43 सूरए ज़ुख़रूफ़ -छटा रूकू
۞ وَلَمَّا ضُرِبَ ابْنُ مَرْيَمَ مَثَلًا إِذَا قَوْمُكَ مِنْهُ يَصِدُّونَ
وَقَالُوا أَآلِهَتُنَا خَيْرٌ أَمْ هُوَ ۚ مَا ضَرَبُوهُ لَكَ إِلَّا جَدَلًا ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ خَصِمُونَ
إِنْ هُوَ إِلَّا عَبْدٌ أَنْعَمْنَا عَلَيْهِ وَجَعَلْنَاهُ مَثَلًا لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ
وَلَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَا مِنكُم مَّلَائِكَةً فِي الْأَرْضِ يَخْلُفُونَ
وَإِنَّهُ لَعِلْمٌ لِّلسَّاعَةِ فَلَا تَمْتَرُنَّ بِهَا وَاتَّبِعُونِ ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ
وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ الشَّيْطَانُ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ
وَلَمَّا جَاءَ عِيسَىٰ بِالْبَيِّنَاتِ قَالَ قَدْ جِئْتُكُم بِالْحِكْمَةِ وَلِأُبَيِّنَ لَكُم بَعْضَ الَّذِي تَخْتَلِفُونَ فِيهِ ۖ فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ
إِنَّ اللَّهَ هُوَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ
فَاخْتَلَفَ الْأَحْزَابُ مِن بَيْنِهِمْ ۖ فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ عَذَابِ يَوْمٍ أَلِيمٍ
هَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا السَّاعَةَ أَن تَأْتِيَهُم بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
الْأَخِلَّاءُ يَوْمَئِذٍ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ إِلَّا الْمُتَّقِينَ
और जब मरयम के बेटे की मिसाल बयान की जाए जभी तुम्हारी क़ौम उससे हंसने लगते हैं(1){57}
(1) जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने क़ुरैश के सामने यह आयत “वमा तअबुदूना मिन दूनिल्लाहे हसबो जहन्नमा” पढ़ी जिसके मानी ये हैं कि ऐ मुश्रिको, तुम और जो चीज़ अल्लाह के सिवा तुम पूजते हो सब जहन्नम का ईधन है, यह सुनकर मुश्रिकों को बहुत ग़ुस्सा आया और इब्ने ज़ुबअरी कहने लगा या मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) क्या यह ख़ास हमारे और हमारे मअबूदों ही के लिये है या हर उम्मत और गिरोह के लिये ? सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि यह तुम्हारे और तुम्हारे मअबूदों के लिये भी है और सब उम्मतों के लिये भी. इस पर उसने कहा कि आपके नज़्दीक ईसा बिन मरयम नबी हैं और आप उनकी और उनकी वालिदा की तारीफ़ करते हैं और आपको मालूम है कि ईसाई इन दोनों को पूजते हैं और हज़रत उज़ैर और फ़रिश्ते भी पूजे जाते हैं यानी यहूदी वग़ैरह उनको पूजते हैं तो अगर ये हज़रात (मआज़अल्लाह) जहन्नम में हों तो हम राज़ी हैं कि हम और हमारे मअबूद भी उनके साथ हों और यह कह कर काफ़िर ख़ूब हंसे. इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी “इन्नल लज़ीना सबक़त लहुम मिन्नल हुस्ना उलाइका अन्हा मुब्अदून” यानी बेशक वो जिनके लिये हमारा वादा भलाई का हो चुका वो जहन्नम से दूर रखे गए हैं. (सूरए अंबिया, आयत 101) और यह आयत उतरी “व लम्मा दुरिबबनो मरयमा मसलन इज़ा क़ौमुका मिन्हो यसिद्दून” यानी जब इबने मरयम की मिसाल बयान की जाए जभी तुम्हारी क़ौम (के लोग) उससे हंसने लगते हैं. (सूरए ज़ुख़रूफ़, आयत 57) जिसका मतलब यह है कि जब इब्ने ज़ुबअरी ने अपने मअबूदों के लिये हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की मिसाल बयान की और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से झगड़े कि ईसाई उन्हें पूजते हैं तो क़ुरैश उसकी इस बात पर हंसने लगे.
और कहते हैं क्या हमारे मअबूद बेहतर हैं या वो (2)
(2) यानी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम, मतलब यह था कि आपके नज़्दीक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बेहतर है तो अगर (मआज़ल्लाह) वह जहन्नम में हुए तो हमारे मअबूद यानी बुत भी हुआ करें कुछ पर्वाह नहीं. इस पर अल्लाह तआला फ़रमाता है.
उन्होंने तुम से यह न कही मगर नाहक़ झगड़े को(3)
(3) यह जानते हुए भी कि वो जो कुछ कह रहे हैं बातिल है और आयत “इन्नकुम वमा तअबुदूना मिन दूनिल्लाहे” से सिर्फ बुत मुराद हैं हज़रत ईसा व हज़रत उज़ैर और फ़रिश्ते कोई मुराद नहीं लिये जा सकते. इब्ने ज़ुबअरी अरब था ज़बान का जानने वाला था यह उसको ख़ूब मालूम था कि “मा-तअबुदना” मैं जो “मा” है उसके मानी चीज़ के हैं इससे बेज़ान बेअक़ल मुराद होते हैं लेकिन इसके बावुजूद उसका अरब की ज़बान के उसूल से जाहिल बनकर हज़रत ईसा और हज़रत उज़ैर और फ़रिश्तों को उसमें दाख़िल करना कट हुज्जती और अज्ञानता है.
बल्कि वो हैं झगड़ालू लोग (4) {58}
(4) बातिल के दरपै होने वाले. अब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की निस्बत इरशाद फ़रमाया जाता है.
वह तो नहीं मगर एक बन्दा जिस पर हमने एहसान फ़रमाया (5)
(5) नबुव्वत अता फ़रमा कर.
और उसे हमने बनी इस्राईल के लिये अजीब नमूना बनाया(6) {59}
(6) अपनी क़ुदरत का कि बिना बाप के पैदा किया.
और अगर हम चाहते तो (7)
(7) ऐ मक्का वालों हम तुम्हें हलाक कर देते और —
ज़मीन में तुम्हारे बदले फ़रिश्ते बसाते(8){60}
(8) जो हमारी इबादत और फ़रमाँबरदारी करते.
और बेशक ईसा क़यामत की ख़बर है(9)
(9) यानी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का आसमान से उतरना क़यामत की निशानियों में से है.
तो हरगिज़ क़यामत में शक न करना और मेरे पैरो (अनुयायी) होना (10)
(10) यानी मेरी हिदायत व शरीअत का पालन करना.
यह सीधी राह है {61} और हरगिज़ शैतान तुम्हें न रोक दे(11)
(11) शरीअत के पालन या क़यामत के यक़ीन या दीने इलाही पर क़ायम रहने से.
बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है {62} और जब ईसा रौशन निशानियाँ (12)
(12) यानी चमत्कार.
लाया उसने फ़रमाया मैं तुम्हारे पास हिकमत (बोध) लेकर आया(13)
(13) यानी नबुव्वत और इन्जील के आदेश.
और इस लिये मैं तुम से बयान कर दूं कुछ वो बातें जिन में तुम इख़्तिलाफ़ रखते हो(14)
(14) तौरात के आदेशों में से.
तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो {63} बेशक अल्लाह मेरा रब और तुम्हारा रब तो उसे पूजो, यह सीधी राह है (15) {64}
(15) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का कलामे मुबारक पूरा हो चुका. आगे ईसाईयों के शिर्को का बयान किया जाता है.
फिर वो गिरोह आपस में मुख़्तलिफ़ हो गए(16)
(16) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद उनमें से किसी ने कहा कि ईसा ख़ुदा थे किसी ने कहा कि ख़ुदा के बेटे, किसी ने कहा तीन में के तीसरे. ग़रज़ ईसाई फ़िर्क़ों में बट गए यअक़ूबी, नस्तूरी, मलकानी, शमऊनी.
तो ज़ालिमों की ख़राबी है(17)
(17) जिन्हों ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुफ़्र की बातें कहीं.
एक दर्दनाक दिन के अज़ाब से (18) {65}
(18) यानी क़यामत के दिन के.
काहे के इन्तिज़ार में हैं मगर क़यामत के कि उनपर अचानक आ जाए और उन्हें ख़बर न हो {66} गहरे दोस्त उस दिन एक दूसरे के दुश्मन होंगे मगर परहेज़गार (19) {67}
(19) यानी दीनी दोस्ती और वह महब्बत जो अल्लाह तआला के लिये है, बाक़ी रहेगी. हज़रत अली मुर्तजा़ रदियल्लाहो अन्हो से इस आयत की तफ़सीर में रिवायत है आपने फ़रमाया दो दोस्त मूमिन और दो दोस्त काफ़िर, मूमिन दोस्तों में एक मर जाता है तो अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करता है या रब फ़लाँ मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमाँबरदारी का और नेकी करने का हुक्म देता था और मुझे बुराई से रोकता था और ख़बर देता था कि मुझे तेरे हुज़ूर हाज़िर होना है. यारब उसको मेरे बाद गुमराह न कर और उसको हिदायत दे जैसी मेरी हिदायत फ़रमाई और उसका सम्मान कर जैसा मेरा सम्मान फ़रमाया. जब उसका मूकिन दोस्त मर जाता है तो अल्लाह तआला दोनों को जमा करता है और फ़रमाता है कि तुम में हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो हर एक कहता है कि यह अच्छा भाई है अच्छा दोस्त है अच्छा साथी है. और दो काफ़िर दोस्तों में से जब एक मर जाता है तो दुआ करता है यारब फ़लाँ मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमाँबरदारी से मना करता था और बुराई का हुक्म देता था नेकी से रोकता था और ख़बर देता था कि मुझे तेरे समक्ष हाज़िर नहीं होना है तो अल्लाह तआला फ़रमाता है कि तुम में से हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो उनमें से एक दूसरे को कहता है बुरा भाई बुरा दोस्त बुरा साथी.
Filed under: zh-43-Surah-Al-Zukhruf | Tagged: kanzul iman in hindi, quran tafseer in hindi, quraninhindi, surah al zukhruf in hindi | Leave a comment »