह.
और बेशक हम इसके निगहबान हैं(15){12}
(15) उनकी पूरी देखभाल करेंगे.
बोला बेशक मुझे रंज देगा कि इसे ले जाओ (16)
(16) क्योंकि उनकी एक घड़ी की जुदाई गवारा नहीं है.
और डरता हूँ कि इसे भेड़िया खाले (17)
(17) क्योंकि उस इलाक़े में भेड़िये और ख़तरनाक जानवर बहुत हैं.
और तुम इससे बेखबर रहो (18){13}
(18) और अपनी सैर तफ़रीह में लग जाओ.
बोले अगर इसे भेड़िया खा जाए और हम एक जमाअत (दल) हैं जब तो हम किसी मसरफ़ {काम} के नहीं(19){14}
(19) लिहाज़ा इन्हें हमारे साथ भेज दीजिये. अल्लाह की तरफ़ से यूंही तक़दीर थी हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने इजाज़त दे दी. चलते समय हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की कमीज़, जो जन्नत की हरीर थी और जिस वक़्त हज़रत इब्राहीम को कपड़े उतार कर आग में डाला गया गया था, हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने वह कमीज़ आपको पहनाई थी, वह मुबारक क़मीज़ हज़रत इब्राहीम से हज़रत इस्हाक़ को और उनसे उनके बेटे हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम को पहुंची थी, वह क़मीज़ हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के गले में हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने तावीज़ बनाकर डाल दी.
फिर जब उसे ले गए(20)
(20) इस तरह जब तक हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम उन्हें देखते रहे वहाँ तक तो वह हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को अपने कन्धों पर सवार किये हुए इज़ज़्त व एहतिराम के साथ ले गए. जब दूर निकल गए और हज़रत यअक़ूब अलैहिस्स्लाम की नज़रों से ग़ायब हो गए तो उन्होंने हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को ज़मीन पर पटका और दिलों में जो दुश्मनी थी वह ज़ाहिर हुई. जिसकी तरफ़ जाते थे ताने देता था. और ख़्वाब जो किसी तरह उन्होंने सुन पाया था, उसपर बुरा भला कहते थे, और कहते थे अपने ख़्वाब को बुला कि वह अब तुझे हमारे हाथों से छुड़ाए, जब सख़्तियाँ हद को पहुंची तो हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने यहूदा से कहा ख़ुदा से डरो और इन लोगो को इनकी ज़ियादतियों से रोको, यहूदा ने अपने भाइयों से कहा कि मैंने तुम से एहद किया था याद करो, क़त्ल की नहीं ठहरी थी. तब वो उन हरकतों से बाज़ आए.
और सब की राय यह ठहरी कि उसे अंधे कुंएं में डाल दें (21)
(21) चुनांचे उन्होंने ऐसा किया. यह कुंआ करआन से तीन फ़रसंग के फ़ासले पर बैतुल मक़दिस के आस पास या उर्दुन प्रदेश में स्थित था, ऊपर इसका मुंह तंग था और अन्दर से चौड़ा था, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के हाथ पाँव बांधकर क़मीज़ उतार कर कुंए में छोड़ा. जब वह उसकी आधी गहराई तक पहुंचे, तो रस्सी छोड़ दी ताकि आप पानी में गिरकर हलाक हो जाएं. हज़रत जिब्रील अल्लाह के हुक्म से पहुंचे और उन्होंने आपको एक पत्थर पर बिठा दिया जो कुंए में था और आपके हाथ खोल दिये और चलते वक़्त हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की क़मीज़ जो तावीज़ बनाकर आपके गले में डाल दी थी वह खोलकर आपको पहना दी. उससे अंधेरे कुंए में रौशनी हो गई. इससे मालूम हुआ की अल्लाह तआला के चहीतों और क़रीबी बन्दों के कपड़ों और दूसरी चीज़ों से बरकत हासिल करना शरीअत में साबित और नबियों की सुन्नत है.
और हमने उसे वही (देववाणी) भेजी (22)
(22) हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के वास्ते से, या इल्हाम के तौर पर, कि आप दुखी न हों, हम तुम्हें गहरे कुंए से बलन्द मकाम पर पहुंचाएंगे और तुम्हारे भाइयों को हाजतमन्द बनाकर तुम्हारे पास लाएंगे और उन्हें तुम्हारे हुक्म के मातहत करेंगे और ऐसा होगा.
कि ज़रूर तू उन्हें उनका यह काम जता देगा (23)
(23) जो उन्होंने इस वक़्त तुम्हारे साथ किया.
ऐसे वक़्त कि वो न जानते होंगे (24){15}
(24) कि तुम यूसुफ़ हो, क्योंकि उस वक़्त तुम्हारी शान ऐसी ऊंची होगी. तुम सल्तनत व हुकूमत के तख़्त पर होगे कि वो तुम्हें न पहचानेंगे. अलहासिल, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई उन्हें कुंए में डालकर वापिस हुए और उनकी कमीज़ जो उतार ली थी उसको एक बकरी के बच्चे के ख़ून में रंग कर साथ ले लिया.
और रात हुए अपने बाप के पास रोते हुए आए (25){16}
(25) जब मकान के क़रीब पहुंचे, उनके चीखने की आवाज़ हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम ने सुनी तो घबराकर बाहर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया, ऐ मेरे बेटे, क्या तुम्हें बकरियों मं कुछ नुक़सान हुआ, उन्होंने कहा, नहीं. फ़रमाया, फिर क्या मुसीबत पहुंची. और यूसुफ़ कहाँ है.
बोले ऐ हमारे बाप हम दोड़ करते निकल गए (26)
(26) यानी हम आपस में एक दूसरे से दौड़ करते थे कि कौ़न आगे निकले. इस दौड़ में हम दूर निकल गए.
और यूसुफ़ को अपने सामान के पास छोड़ा तो उसे भेड़िया खा गया और आप किसी तरह हमारा यक़ीन न करेंगे अगरचे हम सच्चे हों (27){17}
(27)क्योंकि न हमारे साथ कोई गवाह है न कोई ऐसी दलील और निशानी है जिससे हमारी सच्चाई साबित हो.
और उसके कुर्ते पर एक झूटा ख़ून लगा लाए(28)
(28) और क़मीज़ को फाड़ना भूल गए. हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम वह क़मीज़ अपने मुबारक चेहरे पर रखकर बहुत रोए और फ़रमाया, अनोखा और होशियार भेड़िया था जो मेरे बेटे को तो खा गया क़मीज़ को फाड़ा तक नहीं. एक रिवायत में यह भी है कि वह भेड़िया पकड़ लाए और हज़रत यअक़ूब अलैहिस्सलाम से कहने लगे कि यह भेड़िया है जिसने यूसुफ़ को खाया है. आपने उस भेड़िये से दरियाफ़्त फ़रमाया. व अल्लाह के हुक्म से बोल उठा कि हुज़ूर न मैंने आपके बेटे को खाया और न नबियों के साथ कोई भेड़िया ऐसा कर सकता है. हज़रत ने उस भेड़िये को छोड़ दिया और बेटो से.
कहा बल्कि तुम्हारे दिलों ने एक बात तुम्हारे वास्ते बना ली है(29)
(29) और वाक़िया इसके ख़िलाफ़ है.
तो सब्र अच्छा और अल्लाह ही से मदद चाहता हूँ उन बातों पर जो तुम बता रहे हो (30){18}
(30) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम तीन रोज़ कुंए में रहे, इसके बाद अल्लाह तआला ने उन्हें उससे निजात अता फ़रमाई.
और एक क़ाफ़िला आया(31)
(31) जो मदयन से मिस्र की तरफ़ जा रहा था, वह रास्ता भटक कर उस जंगल में आ पड़ा जहाँ आबादी से बहुत दूर यह कुंआ था और इसका पानी खारी था, मगर हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की बरकत से मिठा हो गया. जब वह क़ाफ़िले वाले उस कुंएं के क़रीब उतरे तो,
उन्होंने अपना पानी लाने वाला भेजा(32)
(32) जिसका नाम मालिक बिन ज़अर ख़ज़ाई था. यह शख़्स मदयन का रहने वाला था. जब वह कुंएं पर पहुंचा.
तो उसने अपना डोल डाला (33)
(33) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने वह डोल पकड़ लिया और उसमें लटक गए. मालिक ने डोल खींचा. आप बाहर तशरीफ़ लाए. उसने आपका सौन्दर्य और ख़ूबसूरती देखी तो अत्यन्त प्रसन्नता में भरकर अपने यारों को ख़ुशख़बरी दी.
बोला आहा कैसी ख़ुशी की बात है यह तो एक लड़का है और उसे एक पूंजी बनाकर छुपा लिया(34)
(34) हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाई जो इस जंगल में अपनी बकरियाँ चराते थे वो देखभाल रखते थे. आज जो उन्होंने यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को कुंएं में न देखा तो उन्हें तलाश हुई और क़ाफ़िले में पहुंचे. वहाँ उन्होंने मालिक बिन ज़अर के पास हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को देखा तो वो उसे कहने लगे कि यह ग़ुलाम है. हमारे पास से भाग आया है, किसी काम का नहीं है, नाफ़रमान है. अगर ख़रीदों तो हम इसे सस्ता बेच देंगे. फिर उसे कहीं इतनी दूर लेजाना कि उसकी ख़बर भी हमारे सुनने में न आए. हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम उनके डर से ख़ामोश खड़े रहे और कुछ बोले नहीं.
और अल्लाह जानता है जो वो करते हैं (35){19}
(35) जिनकी तादाद क़तादा के क़ौल के मुताबिक़ बीस दिरहम थी.
और भाइयों ने उसे खोटे दामों गिनती के रूपयों पर बेच डाला, और उन्हें उसमें कुछ रग़बत(रूचि) न थी(36){20}
(36) फिर मालि क और उसके साथी हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम को मिस्र मं लाए. उस ज़माने में मिस्र का बादशाह रैयान बिन नज़दान अमलीक़ी था और उसने अपना राज पाट क़ितफ़ीर मिस्त्री के हाथ में दे रखा था. सारे ख़ज़ाने उसी के हाथ में थे. उसको अज़ीज़े मिस्र कहते थे और वह बादशाह का वज़ीरे आज़म था. जब हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम मिस्र के बाज़ार में बेचने के लिये लाए गए तो हर शख़्स के दिल में आपकी तलब पैदा हुई. ख़रीदारों ने क़ीमत बढ़ाना शुरू की यहाँ तक कि आपके वज़न के बराबर सोना, उतनी ही चांदी, उतनी ही कस्तूरी, उतना ही हरीर क़ीमत मुक़र्रर हुई आपका वज़न चार सौ रतल था. और उम्र शरीफ़ उस वक़्त तेरह या सौलह साल की थी अज़ीज़े मिस्र ने इस क़ीमत पर आपको ख़रीद लिया और अपने घर ले आया. दूसरे ख़रीदार उसके मुक़ाबले में ख़ामोश हो गए.
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