27 – सूरए नम्ल – पहला रूकू
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
طس ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُّبِينٍ
هُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ
إِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُم بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ
فَلَمَّا جَاءَهَا نُودِيَ أَن بُورِكَ مَن فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
يَا مُوسَىٰ إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّىٰ مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَا مُوسَىٰ لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ
وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ ۖ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ
सूरए नम्ल मक्का में उतरी, इसमें 93 आयतें, 7 रूकू हैं
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए नम्ल मक्के में उतरी, इसमें सात रूकू, तिरानवे आयतें, एक हज़ार तीन सौ सत्रह कलिमे और चार हज़ार सात सौ निनानवे अक्षर हैं.
ये आयतें हैं क़ुरआन और रौशन किताब की(2){1}
(2) जो सच और झूट में फ़र्क़ करती है और जिसमें इल्म और हिकमत के खज़ाने रखे गए हैं.
हिदायत और ख़ुशख़बरी ईमान वालों को{2} जो नमाज़ क़ायम रखते हैं(3)
(3) और उस पर हमेशगी करते हैं और उसकी शर्तों और संस्कार और तमाम अधिकारों की हिफ़ाज़त करते हैं.
और ज़कात देते है(4)
(4) ख़ुश दिली से.
और वो आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं{3} वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते, हमने उनके कौतुक उनकी निगाह में भलें कर दिखाए हैं(5){4}
(5) कि वो अपनी बुराइयों को शवहात यानि वासनाओ के कारण से भलाई जानते हैं.
तो वो भटक रहे हैं, ये वो हैं जिनके लिये बड़ा अज़ाब है(6)
(6) दुनिया में क़त्ल और गिरफ़्तारी.
और यही आख़िरत में सबसे बढ़कर नुक़सान में(7){5}
(7) उनका परिणाम हमेशा का अज़ाब है. इसके बाद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सम्बोधन होता है.
और बेशक तुम क़ुरआन सिखाए जाते हो हिकमत वाले इल्म वाले की तरफ़ से(8){6}
(8) इसके बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का एक वाक़िआ बयान किया जाता है जो इल्म की गहरी बातों और हिकमत की बारीकियों पर आधारित है.
जब कि मूसा ने अपनी घर वाली से कहा(9)
(9) मदयन से मिस्र को सफ़र करते हुए अंधेरी रात में, जबकि बर्फ़ पड़ने से भारी सर्दी पड़ रही थी और रास्ता खो गया था और बीबी साहिबा को ज़चगी का दर्द शुरू हो गया था.
मुझे एक आग नज़र पड़ी है, बहुत जल्द मैं तुम्हारे पास उसकी कोई ख़बर लाता हूँ या उसमें से कोई चमकती चिंगारी लाऊंगा ताकि तुम तापो(10){7}
(10) और सर्दी की तक़लीफ़ से अम्न पाओ.
फिर जब आग के पास आया, निदा (पुकार) की गई कि बरकत दिया गया वह जो इस आग की जलवा-गाह (दर्शन स्थल) में है यानी मूसा और जो उसके आस पास हैं यानी फ़रिश्ते(11)
(11) यह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की फ़ज़ीलत है, अल्लाह तआला की तरफ से बरकत के साथ.
और पाकी है अल्लाह को जो रब है सारे जगत का{8} ऐ मूसा बात यह है कि मैं ही हूँ अल्लाह इज़्ज़त वाला हिकमत वाला{9}और अपना असा डाल दे(12)
(12) चुंनान्चे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से अपनी लाठी डाल दी और वह साँप हो गई.
फिर मूसा ने उसे देखा लहराता हुआ मानो साँप है पीठ फेर कर चला और मुड़कर न देखा, हमने फ़रमाया ऐ मूसा डर नहीं बेशक मेरे हुज़ूर रसूलों को डर नहीं होता(13){10}
(13) न साँप का, न किसी चीज़ का, यानी जब मैं उन्हें अम्न दूँ तो फिर क्या अन्देशा.
हाँ जो कोई ज़ियादती करे(14)
(14) उसको डर होगा और वह भी जब तौबह करे.
फिर बुराई के बाद भलाई से बदले तो बेशक मैं बख़्शने वाला मेहरबान हूँ (15){11}
(15) तौबह क़ुबूल करता हूँ और बख़्श देता हूँ. इसके बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दूसरी निशानी दिखाई गई, फ़रमाया गया,
और अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल निकलेगा सफ़ेद चमकता बे ऐब (16)
(16) यह निशानी है उन…
नौ निशानियों में(17)
(17) जिन के साथ रसूल बना कर भेजे गए हो.
फ़िरऔन और उसकी क़ौम की तरफ, बेशक वो बेहुक्म लोग हैं{12} फिर जब हमारी निशानियाँ आंखें खोलती उनके पास आई(18)
(18) यानी उन्हें चमत्कार दिखाए गए.
बोले यह तो खुला जादू है {13} और उनके इन्कारी हुए और उनके दिलों में उनका यक़ीन था(19)
(19) और वो जानते थे कि बेशक ये निशानियाँ अल्लाह की तरफ़ से हैं लेकिन इसके बावुजूद अपनी ज़बानों से इन्कार करते रहे.
ज़ुल्म और घमण्ड से, तो देखो कैसा अंजाम हुआ फ़सादियों का (20){14}
(20) कि डुबो कर हलाक किये गए.
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