16 सूरए नहल

16 सूरए नहल  -पहला रूकू
सूरए नहल मक्का में उतरी, इसमें 128 आयतें और 16 रूकू हैं.


अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)

(1) सूरए नहल मक्की है, मगर आयत “फ़आक़िबू बिमिस्ले मा ऊक़िब्तुम बिही” से आख़िर सूरत तक जो आयतें हैं, वो मदीनए तैय्यिबह में उतरीं. इसमें और अक़वाल भी हैं. इस सूरत में सोलह रूकू, 128 आयते, दो हज़ार आठ सौ चालीस कलिमे और सात हज़ार सात सौ सात अक्षर हैं.

अब आता है अल्लाह का हुक्म तो इसकी जल्दी न करो(2)
(2) जब क़ाफ़िरों ने वादा किये गए अज़ाब के उतरने और क़यामत के क़ायम होने की जल्दी झुटलाने और मज़ाक के तौर पर की. इसपर यह आयत उतरी और बता दिया कि जिसकी तुम जल्दी करते हो वह कुछ दूर नहीं, बहुत ही क़रीब है और अपने वक़्त पर यक़ीनन होगा और जब होगा तो तुम्हें उससे छुटकारे की कोई राह न मिलेगी और वो बुत जिन्हें तुम पूजते हो, तुम्हारे कुछ काम न आएंगे.

पाकी और बरतरी है उसे उन शरीकों से(3){1}
(3) वह वाहिद है, उसका कोई शरीक नहीं.

फ़रिश्तों को ईमान की जान यानी वही (देववाणी) लेकर अपने जिन बन्दों पर चाहे उतारता है(4)
(4)और उन्हें नबुव्वत और रिसालत के साथ बुज़ुर्गी देता हैं.

कि डर सुनाओ कि मेरे सिवा किसी की बन्दगी नहीं तो मुझसे डरो(5){2}
(5) और मेरी ही इबादत करो और मेरे सिवा किसी को न पूजो, क्योंकि मैं वह हूँ कि …

उसने आसमान और ज़मीन बजा बनाए(6)
(6) जिनमें उसकी तौहीद की बेशुमार दलीलें हैं.

वह उनके शिर्क से बरतर {उत्तम} है {3}  (उसने) आदमी को एक निधरी बूंद से बनाया(7)
(7) यानी मनी या वीर्य से, जिसमें न हिस है न हरकत, फिर उसको अपनी भरपूर क़ुव्वत से इन्सान बनाया, शक्ति और ताक़त अता की. यह आयत उबई बिन ख़लफ़ के बारे में उतरी जो मरने के बाद ज़िन्दा होने का इन्कार करता था. एक बार वह किसी मुर्दे की गली हुई हड्डी उठा लाया और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहने लगा कि आपका यह ख़याल है कि अल्लाह तआला इस हड्डी को ज़िन्दगी देगा. इसपर यह आयत उतरी और निहायत नफ़ीस जवाब दिया गया कि हड्डी तो कुछ न कुछ शारीरिक शक्ल रखती है. अल्लाह तआला तो वीर्य के एक छोटे से बे हिसो हरकत क़तरे से तुझ जैसा झगड़ालू इन्सान पैदा कर देता है. यह देखकर भी तू उसकी क़ुदरत पर ईमान नहीं लाता.

तो जभी झगड़ालू है {4} और चौपाए पैदा किये उनमें तुम्हारे लिये गर्म लिबास और फ़ायदे हैं(8)
(8) कि उनकी नस्ल से दौलत बढ़ाते हो, उनके दूध पीते हो और उनपर सवारी करते हो.

और उनमें से खाते हो{5} और तुम्हारा उनमें तजम्मुल (वैभव) है जब उन्हें शाम को वापस लाते हो और जब चरने को छोड़ते हो{6} और वो तुम्हारे बोझ उठाकर ले जाते है ऐसे शहर की तरफ़ कि उस तक न पहुंचते मगर अधमरे होकर, बेशक तुम्हारा रब बहुत मेहरबान रहमत वाला है(9){7}
(9) कि उसने तुम्हारे नफ़े और आराम के लिये ये चीज़ें पैदा कीं.

और घोड़े और खच्चर और गधे कि उनपर सवार हो और ज़ीनत (शोभा) के लिये और वह पैदा करेगा(10)
(10) ऐसी अजीब और अनोखी चीज़ें.

जिसकी तुम्हे ख़बर नहीं(11){8}
(11)  इसमें वो तमाम चीज़ें आ गई जो आदमी के नफ़े, राहत, आराम और आसायश के काम आती हैं और उस वक़्त तक मौजूद नहीं हुई थीं. अल्लाह तआला को उनका आइन्दा पैदा करना मन्ज़ूर था जैसे कि स्टीमर, रेलें, मोटर ,हवाई जहाज़, विद्युत शक्ति से काम करने वाले आले व उपकरण, भाप और बिजली से चलने वाली मशीनें, सूचना और प्रसारण और ख़बर रसानी, दूर संचार के सामान और ख़ुदा जाने इसके अलावा उसको क्या क्या पैदा करना मन्ज़ूर है.

और बीच की राह (12)
(12) यानी सीधा सच्चा रास्ता और दीने इस्लाम, क्योंकि दो जगहों के बीच जितनी राहें निकाली जाएं, उनमें जो बीच की राह होगी, सीधी होगी.

ठीक अल्लाह तक है और कोई राह टेढ़ी है(13)
(13) जिसपर चलने वाला अस्ल मंज़िल को नहीं पहुंच सकता. कुफ़्र की सारी राहें ऐसी ही हैं.

और चाहता तो तुम सब को राह पर लाता(14){9}
(14) सीधे रास्ते पर.

16 सूरए नहल – दूसरा रूकू

16 सूरए नहल – दूसरा रूकू


वही है जिसने आसमान से पानी उतारा उससे तुम्हारा पीना है और उससे दरख़्त हैं जिन से चराते हो(1){10}
(1) अपने जानवरों को और अल्लाह तआला.

उस पानी से तुम्हारे लिये खेती उगाता है और जेतून और खजूर और अंगूर और हर क़िस्म के फल(2)
(2) मुख्तलिफ़ सूरत व रंग, मज़े, बू, ख़ासियत वाले कि सब एक ही पानी से पैदा होते हैं और हर एक के गुण दूसरे से जुदा हैं. ये सब अल्लाह की नेअमतें हैं.

बेशक उसमें निशानी है(3)
(3) और उसकी क़ुदरत और हिकमत और वहदानियत की.

ध्यान करने वालों को{11} और उसने तुम्हारे लिये मुसख़्ख़्रर किये रात और दिन और सूरज और चांद और सितारे उसके हुक्म के बांधे हैं, बेशक आयत में निशानियां है अक़्लमंदों को (4){12}
(4) जो इन चीज़ों में ग़ौर करके समझें कि अल्लाह तआला ही इख़्तियार वाला और करने वाला है और सब ऊंच नीच उसकी क़ुदरत और शक्ति के अन्तर्गत है.

और वह जो तुम्हारे लिये ज़मीन में पैदा किया रंग बिरंग (5)
(5) चाहे जानदारों की क़िस्म से हो या दरख़्तों की या फलों की.

बेशक उसमें निशानी है  याद करने वालों को{13} और वही है जिसने तुम्हारे लिये दरिया मुसख़्ख़र किया(6)
(6)  कि उसमें किश्तियों पर सवार होकर सफ़र करो या ग़ौते लगा कर, उसकी तह तक पहुंचों या उस में से शिकार करो.

कि उसमें से ताज़ा गोश्त खाते हो(7)
(7) यानी मछली.

और उसमें से गहना निकालते हो जिसे पहनते हो(8)
(8) यानी मोती और मूंगा.

और तू उसमें से किश्तियां देखे कि पानी चीर कर चलती हैं और इसलिये कि तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो और कहीं एहसान मानो {14} और उसने ज़मीन में लंगर डाले(9)
(9) भारी पहाड़ों के.

कि कहीं तुम्हें लेकर न कांपे और नदियां और रस्ते कि तुम राह पाओ(10){15}
(10) अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों की तरफ़.

और अलामतें (लक्षण) (11)
(11) बनाई, जिन से तुम्हें रस्ते का पता चले.

और सितारे से वो राह पाते हैं(12){16}
(12) ख़ुश्की और तरी और इससे उन्हें रस्ते और क़िबले की पहचान होती है.

तो क्या जो बनाए (13)
(13) इन सारी चीज़ों के अपनी क़ुदरत व हिकमत से यानी अल्लाह तआला.

वह ऐसा हो जाएगा जो न बनाए (14)
(14) किसी चीज़ को और आजिज़ व बेक़ुदरत हो जैसे कि बुत, तो आक़िल को कब सज़ावार है कि ऐसे ख़ालिक़ और मालिक की इबादत छोड़कर आजिज़ और बेइख़्तियार बुतों की पूजा करे या उन्हें इबादत में उसका शरीक ठहराए.

तो क्या तुम नसीहत नहीं मानते{17} और अगर अल्लाह की नेअमतें गिनो तो उन्हें शुमार न कर सकोगे(15)
(15) उनके शुक्र की अदायगी की बात तो दूर रही.

बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है(16){18}
(16) कि तुम्हारे शुक्र की अदायगी से मअज़ूर होने के बावुजूद अपनी नेअमतों से तुम्हें मेहरूम नहीं फ़रमाता.

और अल्लाह जानता है(17)
(17) तुम्हारी सारी कहनी और करनी.

जो छुपाते और ज़ाहिर करते हो {19} और अल्लाह के सिवा जिन को पूजते हैं(18)
(18) यानी बुतों को.

वो कुछ भी नहीं बनाते और (19)
(19) बनाएं क्या, कि-

वो खुद बनाए हुए हैं(20) {20}
(20) और अपने अस्तित्व में बनाने वाले के मोहताज और वो-

मुर्दे हैं(21)
(21) बेजान.

ज़िन्दा नहीं और उन्हें ख़बर नहीं लोग कब उठाए जाएंगे(22){21}
(22) तो ऐसे मजबूर और बेजान बेइल्म मअबूद कैसे हो सकते हैं. इन खुली दलीलों से साबित हो गया कि-

16 सूरए नहल -तीसरा रूकू

16 सूरए  नहल  -तीसरा रूकू

तुम्हारा मअबूद एक मअबूद है(1)
(1) अल्लाह तआला, जो अपनी ज़ात और सिफ़ात में नज़ीर और शरीक से पाक है.

तो वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते उनके दिल इन्कारी हैं(2)
(2)वहदानियत के.

और वो मग़रूर (घमण्डी) हैं(3){22}
(3) कि सच्चाई ज़ाहिर हो जाने के बावुज़ूद उसका अनुकरण नहीं करते.

हक़ीक़त में अल्लाह जानता है जो छुपाते और जो ज़ाहिर करते हैं बेशक वह घमण्डियों को पसन्द नहीं फ़रमाता{23} और जब उनसे कहा जाए(4)
(4) यानी लोग उनसे पूछें कि-

तुम्हारे रब ने क्या उतारा(5)
(5) मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाह अलैहे वसल्लम पर, तो-

कहें अगलों की कहानियां हैं(6){24}
(6) यानी झूटे क़िस्मे कोई मानने की बात नहीं. यह आयत नज़र बिन हारिस के बारे में उतरी, उसने बहुत सी कहानियाँ याद कर ली थीं. उससे जब कोई क़ुरआन शरीफ़ की निस्बत पूछता तो वह जानने के बावुज़ूद कि क़ुरआन शरीफ़ चमत्कृत किताब और सत्य व हिदायत से भरपूर है, लोगों को गुमराह करने के लिये यह कह देता कि ये पहले लोगों की कहानियां हैं और ऐसी कहानियाँ मुझे भी बहुत याद हैं. अल्लाह तआला फ़रमाता है कि लोगों को गुमराह करने का अंजाम यह हैं-

कि क़यामत के दिन अपने(7)
(7) गुनाहों और गुमराही और सीधी राह से विचिलित करने के-
बोझ पूरे उठाएं और कुछ बोझ उनके जिन्हें अपनी जिहालत से गुमराह करते हैं, सुन लो क्या ही बुरा बोझ उठाते हैं{25}

16 सूरए नहल -चौथा रूकू

16 सूरए नहल -चौथा रूकू


बेशक उनके अगलों ने(1)
(1) यानी पहली उम्मतों ने अपने नबियों के साथ.

धोखा किया था तो अल्लाह ने उनकी चुनाई को नींव से लिया तो ऊपर से उनपर छत गिर पड़ी और अज़ाब उनपर वहां से आया जहां कि उन्हें ख़बर न थी(2){26}
(2) यह एक मिसाल है कि पिछली उम्मतों ने अपने रसूल के साथ छलकपट करने के लिये कुछ योजनाएं बनाई थीं. अल्लाह तआला ने उन्हें ख़ुद उन्हीं के मन्सूबों में हलाक किया  उनका हाल ऐसा हुआ जैसे किसी क़ौम ने कोई बलन्द इमारत बनाई फिर वह इमारत उनपर गिर पड़ी और वो हलाक हो गए. इसी तरह काफ़िर अपनी मक्कारियों से ख़ुद बर्बाद हुए. मुफ़स्सिरों ने यह भी ज़िक्र किया है कि इस आयत में अगले छलकपट करने वालों से नमरूद बिन कनआन मुराद है जा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने में ज़मीन का सबसे बड़ा बादशाह था. उसने बाबुल में बहुत ऊंची एक इमारत बनाई थी जिसकी ऊंचाई पांच हज़ार गज़ थी और उसका छल यह था कि उसने यह ऊंची इमारत अपने ख़याल में आसमान पर पहुंचने और आसमान वालो से लड़ने के लिये बनाई थी. अल्लाह तआला ने हवा चलाई और वह इमारत उनपर गिर पड़ी और वो लोग हलाक हो गए.

फिर क़यामत के दिन उन्हें रूस्वा करेगा और फ़रमाएगा कहां हैं मेरे वो शरीक(3)
(3)  जो तुम ने घड़ लिये थे और-

जिन में तुम झगड़ते थे (4)
(4)  मुसलमानों से-

इल्म वाले(5)
(5)  यानी उन उम्मतों के नबी और उलमा जो उन्हें दुनिया में ईमान की दावत देते और नसीहत करते थे और ये लोग उनकी बात न मानते थे.

कहेंगे आज सारी रूस्वाई और  बुराई(6)
(6) यानी अज़ाब.

काफ़िरों पर हैं{27} वो कि फ़रिश्ते उनकी जान निकालते हैं इस हाल पर कि वो अपना बुरा कर रहे थे(7)
(7) यानी कुफ़्र में जकड़े हुए थे.

अब सुलह डालेंगे(8)
(8) और मरते वक़्त अपने कुफ़्र से मुकर जाएंगे और कहेंगे-

कि हम तो कुछ बुराई न करते थे(9)
(9) इसपर फ़रिश्ते कहेंगे-

हाँ क्यों नहीं बेशक अल्लाह ख़ूब जानता है जो तुम्हारे कौतूक थे(10){28}
(10) लिहाज़ा यह इन्कार तुम्हें मुफ़ीद नहीं.

अब जहन्नम के दरवाज़ों में जाओ कि हमेशा उसमें रहो, तो क्या ही बुरा ठिकाना घमण्डियों का{29} और  डरवालों (11)
(11) यानी ईमानदारों.

से कहा गया तुम्हारे रब ने क्या उतारा, बोले ख़ूबी(12)
(12) यानी क़ुरआन शरीफ़ जो ख़ूबियों का जमा करने वाला और अच्छाईयों और बरकतों का स्त्रोत और दीन और दुनिया के खुले और छुपे कमालात का सरचश्मा है. अरब के क़बीले हज के दिनों में हज़रत नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हाल की तहक़ीक़ के लिये मक्कए मुकर्रमा को एलची भेजते थे. ये एलची जब मक्कए मुकर्रमा पहुंचते और शहर के किनारे रास्तों पर उन्हें काफ़िरों के कारिन्दे मिलते, (जैसा कि पहले जिक्र हो चुका है) उनसे ये एलची नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का हाल पूछते तो वो बहकाने पर ही तैनात होते थे, उनमें से कोई हुज़ूर को जादूगर कहता, कोई तांत्रिक,कोई शायर, कोई झूटा, कोई पागल और इसके साथ यह भी कह देते कि तुम उनसे न मिलना यही तुम्हारे लिये बेहतर है. इसपर एलची कहते कि अगर हम मक्कए मुकर्रमा पहुंच कर बग़ैर उनसे मिले अपनी क़ौम की तरफ़ वापस हो तो हम बुरे एलची होंगे और ऐसा करना एलची के कर्तव्यों की अवहेलना और क़ौम की ख़यानत होगी. हमें जांच पड़ताल के लिये भेजा गया है. हमारा फ़र्ज़ है कि हम उनके अपनों और परायों सब से उनके हाल की तहक़ीक़ करें और जो कुछ मालूम हो उसमें कमी बेशी किये बिना क़ौम को सूचित करें. इस ख़याल से वो लोग मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल हो कर सहाबए किराम से भी मिलते थे और उनसे आपके हाल की पूछताछ करते थे. सहाबए किराम उन्हें तमाम हाल बताते थे और नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हालात और कमालात और क़ुरआन शरीफ़ के मज़ामीन से सूचित करते थे. उनका जिक्र इस आयत में फ़रमाया गया.

जिन्होंने इस दुनिया में भलाई की(13)
(13) यानी ईमान लाए और नेक कर्म किये.

उनके लिये भलाई हैं(14)
(14) यानि हयाते तैय्यिबह है और फ़त्ह व विजय व रिज़्क में बहुतात वग़ैरह नेअमतें.

और  बेशक पिछला घर सबसे बेहतर, और  ज़रूर(15)
(15) आख़िरत की दुनिया.

क्या ही अच्छा घर परहेज़गारों का{30} बसने के बाग़ जिनमें जाएंगे उनके नीचे नेहरें बहती उन्हें वहां मिलेगा जो चाहें(16)
(16) और यह बात जन्नत के सिवा किसी को कहीं भी हासिल नहीं.

अल्लाह ऐसा ही सिला देता है परहेज़गारों को{31} वो जिनकी जान निकालते हैं फ़रिश्ते सुथरेपन में(17)
(17) कि वो शिर्क और कुफ़्र से पाक होते हैं और उनकी कहनी व करनी और आचार व संस्कार और आदतें पवित्र और पाकीज़ा होती हैं. फ़रमाँबरदारी साथ होती है, हराम और वर्जित के दाग़ों से उनके कर्म का दामन मैला नहीं होता. रूह निकाले जाने के वक़्त उनको जन्नत और रिज़्वान और रहमत व करामत की ख़ुशख़बरी दी जाती है. इस हालत में मौत उन्हें ख़ुशगवार मालूम होती है और जान फ़रहत और सुरूर के साथ जिस्म से निकलती है और फ़रिश्ते इज़्ज़त के साथ उसे निकालते हैं. (खाजिन)

यह कहते हुए कि सलामती हो तुम पर(18)
(18) रिवायत है कि मौत के वक़्त फ़रिश्ता ईमान वाले के पास आकर कहता है ऐ अल्लाह के दोस्त, तुझ पर सलाम और अल्लाह तआला तुझ पर सलाम फ़रमाता है और आख़िरत में उनसे कहा जाएगा…

जन्नत में जाओ बदला अपने किये का{32} काहे के इन्तिज़ार में हैं(19)
(19) काफ़िर क्यों ईमान नहीं लाते, किस चीज़ के इन्तिज़ार में हैं.

मगर इसके कि फ़रिश्ते उनपर आएं(20)
(20) उनकी रूहे निकालने..

या तुम्हारे रब का अज़ाब आएं(21)
(21) दुनिया में या क़यामत के दिन.

उनसे अगलों ने भी ऐसा ही किया (22)
(22) यानी पहली उम्मतों ने भी कि कुफ़्र और झुटलाने पर अड़े रहे.

और  अल्लाह ने उनपर कुछ ज़ुल्म न किया हां वो ख़ुद ही (23)
(23) कुफ़्र अपना कर.

अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे{33} तो उनकी बुरी कमाईयां उनपर पड़ीं(24)
(24) और उन्होंने अपने बुरे कर्मों की सज़ा पाई.

और  उन्हें घेर लिया उसने (25)
(25) अज़ाब.
जिस पर हंसते थे {34}

16 सूरए नहल – पांचवाँ रूकू

16 सूरए नहल – पांचवाँ रूकू

और मुश्रिक बोले अल्लाह चाहता तो उसके सिवा कुछ न पूजते न हम और न हमारे बाप दादा और न उससे अलग होकर हम कोई चीज़ हराम ठहराते(1)
(1)बहीरा और सायबा की तरह. इससे उनकी मुराद यह थी कि उनका शिर्क करना और इन चीज़ों को हराम क़रार दे लेना अल्लाह की मर्ज़ी से है. इसपर अल्लाह तआला ने फ़रमाया.

ऐसा ही उनसे अगलों ने किया(2){26}
(2) कि रसूलों को झुटलाया और हलाल को हराम किया और ऐसे ही हंसी मज़ाक की बातें कहीं.

तो रसूलों पर क्या है मगर साफ़ पहुंचा देना (3){35}
(3) सच्चाई का ज़ाहिर कर देना और शिर्क के ग़लत और बुरा होने पर सूचित करना.

और बेशक हर उम्मत में हमने एक रसूल भेजा(4)
(4) और हर रसूल को हुक्म दिया कि वो अपनी क़ौम से फ़रमाएं.

कि अल्लाह को पूजो और शैतान से बचो तो उनमें(5)
(5) उम्मतों—

किसी को अल्लाह ने राह दिखाई (6)
(6) वो ईमान लाए.

और किसी पर गुमराही ठीक उतरी(7)
(7) वो अपनी अज़ली दुश्मनी और हटधर्मी से कुफ़्र पर मरे और ईमान से मेहरूम रहे.

तो ज़मीन में चल फिर कर देखो कैसा अंजाम हुआ झुटलाने वालों का (8){36}
(8) जिन्हें अल्लाह ने हलाक किया और उनके शहर वीरान किये. उजड़ी बस्तियां उनके हलाल की ख़बर देती हैं. इसको देखकर समझ लो कि अगर तुम भी उनकी तरह कुफ़्र और झुटलाने पर अड़े रहे तो तुम्हारा भी ऐसा ही अंजाम होना है.

अगर तुम उनकी हिदायत की हिर्स (लोभ) करो(9)
(9) ऐ मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, इस हाल में कि ये लोग उनमें से हैं जिनकी गुमराही साबित हो चुकी और उनकी शक़ावत पुरानी है.

तो बेशक अल्लाह हिदायत नहीं देता जिसे गुमराह करे और उनका कोई मददगार नहीं{37} और उन्होंने अल्लाह की क़सम खाई अपने हलफ़ में हद की कोशिश से कि अल्लाह मुर्दे न उठाएगा(10)
(10) एक मुश्रिक एक मुसलमान का क़र्ज़दार था. मुसलमान ने उससे अपनी रकम मांगी. बात चीत के दौरान उसने इस तरह की क़सम खाई कि उसकी क़सम, जिसमें मैं मरने के बाद मिलने की तमन्ना रखता हूँ. इसपर मुश्रिक ने कहा कि क्या तेरा यह ख़्याल है कि तू मरने के बाद उठेगा और मुश्रिक ने क़सम खा कर कहा कि अल्लाह मुर्दे न उठाएगा. इसपर यह आयत उतरी और फ़रमाया गया.

हां क्यों नहीं(11)
(11) यानी ज़रूर उठाएगा.

सच्चा वादा उसके ज़िम्मे पर लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते(12){38}
(12) इस उठाने की हिकमत और उसकी क़ुदरत, बेशक वह मुर्दों को उठाएगा.

इसलिये कि उन्हें साफ़ बतादे जिस बात में झगड़ते थे (13)
(13) यानी मुर्दों को उठाने में कि वह सत्य है.

और इसलिये कि काफ़िर जान लें कि वो झूठे थे(14){39}
(14) और मुर्दों के ज़िन्दा किये जाने का इन्कार ग़लत.

जो चीज़ हम चाहें उससे हमारा फ़रमाना यही होता है कि हम कहें होजा वह फ़ौरन हो जाती है(15){40}
(15) तो हमें मुर्दों का ज़िन्दा करना क्या दुशवार है.