8- सूरए अनफ़ाल – पांचवाँ रूकू
तुम काफ़िरों से फ़रमाओ अगर वो बाज़ रहे तो जो हो गुज़रा वह उन्हें माफ़ कर दिया जाएगा(1)
और अगर फिर वही करें तो अगलों का दस्तूर (तरीक़ा) गुज़र चुका (2){38}
और अगर उनसे लड़ो यहाँ तक कि कोई फ़साद (3)
बाक़ी न रहे और सारा दीन अल्लाह का होजाए फिर अगर वो बाज़ रहें तो अल्लाह उनके काम देख रहा है {39} और अगर वो फिरें (4)
तो जान लो कि अल्लाह तुम्हारा मौला है(5)
तो क्या ही अच्छा मौला और क्या ही अच्छा मददगार{40}
दसवाँ पारा – वअलमू
(सूरए अनफ़ाल जारी)
और जान लो कि जो कुछ ग़नीमत (युद्ध के बाद हाथ आया माल) लो (6)
तो उसका पांचवाँ हिस्सा ख़ास अल्लाह और रसूल और क़राबत (रिशतेदार) वालों और यतीमों और मोहताजों और मुसाफ़िरों का है (7)
अगर तुम ईमान लाए हो अल्लाह पर और उसपर जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारा जिसमें दोनों फ़ौजें मिली थीं (8)
और अल्लाह सब कुछ कर सकता है {41} जब तुम नाले के किनारे थे (9)
और काफ़िर परले किनारे और क़ाफ़िला (10)
तुमसे तराई में(11)
और अगर तुम आपस में कोई वादा करते तो ज़रूर वक़्त पर बराबर न पहुंचते (12)
लेकिन यह इसलिये कि अल्लाह पूरा करे जो काम होना है (13)
कि जो हलाक हो दलील से हलाक हो(14)
और जो जिये दलील से जिये(15)
और बेशक अल्लाह ज़रूर सुनता है{42} जब कि ऐ मेहबूब अल्लाह तुम्हें काफ़िरों को तुम्हारे ख़्वाब में थोड़ा दिखाता था (16)
और ऐ मुसलमानो अगर वह तुम्हें बहुत करके दिखाता तो ज़रूर तुम बुज़दिली करते और मामले में झगड़ा डालते(17)
मगर अल्लाह ने बचा लिया (18)
बेशक वह दिलों की बात जानता है {43} और जब लड़ते वक़्त (19)
तुम्हें करके दिखाए(20)
और तुम्हें उनकी निगाहों में थोड़ा किया (21)
कि अल्लाह पूरा करे जो काम होना है (22)
और अल्लाह की तरफ़ सब काम पलटने वाले हैं {44}
तफ़सीर सूरए अनफ़ाल -पांचवां रूकू
(1) इस आयत से मालूम हुआ कि काफ़िर जब कुफ़्र से बाज़ आए और इस्लाम लाए तो उसका पहला कुफ़्र और गुनाह माफ़ हो जाते हैं.
(2) कि अल्लाह तआला अपने दुश्मनों को हलाक करता है और अपने नबियों और वलियों की मदद करता है.
(3) ग़नी शिर्क.
(4) ईमान लाने से.
(5) तुम उसकी मदद पर भरोसा रखो.
पारा नौ समाप्त
सूरए अनफ़ाल पाँचवाँ रूकू (जारी)
(6) चाहे कम या ज़्यादा, ग़नीमत वह माल है जो मुसलमानों को काफ़िरों से जंग में विजय के बाद हासिल हो. माले ग़नीमत पाँच हिस्सों पर तक़सीम किया जाए. इसमें से चार हिस्से लड़ने वालों के लिये.
(7) ग़नीमत का पाँचवा हिस्सा, फिर पाँच हिस्सों पर तक़सीम होगा. इनमें से एक हिस्सा जो कुल माल का पच्चीसवाँ हिस्सा हुआ, वह हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के लिये है. और एक हिस्सा आपके एहले क़राबत के लिये. और तीन हिस्से यतीमों और मिस्कीनों मुसाफ़िरों के लिये. रसूले करीम के बाद हुज़ूर और आपके एहले क़राबत के हिस्से भी यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िरों को मिलेंगे और यह पाँचवाँ हिस्सा इन्ही तीन पर तक़सीम हो जाएगा. यही क़ौल है इमाम आज़म अबू हनीफ़ा रदियल्लाहो अन्हो का.
(8) इस दिन से बद्र का दिन मुराद है और दोनों फ़ौजों से मुसलमानों और काफ़िरों की फ़ौजें. और यह घटना सत्रह या उन्नीस रमजा़न को पेश आई. रसूलल्लाह के सहाबा की संख्या तीन सौ दस से कुछ ज़्यादा थी और मुश्रिक हज़ार के क़रीब थे. अल्लाह तआला ने उन्हें परास्त किया. उनमें से सत्तर से ज़्यादा मारे गए और इतने ही गिरफ़्तार हुए.
(9) जो मदीनए तैय्यिबह की तरफ़ है.
(10) क़ुरैश का, जिसमें अबू सुफ़ियान वग़ैरह थे.
(11) तीन मील के फ़ासले पर समु्द्र तट की तरफ़.
(12) यानी अगर तुम और वो आपस में जंग का कोई समय निर्धारित करते, फिर तुम्हें अपनी अल्पसंख्या और बेसामानी और उनकी कसरत और सामान का हाल मालूम होता तो ज़रूर तुम दहशत और अन्देशे से मीआद में इख़्तिलाफ़ करते.
(13) यानी इस्लाम और मुसलमानों की जीत और दीन का सम्मान और दीन के दुश्मनों की हलाकत, इसलिये तुम्हें उसने बे मीआदी जमा कर दिया.
(14) यानी खुला तर्क क़ायम होने और इबरत का मुआयना कर लेने के बाद.
(15) मुहम्मद बिन इस्हाक़ ने कहा कि हलाक से कुफ़्र और हयात से ईमान मुराद है. मानी ये हैं कि जो कोई काफ़िर हो, उसको चाहिये कि पहले हुज्जत या तर्क क़ायम करे और ऐसे ही जो ईमान लाए वह यक़ीन के साथ ईमान लाए और हुज्ज्त एवं दलील से जान ले कि यह सच्चा दीन है. बद्र का वाक़िआ खुली निशानियों में से है. इसके बाद जिसने कुफ़्र इख़्तियार किया वह घमण्डी है और अपने नफ़्स को धोखा देता है.
(16) यह, अल्लाह तआला की नेअमत थी कि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को काफ़िरों की संख्या थोड़ी दिखाई गई और आपने अपना यह ख़्वाब सहाबा से बयान किया. इससे उनकी हिम्मतें बढ़ीं और अपनी कम ताक़ती का अन्देशा न रहा और उन्हें दुश्मन पर जुरअत पैदा हुई और दिल मज़बूत हुए. नबियों का ख़्वाब सच्चा होता है. आपको काफ़िर दिखाए गए थे और ऐसे काफ़िर जो दुनिया से बे ईमान जाएं और कुफ़्र पर ही उनका अन्त हो. वो थोड़े ही थे, क्योंकि जो लश्कर मुक़ाबले पर आया था उसमें काफ़ी लोग थे जिन्हें अपनी ज़िन्दग़ी में ईमान नसीब हुआ और ख़्वाब में कम संख्या की ताबीर कमज़ोरी से है. चुनांचे अल्लाह तआला ने मुसलमानों को ग़ालिब फ़रमाकर काफ़िरों की कमज़ोरी ज़ाहिर फ़रमा दी.
(17) और अडिग रहने या भाग छूटने के बीच हिचकिचाते हुए रहते.
(18) तुमको बुज़दिली, हिचकिचाहट और आपसी मतभेद से.
(19) ऐ मुसलमानों!
(20) हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि वो हमारी नज़रों में इतने कम जचे कि मैंने अपने बराबर वाले एक आदमी से पूछा क्या तुम्हारे गुमान में काफ़िर सत्तर होंगे, उसने कहा मेरे ख़्याल से सौ हैं और थे हज़ार.
(21) यहां तक अबूजहल ने कहा कि इन्हें रस्सियों में बाँध लो जैसे कि वह मुसलमानों की जमाअत को इतना कम देख रहा था कि मुक़ाबला करने और युद्ध करने के लायक़ भी ख़्याल नहीं करता था और मुश्रिकों को मुसलमानों की संख्या थोड़ी दिखाने में यह हिकमत थी कि मुश्रिक मुक़ाबले पर जम जाएं, भाग न पड़े और यह बात शुरू में थी, मुक़ाबला होने के बाद उन्हें मुसलमान बहुत अधिक नज़र आने लगे.
(22) यानी इस्लाम का ग़लबा और मुसलमानों की जीत और शिक की दमन और मुश्रिकों का अपमान और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के चमत्कार का इज़हार कि जो फ़रमाया था वह हुआ कि अल्पसंख्यक जमाअत भारी भरकम लश्कर पर ग़ालिब आई.
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