47 सूरए मुहम्मद
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوا عَن سَبِيلِ اللَّهِ أَضَلَّ أَعْمَالَهُمْ
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَآمَنُوا بِمَا نُزِّلَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَهُوَ الْحَقُّ مِن رَّبِّهِمْ ۙ كَفَّرَ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَأَصْلَحَ بَالَهُمْ
ذَٰلِكَ بِأَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا اتَّبَعُوا الْبَاطِلَ وَأَنَّ الَّذِينَ آمَنُوا اتَّبَعُوا الْحَقَّ مِن رَّبِّهِمْ ۚ كَذَٰلِكَ يَضْرِبُ اللَّهُ لِلنَّاسِ أَمْثَالَهُمْ
فَإِذَا لَقِيتُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا فَضَرْبَ الرِّقَابِ حَتَّىٰ إِذَا أَثْخَنتُمُوهُمْ فَشُدُّوا الْوَثَاقَ فَإِمَّا مَنًّا بَعْدُ وَإِمَّا فِدَاءً حَتَّىٰ تَضَعَ الْحَرْبُ أَوْزَارَهَا ۚ ذَٰلِكَ وَلَوْ يَشَاءُ اللَّهُ لَانتَصَرَ مِنْهُمْ وَلَٰكِن لِّيَبْلُوَ بَعْضَكُم بِبَعْضٍ ۗ وَالَّذِينَ قُتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ فَلَن يُضِلَّ أَعْمَالَهُمْ
سَيَهْدِيهِمْ وَيُصْلِحُ بَالَهُمْ
وَيُدْخِلُهُمُ الْجَنَّةَ عَرَّفَهَا لَهُمْ
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِن تَنصُرُوا اللَّهَ يَنصُرْكُمْ وَيُثَبِّتْ أَقْدَامَكُمْ
وَالَّذِينَ كَفَرُوا فَتَعْسًا لَّهُمْ وَأَضَلَّ أَعْمَالَهُمْ
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَرِهُوا مَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأَحْبَطَ أَعْمَالَهُمْ
۞ أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ دَمَّرَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ ۖ وَلِلْكَافِرِينَ أَمْثَالُهَا
ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ مَوْلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَأَنَّ الْكَافِرِينَ لَا مَوْلَىٰ لَهُمْ
सूरए मुहम्मद मदीने में उतरी, इसमें 38 आयतें, चार रूकू हैं,
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) मदनी है. इसमें चार रूकू, अड़तीस आयतें, पाँच सौ अट्ठावन कलिमे और दो हज़ार चार सौ पछतर अक्षर है.
जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह से रोका(2)
(2) यानी जो लोग ख़ुद इस्लाम में दाख़िल न हुए और दूसरों को उन्होंने इस्लाम से रोका.
अल्लाह ने उनके कर्म बर्बाद किये(3){1}
(3) जो कुछ भी उन्होंने किए हों, भूखों को खिलाया हो या क़ैदियों को छुड़ाया हो या ग़रीबों की मदद की हो या मस्जिदे हराम यानी ख़ानए काबा की इमारत में कोई ख़िदमत की हो, सब बर्बाद हुई. आख़िरत में उसका कुछ सवाब नहीं. ज़ुहाक का क़ौल है कि मुराद यह है कि काफ़िरों ने सैयदे आलम सल्ल्ल्लाहो अलैहे वसल्लम के लिये जो मक्र सोचे थे और बहाने बनाए थे अल्लाह तआला ने उनके वो तमाम काम बातिल कर दिये.
और जो ईमान लाए और अच्छे काम किये और उसपर ईमान लाए जो मुहम्मद पर उतारा गया(4)
(4) यानी क़ुरआने पाक.
और वही उनके रब के पास से हक़ है अल्लाह ने उनकी बुराइयाँ उतार दीं और उनकी हालतें संवार दीं(5){2}
(5) दीन के कामों में तौफ़ीक़ अता फ़रमाकर और दुनिया में उनके दुश्मनों के मुक़ाबिल उनकी मदद फ़रमाकर. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो तआला अन्हुमा ने फ़रमाया कि उनकी ज़िन्दगी के दिनों में उनकी हिफ़ाज़त फ़रमाकर कि उनसे कोई गुनाह ने हो.
यह इसलिये कि काफ़िर बातिल (असत्य) के पैरो (अनुयायी) हुए और ईमान वालों ने हक़ (सत्य) की पैरवी (अनुकरण) की जो उनके रब की तरफ़ से है (6)
(6) यानी क़ुरआन शरीफ़
अल्लाह लोगों से उनके अहवाल यूंही बयान फ़रमाता है(7){3}
(7) यानी पक्षों के कि काफ़िरों के कर्म अकारत और ईमान वालों की ग़ल्तियाँ भी माफ़.
तो जब काफ़िरों से तुम्हारा सामना हो(8)
(8) यानी जंग हो.
तो गर्दनें मारना है(9)
(9) यानी उनको क़त्ल करो.
यहाँ तक कि जब उन्हें ख़ूब क़त्ल कर लो(10)
(10) यानी बहुतात से क़त्ल कर चुको और बाक़ी को क़ैद करने का मौक़ा आ जाए.
तो मज़बूत बांधो, फिर उसके बाद चाहे एहसान करके छोड़ दो चाहे फिदिया ले लो(11)
(11) दोनों बातों का इख़्तियार है. मुश्रिकों के क़ैदियों का हुक्म हमारे नज़्दीक यह है कि उन्हें क़त्ल किया जाए या ग़ुलाम बना लिया जाए और एहसान से छोड़ना और फ़िदिया लेना जो इस आयत में बयान किया गया है वह सूरए बराअत की आयत “उक़्तलुल मुश्रिकीन” से मन्सूख़ हो गया.
यहाँ तक कि लड़ाई अपना बोझ रख दे(12)
(12) यानी जंग ख़त्म हो जाए इस तरह कि मुश्रिक इताअत क़ुबूल कर लें और इस्लाम लाएं.
बात यह है, और अल्लाह चाहता तो आप ही उनसे बदला ले लेता (13)
(13) बग़ैर क़िताल के उन्हें ज़मीन में धंसा कर या उन पर पत्थर बरसाकर या और किसी तरह.
मगर इसलिये(14)
(14) तुम्हें क़िताल का हुक्म दिया.
कि तुम में एक को दूसरे से जांचे (15)
(15) क़िताल में ताकि मुसलमान मक़तूल सवाब पाएं और काफ़िर अज़ाब.
और जो अल्लाह की राह में मारे गए अल्लाह हरगिज़ उनके अमल ज़ाया न फ़रमाएगा(16){4}
(16) उनके कर्मों का सवाब पूरा पूरा देगा.
जल्द उन्हें राह देगा(17)
(17) ऊंचे दर्जों की तरफ़.
और उनका काम बना देगा{5} और उन्हें जन्नत में ले जाएगा उन्हें उसकी पहचान करा दी है (18){6}
(18) वो जन्नत की मंज़िलों में अजनबी और अनजान की तरह न पहुंचेगें जो किसी जगह जाता है तो उसको हर चीज़ पूछने की हाजत होती है. बल्कि वो जाने पहचाने अन्दाज़ में दाख़िल होंगे अपनी मंज़िलों और ठिकानों को पहचानते होंगे अपनी बीवी और ख़ादिमों को जानते होंगे. हर चीज़ का मौक़ा उनकी जानकारी में होगा जैसे कि वो हमेशा से यहीं के रहने वाले हों.
ऐ ईमान वालो अगर तुम ख़ुदा के दीन की मदद करोगे अल्लाह तुम्हारी मदद करेगा(19)
(19) तुम्हारे दुश्मन के मुक़ाबिल.
और तुम्हारे क़दम जमा देगा(20){7}
(20) जंग में और हुज्जते इस्लाम पर और पुले सिरात पर.
और जिन्होंने कुफ़्र किया तो उनपर तबाही पड़े और अल्लाह उनके अअमाल (कर्म) बर्बाद करे {8} यह इसलिये कि उन्हें नागवार हुआ जो अल्लाह ने उतारा (21)
(21) यानी क़ुरआने पाक. इसलिये कि उसमें शहवात और लज़्ज़तो को छोड़ने और फ़रमाँबरदारी और इबादतों में मेहनत उठाने के आदेश है जो नफ़्स पर भारी गुज़रते हैं.
तो अल्लाह ने उनका किया धरा अकारत किया {9} तो क्या उन्हों ने ज़मीन में सफ़र न किया कि देखते उनसे अगलों का(22)
(22) यानी पिछली उम्मतों का.
कैसा अंजाम हुआ, अल्लाह ने उनपर तबाही डाली(23)
(23) कि उन्हें और उनकी औलाद और उनके माल को सब को हलाक कर दिया.
और उन काफ़िरों के लिये भी वैसी कितनी ही हैं (24){10}
(24) यानी अगर ये काफ़िर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान न लाएं तो उनके लिये पहले जैसी बहुत सी तबाहियाँ हैं.
यह(25)
(25) यानी मुसलमानों का विजयी होना और काफ़िरों का पराजित और ज़लील होना.
इसलिये कि मुसलमानों का मौला अल्लाह है और काफ़िरों का कोई मौला नहीं{11}
Filed under: zl-47-Surah-Al-Muhammad | Tagged: quran in hindi, surah muhammad in hindi | 3 Comments »