17 सूरए बनी इस्राईल-बारहवाँ रूकू

17 सूरए बनी इस्राईल-बारहवाँ रूकू

और बेशक हमने मूसा को नौ रौशन निशानियां दीं(1)
(1)  हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, वो नौ निशानियाँ ये हैं: असा (लाठी), यदे बैज़ा (चमकती रौशन हथैली), वह उक़दा जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़बाने मुबारक में था, फिर अल्लाह तआला ने उसको हल फ़रमाया, दरिया का फटना  उसमें रस्ते बनाना, तूफ़ान, टिड्डी, घुन, मैंढक, ख़ून. इन में से आख़िरी छ का विस्तृत बयान नवें पारे के छटे रूकू में गुज़र चुका.

तो बनी इस्राईल से पूछो जब वह (2)
(2) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम.

उनके पास आया तो उससे फ़िरऔन ने कहा ऐ मूसा मेरे ख़याल में तो तुमपर जादू हुआ(3){101}
(3) यानी मआज़ल्लाह जादू के असर से तुम्हारी अक़्ल जगह पर न रही. या “मसहूर” जादूगर के अर्थ में है और मतलब यह है कि ये चमत्कार जो आप दिखाते हैं, ये जादू के क़रिश्मे हैं. इसपर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने–

कहा यक़ीनन तू ख़ूब जानता है(4)
(4) ऐ दुश्मन फ़िरऔन.

कि उन्हें न उतारा मगर आसमानो और ज़मीन के मालिक ने दिल की आँखें खोलने वालियां(5)
(5) कि इन आयतों से मेरी सच्चाई और मेरा जादूगर न होना और इन आयतों का ख़ुदा की तरफ़ से होना ज़ाहिर है.

और मेरे गुमान में तो ऐ फ़िरऔन तू ज़रूर हलाक होने वाला है(6){102}
(6) यह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ़ से फ़िरऔन के उस क़ौल का जवाब है कि उसने आपको मसहूर कहा था मगर उसका क़ौल झूटा था जिसे वह ख़ुद भी जानता था. मगर उसकी कटुता ने उससे कहलाया और आपका इरशाद था सच्चा और सही. चुनांचे वैसा ही वाक़े हुआ.

तो उसने चाहा कि उनको(7)
(7) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को और उनकी क़ौम को, मिस्र की.

ज़मीन से निकाल दे, तो हमने उसे और उसके साथियों को सबको डुबा दिया(8){103}
(8) और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को और उनकी क़ौम को हमने सलामती अता फ़रमाई.

और इसके बाद हमने बनी इस्राईल से फ़रमाया इस ज़मीन में बसो(9)
(9) यानी मिस्र और शाम की ज़मीन में. (ख़ाज़िन व क़र्तबी)

फिर जब आख़िरत का वादा आएगा (10)
(10) यानी क़यामत.

हम तुम सबको घाल मेल ले आएंगे(11) {104}
(11) क़यामत के मैदान में, फिर नेकों और बुरों को एक दूसरे से अलग कर देंगे.

और हमने क़ुरआन को हक़ (सत्य)ही के साथ उतारा और हक़ ही के साथ उतरा(12)
(12) शैतानों को मिलौनी से मेहफ़ूज़ रहा और किसी फेर बदल ने उसमें राह न पाई. तिबियान में है कि हक़ से मुराद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ज़ाते मुबारक है. आयत का यह वाक्य हर एक बीमारी के लिये आज़माया हुआ इलाज है. बीमारी वाली जगह पर हाथ रखकर इसे पढ़कर फूंक दिया जाए तो अल्लाह के हुक्म से बीमारी दूर हो जाती है. मुहम्मद बिन समाक बीमार हुए तो उनके अनुयायी उनका क़ारूरा (पेशाब) लेकर एक ईसाई चिकित्सक के पास इलाज के लिये गए. राह में एक साहब मिले. बहुत सुन्दर और अच्छे लिबास में, उनके जिस्में मुबारक से निहायत पाकीज़ा ख़ुश्बू आ रही थी. उन्होंने फ़रमाया, कहाँ जाते हो. उन लोगो ने कहा इब्ने समाक का क़ारूरा दिखाने के लिये अमुक चिकित्सक के पास जाते हैं. उन्होंने फ़रमाया, सुब्हानल्लाह, अल्लाह के वली के लिये ख़ुदा के दुश्मन से मदद चाहते हो, क़ारूरा फैंको, वापस जाओ और उनसे कहो कि दर्द की जगह पर हाथ रखकर पढ़ो  “बिल्हक़्क़े अन्ज़लनाहो व बिल्हक़्क़े नज़ल” यह फ़रमाकर वह बुज़ुर्ग ग़ायब हो गए. उन लोगों ने वापस होकर इब्ने समाक से वाक़िआ बयान किया. उन्होंने दर्द की जगह पर हाथ रखकर ये कलिमे पढ़े, फौरन आराम हो गया और इब्ने समाक ने फ़रमाया कि वह हज़रत ख़िज्र अलैहिस्सलाम थे.

और हमने तुम्हें न भेजा मगर ख़ुशी और डर सुनाता{105} और क़ुरआन हमने अलग अलग करके (13)
(13) तेईस साल के अर्से में.

उतारा कि तुम इसे लोगों पर ठहर ठहर कर पढ़ो(14)
(14) ताकि उसके मज़ामीन आसानी से सुनने वालों की समझ में बैठ जाएं.

और हमने इसे बतदरीज रह रह कर उतारा(15) {106}
(15) मसलिहतो और ज़रूरत के अनुसार.

तुम फ़रमाओ कि तुम लोग उसपर ईमान लाओ या न लाओ (16)
(16) और अपने लिये आख़िरत की नेअमत इख़्तियार करो या जहन्नम का अज़ाब.

बेशक वो जिन्हें इसके उतरने से पहले इल्म मिला(17)
(17) यानी किताबियों में के ईमानदार लेगा जो रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तशरीफ़ आवरी से पहले इन्तिज़ार  और जुस्तजू में थे. हुज़ूर अलैहिस्सलातो वसल्लाम के तशरीफ़ लाने के बाद इस्लाम लाए जैसा कि ज़ैद बिन अम्र बिन नुफ़ैल और सलमान फ़ारसी और अबू ज़र इत्यादि. रदियल्लाहो अन्हुम.

जब उनपर पढ़ा जाता है ठोड़ी के बल सज़्दे में गिर पड़ते हैं{107} और कहते हैं, पाकी है हमारे रब को बेशक हमारे रब का वादा पूरा होना था(18){108}
(18) जो उसने अपनी पहली किताबों में फ़रमाया था कि आख़िरी ज़माने के नबी मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को भेजेंगे.

और ठोड़ी के बल गिरते हैं(19)
(19) अपने रब के समक्ष विनम्रता और नर्म दिली से.

रोते हुए और यह क़ुरआन उनके दिल का झुकना बढ़ाता है(20){109}
(20) क़ुरआने करीम की तिलावत के वक़्त रोना मुस्तहब है. तिरमिज़ी और नसाई की हदीस में है कि वह शख़्स जहन्नम में न जाएगा जो अल्लाह के डर से रोए.

तुम फ़रमाओ अल्लाह कहकर पुकारो या रहमान कहकर,जो कहकर पुकारो सब उसी के अच्छे नाम हैं(21)
(21) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि एक रात सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने लम्बा सज्दा किया और अपने सज्दे में या अल्लाहो या रहमान फ़रमाते रहे. अबू जहल ने सुना तो कहने लगा कि मुहम्मद हमें तो कई मअबूदों के पूजने से मना करते हैं और अपने आप दो को पुकारते हैं, अल्लाह को और रहमान को. इसके जवाब में यह आयत उतरी और बताया गया कि अल्लाह और रहमान दो नाम एक ही मअबूदे बरहक़ के हैं चाहे किसी नाम से पुकारों.

और अपनी नमाज़ न बहुत आवाज़ से पढ़ो न बिल्कुल आहिस्ता और इन दोनों के बीच में रास्ता चाहो(22){110}
(22) यानी बीच की आवाज़ से पढ़ो जिससे मुक़्तदी आसानी से सुन लें. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मक्कए मुकर्रमा में जब अपने सहाबा की इमामत फ़रमाते तो क़िरअत बलन्द आवाज़ से फ़रमाते. मुश्रिक सुनते तो क़ुरआने पाक को और उसके उतारने वाले को और जिन पर  उतरा, सबको गालियाँ देते. इसपर यह आयत उतरी.

और  यूं कहो सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने अपने लिये बच्चा इख़्तियार न फ़रमाया(23)
(23) जैसा कि यहूदियों और ईसाइयों का गुमान है.

और बादशाही में कोई उसका शरीक नहीं (24)
(24) जैसा कि मुश्रिक लोग कहते हैं.

और कमज़ोरी से कोई उसका हिमायती नहीं(25)
(25) यानी वह कमज़ोर नहीं कि उसको किसी हिमायती या मददगार की ज़रूरत हो.

और उसके बड़ाई बोलने को तकबीर कहो(26){111}
(26) हदीस शरीफ़ में है, क़यामत के दिन जन्नत की तरफ़ सबसे पहले वही बुलाए जाएंगे जो हर हाल में अल्लाह की तअरीफ़ करते हैं. एक और हदीस में है कि बेहतरीन दुआ “अल्हम्दु लिल्लाह” है और बेहतरीन ज़िक्र “ला इलाहा इल्लल्लाहो” है. (तिरमिज़ी) मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है : “ला इलाहा इल्लल्लाहो, अल्लाहो अकबर, सुब्हानल्लाहे, अल्हम्दु लिल्लाहे” इस आयत का नाम आयतुल इज़्ज़ है. बनी अब्दुल मुत्तलिब के बच्चे जब बोलना शुरू करते थे तो उनको सब से पहले यही आयत “क़ुलिल हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी” सिखाई जाती थी.

Leave a comment