सूरए इब्राहीम
सूरए इब्राहीम मक्का में उतरी, इसमें 52 आयतें, सात रूकू हैं
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए इब्राहीम मक्की है सिवाय आयत “अलम तरा इलल्लज़ीना बद्दलू नेअमतल्लाहे कुफ़रन”और इसके बाद वाली आयत के. इस सूरत में सात रूकू, बावन आयतें, आठ सौ इकसठ कलिमे और तीन हज़ार चार सौ चौंतीस अक्षर हैं.
अलिफ़ लाम रा, एक किताब है(2)
(2) यह क़ुरआन शरीफ़.
कि हमने तुम्हारी तरफ़ उतारी कि तुम लोगों को(3)
(3) कुफ़्र व गुमराही व जिहालत व बहकावे की.
अंधेरियों से(4)
(4) ईमान के.
उजाले में लाओ (5)
(5) ज़ुलमात को बहु वचन और नूर को एक वचन से बयान फ़रमाने में मक़सद यह है कि दीने हक़ की राह एक है और कुफ़्र और गुमराही के तरीक़े बहुत.
उनके रब के हुक्म से उसकी राह(6)
(6) यानी दीने इस्लाम.
की तरफ़ जो इज़्ज़त वाला सब ख़ूबियों वाला है अल्लाह{1}कि उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में (7)
(7) वह सब का ख़ालिक़ और मालिक है, सब उसके बन्दे और ममलूक, तो उसकी इबादत सब पर लाज़िम और उसके सिवा किसी की इबादत रवा नहीं.
और काफ़िरों की ख़राबी है एक सख़्त अज़ाब से{2} जिन्हें आख़िरत से दुनिया की ज़िन्दग़ी प्यारी है और अल्लाह की राह से रोकते (8)
(8) और लोगों को दीने इलाही क़ुबूल करने से रोकते है.
और उसमें कजी चाहते है. वो दूर की गुमराही में है(9){3}
(9) कि सच्चाई से बहुत दूर हो गए हैं.
और हमने हर रसूल उसकी क़ौम ही की ज़बान में भेजा (10)
(10) जिसमें वह रसूल बनाकर भेजा गया. चाहे उसकी दअवत आम हो और दूसरी क़ौमो और दूसरे मुल्कों पर भी उसका अनुकरण लाज़िम हो जैसा कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत तमाम आदमियों और जिन्नों बल्कि सारी ख़ल्क की तरफ़ है और आप सब के नबी हैं जैसा कि क़ुरआने करीम में फ़रमाया गया “लियकूना लिलआलमीना नज़ीरा” (यानी उतारा क़ुरआन अपने बन्दे पर जो सारे जगत को डर सुनाने वाला हो. सुरए फ़ुरक़ान, आयत 1).
कि वह उन्हें साफ़ बताए (11)
(11) और जब उसकी क़ौम अच्छी तरह समझ ले तो दूसरी क़ौमों को अनुवाद के ज़रिये से वो आदेश पहुंचा दिया जाएं और उनके मानी समझा दिये जाएं. कुछ मफ़स्सिरों ने इस आयत की तफ़सीर में ये भी फ़रमाया है कि “क़ौमिही” की ज़मीर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरफ़ पलटती है और मानी ये हैं कि हमने हर रसूल को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ज़बान यानी अरबी में वही फ़रमाई. ये मानी भी एक रिवायत में आए हैं कि वही हमेशा अरबी ज़बान में उतरी फिर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम ने अपनी क़ौमों के लिये उनकी ज़बानों में अनुवाद फ़रमा दिया. (इत्क़ान, हुसैनी) इससे मालूम होता है कि अरबी तमाम ज़बानों में सबसे अफ़ज़ल है.
फिर अल्लाह गुमराह करता है जिसे चाहे और वही इज़्ज़त हिकमत वाला है{4} और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानियां(12)
(12) जैसे लाठी और रौशन हथैली वग़ैरह, साफ़ चमत्कार.
लेकर भेजा कि अपनी क़ौम को अंधेरियों से(13)
(13) कुफ़्र की निकाल कर, ईमान के-
उजाले में ला और उन्हें अल्लाह के दिन याद दिला(14)
(14) क़ामूस में है कि अय्यामिल्लाह से अल्लाह की नेअमतें मुराद हैं. हज़रत इब्ने अब्बास व उबई बिन कअब व मुजाहिद व क़तादा ने भी “अय्यामिल्लाह” की तफ़सीर अल्लाह की नेअमतें फ़रमाई. मुक़ातिल का क़ौल है कि “अय्यामिल्लाह” से वो बड़ी बड़ी घटनाएं मुराद हैं जो अल्लाह के हुक्म से घटीं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि अय्यामिल्लाह से वो दिन मुराद हैं जिनमें अल्लाह ने अपने बन्दों पर इनाम किये जैसे कि बनी इस्राईल पर मन्न और सलवा उतारने का दिन, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिये दरिया में रास्ता बनाने का दिन.(ख़ाज़िन, मदारिक व मुफ़र्रदाते राग़िब). इन अय्यामिल्लाह में सब से बड़ी नेअमत के दिन सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की पैदाइश और मेअराज के दिन हैं, उनकी याद क़ायम करना भी इस आयत के हुक्म में दाख़िल हें. इसी तरह और बुज़ुर्गों पर जो अल्लाह की नेअमतें हुई या जिन दिनों में वो महान घटनाएं पेश आई जैसा कि दसवीं मुहर्रम को कर्बला का वाक़िआ, उनकी यादगारें क़ायम करना भी “अल्लाह के दिनों की याद” में शामिल है. कुछ लोग मीलाद शरीफ़, मेअराज शरीफ़ और ज़िक्रे शहादत के दिनों के मख़सूस किये जाने में कलाम करते हैं. उन्हें इस आयत से नसीहत पकड़नी चाहिये.
बेशक उसमें निशानियां हैं हर बड़े सब्र वाले शुक्र करने वाले को{5}और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा(15)
(15)हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का अपनी क़ौम को यह इरशाद फ़रमाना “अल्लाह के दिनों की याद” की तअमील है.
याद करो अपने ऊपर अल्लाह का एहसान जब उसने तुम्हें फ़िरऔन वालों से निजात दी जो तुमको बुरी मार देते थे और तुम्हारे बेटों को ज़िबह करते और तुम्हारी बेटियों को ज़िन्दा रखते और उसमें(16)तुम्हारे रब का बड़ा फ़ज़्ल हुआ{6}
(16) यानी निजात देने में.
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